अंधा नशा, बहरा सनकीपन / जयप्रकाश चौकसे

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अंधा नशा, बहरा सनकीपन
प्रकाशन तिथि :07 जनवरी 2016


'रॉक-ऑन' और 'काई पो छे' के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार अभिषेक कपूर जितेंद्र के सगे भाई के सुपुत्र हैं गोयाकि वे टेलीविजन की महारानी एकता कपूर के कज़िन हैं और अभिषेक की नई फिल्म के नायक आदित्य कपूर यूटीवी के शिखर अधिकारी सिद्धार्थ के छोटे भाई हैं। सिद्धार्थ का विवाह विद्या बालन से हुअा है गोयाकि बड़े सफल लोगों के नज़दीकी रिश्तेदारों की बनाई फिल्म है। फिल्मकार अभिषेक कपूर की सिनेमा की सोच अपने से परिवार से जुदा है और वे कभी फरहान अख्तर के गहरे दोस्त थे। उन्होंने ही फरहान को नायक के रूप में प्रस्तुत किया और उसी फिल्म के भाग दो को लेकर दोनों की मित्रता में दरार आई थी। 'काई पो छे' बनाना आसान काम नहीं था। गुजरात के दंगों में किसका हाथ था, इसे रेखांकित करना बड़े साहस का काम था। जॉन कैनेडी की हत्या पर बनी फिल्म 'जेकेएफ' में भी कातिल का नाम उजागर करना साहस था। कुछ फिल्मकार वहां जा घुसते हैं, जहां जाने का साहस ईगल्स में भी नहीं होता। कहावत है 'जहां न पहुंचे रवि (सूर्य) वहां पहुंचे कवि।'

चार्ल्स डिकेंस का 'ग्रेट एक्सपेक्टेशन' भी उनके अन्य उपन्यासों से अलग प्रेम-कथा है, जिसमें युवा प्रेम के बीच की बाधा एक सनकी चिर कुंआरी रईस बुढ़िया है। जब वह युवा थी तब उसे प्रेम में धोखा हुआ था। अत: वह प्रेम के ही विरुद्ध हो गई। हम अपने अनुभवों से त्रस्त हो जाते हैं और फिर उसी नज़रिये से पूरी दुनिया को देखते हैं। अपनी छोटी खिड़की से आसमान का आकलन करने लगते हैं। एक ही कठिनाई से गुजरते हुए दो व्यक्तियों के अनुभव उनकी अपनी सोच के गठन के अनुरूप अलग-अलग होते हैं। इसी तथ्य को जापान के फिल्मकार अकिरा कुरोसोवा ने अपनी एक फिल्म में इस तरह प्रस्तुत किया कि एक अपराध के चार चश्मदीद गवाह घटना पर बयान देते हैं, तो उनके बयानों से ऐसा आभास होता है मानो चार अलग-अलग घटनाएं घटी हैं। एक घटना का विवरण सुनाने वाले अपने अनुभवों की मिक्सी से गुजरता है। कोई भी व्यक्ति किसी कथा को जस का तस नहीं सुना सकता। हमारे आख्यान भी इसके शिकार रहे हैं, क्योंकि उनका आधार श्रुति और स्मृति है। यह स्मृति महाठगनी है। इसी बात को अलग संदर्भ में वेदव्यास ने कर्ण के द्वारा प्रस्तुत किया, जिसे गुरु का श्राप है कि ऐन वक्त पर वह दैवीय शस्त्र का श्लोक भूल जाएगा। दरअसल, अभी तक हमारे आख्यानों के मूल का अर्थ ही स्पष्ट नहीं किया गया है, क्योंकि सारे आख्यानों में श्राप और आशीर्वाद का उपयोग केवल कथा चक्र को विस्तार देने के लिए किया है और इन महान आख्यानों की व्याख्या को श्राप और आशीर्वाद से मुक्त करके देखने की चेष्टा ज्ञान के भंडार खोल सकती है।

बहरहाल, अभिषेक की आगामी फिल्म के घटनाक्रम में वह बुढ़िया अपनी संपत्ति युवा प्रेमियों के नाम कर जाती है। अभिषेक ने पहले प्रयास किया कि श्रीदेवी इस पात्र को अभिनीत करें। उनके इनकार के बाद रेखा ने भूमिका स्वीकार की परंतु कुछ दिनों की शूटिंग में फिल्मकार ने महसूस किया कि रेखा अभी तक 'उमराव जान' के प्रभाव से मुक्त नहीं हुई हैं। अत: उन्हें हटाकर तबु को यह भूमिका दी गई। दरअसल, सुंदर अभिनेत्रियां कुरूप सनकी पात्रों को करने से बिदकती हैं, क्योंकि परदे पर प्रस्तुत उनकी सुंदरता उनकी सोच का हिस्सा बन जाती है। उम्रदराज होने पर कटरीना कैफ भी ऐसी भूमिकाएं नहीं करेंगी।

अशोक कुमार को फिल्म 'तेरी सूरत मेरी आंखें' में कुरूप अंधे की भूमिका करनी थी। उन्होंने सहर्ष स्वीकार की और इस फिल्म में सचिन देव बर्मन ने काज़ी नज़रूल इस्लाम की एक धुन का इस्तेमाल किया, जिसके लिए गीत रचा शैलेंद्र ने। वह महान गीत था, 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, इक पल जैसे इक जुग बीता, जुग बीते मोहे नींद न आई, इत जले दीपक, उत मन मोरा, फिर भी न जाए मेरे मन का अंधेरा भोर भी आस की किरण न लाई।' हम आंख वाले कम से कम कुछ घंटे, आंख पर पट‌्टी बांधकर अपने ही घर में घूमें तो दृष्टिहीन की व्यथा को हम समझ सकते हैं।