'पावसाचा निबंध' और वैचारिक अकाल / जयप्रकाश चौकसे

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'पावसाचा निबंध' और वैचारिक अकाल
प्रकाशन तिथि : 15 जून 2018


मराठी भाषा में कथा फिल्में बनाने वाले नागराज मंजुले की सफल 'सैराट' का हिन्दी संस्करण प्रदर्शन के लिए तैयार किया जा रहा है और उसकी पहली झलक एक भव्य समारोह में दिखाई गई जहां जाह्वनी को अपनी मां श्रीदेवी की याद इस तीव्रता से आई कि वह रो पड़ी। नागराज मंजुले ने एक लघु फिल्म बनाई है, जिसका नाम है 'पावसाचा निबंध' अर्थात वर्षा पर निबंध। दशकों तक पहला निबंध परिवार या स्कूल पर लिखने को कहा जाता था, क्योंकि उस दौर में स्कूल घर से दूर घर होता था और घर स्कूल से दूर स्कूल की तरह होता था। अब इनके बीच 'अपरिचय के विंध्याचल' खड़े कर दिए गए हैं।

नागराज मंजुले ने वर्षा के अपने अनुभवों को छवियों में रूपांतरित किया है। मौसम की पहली वर्षा जीवन में ताज़गी का अहसास जगाती है। सारे मौसम साधन संपन्न लोगों के लिए होते हैं। साधनहीन व्यक्ति को तो हर मौसम कष्ट ही देता है। सिने माध्यम के पहले कवि चार्ली चैपलिन को भूख ने बड़े प्यार से पाला था। वे कहते थे कि उन्हें वर्षा इसलिए पसंद है कि उसके होते समय कोई उनके आंसू नहीं देख पाता। गीतकार शैलेन्द्र ने अपना पहला फिल्मी गीत राज कपूर की 'बरसात' के लिए लिखा था और उसी स्मृति को संजोये रखने के लिए उन्होंने अपने बंगले का नाम 'रिमझिम' रखा था। बाद में देव आनंद अभिनीत 'काला बाजार' के लिए गीत लिखा था 'रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात, याद आए किसी से वह पहली मुलाकात।'

बरसात के दृश्यों का फिल्मांकन इस तरह किया जाता है कि पात्रों के सिर के ऊपर छिद्र वाली एक शीट रखी जाती है और पाइप से पानी फेंका जाता है। यह छिद्रवाली शीट और पाइप फिल्म की फ्रेम के बाहर रहते हैं, अत: दर्शक को केवल बरसात दिखाई देती है। सिनेमा दर्शक को यकीन दिलाने की कला है। राज कपूर की फिल्म 'श्री 420' का गीत 'प्यार हुआ, इकरार हुआ फिर प्यार से क्यों डरता है दिल' बरसात के दृश्यों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह नायक-नायिका के महत्वपूर्ण फैसले से जुड़ा है। युवा प्रेमियों के बीच आंखों ही आंखों में इकरार होता है और वर्षा प्रारंभ होती है। दोनों को फुहारों से बचने के लिए एक ही छाते में आना पड़ता है। यहां छाता विवाह का प्रतीक बन जाता है। प्रकाश मेहरा की फिल्म 'नमक हलाल' में अमिताभ बच्चन और स्मिता पाटिल पर 'आज रपट जाएं' गीत रखा गया था।

बरसात के दृश्यांकन में इलेक्ट्रिक शॉक का भय होता है, इसलिए यूनिट के सदस्य को गमबूट दिए जाते हैं। रबर और लकड़ी के माध्यम से करंट नहीं लगता है। करंट लगे हुए व्यक्ति को सीधे छूने पर उस व्यक्ति को भी करंट लग जाता है। अत: लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। अमजद खान, नसीरुद्‌दीन शाह और आशा सचदेव अभिनीत व चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास 'ऑलिवर ट्विस्ट' से प्रेरित फिल्म 'कन्हैया' की शूटिंग में ही गमबूट नहीं पहने होने के कारण एक कर्मचारी को शॉक लगा था। अगले दिन ही अमजद खान पूरे यूनिट के लए गमबूट खरीदकर ले आए थे।

