अगली बैठक का चक्कर / गिरीश पंकज

Gadya Kosh से
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समस्या बड़ी गंभीर थी, क्योंकि वह समस्या थी और समस्या के बारे हर कोई जानता है कि वह अकसर गंभीर क़िस्म की ही होती है। तो उस गम्भीर समस्या के समाधान के लिए इस बार भी एक गंभीर बैठक हो रही थी। वहाँ हर कोई गंभीर हो कर समस्या पर पूरी गंभीरता के साथ बातचीत कर रहा था। हर कोई बार-बार यही दोहरा रहा था कि समस्या बड़ी गंभीर है... समस्या बड़ी गंभीर है, इसलिए इसका कोई-न-कोई समाधान निकाला ही जाना चाहिए। बैठक में शामिल सदस्यों के बारे में सभी जानते थे कि ये बंदे बड़े गंभीर क़िस्म के जीव हैं, इसलिए सबको विश्वास था कि कम-से-कम इस बार कोई नाटक नहीं होगा और समस्या पर कोई-न-कोई ठोस निर्णय ले ही लिया जाएगा।

बैठक का संचालन करते हुए मिस्टर-क ने कहा, "समस्या को देखकर ही लग रहा है कि यह बड़ी गंभीर है, क्योंकि यह हमारी तीसरी बैठक है और इस बार हम पूरी उम्मीद से हैं कि इस बार हम लोग कुछ-न-कुछ निर्णय करके ही उठेंगे। उठेंगे न?"

श्रीमान ख ने भी कहा, "बिलकुल उठेंगे, तभी तो बैठे हैं। समस्या बडी गंभीर है न और हम लोग तो वैसे भी किसी छोटी-मोटी समस्या पर विचार ही नहीं करते।"

कवि क़िस्म के मिस्टर गंभीर उर्फ श्रीमान ग ने भी खुल कर समर्थन करते हुए कहा, " वाकई समस्या अति गंभीर है। सीरियस है। इसके बारे में हमें गंभीर हो कर यानी कि सीरियसली विचार करना चाहिए। इस बारे में अपनी छह लाइन की एक कविता प्रस्तुत करने की इज़ाज़त चाहता हूँ। ध्यान से सुनिए कि

मुद्दा है गंभीर हम, फौरन करें उपाय।

समाधान निकले तुरत, दें हम ऐसी राय।

दें हम ऐसी राय, नहीं हम कल पर टालें।

अगर अभी है अंधकार तो दीपक बालें।

कहता है कविराय, सुनो सब अपने दद्दा।

इस बैठक में सुलझा लें हम अपना मुद्दा। "

कविता सुनकर सब ने तालियाँ बजाई। फिर घ जी ने जम्हाई लेते हुए कहा, "हम सबका दायित्व है कि इस समस्या का जितनी जल्दी हो सके, समाधान किया जाय।"

अध्यक्षता श्रीमान-च कर रहे थे। वह बोले, "सचमुच इस समस्या को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। इस बारे में हमें आज तो कुछ निर्णय कर ही लेना चाहिए वरना लोग क्या कहेंगे। वैसे तो लोगों का काम है कहना।"

बातचीत चल ही रही थी कि तब तक टी-ब्रेक हो गया। लोगों ने गरमागरम स्वादिष्ट चाय पी। चाय के साथ वाय का भी स्वादिष्ट प्रबंध था इसलिए सबने उस के भक्षण को भी अपना नैतिक-पुनीत कर्तव्य समझ कर परोसे गए वाय का भरपूर एंजॉय किया। आधे घंटे बाद फिर वे सारे लोग समस्या पर बात करने लगे।

ज ने कहा, "चाय बड़ी स्वादिष्ट थी, सर।"

दूसरा बोला, "पनीर-पकोड़ा भी कम स्वादिष्ट नहीं था, भाई। और हाँ, चटनी! आ-हा-हा। वह तो और अधिक लाज़वाब थी। चटपटी। ऐसे पकौड़े खाने के बाद किसी भी समस्या के समाधान पर और गंभीरता के साथ विचार करने का मन होता है। माफ़ कीजिएगा, पिछली बार पकोड़ा ठीक से नहीं तला गया था।"

क ने कहा, "हो सकता है, इसलिए भी ठीक न रहा हो कि वह प्याज का पकौड़ा था। किंतु इस बार पनीर का पकौड़ा है। यह हाई क्वालिटी का पकोड़ा कहलाता है। जब हाई क्वालिटी का पकोड़ा खाया जाएगा, तो हाई क्वालिटी की गंभीरता भी आएगी और हाई क्वालिटी का निर्णय किया जाएगा।"

अध्यक्ष मिस्टर-च ने मुस्कराते हुए कहा, "अरे, अब चाय पकौड़े की बात छोड़िए और अब यह बताइए कि हम लोग कहाँ थे?"

