अधखिला फूल / अध्याय 3 / हरिऔध

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जिस खेत में यह टूटा हुआ तारा गिरा, उसमें देखते-ही-देखते एक भीड़ सी लग गयी, लोग पर लोग चले आते थे, और सब यही चाहते थे, किसी भाँत भीड़ चीरकर उस तारे तक पहुँचें, पर इतने लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे, जिससे पीछे आये हुए लोगों का उसके पास तक पहुँचना कठिन था। जितना मुँह उतनी बातें सुनने में आती थीं, सब इस सोच में डूबे हुए थे, यह क्या है। टूटे हुए तारे के चारों ओर बहुत लोग खड़े थे, पर उनमें से एक भी इतना जीवट नहीं रखता था, जो उसको छूकर उसका भेद बतलावे, कुछ घड़ी यों ही बीती, वह जैसे पहले एक पत्थर की बड़ी चट्टान की भाँति खेत में पड़ा हुआ था, अब भी बिना हिले-डुले वैसे ही पड़ा है, पर उसको कोई हाथ तक नहीं लगा सकता। पीछे एक ने कुछ जीवट किया, अपना कलेजा थामा, और दूर से एक ढेला उस पर फेंका। ढेला सनसनाता हुआ आकर उस पर गिरा, उस सुनसान रात में खटाक का शब्द हुआ, और फिर वैसा ही सन्नाटा छा गया। वह तनिक हिला तक नहीं, जैसे पहले पड़ा था वैसे ही पड़ा रहा। अब की बार एक दूसरे जन ने एक मोटी लाठी से ठोक-ठोक कर उसको भली-भाँति देखा, और कहा, यह तो पत्थर की चट्टान है, कोई डरने की बात नहीं है, सब लोग पास आओ इसको देखो जो मैं कहता हूँ सच है कि नहीं। धीरे-धीरे छड़ी औेर हाथों से टटोल कर सब लोगों ने इस दूसरे जन की बात मानी, पर अब यह सोचा जाने लगा, आकाश से इतनी बड़ी पत्थर की चट्टान क्योंकर गिरी।

लोग यह सोच रहे थे, इसी बीच एक बूढ़ा बोल उठा-भाइयो! यह मैनाक पहाड़ का एक टुकड़ा है, पहले पहाड़ों को पंख होते थे, इसलिए वे सब उड़ते और बहुत से गाँवों को गिरकर उजाड़ दिया करते थे, जब यह बात राजा इन्द्र से न देखी गयी, तो उन्होंने अपने हथियार से सब पहाड़ों का पंख काट डाला। मैनाक उनके डर से भागा, और समुद्र में जाकर छिप रहा, इससे वह आज तक बचा हुआ है। जान पड़ता है इस कलयुग में वह फिर समुद्र से निकला है, और उड़ता हुआ किसी गाँव पर गिरने के लिए किसी ओर गया है, उसी से यह एक टुकड़ा निकल कर यहाँ गिर पड़ा है, यह एक मन से घट थोड़े ही होगा। जो उसमें से निकल कर न गिरता, तो आकाश में इतना बड़ा पत्थर का टुकड़ा कहाँ से आता। बड़ी कुशल हुई जो मैनाक इसी गाँव पर नहीं गिरा, नहीं तो आज हम लोगों को कहीं ठिकाना भी न मिलता।

एक बूढ़े पुराने ढंग के पण्डित भी वहाँ खड़े थे, वे बोले, यह बात नहीं है, जो यह मैनाक का टुकड़ा होता तो इसमें जोत कहाँ से आती, आप लोगों ने नहीं देखा था, इसके गिरने के समय कैसा उजाला हुआ था, और जब यह आकाश से नीचे को आ रहा था, जान पड़ता था सूरज का टुकड़ा धरती की ओर आ रहा है। मैं समझता हूँ, यह स्वर्ग का कोई जीव है, किसी शाप से पत्थर होकर धरती में आया है। पुराणों में लिखा है अपने पति के शाप से अहल्या को पत्थर होना पड़ा था, जान पड़ता है यही दशा इसकी भी हुई है। अभी घड़ी भर पहले दूसरे तारों की भाँत आकाश में ये भी चमकते रहे होंगे, पर जग का कैसा ढंग है, जो घड़ी भर पीछे हम इनको पत्थर होकर धूल मिट्टी के बीच एक खेत में पड़ा हुआ पाते हैं। राम का नाम जपने के लिए इससे बढ़कर और कौन सी डरावनी बात दिखलायी जा सकती है।

एक नए पढ़े बाबू भी वहाँ खड़े थे, बोले आप लोग जो कहें, पर जहाँ तक मैं सोचता हूँ टूटे हुए तारे छोड़ यह और कुछ नहीं है। आकाश में इतने बड़े और इससे कई गुने लम्बे चौड़े और छोटे अनगिनत टुकड़े दिन रात चक्कर लगाया करते हैं, दिन पाकर जब ऐसे बहुत से टुकड़े धीरे-धीरे इकट्ठे हो जाते हैं, तो एक तारा बन जाता है, इस तारे में कुछ दिनों में जोत भी आ जाती है, और तब यह चमकीला हो जाता है। ऐसे ही बनने के बहुत दिनों पीछे बहुत से तारे बिखर भी जाते हैं। जिस घड़ी ये बिखरते हैं, उस बेले इनके अनगिनत टुकड़े आकाश में इधर-उधर फैलते हैं, उनमें से पहले की भाँति बहुत से फिर आकाश ही में चक्कर लगाने लगते हैं, बहुत से इतने छोटे होते हैं, जो कठिनाई से देखे जा सकते हैं, जो कुछ इनसे बड़े होते हैं, वे आकाश से धरती पर पहुँचते-पहुँचते राख बन जाते हैं, इनमें जो बहुत बड़े होते हैं, वे कभी-कभी धरती पर भी आन गिरते हैं। ऐसी बात सैकड़ों ठौर हो चुकी है, कुछ पहले पहल यहीं यह बात नहीं हुई है। आप लोग इसको भली-भाँति देखें, यह पत्थर की चट्टान नहीं है, जिन सब वस्तुओं से हमारी यह धरती बनी है, वे ही सब वस्तुएँ इसमें भी हैं।

ये सब बातें हो ही रही थीं, इसी बीच पूर्व ओर से बहुत बड़ा धक्का आया, जिससे सामने के सब लोगों के पाँव उखड़ गये, और एक लड़का धड़ाम से उसी टूटे हुए तारे के ऊपर गिर पड़ा, गिरते ही उसके सिर में बहुत चोट आयी, सिर फूट गया, लहू बहने लगा, और वह अचेत हो गया। यह देखकर सब लोग घबरा उठे, और फिर जितने मुँह उतनी बातें सुनी जाने लगीं। दो-चार लोगों ने धर-पकड़कर उस लड़के को उसके घर पहुँचाया, और धीरे-धीरे यह चर्चा गाँव भर में फैल गयी। थोड़ी ही बेर में टूटे हुए तारे के पास की भीड़ भी छँट गयी।