'बंदिनी' नूतन की मदर इंडिया / जयप्रकाश चौकसे

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'बंदिनी' नूतन की मदर इंडिया
प्रकाशन तिथि : 30 मई 2019


इंदौर के सिने विजन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में थाईलैंड की एक लघु कथा फिल्म दिखाई गई, जिसका घटनाक्रम एक वाचनालय में घटित होता है। याद आता है 'शेडो ऑफ विंड' नामक उपन्यास, जिसमें वाचनालय में कार्य कर रहे व्यक्ति का किशोरवय लड़का अपने पिता से मिलने आता है। एक किताब उसे अत्यंत रोचक लगती है और वह जानना चाहता है कि इसके लेखक ने और क्या लिखा है तथा उसका अपना जीवन कैसा रहा है। अगले 15 वर्ष तक वह लेखक को खोजता रहता है। लेखक उसे पागलखाने में मिलता है। इरविंग वैलेस के उपन्यास 'सेवन मिनट्स' का मूल विषय तो अभद्रता की परिभाषा है परंतु लेखक की खोज उस उपन्यास में इसलिए महत्वपूर्ण होती है कि साहित्य में अश्लीलता के मामले में लेखक की नीयत को जानना जरूरी है कि क्या उसने सनसनी फैलाकर मात्र धन अर्जन करने के लिए लिखा है। मुकदमे में एक पंद्रह वर्षीय किशोर पर दुष्कर्म का प्रकरण शामिल है, जिसमें बचाव पक्ष ने दुष्कर्म के लिए एक किताब को दोषी माना है। उस उपन्यास के अंत में बताया गया है कि मुकदमे का जज ही उस तथाकथित अश्लील किताब का लेखक है और इस मुकदमे के समाप्त होते ही वह सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होकर जाने वाला है। जज सत्य बताने का फैसला करता है। वह नहीं चाहता कि निरपराध किशोर दंड भुगते। ज्ञातव्य है कि इरविंग वैलेस के उपन्यास की प्रेरणा जेम्स जॉयस के उपन्यास 'यूलीसिस' के तथाकथित रूप से अश्लील होने को लेकर हुए विवाद से प्रेरित था। 1933 में अदालत ने फैसला दिया था कि किसी भी रचना का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है न कि रचना की चंद पंक्तियां। दूसरा निर्णायक तत्व यह है कि किस प्रसंग में पंक्तियां लिखी गई हैं। जस्टिस वूल्जे द्वारा दिया गया वह ऐतिहासिक फैसला बाद के सारे मुकदमों में निर्णायक दस्तावेज माना गया।

इस समारोह में बिमल रॉय की 'बंदिनी' भी दिखाई गई। बिमल राय ने साहित्य प्रेरित अनेक फिल्में बनाई हैं जैसे 'परिणिता','देवदास', 'बिराज बहू' इत्यादि। उनकी 'बंदिनी' लेखक जरासंध की रचना 'तामसी' से प्रेरित फिल्म है। तामसी का अर्थ है अंधकार से घिरी महिला। ज्ञातव्य है कि गोविंद निहलानी ने 'तमस' नामक सीरियल बनाया था, जो भीष्म साहनी की किताब से प्रेरित था। गोविंद निहलानी की रचना यह तथ्य रेखांकित करती है कि एक औसत किताब से प्रेरणा लेकर महान सीरियल रचा जा सकता है। अगर इस उपन्यास का नाम 'तामसी' न होकर 'तापसी' भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि नायिका कल्याणी का पूरा जीवन तप करने की तरह रहा है। गुजरात के 15वीं सदी के कवि नरसिंह मेहता का भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे' को महात्मा गांधी ने अपनी प्रार्थना सभा में शामिल किया। इसी तरह महात्मा गांधी ने मीरा के भजन भी शामिल किए। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के संचालन के साथ साहित्य व कला के महत्व पर भी जोर दिया। नरसिंह मेहता और मीरा की भुलाई गई रचनाओं को पुन: जनजीवन में लाने का श्रेय भी उन्हें है।

बिमल राय अपनी फिल्म में कल्याणी की व्यथा-कथा प्रस्तुत करते हुए कुछ दार्शनिकता का स्पर्श भी देते हैं। मसलन जब कल्याणी जेल से रिहा होकर जा रही है तब जेलर कहता है कि अब वह गृहस्थी की कैद में जा रही है। बिमल राय स्पष्ट करते हैं कि हम सब भी बंदी है। कैद कई तरह की होती है। मिर्जा गालिब के एक शेर का आशय यह है कि सूर्य की रोशनी सब पर बरसती है। वे सूर्य से गुजारिश करते हैं कि वह उन्हें एक ऐसी किरण दे, जो उन्हें उनकी परछाई से मुक्त कर दे। एक अन्य संदर्भ में निदा फाज़ली कहते हैं, 'जीवन शोर भरा सन्नाटा, जंजीरों की लंबाई तक सारा सैर सपाटा'। किसी की जंजीर कुछ इंच मात्र की है परंतु हम सभी किसी न किसी जंजीर से बंधे हैं। संपूर्ण स्वतंत्रता कभी न मिलने वाला महान आदर्श है।

शैलेन्द्र बिमल राय के प्रिय गीतकार रहे हैं। यहां तक कि अपनी फिल्म 'परख' के संवाद भी उनसे ही लिखवाए थे। फिल्म के क्लाइमेक्स में शैलेन्द्र का गीत है, 'ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी..मेरे साजन हैं उस पार/ मैं मन मार, हूं इस पार..मुझको तेरी बिदा का मर के भी रहता इंतज़ार, मेरे साजन..।

याद रहे कि वैष्णव संप्रदाय के प्रति आस्था रखने वाली कल्याणी मन ही मन क्रांतिकारी को अपना पति मान चुकी है। राधा-कृष्ण की अंतरंगता विलक्षण है। इसी से प्रेरित धर्मवीर भारती की 'कनुप्रिया' में राधा शिकायत करती हैं कि हे कृष्ण तुमने मुझे अपनी बांहों में बांधा परंतु अपने इतिहास से वंचित क्यों किया?

अत: वह कुंआरी वधू तो अपने पिया की हो चुकी है, विवाहिता की विदाई हो चुकी है और मृत्यु भी इस जन्म-जन्मांतर के प्रेम में बाधा नहीं पहुंचा सकती। शैलेन्द्र इंतजार को एक और ढंग से 'यहूदी' के गीत में परिभाषित करते हैं 'तू आए न आए हम करेंगे इंतजार' गोयाकि इंतजार अपने आप में संपूर्ण है और मिलन का मोहताज नहीं है। इस गीत में प्रयुक्त बिदाई दरअसल मुक्ति है, बार-बार जन्म लेने से मुक्ति। बहरहाल, बिमल राय 'कुंभ' नामक फिल्म बनाना चाहते थे परंतु 61 वर्ष की वय में उनकी मृत्यु हो गई। संभवत: 'कुंभ' भैरप्पा के उपन्यास 'अपने-अपने सच के दायरे' से प्रेरित रहा होगा। 1966 में बिमल राय और उनके प्रिय कवि शैलेन्द्र की मृत्यु हो गई परंतु शैलेन्द्र ने 14 दिसंबर को प्राण त्याग कर राज कपूर से रिश्ते का निर्वाह किया। 14 दिसंबर राज कपूर का जन्म दिन है।