अंधविश्वास और कुरीतियां समान हैं / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अंधविश्वास और कुरीतियां समान हैं
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2013


आज से कुछ वर्ष पूर्व एक सच्ची घटना का सारांश कुछ इस तरह है कि एक पाकिस्तानी लड़की अनजाने में कश्मीर पहुंच गई। उसे पाकिस्तान का गुप्तचर समझकर जेल में डाल दिया गया, जहां तैनात सिपाही को उससे प्यार हो गया। सबूत के अभाव में छूटने पर सिपाही और उसने शादी कर ली और एक पुत्र का जन्म हुआ। कुछ वर्ष बाद उस खानाबदोश लड़की के पाकिस्तान वापसी की आधिकारिक बात सामने आई और भारत सरकार उसे वापिस भेजने को तैयार हो गई, परंतु लड़की के पाकिस्तानी रिश्तेदार उसके पुत्र को, जिसका पिता एक भारतीय है, लेने को तैयार नहीं थे। लड़की बिना पुत्र के लौटना नहीं चाहती थी और पिता भी पुत्र पर अधिकार छोडऩा नहीं चाहता था, तब न्यायालय का फैसला आया कि बालिग होने तक वह पिता के पास रहेगा और बालिग होते ही वह स्वयं निर्णय करेगा कि उसे मां(पाकिस्तान) के पास जाना है या पिता(भारत) के पास रहना है।

इस सत्य घटना से एक बात सामने आती है कि दोनों देशों में अंधविश्वास एक से हैं, कुरीतियां समान हैं और जहालत भी एक जैसी है कि दूसरे देश के पिता की संतान को स्वीकार नहीं करेंगे, प्रेम को अमान्य करेंगे। पाकिस्तान की फिल्मों में पाकिस्तानी पुरुष और भारतीय नारी की प्रेमकथाएं बनाई जाती हैं और भारत में पुरुष भारत का तथा कन्या पाकिस्तान की, जैसे कि हम फिल्म 'गदर' में देख चुके हैं। पुरुष और नारी के लिए अलग-अलग नैतिक मानदंड दोनों देशों में समान हैं। निखिल आडवाणी की फिल्म 'डी डे' में भी भारतीय पिता से जन्मे पाकिस्तानी मां के पुत्र को जहर देकर मारा जाता है। मैं नहीं जानता कि निखिल ने उपरोक्त सत्यकथा पढ़ी है अथवा नहीं, परंतु भारतीय फिल्मकार दोनों देशों के लोगों के अवचेतन को समझते हैं।

दरअसल, बंटवारा ही एक जहालत थी और उसके सबूत इतने वर्षों बाद भी सामने आते रहते हैं। इस प्रकरण से जुड़ी एक बात यह है कि शायर निदा फाजली की मां और भाई पाकिस्तान चले गए, परंतु निदा ने भारत छोडऩे से इनकार कर दिया और पंजाब में एक टेलीविजन केंद्र से अपनी मां को याद करते हुए एक नज्म सुनाई - 'कराची एक मां है, बंबई बिछुड़ा हुआ बेटा, यह रिश्ता प्यार का पाकीजा(पवित्र) रिश्ता है, जिसे अब तक न कोई तोड़ पाया, न कोई तोड़ पाएगा। गलत है रेडियो, झूठी हैं सब अखबार की खबरें, न मेरी मां कभी तलवार ताने रण में आई है, न मैंने अपनी मां के सामने बंदूक उठाई है, ये कैसा शोर और हंगामा है, यह किसकी लड़ाई है?'

दरअसल, पाकिस्तान की जेलों में ठंूसे हुए निर्दोष भारतीय और भारत की जेलों में ठूंसे निर्दोष पाकिस्तानी मानवीय दर्द और करुणा के वे गीत हैं, जिन्हें बहरी सरकारें और झूठे प्रचार द्वारा भ्रमित कट्टरवादी सुन नहीं पा रहे हैं। पाकिस्तान में राजनीतिक लोकप्रियता पाने के लिए भारत को कोसना तथा भारत में राजनीतिक सत्ता के लिए पाकिस्तान को गाली देना एक ही षडयंत्र के दो हिस्से हैं। दरअसल, दोनों देश सांस्कृतिक रूप से एक ही हृदयपिंड के दो टुकड़े हैं। कुछ विदेशी सरकारों को इस बात से फायदा है कि इनके बीच कभी मित्रता नहीं होने पाए और दोनों ही जगहें कट्टरपंथी विदेशी सरकारों के षडयंत्र में शामिल हैं।

'भाग मिल्खा भाग' और 'डी डे' दोनों फिल्मी कहानियों की जड़ें बहुत गहरी हैं और विगत के कंकालों के पोस्टमार्टम की तरह हैं। अंतर केवल इतना है कि पोस्टमार्टम में सर्जन अपने चाकू का इस्तेमाल करता है तो फिल्मकार अपने कैमरे का। जी हां, कैमरा जख्म भी दे सकता है और मरहम भी लगा सकता है। पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त निर्देशक की फिल्में 'खुदा के लिए' और 'बोल' अत्यंत साहसी फिल्में हैं और बंदे में इतना दम है कि वह पाकिस्तान में रहकर अपनी फिल्में भी शूट करता है। आज पाकिस्तान की सरकार ने निखिल आडवाणी की 'डी डे' को प्रतिबंधित कर दिया है। मुद्दा यह है कि जब पाकिस्तान यह दावा करता है कि दाऊद वहां नहीं बसा है तो उस पर बनाई भारतीय फिल्म से नाराजगी क्यों जता रहा है? आप अपने अदृश्य निवासी का बचाव कर रहे हैं। दोनों ही देशों में एक जैसे अंधविश्वास और कुरीतियां हैं तथा परदेदारी इनकी की जा रही है। निखिल आडवाणी ने एक भी दिन पाकिस्तान में शूटिंग नहीं की, परंु फिल्म में विश्वसनीय वातावरण प्रस्तुत किया है और भ्रम होता है कि हमारे यहां पाकिस्तान बसा है और पाकिस्तान में भारत बसा है।