"नॉट वन लेस" मासूम सपनों का संघर्ष / राकेश मित्तल

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"नॉट वन लेस" मासूम सपनों का संघर्ष
प्रकाशन तिथि : 20 जुलाई 2013


चीन के मशहूर फिल्मकार झांग यिमोऊ विश्व सिनेमा में एक प्रतिष्ठित नाम है। उनकी लगभग सभी फिल्में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहद सराही गई हैं। वर्ष 1999 में आई उनकी फिल्म ‘नॉट वन लेस’ अपने कथा और प्रस्तुति के मान से एकदम अनूठी फिल्म है। चीन के प्राथमिक शिक्षा सुधार कार्यक्रम की पृष्ठभूमि में बनी यह फिल्म अपनी सीधी-सरल शैली में बेहद महत्वपूर्ण बातों को बड़ी आसानी से कह देती है। इस फिल्म की एक और विशेषता यह है कि इसके सभी प्रमुख कलाकार अपने असली नाम और काम के साथ ही प्रस्तुत किए गए हैं। यानी जो भी वे फिल्म में करते दिखाई दे रहे हैं, वास्तविक जीवन में भी वही कर रहे हैं।

अस्सी और नब्बे के दशक में चीन में शिक्षा सुधारों का दौर आरंभ हुआ। 1986 में चीनी संसद ने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा योजना लागू की, जो ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा सफल नहीं हो सकी। गांवों में अच्छे शिक्षकों एवं आधारभूत संरचना की कमी तथा गरीबी के चलते स्कूली बच्चों का काम की तलाश में पलायन इसके असफल होने के प्रमुख कारण थे। इस फिल्म में इन्हीं मुद्दों को सशक्त तरीके से उठाया गया है।

चीन की राजधानी बीजिंग से कुछ दूर झांगजियाकू नामक शहर के पास एक पहाड़ी क्षेत्र के छोटे-से पिछड़े गांव में ‘शुई क्वान प्राइमरी स्कूल’ नामक प्राथमिक शाला है। स्कूल की हालत बेहद खराब है। जीर्ण-शीर्ण भवन और टूटे फर्नीचर के साथ स्कूल में एक मात्र अध्यापक गाओ (गाओ एमान) तथा 28 बच्चे हैं, जो पिछले वर्ष तक 40 थे। गाओ की मां बहुत बीमार है, जिसे देखने के लिए उसे अपने गांव जाना है। इसके चलते वह एक माह स्कूल से अनुपस्थित रहेगा। इस कारण स्कूल बंद न हो जाए, इसके लिए वह एक तेरह वर्षीय बालिका वेई (वेई मिंझी) को अपने एवज में टीचर नियुक्त कर देता है। इस काम के लिए वेई को पचास युआन का मेहनताना मिलेगा। साथ ही उसे दस युआन अतिरिक्त बोनस के रूप में मिलेंगे, यदि गाओ के वापस लौटने तक पूरे 28 बच्चे स्कूल में बने रहे...... एक भी कम नहीं (नॉट वन लेस)।

वेई को पढ़ाना नहीं आता। गाओ उसे समझाता है कि वह रोज किताब से एक चेप्टर बोर्ड पर लिख दे, ताकि बच्चे अपनी नोटबुक में उसे कॉपी करने में व्यस्त रहें। स्कूल में संसाधनों की बेहद कमी है, इसलिए वेई को एक माह के लिए गिनकर 26 चाक (चार रविवार घटाकर) दी जाती है। वह एक दिन में सिर्फ एक चाक का उपयोग कर सकती है। क्लास के बच्चे बहुत उद्दंड हैं। वे दिन भर खूब शोर मचाते और इधर-उधर भागते फिरते हैं तथा वेई की बिल्कुल नहीं सुनते। उन्हें संभालना वेई के बस की बात नहीं है किंतु पैसों की खातिर वह यह जिम्मेदारी ले लेती है। उसकी असल परीक्षा तब शुरू होती है, जब क्लास का सबसे शरारती बच्चा झांग अपने घर वालों द्वारा मजदूरी करने शहर भेज दिया जाता है। वेई किसी भी कीमत पर गाओ के लौटने से पहले उस बच्चे को वापस स्कूल लाना चाहती है। उसके सामने हर स्तर पर मुश्किलों का पहाड़ खड़ा है लेकिन अपने दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति और जिद के बल पर वह तमाम बाधाएं पार करती जाती है। बाकी की पूरी फिल्म वेई के शहर जाने और उस बच्चे को वापस लाने की संघर्ष गाथा है। शहर की गिरती संवेदनाएं, अभिजात्य बेरूखी, ग्रामीणों के प्रति तिरस्कार की भावना, शहरी और ग्रामीण जनसंख्या के बीच आर्थिक-सामाजिक स्तर पर गहरी खाई, असंवेदनशील शासकीय तंत्र और बेदर्द लालफीताशाही के कई नजारे हमारे सामने से गुजरते हैं। फिल्म को देखते हुए कई बार हमें लगता है कि यह भारत के ही किसी सरकारी स्कूल या गांव की कहानी है।

फिल्म के कई दृश्य आपको द्रवित कर देते हैं। उदाहरण के लिए जब वेई तमाम कोशिशों के बाद भी उस बच्चे को शहर में ढूंढ नहीं पाती, तो वह स्थानीय टीवी स्टेशन पर उसके बारे में अनाउन्समेंट करना चाहती है पर वहां रिसेप्शनिस्ट उसे अंदर नहीं जाने देती। वह केवल स्टेशन मैनेजर की आज्ञा से ही अंदर जा सकती है। स्टेशन मैनेजर की जानकारी के नाम पर रिसेप्शनिस्ट उसे सिर्फ यह बताती है कि वह एक ‘चश्मा पहना हुआ आदमी’ है। इसके बाद वेई दिनभर टीवी स्टेशन के गेट पर खड़ी होकर हर गुजरने वाले चश्मा पहने आदमी से पूछती है कि क्या वही स्टेशन मेनेजर है। शाम तक भी वह उसे खोज नहीं पाती और रात में वहीं गेट के पास सड़क पर सो जाती है। अगले दिन स्टेशन मैनेजर अपने केबिन की खिड़की से फिर उसे गेट पर खड़े देखता है, तो तरस खाकर अंदर बुला लेता है।

इसी तरह एक अन्य दृश्य में वेई के शहर जाने के लिए बस का किराया जुटाने हेतु बच्चे ईंटें ढोने का काम करते हैं यहां वेई अनायास ही सहभागी शिक्षण और टीम वर्क का एक शानदार नमूना पेश करती है। उसे नहीं पता कि सबको शामिल कर खेल की तरह पढ़ाया जाना शिक्षण का सबसे बेहतरीन तरीका हैं उसका तो सिर्फ एक लक्ष्य है कि क्लास से एक भी बच्चा कम न होने पाए।

फिल्म का अंत बेहद खूबसूरत और सकारात्मक है। एक कभी न भूलने वाले सिनेमाई अनुभव के लिए इस फिल्म को अवश्य देखा जाना चाहिए। वेनिस फिल्म फेस्टिीवल में गोल्डन लायन पुरस्कार जीतने के साथ ही इस फिल्म को चीन के सर्वोच्च गोल्डन रूस्टर अवॉर्ड सहित ढेरों अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।