'नमक हराम' नमक हलाल और नमकीन / जयप्रकाश चौकसे

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'नमक हराम' नमक हलाल और नमकीन
प्रकाशन तिथि : 04 जनवरी 2020


फिल्मकार सुरेंद्र मोहन के लिए राही मासूम रजा ने 'नमक' नामक पटकथा लिखी थी, परंतु सुरेंद्र मोहन के रहस्यमय रूप से पलायन कर जाने के बाद 'नमक' नहीं बनी। पुलिस द्वारा गहन जांच-पड़ताल के बाद भी सुरेंद्र मोहन का इस तरह अदृश्य हो जाना और उनकी मृत देह का भी नहीं मिल पाना एक अनबूझ पहेली ही रहा। ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी ने 'नमक सत्याग्रह' किया था। प्रकृति द्वारा दिए गए नमक को बनाने का अधिकार अवाम को है, परंतु तत्कालीन सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी थी। उद्योगपति बाजार में सफेद रंग का नमक बेचने लगे। चार आने का माल नयनाभिराम पैकेट में लपेटकर 14 रुपए में बेचा जाने लगा। इस बाज़ार ने सेहत के लिए मुफीद रॉकसाल्ट को बाजार से गायब कर दिया।

गौरतलब है कि मनुष्य के पसीने और आंसुओं का स्वाद भी नमकीन होता है। फिल्म कलाकार आंसू बहाने वाले दृश्य के लिए शॉट लेने से पहले आंखों में ग्लीसरीन लगाते हैं। मीना कुमारी ने रोने-धोने वाली इतनी फिल्मों में अभिनय किया था कि इशारा मिलते ही वे बिना ग्लीसरीन लगाए रो देती थीं। कभी-कभी तो अकारण ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगते थे।

जयशंकर प्रसाद की कविता इस तरह है जो 'धनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति-सी छाई। दुर्दिन में आंसू बनकर, वह आज बरसने आई।' जब कोई सेवक रोजी-रोटी देने वाले व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे 'नमक हराम' कहते हैं। रोटी हराम नहीं कहते। अंग्रेज कवि टेनीसन कहते हैं...'टियर्स आइडल टियर्स आई नो नॉट व्हाट दे मीन...' शरीर विज्ञान कहता है कि आंख की संरचना में टियर डक्ट होते हैं। कुछ लोगों के टियर डक्ट इतने संवेदनशील होते हैं कि हवा के तीव्र प्रवाह के कारण भी बहने लगते हैं। इस तरह के डक्ट की शल्य चिकित्सा भी की जाती है। सर्जन मैन्यूफैक्चरिंग कमतरी को दूर करते हैं। कुछ लोग दुखी होने पर भी आंसू नहीं बहा पाते। इतना ही नहीं कुछ लोग अवसाद के समय आंख से आंसू नहीं बहा पाते और इस कारण उन्हें डायरिया हो जाता है। गोयाकि आंसू शरीर के अन्य भाग से बहने लगते हैं। कभी-कभी किसी स्त्री की मादक देह होने पर उसे नमकीन कहने लगते हैं। सांवली-सलोनी स्मिता पाटिल को नमकीन कहा जाता था। गुलजार ने 'नमकीन' नामक फिल्म भी बनाई थी। गुलशन बावरा ने अमिताभ बच्चन और जीनत अमान अभिनीत फिल्म 'पुकार' में गीत लिखा था कि नायिका समुद्र में स्नान करती है तो समुद्र का पानी अधिक नमकीन हो जाता है। ज्ञातव्य है कि समुद्र के पानी से नमक हटाकर उसे मनुष्य के पीने योग्य बनाने की वैज्ञानिक प्रणाली अत्यंत महंगी है और केवल इजराइल की सरकार ही यह खर्च उठा सकती है। हॉलीवुड की फिल्म 'सॉल्ट' की नायिका रूस में जन्मी अमेरिका की नागरिक है। वह रूस के प्रेसीडेंट की हत्या के प्रयास को विफल करती है। इसके साथ ही वह अमेरिका द्वारा मिसाइल छोड़ने के काम को भी रुकवा देती है। कुछ इसी तरह की बात हमारी फिल्म 'एक था टाइगर' में भी प्रस्तुत की गई थी। हिटलर के दौर में यहूदियों का खून और आंसू दोनों ही बहाए गए। कुछ लोगों ने भविष्यवाणी की है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जा सकता है। दुखी व्यक्ति के गाल पर आंसू सूख जाने से एक मटमैली लकीर सी बन जाती है, जैसे कोई सूखी हुई नहर। याद आता है बिमल रॉय की 'मधुमति' में शैलेंद्र का गीत- 'मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी, भेद ये गहरा बात जरा सी।' कबीर के खजाने ने हर दौर में कवियों को समृद्ध किया है। कबीर की विविध रंगों की चुनरिया को आज के दौर में एक ही रंग की करने का प्रयास किया जा रहा है।

सार्वजनिक सभा में आंसू बहाने की कला कुछ नेताओं ने सीख ली है। कहावत भी है कि मगरमच्छ के आंसू जो दर्द देते हैं, दवा देने का खोखला दावा भी करते हैं। 'तेरे दावे पर एतबार किया, हाय रे हमने यह क्या किया।' एक और कहावत है कि 'चिड़िया चुग गई खेत, अब पछतावे से क्या फायदा।' सदियों के अनुभव की मिक्सी से कहावतें निकलती हैं। नमक तीन प्रकार के होते हैं- समुद्री नमक, रॉक साल्ट और मनुष्य की आंख का नमक। मनुष्य भी तीन प्रकार के होते हैं- नमक हलाल, नमक हराम और नमक चोर या नमक पर कर लगाने वाले। कुछ बीमारियों के उपचार के लिए डॉक्टर सलाह देते हैं कि नमक के सेवन से बचें, परंतु नमक तो एक ऐसा मिनरल है जिसके न मिलने से शरीर कमजोर हो जाता है। अवाम को जुल्म और महंगाई के दौर में भी आंसू नहीं बहाना चाहिए। आज आंसुओं को सहेजकर ही अवाम अपनी शक्ति का अपव्यय रोक सकता है। बिस्मिल को स्मरण कीजिए कि 'देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।' रिश्वत नहीं लेने वाले कर्मठ व्यक्ति के संघर्ष की मुंशी प्रेमचंद्र की लिखी कथा का नाम है 'नमक का दरोगा'। अंग्रेजी में नहीं लिखने के कारण प्रेमचंद नोबेल प्राइज से वंचित रहे। उनके साहित्य का अनुवाद भारतीय भाषाओं में हुआ है।