इस बार छ ने कहा, "सर, हम लोगन तो यहीं थे। कहीं गए ही नहीं!"

छ की बात सुनकर ज को बड़ी हँसी आई। उसने ठहाका लगाते हुए कहा, "तुसी बड़े गम्भीरकिस्म के मज़ाकिया हो जी।"

उसकी बात सुन कर झ सहित क, ख, ग और घ भी हँस ही पड़े। फिर कुछ देर तक दन्तनिपोरी के बाद सब के सब चुप हो गये।

अब क ने बात शुरू की, "तो हम सब समस्या के हल के लिए बैठे हैं। पिछली बार भी तो बैठे थे लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया और समस्यारूपी बैल जहाँ-का-तहाँ बैठा हुआ है। इसलिए फिर बैठे हैं। इस बार तो शायद हम कुछ-न-कुछ निर्णय करके ही उठेंगे। ऐसा मेरा अनुमान है।"

क की भावुकता भरी बात सुनकर ख ने जम्हाई ली, तो ग को भी जम्हाई आ गई। देखते-ही-देखते जम्हाई वायरल—सी हो गयी। यानी सब जम्हाई लेने लगे। यह अदभुत दृश्य देख कर घ जी को भी जम्हाई आने लगी। उन्होंने जम्हाई तो ली मगर सबसे पहले जम्हाई लेने वाले शख़्स का नाम लिए बगैर कहा, " लगता है, हमारे कुछ मित्रो को नींद आ रही है, तो क्यों न हम बैठक को इस बार भी स्थगित कर दें और अगली बैठक में फिर फ्रेश मूड के साथ फिर इसी मुद्दे पर चर्चा करें क्योंकि मुद्दा काफ़ी गंभीर है, विचारणीय है, सोचनीय है, चिंतनीय है, मननीय है। दो पँक्तियाँ मेरी भी सुन लीजिए कि

जम्हाई आने लगी, इस पर करें विचार।

मुद्दे पर हो जाएगी, बैठक अगली बार॥

...तो इस पर इत्मीनान से गहन चिंतन करने की ज़रूरत है इसलिए मेरा तो साफ़-साफ़ 'तीन टूक' कहना है कि हड़बड़ी में ऐसा कोई निर्णय न करें, जिससे गड़बड़ी हो जाय और समस्या का समाधान कभी निकल ही न सके। अतः मेरी तो यही राय है कि हमें अगली बैठक में ही अब इस समस्या के बारे में विचार करना चाहिए। क्यों भाइयो, आप सब की क्या राय है? "

ख ने प्रसन्न हो कर उचकते हुए कहा, "बड़ी अच्छी राय है। बड़ी प्यारी राय है। अब हमें इस मुद्दे को अगली बैठक के लिए टाल देना चाहिए। जल्दबाजी में कोई निर्णय करना कभी भी ठीक नहीं, क्योंकि हम सब जानते हैं और बुजुर्गों ने भी तो कहा है कि जल्दी का काम शैतान का होता है। किसका होता है? शैतान का! और हम सब लोग तो मनुष्य हैं। शैतान होते, तो फौरन निर्णय कर लेते, लेकिन मजबूरी है कि हम लोग मनुष्य हैं, इसलिए मेरी भी यही उचित राय है, सजेशन है कि इस मुद्दे को अगली बैठक के लिए स्थगित कर देना चाहिए। यहाँ मैं माननीय सदस्य घ की एक बात पर सख्त एतराज करूंगा कि उन्होंने तीन टूक क्यों कहा? हम लोग तो हमेशा दो टूक बात ही कहते रहे हैं मगर इन्होंने फरमाया कि मेरा तीन टूक कहना है। यह क्या बला है?"

