अँधा / ओमप्रकाश क्षत्रिय

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“अरे बाबा! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.

बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”

“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया,” मगर, आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”

“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”

“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है .”