'महाराज, किवड़िया खोल, रस की बूंदें पड़ीं' / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'महाराज, किवड़िया खोल, रस की बूंदें पड़ीं'
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2018

खबर है कि बैंक अधिकारियों के यूनियन ने अमिताभ बच्चन और उनकी सुपुत्री श्वेता नंदा बच्चन अभिनीत एक विज्ञापन फिल्म पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि इस विज्ञापन से लोगों के बैंक भरोसे पर ठेस लगती है। बैंकों में घोटाला करके कुछ लोग विदेश भाग चुके हैं। इस तथ्य से भी भरोसे को ठेस पहुंचती है। विज्ञापन फिल्में बनाना कथा फिल्म बनाने से अलग विधा है। विज्ञापन फिल्मों का आधार किफायत है। कम समय में अपनी बात प्रभावोत्पादक ढंग से कहनी होती है। श्याम बेनेगल विज्ञापन फिल्मों को बनाते-बनाते कथा फिल्म क्षेत्र में आये और उन्होंने सार्थक फिल्में गढ़ीं। श्याम बेनेगल की फिल्में अभिनीत करते हुए शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और स्मिता पाटिल ने सितारा हैसियत हासिल की।

विज्ञापन फिल्मों में भाषा क्षेत्र में भी प्रयोग किए गए हैं। कुछ नए मुहावरे गढ़े गए हैं। मसलन आजकल एक फिल्म में तेज वाहन चलाते हुए राहगीरों को भिगोने के दृश्य में संवाद है - 'ये लोग किसी को भी मंदाकनी बना सकते हैं'। स्पष्ट है कि यह संकेत राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' के एक झरना स्नान दृश्य की ओर है। राज कपूर अपनी श्वेत श्याम 'जिस देश में गंगा बहती है' में भी झरने के नीचे स्नान का दृश्य प्रस्तुत कर चुके हैं। क्या इसी से प्रेरणा लेकर एक साबुन विज्ञापन में भी झरना स्नान का समावेश किया गया? उन्होंने 'सत्यम शिवम सुंदरम' में झरना दृश्य रचा है। यूं भी बरसात में भीगने के दृश्य फिल्मों में रहे हैं। 'बरसात की रात' नामक फिल्म का सारा घटनाक्रम भी बरसात से बचने के लिए शरण लेने के दृश्य पर आधारित है। 'चलती का नाम गाड़ी' में 'एक लड़की भीगी भागी सी, सोती रातों में जागी सी' को भुलाना संभव नहीं है। प्रकाश मेहरा की फिल्म में अमिताभ बच्चन एवं स्मिता पाटिल पर 'आज रपट जाएं' गीत प्रस्तुत किया गया था। राज कपूर की 'बरसात' से ही शैलेन्द्र ने गीत लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया। शायद इसी स्मृति के कारण उन्होंने अपने बंगले का नाम 'रिमझिम' रखा जिसका मालिकी हक अभी अदालत में लड़ा जा रहा है। इस विषय पर सिनेमा के पहले कवि चार्ली चैपलिन का बयान था कि उन्हें बरसात का मौसम इसलिए पसंद है कि इसमें उनकी आंख से बहते आंसू सामान्य लगते हैं।

वर्षों पूर्व फिल्म गीत-संगीत पर लिखने वाले पत्रकार अजातशत्रु ने फिल्म 'श्री 420' के गीत 'प्यार हुआ इकरार हुआ, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल' के विषय में लिखा है- राज कपूर, कैमरामैन राधू करमाकर, शंकर-जयकिशन, शैलेन्द्र ने इस गीत के छायांकन को विश्व सिनेमा में अपना स्थान रखने वाली घटना बना दिया है। राज कपूर का संगीत बोध, दृश्य बोध एक जीनियस के रचनात्मक अवचेतन से उत्पन्न होता है। याद कीजिए बरसात, पानी के झपाटे, गीला वातावरण, बारिश में भीगते लैम्प-पोस्ट, चाय की केतली से निकलती वाष्प, आग में पानी का संकेत, प्रेमानंद के कष्ट से नरगिस के थरथराते होंठ और आंख से बहते प्रेमाश्रु। लगता है राज कपूर का प्रेमी कलाकार और निर्देशक दुनियावी लॉजिक की फ्रेम को तोड़कर समस्त कष्टप्रद आनंदानुभूति को बिना वैदेहिक माहौल में पहुंचा देना चाहता है। इस दृश्य और दृश्य की पीड़ा - पानी में आग का संगम शायद शब्दों से परे चीज है। कई बार मुझे लगता है कि राज कपूर और अंग्रेजी भाषा के कवि जॉन कीट्स की सेन्सुअसनेस को अनूभूतने (अनुभूति को महसूस करना) के लिए अभी वक्त लगेगा और फिल्म समीक्षा का मुहावरा विकसित होना बाकी है। चार के बजाय 'दसों दिशाओं' और प्रेम की विराटता का सम्बन्ध राज कपूर जानते थे।

अजातशत्रु के लेख में बरसात दृश्यों का लम्बा चौड़ा विवरण है। 'हरी घास ईश्वर की धरती पर गिरा हुआ रुमाल है जिसके किसी कोने पर मालिक का नाम लिखा है जो हम पढ़ नहीं पाते'। ये पंक्तियां कवि वाल्ट बिटमैन की हैं। ईश्वर अपना विज्ञापन नहीं करता परन्तु हरी घास पर लिखी इबारत हम पढ़ नहीं पाते। वह मानवता के नाम उसका प्रेम पत्र है।