अदालत का यह फैसला कविता है / जयप्रकाश चौकसे

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अदालत का यह फैसला कविता है
प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2019


ज्ञानेश्वर सुरेश बोरकर ने एक कत्ल किया था और अदालत में अपराध सिद्ध हो जाने पर उसे मृत्युदंड दिया गया था। जेल में उसने कविताएं लिखीं और समाज में अच्छे नागरिक की तरह लौटने की भावना को अपनी कविताओं के द्वारा अभिव्यक्त किया। कविताओं को पढ़ने के बाद न्यायालय ने उसे दिया गया मृत्युदंड आजीवन कारावास में बदल दिया। यह एक निराला फैसला है। कुछ दिन पूर्व इसी कॉलम में यह विचार व्यक्त किया गया था कि जैसे शरीर विज्ञान में कहा जाता है कि एक सेवफल प्रतिदिन खाने से शरीर सेहतमंद रहता है और सेवफल सेहत के लिए कवच की तरह काम करता है। वैसे ही प्रतिदिन कविता पढ़ने से भी मानव मस्तिष्क 'केमिकल लोचा’ से बचा रह सकता है। इरशाद कामिल की एक पुस्तक छपी है, जिसमें उनके द्वारा एक माह प्रतिदिन लिखी कविताओं का संकलन है। ज्ञातव्य है कि इरशाद कामिल ने हिंदी साहित्य में एमए किया है। विश्वविद्यालय में कुछ हुल्लड़बाज परीक्षा को आगे बढ़ाना चाहते थे। उनके आंदोलन के खिलाफ पढ़ने वाले छात्रों ने भी आंदोलन किया था कि परीक्षा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप ही आयोजित की जाए। इरशाद कामिल उस आंदोलन का हिस्सा थे। उसी आंदोलन का नारा था 'साड्डा हक एथे रख’। कुछ वर्ष पूर्व जेल अधीक्षक की प्रेरणा से कैदियों ने एक नाटक तैयार किया था, जिसके सफल मंचन के कारण उन कैदियों को यह सहूलियत दी गई कि वे अपने नाटक का प्रदर्शन अवाम के लिए भी कर सकते हैं। इसी तरह कैदियों द्वारा प्रस्तुत संगीत कार्यक्रम की घटना से प्रेरित फिल्में बनी हैं, जिनमें से एक फरहान अख्तर अभिनीत फिल्म भी थी।

महान फिल्मकार शांताराम की फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ’ में एक जेलर आधा दर्जन जरायम पेशा कैदियों को एक खुली जेल में ले जाते हैं और उन्हें बेहतर नागरिक बनाते हैं। कैदी अपने परिश्रम से उगाई सब्जियां बेचने के लिए मंडी जाते हैं। जहां वे अपनी सब्जियों को बाजार से कम से कम दाम में बेचते हैं। मुनाफाखोर बाजार के स्वयंभू मालिक कैदियों की पिटाई करते हैं और हिंसा नहीं करने की शपथ के कारण कैदी बिना प्रतिरोध पिटते रहते हैं। महात्मा गांधी के आदर्श से प्रेरित यह फिल्म सफल रही और इसे विदेशों में भी सराहा गया तथा पुरस्कारों से नवाजा गया। बाजार हुकूमत करता रहा है। यह भी गौरतलब है कि 'राग दरबारी’ के बाद उस स्तर का कोई उपन्यास नहीं लिखा गया परंतु श्रेष्ठ कविताएं लिखी जा रही हैं। कुमार अंबुज, पवन करण, नरेश सक्सेना, मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, अनामिका, सविता सिंह, सत्य मोहन वर्मा, रेणु शर्मा, श्रवण गर्ग, सरोज कुमार इत्यादि।

हम अपने प्रिय उपन्यास को बार-बार नहीं पढ़ते परन्तु कविताएं बार-बार पढ़ी जाती हैं। वे माला के मनकों की तरह अवचेतन में घूमती रहती हैं। ज्ञातव्य है कि किसी भी क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने वालों को कवि कहा जाता है जैसे कि सिने विधा का पहला कवि चार्ली चैपलिन को माना जाता है। यहां तक कि अमेरिका के कवि हार्ट क्रेन ने चार्ली चैपलिन पर कविता लिखी...'एंड यट दीज़ फाइन कोलेप्सेस आर नॉट लाइज/ मोर दैन द पिरोएटस ऑफ एनी प्लायंट केन/ अवर ऑब्सेक्विज़ आर इन अ वे/ नो एंटरप्राइज वी कैन इवेड यू, एंड ऑल एल्स बट द हार्ट/ व्हॉट ब्लैम टू अस इफ द हार्ट लिव ऑन’। इसका अनुवाद इस तरह है-'तुम्हारा बार-बार गिरना कोई झूठ नहीं था/ छड़ी के सहारे बैले नृतक की तरह घूमना भी कोई भ्रम नहीं था/ हमारी चिंताओं को तुमने सजीव प्रस्तुत किया/ हम तुम्हें बुलाना चाहते हैं परंतु दिल है कि मानता नहीं’। भारत के महान फिल्मकार सत्यजीत रॉय मानवीय करुणा के कवि माने जाते हैं। यह अभी स्थापित सत्य है कि अपराध से घृणा करें, अपराधी से नहीं। दूसरा अवसर मानवीय अधिकार है।

ज्ञानेश्वर सुरेश बोरकर की कविताओं को प्रकाशित किया जाना चाहिए। इस तरह का प्रकाशन और प्रशंसा अन्य कैदियों में दुबके बैठे कवियों को खड़े होने की प्रेरणा दे सकता है। यह भी सभी जानते हैं कि कभी डाका डालने वाले वाल्मीकि ने क्रोंच वध को देखते ही पहली कविता लिखी। अन्याय एवं हिंसा का प्रतिरोध कविता करती है। सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियां हैं...’वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान। निकलकर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान..।