"द गॉडफादर" गैंगस्टर फिल्मों की सरताज / राकेश मित्तल

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"द गॉडफादर" गैंगस्टर फिल्मों की सरताज
प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2014


कुछ फिल्में किंवदंति बन जाती हैं। सालों-साल बीतने के बाद भी उनकी ताजगी और सामयिकता बरकरार रहती है। ऐसी ही एक फिल्म है 'द गॉडफादर"। वर्ष 1972 में प्रदर्शित फ्रांसिस फोर्ड कोपोला द्वारा निर्देशित इस फिल्म को गैंगस्टर या माफिया शैली की फिल्मों का सरताज कहा जाता है। दुनिया में शायद ही किसी फिल्म की इतनी नकल हुई होगी, जितनी इसकी हुई है। इसे देखते हुए आपको अनेक हिंदी एवं अन्य भाषाओं की फिल्में याद आने लगती हैं।

'द गॉडफादर" को विश्व की महानतम फिल्मों में गिना जाता है। अमेरिकन फिल्म इंस्टीट्यूट ने इसे 'वन ऑफ द बेस्ट अमेरिकन फिल्म्स एवर मेड" की संज्ञा दी है। समीक्षकों के अलावा दर्शकों ने भी इस फिल्म को हाथों-हाथ लिया। प्रदर्शित होते ही इसने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। 1972 के अंत तक यह सिनेमा के इतिहास की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई और आने वाले कई वर्षों तक बनी रही। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए 1974 और 1990 में इसके दो सीक्वल भी बनाए गए। इस फिल्म को ग्यारह श्रेणियों में ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया, जिनमें इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ कथा (मारियो प्यूज़ो) एवं सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (मार्लन ब्रांडो) का पुरस्कार प्राप्त हुआ। इस फिल्म के बाद 'डॉन" और 'गॉडफादर" शब्द शक्तिशाली रसूखदारों के पर्यायवाची बन गए।

यह फिल्म 1945 से 1955 के बीच न्यूयॉर्क के एक माफिया सरगना परिवार की काल्पनिक कहानी है। विटो कॉर्लियोन (मार्लन ब्रांडो) इस परिवार का मुखिया है। वह अपने दोस्तों और प्रशंसकों में 'गॉडफादर" नाम से जाना जाता है। उससे सब डरते हैं। अपने धनबल, बाहुबल और राजनीतिक संबंधो के चलते वह एक शक्तिपुंज बन चुका है। उसके अपने नियम और कानून हैं, न्याय के अपने तरीके हैं। वह पैसों के बदले संरक्षण देता है, अपनी बात न माने जाने पर पिटवाता है, कत्ल करवाता है। हर तरह के काम के लिए लोग उसके पास आते हैं। नैतिकता-अनैतिकता की उसकी अपनी परिभाषा है।

उसके सबसे प्रिय और छोटे बेटे माइकल (अल पचीनो) को छोड़कर परिवार के अन्य सदस्य उसके काम में प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग करते हैं। माइकल अपने पिता से बहुत प्यार करता है किंतु उनकी गतिविध्ाियों एवं विचारों को पसंद नहीं करता और विरोध्ा स्वरूप घर छोड़कर सेना में भर्ती हो जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध में वह एक हीरो के रूप में उभरता है। युद्ध समाप्ति के बाद वह अपनी बहन की शादी के अवसर पर घर आता है। अभी भी उसका पिता के 'व्यवसाय" में हाथ बंटाने का कोई इरादा नहीं है। कुछ माह बाद परिस्थितियां अचानक करवट लेती हैं और मजबूरन उसे उसी चक्रव्यूह में दाखिल होना पड़ता है, जहां वह कभी घुसना नहीं चाहता था।

फिल्म की गति इतनी तेज है कि जो दिख रहा है, उसके अलावा कुछ सोचने का वक्त ही नहीं मिल पाता। दर्शक सांस थामे पल-पल बदलती घटनाओं और पात्रों को देख जड़वत रह जाते हैं। फिल्म की पटकथा बेहद चुस्त है। यह मार्लन ब्रांडो से ज्यादा अल पचीनो की फिल्म है। मूल उपन्यास में डॉन विटो मुख्य केंद्रीय पात्र है लेकिन फिल्म में माइकल के किरदार को ज्यादा फुटेज मिला है। दोनों मुख्य अभिनेताओं ने अपनी-अपनी भूमिकाओं में कमाल किया है। जहां मार्लन ब्रांडो ने अपनी धीमी, खरखराती आवाज, कठोर मुखमुद्रा और व्यंजक भावभंगिमाओं से डॉन विटो के व्यक्तित्व को साकार किया है, वहीं अल पचीनो ने एक युवा, तेज-तर्रार और शातिर उत्तराधिकारी के रूप में माइकल को जीवंत कर दिया है।

इस फिल्म के सामाजिक प्रभावों की आलोचना की जा सकती है क्योंकि यह अपराध का महिमामंडन करती है। इस तरह की फिल्मों के सूक्ष्म एवं दूरगामी दुष्परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते किंतु भीतर गहरे वे समाज के अवचेतन में पैठ जाते हैं। बिना किसी जवाबदेही के निरंकुश सत्ता सदैव आकर्षक प्रतीत होती है और ऐसी सत्ता पाना किसी भी युवा का सपना बन सकता है। यह एक ऐसी दुनिया हमारे सामने रखती है, जिसमें पैसा और पावर सब कुछ है और उसे किसी भी कीमत पर बनाए रखना जरूरी है, चाहे उसके कारण एक पीढ़ी के पाप के बोझ कई पीढ़ियों तक हस्तांतरित होते रहें। खैर, सामाजिक सरोकारों के परे, एक फिल्म के रूप में 'द गॉडफादर" की महत्ता निर्विवाद है। विश्व सिनेमा के इतिहास में इसे एक ट्रैंड-सेटर" फिल्म माना जाता है। यह एक 'बेस्टसेलर" उपन्यास का उससे बेहतर फिल्मी रूपांतरण है।