'भाभीजी' में मध्यम वर्ग की लक्ष्मण रेखा / जयप्रकाश चौकसे

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'भाभीजी' में मध्यम वर्ग की लक्ष्मण रेखा
प्रकाशन तिथि :30 जनवरी 2016


भारतीय समाज के तंदूर में इच्छाओं और दमित कामनाओं की राख के ढेर के नीचे काम भावना के शोले हमेशा दहकते रहे हैं और प्रच्छन्न सेक्स की समानांतर धारा बहती रहती हैं। ब्रिटिश शासन काल के विक्टोरियन मूल्य आज भी कायम है, जबकि भारत की वैदिक संस्कृति में यह धारा बिना रुकावट बहती रही है। आज नियति का व्यंग्य देखिए कि इस संस्कृति के छद्‌म रूप के हिमायती इसके खिलाफ हैं। दरअसल, प्रेम का विरोध प्रेम के खिलाफ नहीं है, यह विरोध उजास के खिलाफ है। स्वतंत्र विचार शैली और उसकी अभिव्यक्ति से रूढ़िवादी भयाक्रांत रहे हैं और ये डरे हुए लोग ही आक्रामक हो जाते हैं।

बहरहाल, सीरियल 'भाभीजी घर पर है', उसी तंदूर में राख के नीचे दबे शोलों को प्रकट करने का प्रयास है और इस निर्मल आनंद देने वाले सीरियल में अनेक सतहें हैं, अनेक संकेत हैं। दोनों पड़ोसियों की पत्नियां सुंदर और गुणवान हैं, फिर भी वे एक-दूसरे की पत्नियों के प्रति आकृष्ट हैं और उनकी इच्छाओं की लहरें हमेशा प्रवाहित रहती हंै। राख के नीचे दबे शोलों की अभिव्यक्ति के लिए हिप्नोटिज्म द्वारा व्यक्ति की स्मृति को थोड़े समय के लिए अतीत में ले जाने की पतली गली खोजी गई। एक पात्र विगत जन्म में ठरकी जमींदार है और अपनी पांचवीं सुंदर पत्नी को अनदेखा कर गुलबिया को देखकर अपंग वासना की लार टपकाते हुए घूमता है। यह गुलाबिया वर्तमान में पड़ोसी की पत्नी है और पड़ोसी विगत जन्म में उसका बंधुआ मजदूर था, जो मालिक की पत्नी को ताकता रहता है। इन लम्पट लोगों को अंत में समलैंगिकता का शिकार होते हुए दिखाया गया है। लम्पटता इसी भयावह दशा को जा पहुंचती है। इसमें बंधुआ मजदूर बार-बार आग्रह करता है कि क्या वह मालकिन के पैर दबा दे, जिस पर वह तुनककर कहती है कि क्या उसका गला दबा दें। इसमें 'साहब, बीबी और गुलाम' के प्रभाव के संकेत भी हंै, अंतर केवल इतना है कि गुलाम की लोलुप दृष्टि 'बीबी' पर है। कल्पना करें कि बिमल मित्र के उपन्यास से प्रेरित 'साहब, बीबी और गुलाम' में भूतनाथ (गुरुदत्त), रहमान (साहब) की पत्नी मीनाकुमारी (बीबी) को लम्पटता की निगाह से देखे। कुछ इस आशय के संवाद भी हैं-

'यह बार-बार चीखकर बेहोश क्यों हो जाती है।' जवाब, 'बताओ तुमने (पति) क्या किया इसके साथ।' फिर दहला जड़ा जाता है,' या कुछ नहीं किया है।' स्पष्ट इशारा है कि अतृप्त कामनाओं से मिरगी के दौरे पड़ते हैं। विगत जीवन की स्मृति में ले जाने के विषय पर डॉ. ब्रायन वीज ने अनेक किताबें लिखी हैं। सीरियल में एक पात्र है, जो पिटने पर कहता है, 'आई लाइक इट।' इसे बिजली के शॉक लेने का भी शौक है। क्या यह पात्र भारतीय अवाम के मुस्कराते हुए व्यवस्था के जुल्म सहने का प्रतीक नही है। एक पात्र गंूगा है, कभी-कभी दांत निपोरता है। इससे कोई भी प्रश्न करो, वह उत्तर में कान में खोसकर रखी एक पर्ची देता है, जो उसी सवाल का उत्तर है। क्या यह पात्र, रटकर जवाब लिखने पर टिकी शिक्षा व्यवस्था का प्रतीक नहीं है? दो बेरोजगारों के पात्र भी हैं, जो क्या देश में बेशुमार बेरोजगारों की व्यथा नहीं कहते? अर्जित न किए धन को प्राप्त करने की अभिलाषा के लिए एक अप्रवासी भारतीय धनाढ्य की वसीयत के लिए लोलुप परिवार भी दिखाया गया है। सबसे बड़ी बात कि लम्पट व्यक्ति को जब पराई स्त्री को छूने का अवसर लेडीज टेलर के एपिसोड में आता है तो पैर कांपने लगते हैं और छूने का अवसर छोड़ देता है। यह प्रसंग मध्यम वर्ग के समाज के चरित्र को प्रस्तुत करता है कि लम्पटता के सपनों में डूबे व्यक्ति की लक्ष्मण रेखा है उसके पारंपरिक मूल्य। सीरियल पर समाजशास्त्र के छात्र को शोध करना चाहिए।

सीरियल के प्रारंभ में अंगूरी के चेहरे का भोलापन और शरीर की मादकता के कारण वह अत्यंत लोकप्रिय हुई परंतु विगत दो माह से अनीता का पात्र अभिनीत करने वाली कलाकार का अभिनय खूब उभरा है। अन्य पात्रों के संवाद के समय उसके चेहरे पर आई प्रतिक्रिया देखें।

अनीता एक कठोर दृष्टि से सामने वाले पात्र को फ्रीज कर देती है। वग बर्फ की तरह जम जाता है। सभी कलाकार कमाल के हैं। केवल अंगूरी का पति लाउड और भोंडा है। सक्सेना लाजवाब है।