'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई' / जयप्रकाश चौकसे

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'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई'
प्रकाशन तिथि :14 फरवरी 2017


बहुत कम लोग अपने जीवन काल में मृत्यु के पश्चात अपने नेत्रदान का अग्रिम निर्णय कर पाते हैं और आवश्यक आवेदन लगा पाते हैं। आंखों के बैंक की संस्थाएं जगह-जगह सक्रिय हैं। उत्तम झंवर ने अपने बनाए एक भवन की ऊपरी मंजिल आंखों के बैंक को दान में दे दी है, जिसका उद्‌घाटन अब्दुल कलाम आज़ाद साहब ने किया था। चेन्नई स्थित शंकर नेत्र चिकित्सालय आंखों की बीमारी के इलाज का सबसे सुचारू रूप से चलाया जा रहा संस्थान है। रायपुर के निकट राजनांदगांव में जन्मे फिल्मकार किशोर साहू ने फिल्म बनाई थी 'कुणाल की आंखें' जो एक इतिहास प्रेरित फिल्म थी। निर्देशक सुरेंद्र मोहन ने 'धनवान' नामक फिल्म बनाई थी जिसमें राजेश खन्ना अभिनीत भूमिका उनके अपने निजी मिज़ाज़ के बहुत करीब थी। राजेश खन्ना को बहुत अहंकार था और उनका सजग मष्तिष्क हमेशा योजनाएं बनाता रहता था। वह इतना चलायमान था कि उसमें कीला डालो तो वह स्क्रू बनकर बाहर निकल सकता था। दरअसल राजेश खन्ना का व्यक्तित्व बहुत उलझा हुआ था। वे अपने मित्रों की बहुत सहायता भी करते थे परन्तु चापलूसों से घिरे रहना उन्हें पसंद था और शायद मजबूरी भी क्योंकि तन्हा रहना उनके लिए मुमकिन नहीं था। यासिर उस्मान ने राजेश खन्ना पर विश्वसनीय किताब लिखी है।

बहरहाल 'धनवान' की अजोबीगरीब कहानी में राकेश रोशन ने एक भले और सरल आदमी की भूमिका की थी। एक दुर्घटना में उस पात्र की मृत्यु के बाद उसकी आंखें शल्य चिकित्सा द्वारा घमंडी राजेश खन्ना को लगा दी जाती हैं और आंखों के इस बदलाव के बाद पात्र का नज़रिया भी बदल जाता है और वह एक भला आदमी बन जाता है। राकेश रोशन की प्रेमिका की भूमिका रीना राय ने की थी और राजेश खन्ना को राकेश रोशन अभिनीत पात्र की आंखें लग जाने के बाद वह रीना राय की सहायता करता है। क्या आंख के परिवर्तन से हृदय में स्थित प्रेम में भी परिवर्तन हो जाता है गोयाकि दिल आंखों में ही निवास करता है। राजकपूर अभिनीत 'अनाड़ी' में गीत था, 'दिल की नज़र से, नज़रों की दिल से, ये बात क्या है, ये राज़ क्या है, कोई हमें बता दे'। जयपुर में अंधों की देखभाल करने के काम में अपने जीवन को समर्पित करने वाले भारत रत्न भार्गव ही इस पर प्रकाश डाल सकते हैं। उन्होंने तो दृष्टिहीन बालकों से एक नाटक भी अभिनीत करा लिया है। जयपुर के ही एक हीरों के व्यापारी ने अपनी भव्य कोठी दृष्टिहीन बालकों की सेवा करने वाली भारत रत्न भार्गव की संस्था को दान में दी है। इस संस्था की सहायता की जाना चाहिए। महाभारत के संहारक युद्ध की सबसे बड़ी दोषी गंधारी हैं, जिन्होंने नेत्रहीन पति को अपनाने के पहले ही अपनी आंखों पर पट्‌टी बांधकर अंधत्व का वरण किया और माता-पिता दोनों अपने बच्चों का गलत राह पर चलना नहीं देख पाए। दरअसल महाभारत का कुरुक्षेत्र में हुआ युद्ध टाला जा सकता था। इस विषय पर एक किताब दशकों से अलिखित दशा में मन को मथ रही है। हर युद्ध टाला जा सकता है परन्तु विचार के स्तर का अंधत्व ही ऐसा नहीं होने देता। कुछ हुक्मरान तो ऐसे भी हैं कि युद्ध किया ही नहीं परन्तु उसका दावा करते रहते हैं। भविष्य में किसी महत्वपूर्ण चुनाव को जीतने के लिए पड़ोसी मुल्क से एक युद्ध प्रायोजित किया जा सकता है।

एक फिल्म बनी थी 'नाइन ए.एम. वॉर' जिसमें टेलीविजन का एक चैनल अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए दो छोटे पड़ोसी देशों के बीच युद्ध प्रायोजित करके उसका समाचार सबसे पहले देने वाला चैनल बन जाता है। टेलीविजन की लोकप्रियता की प्रतिस्पर्धा भयावह हो सकती है। इस माध्यम की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ चुकी है। किवंदती यह भी है कि कवि चंदबरदाई ने एक दोहे से अंधे पृथ्वीराज को बता दिया था कि सुल्तान किस ऊंचाई पर बैठे हैं और तीर निशाने पर लगा। दरअसल टेक्नोलॉजी ने ऐसे लैन्स बनाए हैं कि हजार की भीड़, लाखों की भीड़ टेलीविजन पर दिखे।

महाकवि कबीर को गर्व था कि वे आंखन देखी कहते हैं परन्तु टेक्नोलॉजी ने खेल बदल दिया है। अब आंखन देखी विश्वसनीयता नहीं रही। इस विषय से संबंधित मेरी कहानी 'मत रहना अंखियों के भरोसे' 'पाखी' नामक पत्रिका के ताजे अंक में प्रकाशित हुई है। 'जागते रहो' में शैलेन्द्र का गी है, 'किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए, मत रहना अंखियों के भरोसे, जागो मोहन प्यारे..'।