शरलॉक होम्स जैसे जासूस पात्र की रचना करने वाले आर्थर कॉनन डॉयल जब छात्र थे तब उनके शिक्षक ने कक्षा में किसी प्रसंगवश यह कह दिया कि डॉयल फलां क्षेत्र से आए हुए छात्र हैं। उन्होंने इस तरह भांपा कि उस सुबह उसी क्षेत्र में वर्षा हुई थी और छात्र के जूते में कीचड़ लगा है। वह शिक्षक अपनी विचार प्रणाली को 'थ्योरी ऑफ डिडक्शन' कहता था। इसी तरह के अनुभवों के आधार पर सर ऑर्थर कॉनन डॉयल ने अपना पात्र शरलॉक होम्स रचा। उपन्यासों में वर्णित शरलॉक होम्स के काल्पनिक पते पर प्रशंसकों के अनेक पत्र आने लगे और डाक विभाग परेशान हो गया। फिल्म और साहित्य का प्रभाव इतना जबर्दस्त होता है कि कल्पना और यथार्थ का भेद मिट सा जाता है। अनेक उपन्यास लिखने के बाद सर आर्थर कॉनन डायल ने एक उपन्यास के क्लाइमैक्स में शरलॉक होम्स को खलनायक से लड़ते हुए खाई में गिरकर मर जाने का विवरण लिख दिया। हजारों पाठकों ने अपना विरोध जताया और लेखक के घर के सामने धरना दिया कि उन्हें शरलॉक होम्स को मरने नहीं देना चाहिए था। लेखक पर इतना दबाव बनाया गया कि अगले उपन्यास में उन्होंने शरलॉक होम्स को पुन: प्रस्तुत किया। कहा कि वे घाटी में गिरे थे परंतु जख्मी हालत में पड़े पाए गए। उन्हें बचा लिया गया। साहित्य का जादू ऐसे ही सिर पर चढ़ जाता है और नाचने भी लगता है। लेखक के मरने के बाद भी उसकी कल्पना के पात्र पाठकों की स्मृति में जीवित रहते हैं।

शेक्सपीअर का पात्र हेमलेट पांच शताब्दियों से जीवित है। यहां तक कि विशाल भारद्वाज का 'हैदर' भी उसे मार नहीं पाया। वेदव्यास के पात्र तो हजारों वर्ष बीतने पर भी गुजरे नहीं हैं। अर्जुन की दुविधा हेमलेट की दुविधा से गुजरते हुए देवदास तक पहुंचती है। आज हर आदमी दुविधा में है। दुविधा के दायरे ऐसे फैल रहे हैं कि मध्य प्रदेश में एक 'संत' ने आत्महत्या कर ली। बादल सरकार का 'बाकी इतिहास' यथार्थ जीवन में घटित होता है, जब आत्महत्या कर लेने वाला पात्र मंच पर आकर जीवित लोगों से पूछे कि वे आत्महत्या क्यों नहीं करते। अज्ञात अर्थहीनता की लहरें हमें थपेड़े मारती रहती हैं।

शॉर्ट फिल्में बिहारी के दोहों की तरह गहरी मार करती हैं। कथा फिल्म में आपके पास ढाई घंटे का समय है परंतु शॉर्ट फिल्म में अनेक सीमाएं हैं, जिनके भीतर रहकर अपनी बात कहनी होती है। फिल्मकार का इम्तेहान लेती हैं शॉर्ट फिल्में। दुर्भाग्यवश हमारे यहां इन्हें प्रदर्शित करने का मंच ही उपलब्ध नहीं है। शॉर्ट फिल्मों के अंतरराष्ट्रीय समारोह होते हैं, जहां इनके लिए बाजार भी उपलब्ध है। हमारे पास एक ही रास्ता है कि फिल्मकार अपनी कथा फिल्म के साथ ही एक लघु उपदेशात्मक फिल्म भी बनाए। 'पावसाचा निबंध' से याद आया कि एक दौर में प्रश्न-पत्र में प्रेसी राइटिंग का प्रश्न होता था जिसमें छात्र को चंद शब्दों में सारांश प्रस्तुत करना होता था। आज के फैलते हुए बाजार के दायरों में सारांश का ही लोप हो गया है। वाचालता के इस स्वर्ण काल में भी अनअभिव्यक्त सपनों और इच्छाओं की कमी नहीं है। अनअभिव्यक्त इच्छाएं कभी-कभी शरीर में रोग बनकर बैठ जाती है जिनका इलाज महान लुकमान हकीम के पास भी नहीं था।