अक्तूबर और जून / ओ हेनरी

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अमरीकी कथाकार ओ हेनरी (1862-1910) का पूरा नाम विलियम सिडनी पोर्टर था। वह 1882 में टेक्सास गया, वहाँ से उसने कुछ समय के लिए हास्य-व्यंग्य की एक पत्रिका ‘रोलिंग स्टोन’ निकाली। 1902 में न्यूयार्क गया। और जमकर कहानियाँ लिखीं। यथार्थ में व्यावसायिक कथा लेखन ओ हेनरी से ही प्रारम्भ हुआ।

कप्तान ने दीवार पर लटकती तलवार को बड़ी उदास निगाहों से देखा। पास की अलमारी में उसकी धुँधली पड़ चुकी वर्दी पड़ी थी-मौसम और सेवा के कारण दागी और छिन्न-भिन्न। कितना अरसा बीत गया लगता है उन युद्ध के चेतावनी संकेतों के बाद!

और, अब अपने देश के संकटकाल के समय अपनी योग्यता का प्रमाण देनेवाला यह अनुभवी कप्तान एक औरत की मदभरी आँखों और मुसकराते होठों के आगे सम्पूर्ण समर्पण मात्र बनकर रह गया था। वह अपने शान्त कमरे में बैठा था और उसके हाथ में उस औरत का पत्र था, जो उसे अभी-अभी मिला था-वही पत्र, जिसने उसकी निगाहों में उदासी भर दी थी। उसने उस मारक पैरे को एक बार फिर पढ़ना शुरू किया।

‘आपके इस आदर को, जो आपने अपनी पत्नी बनने का आमन्त्रण देकर मुझे बख्शा है, अस्वीकार करते हुए, मैं महसूस करती हूँ, मुझे सबकुछ खुलेमन से कहना चाहिए। इस अस्वीकार का मेरी नजर में जो कारण है, वह है हमारी उम्र में इतना बड़ा फर्क। मैं आपको बहुत-बहुत चाहती हूँ। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है, हमारी शादी सफल नहीं हो पाएगी। मुझे इस बात को लिखते हुए सख्त अफसोस हो रहा है, लेकिन मेरा विश्वास है कि सही कारण बताने की मेरी इस ईमानदारी की आप दाद जरूर देंगे।’

कप्तान ने आह भर ली और अपना सिर अपने हाथ पर झुका लिया। सच है, उनकी उम्र के दरम्यान कई बरस थे, लेकिन वह शक्तिशाली और कठोर था। उसका मान था। उसके पास दौलत भी थी। क्या उसका प्यार, उसकी देखभाल और उसकी क्षमताएँ भी उससे उम्र का सवाल न भुलवा पाएँगी? और फिर, उसे इस बात का पक्का यकीन था कि वह उसका खयाल करती थी।

दो घण्टे बाद जिन्दगी के सबसे बड़े संघर्ष के लिए वह तैयार खड़ा था। उसने टेनिसी के प्राचीन दक्खिनी नगर की गाड़ी पकड़ी। वह वहीं रहती थी।

जब कप्तान उस पुरानी हवेली के द्वार के भीतर घुसकर बजरी के रास्ते पर आगे बढ़ा, तब थियोडोरा डेमिंग सीढ़ियों पर बैठी गरमी की उस सुहानी शाम का आनन्द ले रही थी। वह कप्तान से ऐसी मुस्कराहट लिये हुए मिली, जिसमें किसी तरह की परेशानी नहीं छुपी थी।

“मुझे आपके आने की उम्मीद नहीं थी,” थियोडोरा बोली, “पर अब, जब आप आ ही गये हैं, तो आप मेरे साथ बैठ जाइए। क्या आपको मेरा पत्र नहीं मिला?”

“मिला था,” कप्तान ने कहा, “और उसी के लिए मैं आया हूँ। मैं कहना चाहता हूँ, थियो, अपने जवाब पर एक बार फिर विचार कर लो। नहीं करोगी क्या?”

“नहीं-नहीं,” उसने कहा और अपना सिर हिलाया। “अब उसका सवाल ही नहीं उठता। मैं आपको बेहद पसन्द करती हूँ। लेकिन शादी से बात नहीं बनेगी। मेरी उम्र और आपकी उम्र... पर मुझसे अब फिर वही मत कहलवाइए - मैंने पत्र में लिख ही दिया था।”

कप्तान का मुख लाल हो गया। थोड़ी देर के लिए वह खामोश रहा और शाम के धुँधलके में घूरता रहा, सच है। भाग्य और काल-पिता ने उसके साथ बड़ा दगा किया था। उसके और उसकी खुशी के बीच मात्र कुछ बरस आकर अटक गये थे!

थियोडोरा का हाथ नीचे की ओर खिसका और उसके भूरे हाथ में जाकर फँस गया। आखिरकार उसे उस भाव की अनुभूति तो हुई, जो प्यार से इतना ज्यादा सम्बद्ध है।

“इतनी गम्भीरता से मत लीजिए इसे,” वह विनम्र स्वर में बोली, “जो भी हो रहा है, अच्छे के लिए ही हो रहा है। मैंने इस पर अपने आप बड़ा तर्क-वितर्क किया है। एक दिन आप खुद महसूस करेंगे कि मैंने आपसे शादी नहीं की, सो अच्छा ही हुआ। हो सकता है, थोड़ी देर के लिए यह शादी भली महसूस हो। लेकिन जरा सोचिए! कुछ ही बरसों बाद हमारी रुचियाँ कितनी भिन्न हो जाएँगी। हममें से एक अँगीठी के पास बैठकर कुछ पढ़ना पसन्द करेगा, या हो सकता है शामों में मिले गठिये या दिमागी थकावट का इलाज करना चाहेगा, जबकि दूसरा नृत्यों, थियेटरों और रात को देर तक चलनेवाली भोजन-पार्टियों के लिए पागल हो रहा होगा। नहीं, मेरे प्रिय मित्र, अगर इसे जनवरी और मई न भी मानें, तो इसे अक्तूबर और जून के आरम्भ का मामला तो माना ही जा सकता है।”

“मैं हमेशा वही करूँगा, थियो, जो तुम चाहोगी कि मैं करूँ, अगर तुम चाहोगी...”

“नहीं, आप नहीं करेंगे। आप अब ऐसा सोचते हैं कि आप कर लेंगे, पर आप कर नहीं पाएँगे। कृपया मुझे दोबारा यह बात मत कहिए।”

कप्तान हार चुका था। उसने उत्तर की ओर जानेवाली गाड़ी उसी रात पकड़ ली। अगली शाम वह अपने कमरे में वापस पहुँच चुका था। वह रात के भोजन के लिए कपड़े बदल रहा था और बो में सफेद टाई बाँध रहा था। उसी क्षण वह एक उदास स्वगत भाषण में भी लीन था :

‘अपने सिर की कसम, लगता है थियो ठीक ही कहती थी, कोई आदमी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि वह बेहद जवान और खूबसूरत है। पर बड़े खुले मन से भी हिसाब लगाया जाए, तो भी वह अट्ठाईस से कम की तो क्या होगी।’

और कप्तान, आप जानते ही हैं, केवल उन्नीस का था। और उसे अपनी तलवार निकालने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी - सिवा एक बार के और वह भी उसने चाटानूगा के परेड ग्राउण्ड में निकाली थी। कह सकते हैं कि, स्पेनिश-अमरीकी युद्ध की ओर बढ़ने में वह उसकी आखिरी सीमा थी।