अधूरी कविता सा स्मिता पाटिल का जीवन / जयप्रकाश चौकसे

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अधूरी कविता सा स्मिता पाटिल का जीवन
प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2021


17 अक्टूबर 1955 को जन्मी स्मिता पाटिल का देहांत 13 दिसंबर 1986 को हुआ था। सांवली सलोनी स्मिता आकाशवाणी पर समाचार पढ़ती थीं। श्याम बेनेगल ने स्मिता को ओम पुरी अभिनीत ‘आक्रोश’ में प्रस्तुत किया और कलाकार हंसा वाडकर की बायोपिक ‘भूमिका’ बनाई। ज्ञातव्य है कि हंसा अपने दौर की विद्रोही महिला थी और पुरुष एकाधिकार को चुनौती देती थी। श्याम बेनेगल ने गिरीश कर्नाड और स्मिता के साथ ‘मंथन’ और फिर ‘निशांत’ बनाई। स्मिता ने फिल्म ‘मिर्च मसाला’ में मुख्य भूमिका की थी। मसालों के व्यापार को एकाधिकार के प्रपंच से स्वतंत्र कराने के लिए स्मिता, मसाला निर्माण व्यापार को सहकारिता के आदर्श पर संचालित करती है। हर व्यापार पर कारपोरेट कब्जा करके लाभ कमाते हुए महंगाई बढ़ाता रहा है। वर्तमान में भी अनाज के एकाधिकार के खिलाफ किसान लामबद्ध हैं। मीडिया ने शबाना बनाम स्मिता की प्रतिस्पर्धा रची। फिल्म ‘मंडी’ में शबाना और स्मिता एक साथ थीं परंतु उनमें आश्चर्यजनक बहनापा बना रहा। राज कपूर के सहायक रहे रवींद्र पीपट ने फिल्म ‘वारिस’ में केंद्रीय भूमिका में स्मिता पाटिल को लिया। फिल्म में पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार के लिए दो भाइयों के द्वंद्व की कथा थी। एक भाई अमरीश पुरी एकाधिकार चाहते हैं। कुल भूषण अभिनीत भाई का पात्र शांति चाहता है। उसके पुत्र का विवाह स्मिता अभिनीत पात्र से होता है। कुटिल अमरीश पुरी स्मिता के पति की हत्या करा देता है। वह चाहता है कि कुलभूषण का कोई वारिस नहीं होने पर सारी संपत्ति उसकी हो जाएगी।

स्मिता की छोटी बहन अमृता सिंह, राज बब्बर अभिनीत पात्र से प्रेम करती है। स्मिता अपनी छोटी बहन से यह प्रार्थना करती है कि वह अपने प्रेम का बलिदान देकर स्मिता के विधुर ससुर से विवाह कर ले ताकि वंश चलता रहे और संपत्ति, बुरी नियत वालों के हाथ ना लग जाए। राज बब्बर अभिनीत पात्र मन मसोसकर अमृता सिंह को बहन का कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित करता है। कुल भूषण और अमृता की शादी होती है और एक पुत्र का जन्म होता है। इस तरह ‘वारिस’ का जन्म होता है। बच्चे के लालन-पालन के दौरान स्मिता पर फिल्माया गीत है, ‘तेरा मेरा क्या नाता सजनी, भाभी, मौसी, माता, जल्दी लग जा सीने से, पल दो पल जीने दे...’। बहरहाल दुष्ट अमरीश पुरी, कुल भूषण की भी हत्या करा देता है। स्मिता फिर बदला लेती है। ‘वारिस’ स्मिता पाटिल की ‘मदर इंडिया समान’ फिल्म है। फिल्म की पृष्ठभूमि पंजाब है। पंजाबियों का अन्याय के खिलाफ लड़ने का गौरवशाली इतिहास रहा है। दुखद है कि पंजाब से जुड़े मुंबई फिल्म उद्योग के लोगों में से कोई एक भी आज किसान आंदोलन के समर्थन में 2 शब्द भी नहीं बोल रहा है। धर्मेंद्र अब अपने फॉर्म हाउस में खेती कर रहे हैं। क्या हो गया जय-वीरू को? क्यों वे सूरमा भोपाली सा व्यवहार कर रहे हैं?

राज बब्बर ने ‘होप 86’ नामक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया। उन्हें पुत्र पाने की खबर मिलने के कुछ क्षणों बाद पत्नी स्मिता के गंभीर रूप से बीमार हो जाने की खबर मिली। स्मिता की मृत्यु के समय राज बब्बर उनका हाथ थामे प्रार्थना कर रहे थे। मृत्यु दूत के कान नहीं होते। वह बहरा है। स्मिता पाटिल का जीवन अधूरी कविता की तरह है।