'मेरे भारत के दिव्य भाल' / जयप्रकाश चौकसे

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'मेरे भारत के दिव्य भाल'
प्रकाशन तिथि : 07 दिसम्बर 2019

छद्म देशभक्ति की फिल्में बनाने वाले फिल्मकार ने लद्दाख में शूटिंग करते समय अपने यूनिट के सदस्यों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा। सदस्यों को यह प्राथमिक जानकारी भी नहीं दी गई कि समुद्र तट से हजारों मील ऊपर स्थित लेह-लद्दाख क्षेत्र में सांस लेने के लिए यथेष्ठ ऑक्सीजन प्राप्त नहीं है और शराबनोशी करने पर मनुष्य को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इस गलती के कारण यूनिट के एक सदस्य की मृत्यु हो गई। मनुष्य के स्वार्थ की कोई लाइन ऑफ कंट्रोल नहीं होती। स्टेन्जिन डोरजाई पहाड़ी खानाबदोश परिवार के सदस्य रहे हैं। पारंपरिक शिक्षा में उनका मन नहीं लगता था अतः उन्होंने पहाड़ी संस्कृति की संरक्षण करने वाली संस्था में सिने विद्या का अध्ययन किया। दार्शनिक बर्गसन ने कहा था कि सिने कैमरा और मनुष्य मस्तिष्क की कार्यशैली में बहुत समानता है। सिने कैमरे के लैंस मनुष्य की आंख की तरह ही चित्र लेते हैं, जो मस्तिष्क के स्मृति-कथा में जमा होते हैं और एक विचार उन स्थिर चित्रों के चलते-फिरते विंब में बदल देता है।

बहरहाल स्टेन्जिन डोरजाई ने 3 वर्ष तक मूवी कैमरे से लेह-लद्दाख क्षेत्र के कोने कोने के चित्र लिए और यह काम उन्होंने 30 किलो के उपकरण को अपनी पीठ पर लादकर किया। मनुष्य पहाड़ को भी अपनी पीठ पर लादकर चल सकता है। स्टेन्जिन डोरजाई के वृत्तचित्र का नाम है 'द शेपरडेज आॅफ ग्लेशियर्स'। ज्ञातव्य है कि वृत्तचित्रों के भी अनेक अंतरराष्ट्रीय समारोह होते हैं। उनमें बाजार का भी एक कक्ष होता है और श्रेष्ठ वृत्तचित्र अच्छे दामों में बिकते भी हैं। हमारी कुछ कथा फिल्मों में वृत्तचित्रों की सी विश्वसनीयता होती है। जैसे जॉन अब्राहम अभिनीत 'मद्रास कैफे' राजीव गांधी की हत्या के दस्तावेज की तरह देखी जा सकती है। बर्फ का वस्त्र धारण किए हिमवत के पहाड़ों पर जहां मनुष्य की बस्तियां नहीं होतीं वहां दिव्य सौंदर्य बसा होता है। याद आती है कुमार अंबुज की पंक्तियां- 'वहां इतना उजाड़ था कि दर्शनीय स्थल हो गया था...लोगों ने उजाड़ को रौंदते हुए उसे बदल डाला था मौज मस्ती में, हम सब के चले जाने के बाद शायद, निखार पर आएगा उजाड़ का सौंदर्य, सांझ होगी और उजाड़, मैंने सोचा - अपनी गुफा में रहने चला जाएगा जिस तरह अपने अकेलेपन में, मनुष्य वापस जाता है अपने ही भीतर... ।' चंद्रकांत देवताले की कविता 'उजाड़ में संग्रहालय' की पंक्तियां इस तरह हैं। 'मैं उजाड़ने एक संग्रहालय हूं, हिरण की खाल और एक शाही वाद्य को चमका रही है उतरती हुई धूप...'।

\स्टेन्जिन डोरजाई ने लद्दाख के उस स्थान पर 'हिमालय फिल्म हाउस' की स्थापना की है। जिस स्थान पर राजकुमार हीरानी ने आमिर खान और करीना अभिनीत '3 इडियट्स' का क्लाइमैक्स दृश्य फिल्माया था। यह अजीब सी बात है कि जिन ऐतिहासिक स्थलों पर किसी फिल्म की शूटिंग होती है उन स्थानों के गाइड इतिहास बताने से पहले यह जरूर सूचित करते हैं कि फलां फिल्म की शूटिंग यहां हुई थी। कभी कृषि प्रधान रहा भारत आज फिल्म प्रधान हो चुका है। यह संभव है कि हिमवत में स्थित हिमालय फिल्महाउस को भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त हो जाए। वे भी तो बहुत ऊंचाई पर हिमवत में विराजे हैं। ज्ञातव्य है कि अंग्रेजी भाषा का नोबल पुरस्कार जीतने वाले कवि इलियट अपनी रचनाओं में हिमालय को हमेशा हेमवत लिखते हैं और 'गेन्जीस' नहीं लिखते हुए 'गंगा' लिखते हैं। उन्हें संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त था। हमारा मित्र विष्णु खरे, टी एस इलियट की कविताओं का हिंदी में अनुवाद कर गया। कमबख्त विष्णु खरे बहुत जल्दी चला गया। हमारी जंगी दोस्ती के मैदान से भाग खड़ा हुआ। कभी-कभी भागे हुए लोग जीत जाते हैं और विजेता अपने जीत के खोखले पन से विचलित हो जाता है।

हिमालय पर चढ़ने में सफलता पाने वाले हिलेरी और शेरपा तेन्जिंग की पहल के बाद लगभग ढाई दर्जन लोग एवरेस्ट पर पहुंचने में सफल हुए हैं। इन साहसी लोगों ने अपने साथ लाए खाने-पीने के सामान के खाली टिन, सूखी बोतलें इत्यादि कचरा वहीं पर छोड़ दिया है। मनुष्य जहां भी जाता है वहां कूड़ा-करकट छोड़ आता है। यह भी संभव है कि स्टेन्जिन डोरजाई के कुछ एन जी शॉट्स या उपयोग में नहीं आया सेल्युलाइड हिमवत पर पड़ा हो। सूर्य किरण उस छोड़े हुए सेल्युलाइड पर कोई चित्र उभार दे और किसी अन्य यात्री के हाथ यह 'खजाना' लग जाए। गुमशुदा होती याददाश्त के किसी भाग में दर्ज है कि अज्ञेय ने भी हिमवत की पृष्ठभूमि पर एक रचना की थी। वह यात्रा वृतांत भी हो सकता है। ज्ञातव्य है कि पांचों पांडव एवं द्रौपदी भी इसी यात्रा पर गए थे और केवल युधिष्ठिर अपने साथ लिए कुत्ते के साथ सशरीर स्वर्ग गया था। वह कुत्ता उसकी इमानदारी का प्रतीक था और उन्होंने कुत्ते को तजने से इनकार कर दिया था। भला ईमानदारी के बिना स्वर्ग जाकर भी क्या लाभ हो सकता है। आज आवाम का जीवन भी हिमालय पर चढ़ने से कम कठिन नहीं है। विचारणीय यह है कि क्या इमानदारी का प्रतीक कुत्ता उसके साथ है।