अकाल जन्म / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

Gadya Kosh से
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"अरे, यह कहानी सुनने-सुनाने का समय है क्या?"

"हाँ दादा जी, सुबह का समय शुभ होता है। सुनाइए न!"

बच्चों की जिद को दादाजी नकार न सके। महाभारत की कहानी सुनाने लगे। कद्रु और विनता की कहानी।

कद्रु के सारे अंडों से बच्चे निकल आए थे। परंतु उसकी सौत विनता के दोनों अंडे ज्यों-के-त्यों पड़े थे। ईर्ष्या की चिंगारी भड़क उठी। वह ज्योतिषी के पास गई और शुभ दिन देखकर एक अंडा फोड़ डाला।

"मां, मां, तूने यह क्या किया?" चिल्लाता हुआ बच्चा अंडे से बाहर निकल आया। वह ठंड से कांप रहा था।

"मां, मैं दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिमान होता। पर हाय! तेरी वजह से अधूरा रह गया! मां, मुझे ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही है। मैं जा रहा हूँ।" और वह उड़ता हुआ सूर्य देवता के पास चला गया। उनके आगे बैठ गया और उनका सारथी बन गया।

"आगे क्या हुआ दादा जी?"

जाते-जाते वह बच्चा एक बात कह गया। "मां, दूसरे अंडे को मत..."

फट से दादा जी के माथे पर अखबार पड़ा। उनकी कहानी छिन्न-भिन्न हो गई।

"दादाजी, दूसरे अंडे का क्या हुआ?"

"अभी नहीं, बाद में।"

"बाद में कब?"

"कहानी सुनाने के उचित समय पर।" कहते हुए दादाजी ने अखबार उठा लिया। अखबार के मुखपृष्ठ पर मुख्य समाचार था—11.11.11 के शुभ काल में बहुत-सी माताओं ने अकाल जन्म दिया अपने बच्चों को। ऑपरेशन के द्वारा जन्मे ये बच्चे।