अदृश्य के पार / अशोक शाह

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तब कम्प्यूटर वायरस की आबादी ख़ूब फल-फूल रही थी। स्पेस का कोना-कोना वायरस से भरा था। धरती के वायुमण्डल में उनका तो एकाधिकार था। कंप्यूटर से निकलकर वे सार्वजनीन हो चुके थे। उनके हास-परिहास से पूरा गगन गुनजायमान था। लेकिन उनकी कोई तय संरचना और आकार नहीं था। यह वह समय था जब शुभ-अशुभ, अच्छा-बुरा़, स्मृति-विस्मृति और किसी भी प्रकार के मूल्यांकन के मापदंड समाप्त हो चुके थे। संवेदनाएँ, ज्ञान और विचारों की प्रकृति बदल चुकी थी। धरती पर कोई रंग, भेद, चेतना या आध्यात्म नहीं था। दोस्ती और दुश्मनी की परिभाषा नहीं थी। मनुष्य की सभ्यता और विकास के शब्दकोश एवं अवषेष संग्रहालय में थे। आदमी कार्बनिक और अकार्बनिक दोनों ही था। किन्तु मात्र दो हाथ, दो पैरों वाला नहीं। अन्य जीव-जन्तु और मनुष्य का कोई निश्चित आकार नहीं था। स्त्रीलिंग-पुल्ंिलग के अलावा अंतहीन विस्तार था जीवों का। जन्म और मृत्यु होती नहीं थी। कार्बनिक मनुष्य सैकेड़ों सालों तक जीते थे। तब तक जब तक वे तय नहीं कर लें कि कब उन्हें नया रूप धारण करना है। तारों, ग्रहों, नक्षत्रों पर अवस्थित जीवन के अनेक रूपों, प्रकारों का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बंध स्थापित हो चुके थे।

माइकल एंजिलो ने पेन्टिंग फिर भी नहीं छोड़ी थी लेकिन उसे याद था कैसे वह अपनी उँगलियों से काग़ज़ पर रंगों से चित्र उकेरा करता था। फिर कंप्यूटर के स्क्रीन पर तीन आयामी से बहुआयामी चित्र बनाता और अब वह हवा के परदे पर संशलिष्ट भावों के चित्र उकेर रहा था जिसे प्रत्यक्ष देखा जा सकता था। कई भावों को मिलाकर नये-नये भाव और विचार पैदा कर रहा था और उन विचारों के आधार पर नये-नये जीवों की सम्भावना निर्मित हो रही थी। ये भविष्य में जन्म ले सकते थे।

"यह देखिये पापा, मैंने क्या बनाया है" , ईषाबेल ने बहुत खुश होते हुए कहा।

"हाँ, यह तो बिल्कुल नया जिनोम है। देखकर बताओं यह कब पैदा होने वाला है" , माइकल ने पूछा।

'यही कोई 768 वर्ष पश्चात्।' खिलौनेनुमा मशीन पर कुछ गणना करते हुए ईषाबेल ने बताया।

"ठीक है किसी इलेक्ट्रान में सुरक्षित करके छोड़ दो। बाक़ी तुम्हारे दोस्त कहाँ हैं?"

"वे आते होंगे। नयी ग्लैक्सी पर गए हैं। वहाँ से कुछ नये क़िस्म के पौधे लाने वाले हैं। उन्हें नया होमवर्क मिला है।"

"उनसे कहना कि हम लोग पिकनिक पर जाने वाले हैं।"

"कहाँ?"

"एक नये स्पेक्ट्रम वाले ग्रह पर। 251 प्रकाश वर्ष दूर है। अच्छा लगा तो कुछ साल वहीं रूकेंगे। फिर आगे जाने का देखेंगे।"

"पिकनिक में कुछ खास, पापा?"

"नहीं, हेक्टाथलान होगा और विमर्श करेंगे कि क्या ब्रह्माण्ड एक से अधिक हो सकता है? यदि हाँ तो नये ब्रह्माण्ड की खोज पर कार्य करेंगे।"

"यह तो बहुत अच्छा है, पापा। बड़ा मज़ा आएगा। लेकिन पापा वहाँ आँखो की ज़रूरत पड़ेगी क्या?"

