अक्स / अशोक भाटिया

Gadya Kosh से
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सुबह के वक्त मैंने एक बच्चा देखा, जो चिड़िया की तरह चहक रहा था...

दोपहर को मैंने एक चिड़िया देखी, जो लड़की की तरह उमंग से भरी हुई फुदक रही थी...

शाम को मैंने एक लड़की देखी, जो फूल की तरह खिली हुई, झूमती जा रही थी...

अगली सुबह मैंने एक फूल देखा, जो बच्चे की तरह बिलकुल तरोताज़ा और सुंदर था ...

अक्स-2

कल मैंने एक चिड़िया देखी, जो बच्चे की तरह इधर से उधर मस्ती कर रही थी...

उसके बाद मैंने एक लड़की देखी, तो मुझे वह उसी चिड़िया जैसी लगी। दोनों उमंग से भरी थीं ...

आज सुबह मैंने एक फूल देखा, तो कल वाली लड़की याद आ गई। दोनों मुझे एक जैसे झूमते लगे ...

और अभी-अभी मैंने एक बच्चा देखा है, जो सुबह-सुबह देखे फूल जैसा ही सुंदर और खिला हुआ लगा है...

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