अकेला पलाश / मेहरुन्निसा परवेज / पृष्ठ 2

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धूप काफी तेज हो गयी थी, गर्म हवा को झोंकों से कमरा एक दम गर्म सा हो गया था। विचित्र बेचैनी वाली स्थिति थी। मन भी शान्त नहीं था, और कमरा भी मन को शान्ति नहीं दे पा रहा था। जबरदस्ती आँख मूँदकर वह पड़ी रही, पर सारी आहटें मन की भी, बाहर की भी, उसे आराम से बैठने नहीं दे रही थीं, उसे परेशान किये हुए थीं। तुषार का पत्र कितनी-कितनी स्मृतियों को जगा गया था। अब वह पहले की तरह कमजोर, लाचार, बात-बात पर रोने वाली तहमीना नहीं रह गयी थी। उसकी जगह ले ली थी एक अच्छे, ऊँचे व्यक्तित्व वाली तहमीना ने, जिसके पास आज अपना बँगला, गाड़ी, फ्रिज, वे सारी चीजें हैं, जिनके लिए वह कल तरसती थी, सपने सँजोये थे। आज इतने वर्षों बाद तुषार का पत्र पाकर उसकी इच्छा हुई कि मुड़कर एक बार फिर पुरानी तहमीना को निहारे, जो कच्ची धरती पर खड़ी व्याकुल-सी आगे के रास्ते को निहारती थी।...

सुबह अचानक पानी बरस गया था, जिससे ठंड काफी बढ़ गयी थी। समय ज्यादा नहीं हुआ था, पर वे लोग जब उस छोटे से निपट एकाकी बस स्टैंड में उतरे तो लगा दोपहर काफी भारी हो गयी है। अभी दिन का साढ़े ग्यारह ही बजा था। बस स्टैंड में उतरने के बाद पहली बार मन में ढेर सारा संकोच उतर आया था। कहाँ जायें...कैसे जायें ? कैसे वहाँ जाकर खुद से अपना परिचय दें ? पता नहीं वहाँ जाकर कैसे उनका स्वागत होगा... स्वागत होगा भी या नहीं ? बहुत गैर-जरूरी प्रश्न थे जो एकाएक सामने आ खड़े हुए थे, जिनकी तरफ देखने से भय लग रहा था।

छोटा-सा बस स्टैंड...छोटा-सा गाँव, लगा आँख को इस छोर से उस छोर तक घुमा लेने से ही गाँव की लंबाई देखी जा सकती है। बस स्टैंड के किनारे लगे, इमली के पेड़ों ने जोर-जोर से अपनी बाँहें हिलायी, हवा के साथ इमली के फूलों की खट्टी महक ने स्पर्श किया।

‘‘कुछ पता है किधर चलना है,’’ जमशेद ने तहमीना से पूछा।

‘‘नहीं, किसी से पूछ लो न,’’ उसने खीजे हुए लहजे में कहा। उसे इस तरह बेवकूफों की तरह खड़े रहना बड़ा अखर रहा था। वह चाहती थी वहाँ से जल्दी से जल्दी हट जाए, क्योंकि कुछ लोग उत्सुकता से उन्हें देखने लगे थे। रिंकू पास के घर में चरती हुई मुर्गियों को बहुत प्रसन्नता से निहार रहा था। धूप से उसका चेहरा लाल हो उठा था। तहमीना ने रूमाल से उसका चेहरा साफ किया और पर्स से लेमनजूस की एक गोली निकाल कर उसे दी।

‘‘मम्मी पानी,’’ रिंकू उसकी साड़ी को मुट्ठी में भरता हुआ रुआँसा-सा बोला।

‘‘बस अभी बेटा, अभी चलते हैं आफिस वहाँ पानी मिलेगा,’’ तहनीमा ने रिंकू को बहलाते हुए कहा।

‘‘नईं, अभी दो’’...वह ठुनकने लगा।

थरमस का पानी खत्म हो गया था और वह बच्चे को बाहर का पानी पिलाना नहीं चाहती थी। होटल के नाम पर वहाँ कुछ था भी तो नहीं, टी स्टाल तक नजर नहीं आया। तहमीना ने रोते हए, ठिनकते हुए रिंकू को गोद में उठा लिया, और सामने रोड पर नजर डाली। लाल मुरूम वाली सड़क थी। सड़क के आगे जाने पर शायद आफिस मिलता हो। वह बेचैनी से आगे बढ़ी, जमशेद भी शांत हो लिए। प्यास से धूप में, थकान से रिंकू रोने लगा था।

बस स्टैंड के पास एक बड़ा-सा एक आम का वृक्ष है, जहाँ एक औरत लाई चना और सस्ते किस्म के लाल-लाल बिल्कुट बेच रही थी। उसी के पीछे पान का एक ठेला। नाली के पार कुछ क्वार्टर बने थे, सड़क के इस पार कोई आफिस था शायद। वे लोग आगे बढ़ते गये।

कुछ आगे जाने पर तहमीना को अपने दफ्तर का बोर्ड दिखा, जिसे देखते ही उसे हँसी आयी। दफ्तर क्या, दो छोटे से कमरों का आफिस था, सामने छोटा-सा पत्थरों का बरामदा जो एक दम गंदा-सा पड़ा था, जिसकी किसी ने बरसों से सफाई नहीं की थी। वे लोग बरामदे में आकर खड़े हो गये। रिंकू बरामदे में दौड़ने लगा था। कमरों में ताला पड़ा था।