"नहीं, हमारा आकार ही आँख, कान, नाक, मुँह सबकुछ होगा। लेकिन इसकी आवश्यकता भी क्या है।"

तभी ईषाबेल का दोस्त उनके बीच में प्रकट हुआ। बहुत खुश और उत्साहित दिख रहा था। प्रकाश की असंख्य अद्भुत किरणें उससे बीमित हो रहीं थीं। उत्साह और उमंग से लबालब भरा उसने बताया कि किस प्रकार उसकी अपने परदादा-10 से मुलाकात हुई और तीन लाख वर्ष पूर्व के धरती के जीवन को अपनी आँखो से देखा। तब आश्चर्य से उसका मुँह खुला का खुला रह गया था जब उसे मालूम हुआ कि तब धरती पर सिर्फ़ कार्बनिक जीव थे चाहे पेड़ हो या जन्तु। पैदा होते और एक समय के पश्चात मर जाते थे। आदमी हर मृत्यु पर कितना दुःखी होता। वह मृत्यु से डरता था। मृत्यु आँधी, तूफान, आग, बाढ़, महामारी, भूख, प्यास, भूस्खलन, दुर्घटना, युद्ध या हत्या किसी भी रूप में आ जाती। उससे बचने का उपाय नहीं था। बुढ़ापा और बीमारी से मौत तो जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। रोमांच और ख़ुशी के भी अनेक साधन थे। भोजन, वस्त्र, आवास, संगीत, गीत, कविता, कहानी, सेक्स और पृथ्वी पर ही देशाटन। वे अंतरिक्ष और अँॅधेरे से बिल्कुल अनभिज्ञ थे तथा सूर्य की रोशनी के छोटे-से हिस्से में रहते थे। पृथ्वी के अलावा उन्होंने कुछ देखा ही नहीं था और न जानते थे कि अंतरिक्ष में और क्या-क्या संरचनाएँ थीं।

"लेकिन आदमी मृत्यु से डरता क्यों था," ईषाबेल ने पूछा

"आदमी आकार में रहता और जीता था। उसकी चेतना अवगुंठित और सीमित थी। शरीर और समष्टि से उसका रागात्मक सम्बंध था और सिर्फ़ अपनी दुनिया से घिरा और केन्द्रित था। सीमा से बाहर जाने की उसकी तमन्ना बहुत थी। पर लगातार वह अपनी सीमा को ही सम्भाले हुए था। वह यह जानने की कोशिश ही नहीं करता था कि सीमान्तर प्रवेश कैसे करते हैं। यद्यपि वह पलायन वेग से चाँद, मंगल आदि ग्रहों पर अंतरिक्ष यान भेजता किन्तु वह शरीर के मोह में सुरक्षित महसूस करता था। तत्समय मनुष्य आकार की निरन्तरता एवं अमरता के प्रति मोहग्रस्त था। वह मानता था कि आकार की उसकी पहचान है।"

"पर यह तुमने किया कैसे?"

" हा यह चुनौती भरा होमवर्क था। इतना तो मैं जानता था कि हरेक कण की अपनी एक स्मृति आलेख होता है जो उस कण के अस्तित्व के साथ जुड़ा होता है और प्रत्येक पदार्थ का एक भौतिक समय भी है। यह भी सर्वविदित है कि काल समय और अंतरिक्ष का समुच्चय होता है। पूरे ब्रह्माण्ड की एक चेतना है जिसका विस्तार अलग-अलग आवृत्तियों-प्रवृत्तियों में कण-कण में विद्यमान है। तो मैंने सोचा कि यदि अपने मन की चेतना को ब्रह्माण्ड की चेतना के साथ कनेक्ट कर दु, तो मैं समय के आर-पार स्थान की सीमाओं को नकारते हुए पूर्णता में देख सकता हूँ। इसके लिए मैंने एक मशीन का निर्माण किया जिसकी क्षमता मेरे दिमाग़ से थोड़ी अधिक है। मस्तिष्क के तन्तुओं का पूर्णतः नियमन करते हुए लगातार प्रयासों के पश्चात मस्तिष्क को ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ उस ख़ास क़िस्म की स्मृति की पृष्ठभूमि में जोड़ने में सफल हो गया और सारी चीजे नैनो सेकेण्ड के अन्तराल पर प्रसंस्कृत होकर मेरे समक्ष उपस्थित होने लगीं। एक के बाद एक। मानो कोई फ़िल्म चल रही हो। बस मैं देखता गया और दृश्यों के साथ जुड़ता गया।

हाँ, मैं बताना भूल गया। तुम्हारे परदादा के भी (दादा) -10 भी मिले थे। बिल्कुल तुमसे अलग।

"लेकिन उन्हें पहचाना कैंसे?"

