'श्रद्धा केवल जीवन के समतल में बहा करो' / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'श्रद्धा केवल जीवन के समतल में बहा करो'
प्रकाशन तिथि : 23 अक्तूबर 2019


क्रिकेट संसार की ताज़ा खबर है कि महिला-पुरुष दोनों का समावेश एक ही टीम में होगा। यह क्रिकेट का मिक्स्ड डबल्स माना जाएगा गोयाकि रोहित शर्मा और मिथिला राज एक ही टीम के लिए साथ-साथ बल्लेबाजी करेंगे। इस तरह के मैच में एक अम्पायर पुरुष तो एक अम्पायर स्त्री होगी तथा थर्ड अम्पायर तीसरे सेक्स का प्रतिनिधि होगा। दर्शकों पर लिंग संबंधी कोई पाबंदी नहीं होगी, न ही भेदभाव किया जाएगा। संभव है इसी के साथ रेलगाड़ी में लेडीज कम्पार्टमेंट नहीं होगा। ज्ञातव्य है कि 'लेडीज स्पेशल' नामक मिसेज ओक अभिनीत सीरियल इतना लोकप्रिय हुआ था कि अब उसका भाग दो बनाने की योजना पर काम हो रहा है। कुछ वर्ष पूर्व रानी मुखर्जी चोपड़ा अभिनीत फिल्म 'हईशा' का प्रदर्शन हुआ था। एक कस्बे में महिलाएं क्रिकेट नहीं खेलती थीं। नायिका पुरुष का वेश धारण करके क्रिकेट क्षेत्र में सफलता प्राप्त करती है। एक अंतरराष्ट्रीय मैच में पुरुष रूप धारण करने वाली खिलाड़ी विजय प्राप्त करती है। पुरस्कार समारोह में नायिका का नज़दीकी ही यह रहस्य उजागर करता है कि श्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार प्राप्त करने वाला मर्द नहीं औरत है। वह अपना बयान देती है कि उसने अपने स्वाभाविक रुझान के कारण क्रिकेट खेलना शुरू किया परंतु कूपमंडूक समाज की पाबंदियों के कारण उसने पुरुष वेश धारण किया। इसी तरह रानी मुखर्जी अभिनीत 'मर्दानी' में भी वह खलनायकों को उनके ही क्षेत्र में घुसकर मारती है। इस फिल्म के प्रारंभिक दृश्य में एक डेजर्ट फॉक्स बंद नल से टपकते पानी की बूंद पीती है। रेगिस्तान में रहने वाले प्राणी पानी की कीमत जानते हैं। इस फिल्म की नायिका भी पुरुष क्षेत्र से शासित समाज से रिसता पानी पीकर उन्हें मात देती है।

हमारे समाज में लिंग भेद को साधारण-सी रोजमर्रा की बातों में देखा जा सकता है। मसलन, एक महिला टेलीविजन पर कौन-सा कार्यक्रम देख रही है, इस आधार पर उसके चरित्र का आकलन किया जाता है। अत: बोल्ड फिल्म देखने वाली का चरित्र ठीक नहीं माना जाता। इसी बात को अमिताभ बच्चन व तापसी पन्नू अभिनीत फिल्म 'पिंक' में बखूबी प्रस्तुत किया गया है। टेलीविजन परिवार के मनोरंजन का माध्यम है। प्राय: परिवार के बुजुर्ग के हाथ में रिमोट कंट्रोल होता है। टेलीविजन का रिमोट प्राय: गृहिणी के हाथ नहीं होता। यह रिमोट एक प्रतीक है।

फिल्म बनाने के प्रारंभिक दौर में महिलाएं इस माध्यम से जुड़ना नहीं चाहती थीं। पहला स्त्री पात्र सोलंके नामक पुरुष ने अभिनीत किया था। अधिकांश फिल्मों में 'सोलंके सिन्ड्रोम' कायम रहा है। फिल्म 'रफूचक्कर' में ऋषि कपूर और पेंटल स्त्री रूप धारण करके महिलाओं के साथ छुट्‌टी मनाने जाते हैं। वे अपनी प्रेमिकाओं का साथ पाने के लिए यह करते हैं। महाभारत में अर्जुन ने भी अज्ञातवास का समय एक स्त्री के रूप में काटा था। वे राजकुमारी उत्तरा को नृत्य संगीत की शिक्षा देते थे।

कालांतर में सच बताया जाता है। राजकुमारी अर्जुन के स्त्री स्वरूप को ही पसंद करती थी। अज्ञातवास का समय समाप्त होने पर अर्जुन अपना असली परिचय देकर राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा अभिव्यक्त करते हैं परंतु राजकुमारी प्रस्ताव अस्वीकार करती है। उन्हें अर्जुन का स्त्री स्वरूप ही भाया था। कालांतर में वह अर्जुन के पुत्र से विवाह करती है, जिसमें उन्हें अर्जुन के स्त्री रूप की हल्की-सी झलक दिखाई दी। महाभारत के घने जंगल में हम कुछ दूरी ही तय कर पाए हैं। संभवत: सभ्यता का पैर 'भूलन कांदा' पर पड़ गया है। फ्रांस की महान विचारक सिमोन द ब्वॉ ने लिखा था कि बुर्जुआ समाज में यदि कोई स्त्री प्रसाधन के सारे आडम्बर को ठुकरा कर अपनी स्वाभाविक देह के आवरण हटा देती है तो पुरुष के हाथ-पैर कांपने लगते हैं। पुरुष नारी से कमतर और कमजोर है।

पश्चिम के देशों में स्त्री-पुरुष समानता के लिए संघर्ष किया गया परंतु इसमें भी समानता की बात करते हुए स्त्री के बेहतर और अधिक शक्तिशाली होने के तथ्य को बड़ी चतुराई से छिपाया गया है। एक विकसित देश में स्त्रियों को मताधिकार विगत सदी के चौथे दशक में दिया गया। समान मताधिकार प्राप्त हो चुका है परंतु स्त्रियां आज भी परिवार के पुरुष द्वारा बताए गए व्यक्ति को वोट देती हैं। संसद में महिलाएं तैंतीस प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़े- यह प्रस्ताव दशकों से विचाराधीन है। इसमें भी पचास प्रतिशत सीट को तैतीस प्रतिशत ही बताया गया है। संभवत: आईने के आविष्कार के साध ही भेदभाव का षड्यंत्र रचा गया है कि स्त्री आईने में अपना रूप देखकर मुग्ध रहे। यह माना गया कि जीवन के गाड़ी के दो पहिए हैं परंतु चाबुक तो पुरुष गाड़ीवान के हाथ में ही है। नारी को रूपगर्विता, आत्म-मुग्धा बनाकर असहाय कर दिया गया है।