मिस्टर घ ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखिए, हम लोग समय के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हर मामले में प्रगति कर रहे हैं। तो भाई कब तक दो की गिनती पर टिके रहें? इसलिए मैंने गंभीरता के साथ सोचा कि अब पुरानी कहावत को संशोधित कर दिया जाय। दो टूक की जगह अब तीन टूक बात की जाय।"

इस मज़ेदार बात पर सब ने एक बार फिर ठहाका लगाया। तब तक एक घंटा बीत चुका था, तो एक बार फिर टी-ब्रेक हुई गवा। जब ब्रेक हो ही गया, तो स्वाभाविक है कि जितने भी महानुभाव उपस्थित थे, सबको चाय पिलाई गई और चाय के साथ फिर एक बार हैवी क़िस्म का 'वाय' भी पेश किया गया। जिसे अँग्रेज़ी में हाई-टी कहा जाता है और हिन्दी में 'भोजश्ता' । यानी भोजन और नाश्ते के बीच की स्थिति, भोजशता। सबने स्वादिष्ट वाय यानी कि हाई-टी वाले नाश्ते का डट कर भक्षण किया। इस बार नाश्ते में कटलेट और भजिया सर्व किया गया। गुलाब जामुन भी। नाश्ते का मीनू बदल-बदल कर बैठक करने से हर बन्दे की आत्मा तृप्त होती है। ऐसा कुछ अनुभवी जन कहते हैं। ...तो सदस्यों ने कटलेट, भजिया और गुलाबजामुन खाने के बाद दो-दो कप चाय पीने का भी सुख लिया। उस के बाद सभी सदस्य एक बार फिर बैठक में गंभीरता के साथ उपस्थित हो गये और मंद-मंद मुस्कुराते हुए एक दूसरे का मुँह निहारने लगे।

अध्यक्षता कर रहे मिस्टर-च ने कहा, "तो फाइनली आप सब का क्या इरादा है? समस्या के समाधान के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्यों भाई ख, तुम तो बहुत देर से चुप हो। हमेशा की तरह भकोसे जा रहे हो। तुम भी तो कुछ बोलो।"

ख जानलेवा क़िस्म की कोमल अंगड़ाई लेते हुए हँस पड़ा और बोला, " मैं बहुत देर से यही सोच रहा हूँ कि मामला गंभीर है। इस पर त्वरित निर्णय किया ही जाना चाहिए और हम सब लोग इसलिए बैठे भी हैं। पिछली बार भी हम लोग बैठे थे लेकिन किसी कारणवश निर्णय नहीं ले पाए थे। मगर इस बार भी लग रहा है कि हम किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहे हैं। कारण साफ़ है क्योंकि समस्या ही बड़ी गंभीर है। हमने भी गंभीरता के साथ चर्चा की। इसमें रत्ती भर कोताही नहीं की। लेकिन लग रहा है कि इस मुद्दे को हम कुछ घंटों में हल नहीं कर सकते। इसके लिए अब ज़रूरी है कि हम अपने आप को कुछ समय दें। मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि अगली बैठक में ही इस मुद्दे को हम फुल गंभीरता के साथ रखें और चर्चा करें। अगली बैठक में हम किसी ठोस नतीजे पर पहुँच कर इस समस्या का द ऐंड कर ही देंगे। किसी कवि ने तो कहा भी है कि

आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों।

जल्दी-जल्दी क्यों करना, जब जीना है बरसों।

तो बैठक करना हमारा फ़र्ज़ है। हमारा परम कर्तव्य है। दायित्व है। कभी भी कर लेंगे। जैसे मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, उसी तरह बैठक नहीं सिखाती आपस में बैर रखना। बैठक करने से आपस में प्रेम बढ़ता है। मुफ्त का खाना-पीना हजम करने का सुुंदर अभ्यास बना रहता है। हम लोग इस परंपरा के पुराने खिलाड़ी हैं। सर्वसम्मति से अब यह निर्णय किया जाता है कि इस समस्या पर हम लोग अब अगली बैठक में ही विचार करेंगे। देखिए, हम इस समस्या से भाग नहीं रहे हैं। हम इस समस्या को गंभीरतापूर्वक समझ रहे हैं और इसके लिए हमें कुछ और समय चाहिए। इसलिए स्वाभाविक है कि अगली बैठक तक हम इस मसले को ठीक ढंग से समझ भी लेंगे। फिर क़सम खाते हैं कि अगली बैठक में हम समस्या का समाधान करके ही उठेंगे। "

अगली बार बैठक करने के पारंपरिक सुझाव पर सब फौरन सहमत हो गए और अंत में बैठक ख़त्म हुई और एक बार फिर चाय आ गई। चाय के साथ तरह-तरह के लज़ीज़ वाय भी प्रस्तुत किए गए। सब ने उन सब का सम्मान करते हुए प्रेम से भक्षण किया, फिर बैठक में शामिल होने के लिए मिलने वाला भत्ता भी ग्रहण कर के टा-टा-बाय-बाय करते हुए अपने-अपने गंतव्यों की ओर चले गए।