अग्निकांड और शराब कांड / जयप्रकाश चौकसे

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अग्निकांड और शराब कांड
प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2019


अमेरिका में एक बहुमंजिला इमारत में आग लगी थी और इससे प्रेरित फिल्म 'टाॅवरिंग इनफर्नो' का निर्माण हुआ था। फिल्मकार बलदेवराज चोपड़ा विदेशी फिल्मों से प्रेरणा लेकर उन्हें भारतीय समाज के परिवेश में बखूबी ढालते थे। उन्होंने 'धूल का फूल' भी 'ब्लाॅजम इन डस्ट' से प्रेरणा लेकर बनाई थी। टाइटल तक अक्षरश: अनुवाद था। बहरहाल, उन्होंने बहुमंजिला इमारत में अग्नि की घटना को बदलकर चलती हुई रेलगाड़ी में अाग लगना दिखाकर 'बर्निंग ट्रेन' नामक हादसा रचा था। इसी फिल्म की शूटिंग के लिए रेल विभाग से सहायता ली गई थी परंतु उनके रवैये से दु:खी रेल विभाग ने शूटिंग के लिए कड़े नियम बनाए और अधिक धन भी लिया जाने लगा।

कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म 'पाकीजा' के एक दृश्य के लिए अपने स्टूडियो में रेल ट्रैक व डिब्बों का निर्माण किया था, जहां कुछ फिल्मकारों ने शूटिंग की थी। अग्नि दुर्घटना पर अधिक फिल्में नहीं बनी हैं। रजनीकांत अभिनीत फिल्म 'रोबोट' में एक इमारत में आग लगने का दृश्य है। मानव निर्मित 'रोबो' एक कमसिन वय की किशोरी को बचाता है। अग्निकांड के समय वह बाथरूम में स्नान कर रही थी, इसलिए उसने वस्त्र नहीं पहने थे और इसी को अंधे समाज ने निर्लज्जता कहा, जिसके कारण वह किशोरी आत्महत्या कर लेती है। कुछ दिन पूर्व ही प्रदर्शित फिल्म 'बधाई हो' में इस तथाकथित लोकलाज की धज्जियां उड़ा दी गई थीं। कुछ बैठे ठाले तमाशबीन किसी भी बात का बतंगड़ बना देते हैं। 'लोकलाज' नामक धारणा निकम्मों द्वारा रचा गया हथकंडा है। इन दिनों प्रसारित 'पटियाला बेब्स' सीरियल में भी इसी तरह के प्रसंग पर दो टूक टिप्पणी की गई है।

भव्य इमारतों में विशेषकर होटलों में एक कमरे में लगी आग का धुआं एअरकंडिशनिंग डक्ट्स द्वारा सारे कमरों में पहुंच जाता है और आग से अधिक धुएं के कारण दम घुटने से अनेक लोगों की मौत हो जाती है। फायर प्रूफ ब्रिक्स का इस्तेमाल भवन निर्माण में नहीं किया जाता, क्योंकि उनका मूल्य अधिक है। कई इमारतों में अग्निशामक यंत्र बरसों से लगे हैं और अब वे कार्य नहीं कर सकते। इस तरह के एक्सपायरी डेट वाले उपकरण भी समय-समय पर बदले जाना चाहिए।

आज दैनिक जीवन भी कठिन हो गया है और अवाम के सीने में असंतोष और अन्याय की आग लगी रहती है। इस तरह हर व्यक्ति ही ज्वलनशील तप्त जीवन यापन कर रहा है।

दूसरी दुर्घटना अवैध विषैली शराब पीकर मरने वाले लोगों की है। कई दशक पूर्व इंदौर में भी अनेक लोग इसी तरह की दुर्घटना में मारे गए थे। उन्हीं लोगों में एक थे शायर कासिफ इंदौरी, जिनके एक शेर का आशय कुछ इस तरह है, 'सरासर गलत है मुझपे इल्जामे बलानोशी, जिस कदर आंसू पिए हैं, उससे कम पी है शराब'। गुजरात में हुए एक भीषण बलवे का असली कारण तो यह था कि अवैध शराब का व्यवसाय करने वाले दो लोगों की आपसी रंजिश ने यह दंगा रचा था। यह सभी जानते हैं कि शराब का सेवन हानिकारक है। इसे जानकर भी लोग बाज नहीं आते। आज तक विश्व में कोई सरकार शराबबंदी नहीं कर पाई। इंसानी फितरत के खिलाफ की गई सारी कार्रवाई विफल ही रही है। यह शराब पीने की पैरवी नहीं है परंतु यथार्थ को ही रेखांकित किया जा रहा है। पहले फिल्म उद्योग में शराब पीना प्रचलित था और इसके सेवन के कारण अनेक प्रतिभाशाली लोग असमय दिवंगत हुए। वर्तमान में सितारे शराब नहीं पीते। आजकल जिम जाकर बदन में मांसपेशियों को बड़ा किया जाता है। जिम जाना नया नशा है। दरअसल, भारत में खेल-कूद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन शिक्षा संस्थानों को बंद किया जाना चाहिए, जहां खेल-कूद के लिए यथेष्ठ मैदान और सुविधाएं नहीं हैं। खेल-कूद के प्रति उत्साह बढ़ते ही व्यक्ति सारे नशे छोड़ देता है। कसरत द्वारा शरीर सौष्ठव भी एक नशा ही है परंतु यह हानिकारक नहीं है।