"इनसाइड जॉब" लालच की लहरों पर मंदी की कश्ती / राकेश मित्तल

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"इनसाइड जॉब" लालच की लहरों पर मंदी की कश्ती
प्रकाशन तिथि : 16 मार्च 2013


सन् 2008 की आर्थिक मंदी ने पूरे विश्व को झकझोर दिया था। चंद सप्ताह में लगभग बीस ट्रिलियन डॉलर के नुकसान ने करोड़ों लोगों को बेरोजगार, बेघर और दिवालिया बना दिया। शेयरों के दाम आसमान से जमीन पर आ गए। बहुमूल्य मकानों की कीमत एक-चौथाई से भी कम रह गई। आखिर यह सब हुआ कैसे? इसकी शुरूआत कहां से हुई? कौन लोग इसके जिम्मेदार थे? इन सब सवालों के जवाब तलाशती है ‘इनसाइड जॉब’। वर्ष 2010 में बनी इस वृत्तचित्र नुमा फिल्म को सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फिल्म का ऑस्कर प्राप्त हुआ था। फिल्म के लेखक, निर्माता एवं निर्देशक हैं चार्ल्स फरग्यूसन।

यह फिल्म बताती है कि किस तरह मुट्ठीभर लोगों की साजिश, लालच और गैर-जिम्मेदाराना हरकतों ने समूचे विश्व को आर्थिक सुनामी के मुहाने पर ला खड़ा किया। ऐसी कौन-सी परिस्थितियां और कारण बनते चले गए जिनके चलते लेहमन ब्रदर्स और एआईजी जैसी विशालकाय कंपनियां दिवालिया हो गईं और पूरा विश्व घोर आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया। विश्व इतिहास में 1922 के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक विनाश था, जिसके घाव आज भी हरे हैं।

यह फिल्म गहन शोध एवं पड़ताल का नतीजा है। इसमें विश्व के प्रमुख वित्तीय प्रबंधकों, विशेषज्ञों, राजनेताओं एवं पत्रकारों से साक्षात्कार के जरिए सीधी बातचीत की गई है, जो इसकी विश्वसनीयता को पुख्ता करती है। आर्थिक विषयों में जरा भी दिलचस्पी रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह फिल्म अवश्य देखना चाहिए।

फिल्म की शुरूआत छोटे-से देश आइसलैंड से होती है। समय है वर्ष 2000 का, जब वहां वित्तीय अनुशासन नहीं के बराबर था। उन्हीं दिनों सरकार ने वहां बैंकों का निजीकरण किया था, जिसके चलते कई विदेशी बैंकों ने अपनी शाखाएं आइसलैंड में खोल ली थीं। उन दिनों अमेरिका का वित्तीय उद्योग पांच दिग्गज इंवेस्टमेंट बैंकिंग कंपनियों के कब्जे में था। ये कंपनियां थीं गोल्डमैन साक, मॉर्गन स्टैनली, लेहमन ब्रदर्स, बेयर स्टर्न्स और मैरिल लिंच। ये सब कंपनियां इस खेल में शामिल थीं। इनका साथ दे रहे थे दो बड़े वित्तीय समूह सिटी ग्रुप और जेपी मॉर्गन चेस, तीन बड़ी कंपनियां एआईजी, एम्बिया और एमबैक तथा तीन बड़ी रेटिंग एजेंसियां मूडीज, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स और फिच। इन बड़े खिलाड़ियों की आपसी मिलीभगत ने करोड़ों निवेशकों के अरबों-खरबों डॉलर डुबो दिए।

इन बैंकिंग कंपनियों ने तरह-तरह के कर्ज बांटना शुरू किए और ‘जमानती ऋण दायित्व’ के रूप में निवेशकों ने इनके बाँड्स खरीदे। इन ऋण दायित्वों को तीनों रेटिंग एजेंसियों ने ‘ट्रिपल ए’ रेटिंग से नवाजा था, यानी सबसे सुरक्षित। वर्ष 2001 से 2007 के बीच यह कर्ज का गुब्बारा फूलता रहा। इसी बीच अमेरिका में आए ‘हाउसिंग बूम’ के चलते लोग अपनी क्षमता से कई गुना अधिक कर्ज लेकर मकान खरीदने लगे और मकानों की कीमत तेजी से बढ़ती गई। इस दौरान इन इंवेस्टमेंट बैंकिंग कंपनियों का कर्ज उनकी परिसंपत्तियों से कई गुना ज्यादा तक बढ़ गया। उन संपत्तियों को बीमा कंपनियां अधिक से अधिक मूल्य बताकर बीमित करती गईं।

नवंबर 2007 में मकानों की कीमतें धराशायी हो गईं। ‘जमानती ऋण दायित्य’ खोखले हो गए, लोग लोन की किश्तें चुका नहीं पाए। बेवर स्टर्न्स के पास भुगतान के लिए कैश खत्म हो गया। इसके दो दिन बाद लेहमन ब्रदर्स ने स्वयं को दिवालिया घोषित कर दिया। फिर एआईजी, फैनी मे, फ्रैडी मैक, मेरिल लिंच जैसे बड़े-बड़े दिग्गज दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए। मार्च 2008 तक आते-आते समूचा विश्व घोर आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका था।

लेकिन इस पूरे खेल के दौरान इन सभी कंपनियों के आला अधिकारी मालामाल हो गए। इस अवधि में उन्होंने अरबों डॉलर अपनी तनख्वाह, बोनस और अन्य रियायतों के रूप में वसूले और संकट के समय इस्तीफे देकर भाग खड़े हुए। विडंबना यह है कि ओबामा प्रशासन में इनमें से अधिकांश वापस अपनी जगहों पर आ गए है, और इतने बड़े आर्थिक घोटाले के बावजूद इनका बाल भी बांका नहीं हुआ है।

यह फिल्म हमारे सामने कई गंभीर सवाल खड़े करती है। उच्चतम पदों पर आसीन लोग किस तरह अपने व्यक्तित्व हित और स्वार्थ की खातिर देश हित व आम आदमी के विश्वास की बलि चढ़ाते हैं, यह देखकर वितृष्णा होती है। इस तरह के पेचीदा विषय पर इतने दिलचस्प, सरल और प्रामाणिक ढंग से बनी हुई संभवतः यह एकमात्र फिल्म है।