"ओह! बताया न कि मैं ब्रह्मााण्ड की चेतना था। क्या तुम्हें यही भी बताऊँ कि इस वक़्त तुम क्या सोच रहे हो।"

"नहीं-नहीं, रहने दो। अब मुझे साफ-साफ दिख रहा है कि ब्रह्माण्ड एक पूर्ण इकाई है, एकदम लयबद्ध एवं पूर्ण आर्डर में।"

"तुम्हें क्या लगता है इसका कोई निर्माता हो सकता है जैसे ईश्वर।" अथर्व ने पूछ लिया।

"क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? पूर्ण से पूर्ण कैसे अलग हो सकता है? ब्रह्माण्ड स्वयं का निर्माता ख़ुद ही है, यह न जीवित है न मृत। सीमाहीन, अतीतहीन एवं संगीतमय है। इससे अलग इसका निर्माता कौन ओर कैसे हो सकता है?"

"तो क्या बह्माण्ड से बह्माण्ड बनाया जा सकता है,"

"इसकी कोई आवश्यकता नहीं। ऐसी सोच-एक अपूर्ण सोच है, एक मस्तिष्कीय शगल जिससे बचा जा सकता है।"

इनकी बातें अभी ख़त्म नहीं हुई थीं कि माइकल एंजिलो आ धमकते हैं।

"क्या बातें चल रहीं हैं।"

" यह सत्य है। ब्रह्माण्ड एक से अधिक नहीं जैसा पहले अनेकानेक ईश्वर थे। दरअसल ईश्वर उस ज़माने की शरारत पूर्ण मानसिक परिकल्पना थी। गुटों, समुदायों, स्थानों में अलग-अलग रहकर तब कार्बनिक मनुष्यों ने अपनी-अपनी विचारात्मक कमजोरी के अनुसार उसे बनाया और पूजा। दरअसल

एक तरह से वह तत्कालीन मनुष्य के मानसिक पराजय का प्रतीक था जहाँ वह शरणागत होकर सुरक्षित गुणों के हारमोन का श्राव कर सकता था। जब आदमी शक्तिशाली नहीं था, प्रेम नहीं कर सकता था, दया और पूर्ण दृष्टि नहीं रख सकता था। तब इन कमियों को ईश्वर के रूप में पूरी कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया था।

यह एक आसान एवं गैर जिम्मेदाराना कार्य था। लेकिन तो भी आज के संदर्भ में पुरानी पीढ़ी को दोषी ठहराने का कार्य हमें नहीं करना चाहिए। हर समय का अपना एक झूठा-सच होता है जो समय के साथ परिवर्तनशील है। मानव का विकास भी इसलिए हुआ कि या तो वह कुछ नहीं जानता था या जो जानता था वह अत्यल्प था। लेकिन हम जो भी जानते हैं वही हमारी सीमा बन जाती है। खैर, हम पिकनिक पर जाने वाले थे। कौन-कौन तैयार है। "

"कहाँ" , इस बार अथर्व ने पूछ लिया।

"यहाँ से कोई 251 प्रकाश वर्ष दूर। वहाँ एक और ग्रह का पता मैंने लगाया है वहाँ पहुँचने वाले हम शायद पहले व्यक्ति होगें।"

"फिर हम लोग भी साथ जाएँगे" ईषाबेल ने जिज्ञासा भरे आवाज़ में बोला।

"ठीक है, तैयार हो जाओ। यान को स्टार्ट करता हूँ।"

वे सूर्य के प्रकाश से बाईस लाख गुना तेज गति से जा रहे थे।

सहसा 6 घण्टे की यात्रा के पश्चात् यान बोल उठा, "मित्रों, रियेक्टर बन्द हो रहा है। ईधन लगभग ख़त्म है। एन्ट्रापी यहाँ नहीं के बराबर है। इसलिए ऊर्जा के रूप उसका प्रयोग नहीं कर सकता।"

"यहाँ से समीपस्थ आकाशीय पिण्ड कौन-सा है।" माइकल एन्जलो ने पूछा।

"लगभग एक प्रकाशवर्ष दूर" , यान ने कहा।

"ठीक है तुम उसके गुरूत्व क्षेत्र में पहुँचों"।

"पर आधा घण्टा से अधिक की यात्रा के लिए भी ऊर्जा बची नहीं है" , यान थोड़ा घबराते हुए बोला "क्या तुम्हारा सोनिक कन्वर्टर कार्य कर रहा है।"

