"लिंकन" विराट व्यक्तित्व की अबूझ परतें / राकेश मित्तल

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"लिंकन" विराट व्यक्तित्व की अबूझ परतें
प्रकाशन तिथि : 23 मार्च 2013


विख्यात हॉलीवुड फिल्मकार स्टीवन स्पीलवर्ग हाल में हुई अपनी भारत यात्रा और ऑस्कर में कई नामांकन व दो पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘लिंकन’ के कारण चर्चा में हैं। विश्व सिनेमा में स्पीलवर्ग का नाम चमत्कारों का पर्याय माना जाता है। वे जिस एंद्रजालिक संसार की सृष्टि अपनी फिल्मों के जरिए पर्दे पर करते हैं, वह दर्शकों को सम्मोहित कर देता है। उन्हें सिनेमा माध्यम और तकनीक की जबर्दस्त समझ है, जिसके चलते उनके काल्पनिक चरित्र भी दर्शकों के अवचेतन में वास्तविक पात्र बनकर समा जाते हैं। वे विश्व के बेहतरीन एवं सर्वाधिक सफल निर्देशकों में गिने जाते हैं।

हाल ही में आई उनकी फिल्म ‘लिंकन’ को बारह श्रेणियों में ऑस्कर पुरस्कारों के लिए और सात श्रेणियों में गोल्डन ग्लोब पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था। यह फिल्म अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के अंतिम चार माह के कार्यकाल को प्रदर्शित करती है, जिसमें उन्होंने अमेरिकी संविधान के तेरहवें संशोधन को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में पास करवाया था, जिसके कारण अमेरिका में वर्षों से चली आ रही दास प्रथा का अंत हुआ था।

फिल्म का समय वर्ष 1865 की शुरूआत का है। लिंकन अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति थे, जो पहली बार 1860 में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुने गए थे। 1864 में वे लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए। उन दिनों अमेरिका भीषण गृहयुद्ध की चपेट में था। इस युद्ध को समाप्त करवाना लिंकन की पहली प्राथमिकता थी। साथ ही वे संविधान संशोधन के जरिए दास प्रथा को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें दो-तिहाई सांसदों का समर्थन चाहिए था। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों में ही कट्टरवादी तत्व इस संशोधन के खिलाफ थे। नस्लवाद और गृहयुद्ध से जूझते राष्ट्र के प्रमुख के रूप में उनके सामने चुनौतियों का अंबार था। अपनी राजनीतिक कुशलता और करिश्माई व्यक्तित्व के बल पर उन्होंने सभी चुनौतियों का बखूबी सामना करते हुए जनवरी 1865 में वह ऐतिहासिक संविधान संशोधन पास करवा लिया। इसके कुछ ही समय बाद 15 अप्रैल 1865 को मात्र 56 वर्ष की आयु में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।

इस फिल्म की जान हैं लिंकन के रोल में डैनियल डे लुइस का अभिनय। उन्होंने लिंकन के चरित्र को इस तरह आत्मसात किया है कि शायद स्वयं लिंकन भी इसे देखकर एक बार धोखा खा जाएं। उन्होंने अपने करियर में तरह-तरह की भूमिकाएं की हैं किंतु यह निर्विवाद रूप से उनके जीवन की श्रेष्ठतम प्रस्तुति है। लिंकन जैसे जटिल चरित्र को इतनी विश्वसनीयता से निभाना सिर्फ डैनियल के ही बस की बात थी। एक ओर उन्होंने लिंकन की जन-नायक, करिश्माई नेता और इतिहास निर्माता की छवि को प्रस्तुत किया है, तो दूसरी ओर उनके मानवीय पहलू को कुशलता से उभारा है, जिसमें वे अपनी पत्नी के अवसाद और मनोरूग्णता से संघर्ष कर रहे हैं या बेटे को खोने का दर्द महसूस कर रहे हैं। इन सबके बीच कठिनतम परिस्थितियों में उनका हास्यबोध, राजनीतिक चपलता, वाकपटुता आदि का सहज प्रदर्शन भी शामिल है। सिनेमा के इतिहास में इस तरह के अप्रतिम अभिनय प्रदर्शन का उदाहरण मिलना मुश्किल है।

यह फिल्म दुनिया की श्रेष्ठतम प्रतिभाओं का दुर्लभ मिश्रण है। यह अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित फिल्मकार द्वारा वहां के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रपति के जीवन पर श्रेष्ठतम अभिनेता के अभिनय से सजी फिल्म है। यहां इस बात का उल्लेख भी जरूरी है कि अन्य सहयोगी कलाकारों एवं तकनीशियनों ने भी इसमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करने की कोशिश की है। लिंकन की पत्नी मेरी टॉड की भूमिका में महान अभिनेत्री सैली फील्ड ने भरपूर साथ दिया है। उनके विरोधी से मित्र बने स्टीवन्स के रूप में टॉमी ली जोन्स एवं लेफ्टिनेंट जनरल यूलिसिस ग्रांट के रूप में जैरेड हैरिस ने भी कमाल का अभिनय किया है।

यह फिल्म अमेरिकी इतिहास के एक महत्वपूर्ण पृष्ठ को रेखांकित करती है। हालांकि फिल्म उस महान राष्ट्रनायक की एक झलक मात्र प्रस्तुत करती है किंतु जो भी यह बताती है, वह शायद इससे बेहतर तरीके से नहीं बताया जा सकता।