"द वुमन नेक्स्ट डोअर" गुजिश्ता प्रेम की परछाइयां / राकेश मित्तल

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"द वुमन नेक्स्ट डोअर" गुजिश्ता प्रेम की परछाइयां
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2013


सिनेमा की चौखट में साहसिक प्रयोगों और वैचारिक अंतरदृष्टि के लिए फ्रांस के प्रतिभाशाली फिल्मकार फ्रांसवा त्रूफा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनके सशक्त कथ्य और सिनेमाई बुनावट की दक्ष कारीगरी को नई धारा के सिनेमा की सौगात के बतौर देखा गया। त्रूफा अपनी फिल्मों में नितांत वैयक्तिक टिप्पणियों के लिए भी चर्चा का केंद्र बिंदु रहे। उन्हें फ्रांस के नव-यथार्थवादी सिनेमा का पुरोधा कहा जाता है। उनकी अधिकांश फिल्में बहुत जटिल होती हैं लेकिन 1981 में प्रदर्शित ‘द वुमन नेक्स्ट डोअर’ अपेक्षाकृत सरल बुनावट वाली फिल्म है।

बर्नार्ड (गेरार्ड डिपार्डियू) अपनी पत्नी आर्लेट (मिशेल बॉमगार्टनर) और दस वर्षीय बेटे थॉमस (ऑलिवर बेडक्वार्ट) के साथ एक सुदूर गांव में शांत और खुशहाल जिंदगी बिता रहा है। उसकी जिंदगी में अचानक भूचाल आ जाता है जब एक नव-विवाहित दंपत्ति फिलिप (हैनरी गार्सिन) और मैथिल्दे (फैनी आर्डेन्ट) उनके पड़ोस में आकर रहने लगते हैं। दरअसल मैथिल्दे बर्नार्ड की पूर्व प्रेमिका है जिसके साथ रहकर वह कुछ वर्ष पूर्व अलग हो चुका है। दोनों इस आश्चर्यजनक संयोग से अचंभित रह जाते हैं किंतु अपने हावभाव से यह कतई प्रकट नहीं होने देते कि वे एक-दूसरे से परिचित हैं आम पड़ोसियों की भांति सामान्य शिष्टाचार के साथ उनका समय गुजरने लगता है किंतु अंदर ही अंदर पुरानी यादें कसमसाने लगती हैं दोनों एक-दूसरे के सामने न आने की भरसक कोशिश करते हैं लेकिन एक बार बाजार में उनका सामना हो जाता है और बरसों पुरानी प्रेम की चिंगारी पुनः भड़क उठती है। दोनों अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते और वर्जनाएं टूटने लगती हैं। दूर रहने की लाख कोशिश करने के बावजूद वे अपने प्रयासों में सफल नहीं हो पाते और धीरे-धीरे ऐसे रास्ते पर बढ़ने लगते हैं जहां अंत में पछतावे के सिवा कुछ भी हासिल होना संभव नहीं है।

इस सामान्य-सी कहानी को त्रूफा ने अपने सिनेमाई कौशल से अविस्मरणीय बना दिया है। त्रूफा की फिल्मों में प्रेम अपने धूसर स्वरूप में रहता है। उनके पात्र प्रेम की स्वस्थ और आदर्श परंपरा से दूर रहते हैं उनमें कहीं-न-कहीं अतीत की कारगुजारियां, धोखा, अपराध बोध, तीव्र हिंसात्मक आवेग का समावेश रहता है। त्रूफा अल्फ्रेड हिचकॉक के जबर्दस्त प्रशंसक थे, इस कारण उनकी फिल्मों पर हिचकॉक का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई देता है।

त्रूफा स्वयं लेखक, अभिनेता और समीक्षक भी थे, इसलिए फिल्म की पटकथा पर वे बहुत मेहनत करते थे। इस कारण उनकी फिल्मों के हर दृश्य में कसावट बनी रहती है।। मैथिल्दे की चुनौतीपूर्ण भूमिका में फैनी आर्डेन्ट ने कमाल किया है। वे मूलतः रंगमंच की अभिनेत्री रही हैं और त्रूफा के साथ यह उनकी पहली फिल्म थी। इसके बाद त्रूफा की लगभग सभी फिल्मों की वे स्थायी अभिनेत्री हो गईं और साथ ही असल जीवन में उनकी प्रेमिका भी।

त्रूफा को अपनी फिल्में में अप्रत्याशित झटके देने में बड़ा मजा आता था। फिल्म के पात्रों के बारे में या अगले दृश्यों के बारे में आप जो भी कल्पना करते हैं, वैसा कतई नहीं होता। इस फिल्म में भी यह शैली कई जगह देखने को मिलती है।

फिल्म के संवाद पात्रों की मानसिक स्थिति को दर्शाते हैं। छोटे-छोटे बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से त्रूफा अपने पात्रों को गढ़ते जाते थे। उदाहरण के लिए एक रात अचानक आर्लेट की नींद खुलती है, तो वह बर्नार्ड को बिस्तर पर नहीं पाती। जब वह उसे ढूंढती हुई नीचे जाती है, तो पाती है कि बर्नार्ड किचन में फ्रिज खोलकर उसकी रोशनी में जमीन पर बैठा सैंडविच खा रहा है। फ्रिज की रोशनी का जलते रहना एक किस्म का अपराध बोध दर्शाता है। तभी पास में गैरेज से बिल्लियों की आवाजें आती हैं। बर्नार्ड कहता है कि देखो, बिल्लियां झगड़ रही हैं। आर्लेंट कहती है कि नहीं, वे प्यार कर रही हैं। इस छोटे-से दृश्य के माध्यम से त्रूफा अपने पात्रों की मनःस्थिति उजागर कर देते हैं।

फिल्म का अंत अपेक्षा के विपरीत एकदम से चौंकाता है। एक जीनियस का कोई भी काम साधारण नहीं होता। कम चर्चित होने के बावजूद यह त्रूफा की एक बेहतरीन फिल्म है।