अचानक सामने से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और नमस्ते कर बोला, ‘‘मैं बड़े बाबू को अभी बुलाकर ला रहा हूँ।’’

वह शायद चपरासी होगा, तहमीना ने सोचा और बरामदे में टहलती रही। बरामदे के दोनों ओर जंगली झाड़ियाँ उग आयी थीं। वे इतनी बढ़ गयी थीं कि उनकी शाखाएँ बरामदे की दीवारों को घेरे हुए थीं। जंगली घास घुटनों-घुटनों तक उग आयी थी। सड़क के पार मेहंदी की कंपाउड से घिरा छोटा-सा पोस्ट आफिस था और उससे लगे पी. डब्ल्यू. डी. के नए क्वार्टर थे।

सामने से एक व्यक्ति दौड़ेते हुए आया। तहमीना ने सोच लिया—यही यहाँ का बाबू होगा। भूरे रंग की टेरी काट की फुलपैंट तथा पीले चेक की उसने बुश्शर्ट पहन रखी थी जो काफी गंदी-सी हो गयी थी। आते ही उसने बड़े अजीब अंदाज से हाथ हिलाकर नमस्ते किया, जैसे चेहरे पर बैठ आयी मक्खी उड़ा रहा हो। और आफिस का ताला खोलने लगा।

‘‘आपका आफिस कितने बजे खुलता है ?’’ तहमीना ने घड़ी पर नजर रखते हुए उससे पूछा।

‘‘ग्यारह बजे,’’ उसने घबराते हुए कहा, ‘‘आज देर हो गयी मैडम,’’ उसने दरवाजा खोलकर खादी का छींट वाला परदा नीचे गिरा दिया।

वे लोग अंदर कुर्सियों पर बैठ गये। वहीं तीन कुर्सियाँ, एक बेंच, आफिस टेबल तथा पीछे दीवार से लगी लकड़ी की दो आलमारियाँ और लोहे की तिजोरी रखी थी।

‘‘आपने मुझे कोई सूचना नहीं दी,’’ तहमीना ने बाबू से पूछा।

मैडम, वह हम समझे के आपकी तरफ से हमें कोई सूचना मिलेगी कि आप फलाँ दिन चार्ज लेने आ रही हैं।’’

‘‘खैर, नये-नये वातावरण में इस तरह की गलतफहमियाँ हो जाती हैं,’’ तहमीना ने कहा, ‘‘आप चार्ज तैयार कर लीजिये।’’

‘‘जी, बहुत अच्छा,’’ कहता हुआ बड़ा बाबू बाहर चला गया। जमशेद तहमीना के रोब को देखकर मुस्कुरा रहे थे, जवाब में तहमीना भी मुस्कुरा दी। तभी बाबू अन्दर आया और वे दोनों संजीदा हो गये। तहमीना ने दीवारों का निरीक्षण शुरू किया। दीवार पर इन्दिरा गांधी और नेहरूजी के बड़े-से चित्र टँगे थे। इन्दिरा गांधी का यह चित्र बहुत पुराना था। तब शायद वह जवान थी। पूरे मध्यप्रदेश का नक्शा, जो किसी के हाथ से बना हुआ था, टँगा था, जो बीच से लंबाई में भी फट गया था।

‘‘इतने अच्छे नक्शे की आप लोग हिफाजत न कर सके,’’ तहमीना ने बाबू से कहा। जवाब में बाबू ने झेंपकर नीचे सर कर लिया।

थोड़ी देर में एक लड़का गिलासों में चाय लेकर आया। बाबू ने स्टोर से बिस्कुट निकालकर एक पेपर पर रख दिये, जिस पर रिंकू ने शीघ्र से शीघ्र हाथ साफ करना शुरू कर दिया। वे लोग चाय पीने लगे। सामने से एक सफेद साड़ी पहने महिला ने प्रवेश किया, पास आने पर उसे महिला कहना गलत लगा। वह मुश्किल से बीस-बाईस साल की लड़की थी। उसके बाल विचित्र ढंग से घुटे थे। लगता था जैसे वह किसी बंगाली गुरू की शिष्या हो। तहमीना को उसे देख बड़ा विचित्र-सा लगा। आते ही उसने दोनों को नमस्कार किया और बड़े बाबू की कुर्सी पर बैठते हुए,

‘‘क्षमा काजियेगा, आपकी तारीफ ?’’

‘‘अरे, मैडम हैं,’’ बड़े बाबू ने एकदम घबराते हुए जल्दी से बतलाया।

‘‘अरे,’’ वह एकदम घबराकर उठी, जैसे उसे बिजली का करेंट छू गया हो, और दुबारा नमस्कार कर बोली,

‘‘क्षमा करियेगा मैडम, मुझसे गलती हो गयी। आप आने वाली हैं, यह तो बड़े बाबू ने भी नहीं बलताया मुझे। आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई। मैं यहाँ पर नयी ही आयी आयी हूँ, सिर्फ एक महीना हुआ है।’’

‘‘अच्छा, कहाँ से आयी हैं आप यहाँ ?’’

‘‘भोपाल से...मुझसे पहले जो यहाँ ड्यूटी पर थी उसकी मृत्यु के बाद मेरी पोस्टिंग यहाँ हुई है।’’

‘अच्छा, डैथ हो गयी ! क्या वह ज्यादा बूढ़ी थी ?’’ तहमीना ने पूछा।

‘‘नहीं, दीदी, एकदम यंग थी, कुँवारी थी और उसकी एबार्शन केस में डैथ हुई।’’

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