"हाँ" ।

"बहुत अच्छा। घबराने की कोई बात नहीं। हम आधे घण्टे कोरस गायेंगे। यह अथर्व के (दादा) -10 से मिलने की कहानी होगी। दस मेगा हर्ज की आवृति ठीक रहेगी? सोनिक कन्वर्टर स्टार्ट करो ताकि आवाज़ तुम्हारे लिए ज़रूरी ऊर्जा में रूपांतरित हो सके।"

"हाँॅ।"

"हम गाना शुरू कर रहे हैं। गाना ख़त्म होने तक हम उस तारे के गुरूत्व वक्रता की परिधि पर होंगे। वहँ दस मिनट रूकेंगे, तब तक तुम ख़ुद को वक्रता में संचयित ऊर्जा से रिचार्ज कर लेना।"

"जी, बिल्कुल ठीक है।"

"और उस दस मिनट में हम उस तारे के जन्म की कहानी मालूम कर लेंगे। देखेंगे उसमें कोई कार्बनिक स्मृति है या नहीं। इसके अलावा उसमें विद्यमान नये तत्वों की खोज भी कर लेंगे।"

तारे के गुरूत्व द्वारा उत्पन्न अंतरिक्ष वक्रता की परिधि पर संचयित ऊर्जा से यान पूरी तरह चार्ज हो गया और पलक झपकने के पूर्व वह अकल्पनीय वेग से प्रवाहमान हो रहा था। कुछ पलों में ही वह ग्रह सुनहरे प्रकाष में चमकता हुआ दिखायी देने लगा। पर ईषाबेल को धवल और अथर्व को फिरोजी रंग में चमचमाता दिख रहा थ। सभी हैरान हो गए। अगले पल अकस्मात वह कुछ ऐसे रंग में दिखने लगा जिसे पहले कभी देखा ही नहीं था। उतरने के पूर्व उन्होंने उसकीे सतह का परीक्षण किया। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ग्रह कार्बनिक जीवन से भरा-पूरा था। अकूत पेड़, पौधे, वनस्पतियाँ और नाना प्रकारों के जीवों से भरा था जो पृथ्वी से बिल्कुल अलग थे। वे काफ़ी सतर्क हो गए। उनकी आँखें अब मनुष्य जैसे किसी प्राणी की तलाश करने लगी। फिर उन्होंने देखा कि होमो सेपियन से अलग और नीयन्डरथल से भिन्न बहुत विकसित प्राणी उस ग्रह पर मौजूद है। तब तक उनकी रूचि काफ़ी बढ़ चुकी थी। उन्होंने अलग-थलग सुनसान स्थान पर अपने यान को उतारा। माइकल ने तय किया कि तीनों अलग-अलग विषयों पर अध्ययन करेगे । नीयन्डरथल पर स्वयं माइकल, ईषाबेल जीवों पर तथा अथर्व सारी वनस्पतियों का अध्ययन करेंगे। तीनो चूंकि अदृश्य रूप थे और जीवित और अजीवित अस्तित्व से मिले थे इसलिए उन्हें अपने प्राणों की काई चिन्ता नहीं थी।

माइकल ने पाया कि वहाँ जीवन जैविक विकास परम्परा से हटकर था। न तो कौई पौधा और न ही कोई जीव धरती के किसी प्राणी से मिलता-जुलता था। पृथ्वी पर की गयीं दो सबसे भयंकर ऐतिहासिक ग़लतियाँ यहाँ नहीं थीं-कृषि-क्रान्ति और औद्योगिक क्रान्ति। इसलिए यहाँ न तो गेहूँ था ताकि कोई बीमार पड़ सके और न ही निवेष का अन्तहीन अतृप्तवह भूख जिसके लिए किसी जीव का शोषण किया जा सके। किसी भी प्रतिस्पर्धा का नामोनिशान नहीं था। इसलिए चालाकी की यहाँ कोई ज़रूरत नहीं थी। डर, घृणा, द्वेष, इष्र्या, धर्म-अधर्म, क्रोध, लोभ, छल-कपट, झूठ-सच जैसे विकारों का प्रादुर्भाव यहाँ नहीं था। इस ग्रह के अन्तेवासियों कोई अपना ईश्वर भी नहीं बनाया था। कोई वृद्ध और रोगी भी नहीं था और मनुष्य द्वारा निर्मित प्रकृति के प्रतिकूल कोई भी कृत्रिम संरचना नहीं थी जिसे विकास की संज्ञा की जा सके। वहाँ जीवन नित्य परिवर्तनशील था-एक रूप से दूसरे रूप में तो कभी एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में। पौधा कभी वृक्ष दिखता तो वृक्ष कभी कोई जीव और जीव कभी नीयन्डरथल तो कभी पौधा। कुल-मिलाकर वह ग्रह जीवन-मृत्यु से मुक्त था।

