अच्छा आदमी / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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मेरा और उसका जन्म एक साथ, एक ही दिन हुआ था। नहीं, हमें जुड़वाँ तो नहीं कहा जाएगा; क्योंकि माँ ने एक जिस्म के रूप में हमें जन्म दिया था। वह अलग बात है कि मैं जन्मजात मिले गुण-धर्म के अनुसार अपने रास्ते चलता रहा, जबकि उसने जन्म के कुछ दिनों के बाद ही अपना रास्ता बदल लिया था। वह होशियारी यह बरतता था कि अपने रास्ते के पीछे वह कोई पदचिह्न नहीं छोड़ता था। दुनिया को बस मेरे ही पदचिह्न दिखाई देते थे।

रास्ता बदलने को लेकर मैंने उसे सचेत भी किया था–पहली बार मैंने उसे तब रँगे हाथों पकड़ा था, जब वह पापा के लॉकर से दस हज़ार रुपये चुरा रहा था। जब मैंने उससे इस बारे में पूछा था, तो उसने तर्क दिया था, "सबकुछ मेरा ही तो है, इसे चोरी थोड़ी कहेंगे, माँगने पर बच्चा समझकर कोई देता नहीं; इसलिए मैंने ले लिए। वैसे भीतुम्हें तो पता ही है मम्मी और डैडी की निगाह में मैं मेधावी, ईमानदार और आज्ञाकारी बेटा हूँ।"

दूसरी बार मैंने उसे वाशरूम में झाँकते हुए रंगे हाथों पकड़ा था, जिसमें हमारी कज़िन नहा रही थी। मेरे सवाल खड़ा करने पर वह मेरा मखौल उड़ाता हुआ बोलाथा, "इस खेल का मज़ा तुम क्या जानो, रही बात सिस्टरको न्यूड देखने की, तो मैंने उसके चेहरे को 'कट' कर उसकी जगह अपनी पसंदीदा लड़की का चेहरा 'पेस्ट' कर दिया है। बाकी तुम ही देख लो, रिश्तेदारों में मुझे कितना पसंद किया जाता है।"

तीसरी बार जब मैंने उसे पड़ोस की मैडम के बच्चे को गोद लेने के बहाने उनके अंग विशेष को 'बैडटच' करते देखा, तो उसने मुँह बिचकाकर कहा, "बच्चों को प्यार से बहलाकर उनकी मदद ही करता हूँ, हाथ इधर-उधर लग भी जाए तो क्या! देखा नहीं, वे सब मुझे कितना 'लाइक' करती हैं।"

कहना न होगा, मैंने न जाने कितनी बार इस प्रकार के कार्य-कलाप में लिप्त देखा, पर अब सफाई देना तो दूर, वह मेरी ओर देखता तक नहीं था। उसे अपनी बढ़ती लोकप्रियता पर बहुत गुरूर होने लगा था। थक हारकर मैंने भी उसे टोकना छोड़ दिया था और इसी उम्मीद पर जिए जाता था कि कभी तो उसे सद्बुद्धि आएगी और वहवास्तव में मेरे पदचिह्नों पर चलने लगेगा।

अंततः वह दिन आ ही गया, जब हमें भी दूसरों कि तरह इस दुनिया को छोड़कर जाना था। अंत्येष्टि स्थल पर भारी भीड़ थी, यहाँ भी किसी का ध्यान मेरी ओर नहीं गया, सब उसकी तारीफ कर रहे थे l

शीघ्र ही हमारा शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो जाएगा। मैं बहुत दुखी हूँ, मुझे इस बात की भारी पीड़ा है कि वह अंतिम समय तक अपनी पहचान छुपाने में कामयाब रहा और लोग उसे सदैव मेरे नाम से ही बुलाते रहे।