साथ चलते हुए / अध्याय 22 / जयश्री रॉय

Gadya Kosh से
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दूसरे दिन उठते ही पुनिया ने उसे खबर दी थी, मानिनी ने आत्महत्या कर ली है, उसी चंपा के पेड़ से लटककर! सुनकर वह देर तक चुपचाप बैठी रह गई थी। कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाई थी। कौशल ने सुरजन को भेजा था, एक स्थानीय कार्यकर्ता, उसे जुलूस में ले जाने के लिए, मगर वह जा नहीं पाई थी।

पहले मृत्यु महज एक शब्द था उसके लिए, मगर आज उसके जीवन का सबसे बड़ा यथार्थ है, ऐसा यथार्थ जिसकी भयावह अनुभूति में जीने के लिए वह हर पल अभिशप्त है। मरता कोई भी हो, कहीं भी, मगर उसके लिए हर बार उसकी काजोल मरती है... और साथ में वह भी।

मृत्यु को बार-बार जीना - इस तरह से... बहुत त्रासद था उसके लिए। दिन भर जंगलों में भटकती रही थी उस दिन। कई चेहरे एकसाथ उसका पीछा करते रहे थे हर जगह। एक पल के लिए भी वह उनसे पीछा छुड़ा नहीं पाई थी। दो भयार्त आँखों की चावनी - कातर और मूक... डरी हुई हिरणी की तरह, उससे क्या कुछ कहती रहती थी। उसके कान झनझनाते रहे थे, मौन के चीत्कार से! मन विदीर्ण हो गया था। कहाँ जाय वह कि छूट जाय इस यंत्रणा से!

आकाश पर कुछ बादल उतरे थे, मगर एकदम ठहरे हुए, जैसे पत्थर के टुकड़े हों - मैले, धूसर... दोपहर की तेज धूप में गुलमोहर के फूल जल रहे थे, पूरे जंगल में जैसे आग लगी हो... वह अनासक्त भाव से सब कुछ देखती रही थी... अंतस में भी कुछ ऐसा ही था - धू-धू करता हुआ - दावानल!... आकाश बरस जाय या वही खुद को निचोड़कर आखिरी बूँद तक रो ले कि यह दाह कुछ शांत हो, अब असहनीय हो रहा है!

सुगना की क्षीण धारा के किनारे वह बैठी रही थी। माथे पर प्राचीन बरगद की छाँह ओढे, मगर धूप से बच नहीं पाई थी, पिघलती रही थी ओर-छोर... बँसवारी में छिपकर तीतर बोलता रहा था रुक-रुककर, सारी दोपहर ही - एकदम अलस और बोझिल... ऊपर उल्टी-पल्टी चलती हवा में पीपल की किरमिची हथेलियाँ आईना चमकाती रही थी। पानी में दोपहर का गर्म आकाश रह-रहकर कौंध रहा था चाँदी की पन्नी की तरह!

शाम के गिरते-गिरते कौशल वहाँ पहुँच गया था, साथ में पुनिया भी थी। दोनों उसे ढूँढ़ते हुए वहाँ पहुँचे थे। कौशल शायद सारा दिन ही धूप में घूमता रहा था। उसका रंग जलकर एकदम गहरा ताँबई हो रहा था। आते ही नाराज हो उठा था -

अब यह क्या है अपर्णा, कितनी बार कहा, इस तरह से इधर अकेली मत निकला करो...

वह बिना कुछ कहे सर झुकाए उनके पीछे-पीछे चलती रही थी। कहती भी तो क्या!

- मानिनी को भी श्मशान पहुँचा आया...

चलते हुए कौशल ने कहा था। वह फिर भी चुप रह गई थी। उसी चिता में अब तक वह भी जल रही थी, कह नहीं पाई थी।

- आज विरोध प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज हुआ, गिरफ्तारियाँ हुईं... निरंजन दा को भी अंदर कर दिया गया... वह तो मैं तब तक मानिनी के क्रिया-कर्म के लिए निकल चुका था, वर्ना... असल में जिस खनन कंपनी का विरोध चल रहा है, उसके डाइक्टरों में हमारे केंद्रीय मंत्रीजी भी हैं। उन्हीं के साले साहब के राजपाट में अशांति फैलाई थी अभागे गोपाल ने... मरना तो उसे था ही...

थोड़ा रुककर कौशल ने अपनी आवाज नीची करके कहा था, मगर एक गड़बड़ हो गई, मिस्टर हडसन का अपहरण कर लिया गया है। यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है, इस मूवमेंट को बदनाम करने के लिए... हो न हो, यह किसी बाहरी आदमी की हरकत है... सब कुछ बहुत मुश्किल, बहुत पेचीदा होता जा रहा है। अब गरीबों पर आफत टूट पड़ेगी... इस अपहरण से बाहरी दुनिया को एक बहुत गलत संदेश पहुँचेगा। हमारा आंदोलन लोगों की सहानुभूति खो देगा जो ठीक बात नहीं। यही तो कुछ लोग चाहते हैं... अपर्णा चलते हुए चुपचाप उसकी बातें सुनती रही थी।

बँगले के गेट के पास पहुँचकर वह अचानक रुक गई थी - मैं आपका धन्यवाद करना चाहती थी कौशल...

- किसलिए?

कौशल भी रुक गया था।

- मुझे इस दुनिया से जोड़ने के लिए... बहुत अकेली थी मैं... अब जैसी भी हूँ, कम से कम अकेली नहीं हूँ...

कौशल थोड़ी देर तक उसकी तरफ देखता रहा था, न जाने कैसी नजर से, फिर बिना कुछ कहे अपनी जीप की ओर बढ़ गया था -

मैं फिर आऊँगा, अभी जाना होगा, थोड़ा काम है...