स्वयं को सबसे अधिक वुद्धिमान प्राणी समझने वाले माइकल को तब जबरदस्त झटका लगा जब उनके सामने ही उनका यान गायब हो गया और उन्होंने स्वयं को पेड़ों और जीवों से चारों ओर से घिरा पाया।

"तो आप लोग 251 प्रकाश वर्ष की दूरी तय करके यहाँ पिकनिक मनाने आये हैं," वहाँ उपस्थित पेड़ के एक पत्ते ने प्रश्न किया। बिना किसी आवाज़ के यह सीधा संवाद माइकल की टीम के सदस्यों के मस्तिष्कीय तुन्तुओ से था। माइकल समझ नहीं सके कि किस विधि से प्रश्न पूछा गया था जो स्वतः ही मस्तिष्क में पहुचकर उनकी भाषा में अनुदित हो गया था।

"नहीं हमारा मकसद कुछ अध्ययन एवं आविष्कार करना भी था।"

"अध्ययन एवं आविष्कार?" , सहसा एक कली ने विस्मय व्यक्त किया और एक अत्यन्त मधुर मित्रवत सुगन्ध चारों तरफ़ बिखर गयी जो माइकल के समस्त वैज्ञानिक इतिहास के ज्ञान और अनुभूति से बाहर थी। माइकल को मानो अपनी कही हुई बात पर शर्मिन्दगी महसूस हुई। उनके जीने की ध्वनि और आवृत्ति बदल गयी।

सहसा एक फल उछलकर तीनो के मुँह में समा गया और टहनी पर पुनः स्थापित हो गया। जैसे पूछ रहा हो, स्वाद कैसा था? लेकिन उसका वर्णन करने के लिए उनके शब्दकोश में कोई शब्द नहीं था।

आदमीनुमा जीव ने जो अभी-अभी एक वृक्ष था, उनकी ओर देखा,

"ये आविष्कार और अध्ययन अपरिपक्व मन के विकार हैं।" यह सुनते ही उनके मस्तिष्क एवं सारी अनुभूतियाँ शून्य हो गयीं। उन्हें लगा कि वे हैं और नहीं भी हैं। उनके भौतिक विकास के सारे सूत्र जैसे ग्रहशायी हो गए और अभिमान जैसी मूर्खता के भाव तिरोहित हो गए। यह विचार कि वे इस ग्रह के सुपर हुयमन बनने चले थे तत्क्षण ही क्षीण हो गया। तीनों घुटने के बल बैठक कर उस ग्रह से वापस न जाने का आग्रह करने लगे।

एक नन्हे से पौधे ने जैसे कहा-"अभी आपमें विसंगतियों का समीकरण अत्यंत प्रबल है और दूसरे अन्य भी आपकी तरह खोजी विलासिता की महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए यहाँ आ सकते हैं। ' इसलिए फिलहाल वापस जाना ही ठीक है"।

तत्क्षण ही चींटीनुमा कुछ अस्तित्व उनके यान को लेकर वहाँ उपस्थित हो गए और सम्पे्रषित किया, "इस यान से जाने में आपको वक़्त लग सकता है और इसे आपको वापस भी ले जाना होगा। इसलिए आप तीनों इसमें सवार हों।" वह ग्रह अदृष्य ऊर्जा की अकल्पनीय आवृति में खो गया। पलक झपकते ही बिना किसी भौतिक ऊर्जा का उपयोग किये अपने प्रिय तारे ए-टू पर अपने घर के सामने उपस्थित थे। यान से उतरते हुए उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस पर शोध पत्र लिखे या पुस्तकों की अंतहीन श्रुंख्ला। सभी मौन थे।

(लमही अपैल-सितम्बर 2020 में प्रकाशित)