अनबीता व्यतीत / कमलेश्वर / पृष्ठ 2

Gadya Kosh से
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बहुत देर हो गई थी, रात का अँधियारा चारों ओर फैल गया था। जंगल बहुत ही घना था। घोड़े पर सवार राजकुमार का सिर और बदन पेड़ों की डालियों से टकरा जाते थे। कंटीले पेड़ों की डालियों से उसके चेहरे और बदन पर जहाँ-तहाँ खरोंचें आ गई थीं। उनसे बचने के लिए वह घोड़े से उतर पड़ा और उसकी लगाम पकड़कर जिस ओर खुली पगडंडी दिखाई दी, धीरे-धीरे बड़ी सावधानी से बढ़ने लगा।

अभी उसे पगडंडी पर चलते हुए थोड़ी देर ही हुई थी कि अचानक चारों-ओर छाये अँधेरे में उसे हल्का-हल्का सा उजाला फैलता दिखाई दिया और फिर कुछ देर बाद ही सामने का जंगल रोशनी से जगमगा उठा। उसके साथ ही लोगों की आवाजों का कोलाहल भी उसके कानों से टकरा उठा। वह तेजी से उस रोशनी की ओर चल दिया।

यह रोशनी एक विशाल प्राचीर की तरह दिखती मजबूत दीवार की मुडेरों पर जलते हुए दीपकों की रोशनी थी। शायद वह किसी विशाल नगर के परकोटे की दीवार थी। जैसे-जैसे राजकुमार दीपकों से जगमगाती दीवार की ओर बढ़ता गया, सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगा। उस दीवार के पीछे से आती हुई आवाजें भी साफ-साफ सुनाई देने लगीं।

परकोटे में एक विशाल फाटक था, जिसके बीच से एक चौड़ी सड़क अन्दर की ओर जा रही थी।

उस सड़क के दोनों ओर स्त्रियाँ, पुरुषों और बच्चों की भीड़ लगी हुई थी।


दीपावली का त्यौहार न होने पर भी दीपावली और लोगों की भारी भीड़ को देखकर राजकुमार ने एक आदमी से इसका कारण पूछा तो वह हैरानी से उसकी ओर देखते हुए बोला, ‘‘लगता है तुम इस राज्य के रहने वाले नहीं हो ! अगर होते तो तुम्हें जरूर मालूम होता कि आज हमारी राजकुमारी जी पूरे सोलह वर्ष की हो गई हैं। आज वह पहली बार अपने विशेष महल से बाहर निकली हैं और भवानी माँ के मन्दिर में पूजा करने जा रही हैं। उन्हीं के दर्शन के लिए नगर निवासी और राज्य के लोग इकट्ठे हुए हैं। राजकुमारी के जन्म के सोलह वर्ष के बाद आज नगर और राज्य के निवासी ही नहीं, महाराज और महारानी भी पहली-पहली बार उन्हें देखेंगे।’’

‘‘यानी सोलह वर्ष तक राजकुमारी को किसी ने नहीं देखा ?’’ राजकुमार ने हैरान होकर पूछा।’’

‘‘जी हाँ !’’ एक दूसरा व्यक्ति जल्दी से बोल उठा। ‘‘राजकुमारी की कुण्डली बनाने वाले महापंडित और राज्य के अन्य सभी ज्योतिषियों ने बताया था कि राजकुमारी के जीवन पर अनिष्ट और महाकाल की छाया है...इससे यह राज्य भी नष्ट हो सकता है, अत:, आवश्यक है कि जब तक राजकुमारी की उम्र सोलह वर्ष की न हो जाए, उनके माता-पिता और परिवार के लोग उन्हें न देखें। उन्होंने बहुत सोच-विचार के बाद केवल धाय माँ और कुछ दास-दासियों के नाम ही बताए थे कि वे ही सोलह वर्ष तक राजकुमारी की सेवा देखभाल करें और यह कि उन्हें भी राजकुमारी की सेवा और देखभाल करें और यह कि उन्हें भी राजकुमारी की ही तरह अपने परिवार तथा दुनिया के दूसरे लोगों से दूर एकान्त महल में ही पूरे सोलह वर्ष बिताने पड़ेंगे।’’


‘‘इसका मतलब है कि राजकुमारी के साथ उन दास-दासियों को भी अपनी जिन्दगी के सोलह साल कैद में बिताने पड़े ?...कमाल है।’’ राजकुमार की हैरानी और बढ़ गई।

‘‘अरे भाई, उन्होंने मुफ्त में यह सोलह साल की कैद थोड़े ही काटी थी !’’

तीसरे आदमी ने कहा, ‘‘महाराज ने उनके परिवार वालों को मालामाल कर दिया था।...खैर आपकी बातों से पता चल गया है कि आप परदेसी हैं। राजकुमारी का रथ आ रहा है। आप एक ओर हट कर खड़े हो जाइए।’’

‘‘क्या राजकुमारी सचमुच बहुत सुन्दर है ?’’ राजकुमार ने उत्सुकता से पूछा।

‘‘सुना तो यही है कि राजकुमारी बहुत सुन्दर है। हम सब भी आज ही तो उन्हें देखेंगे।’’

‘‘सब यही अनुमान लगाते हैं कि जैसे वह निश्चय ही स्वर्ग की कोई अप्सरा होगी जिसे किसी ऋषि के शाप के कारण धरती पर जन्म लेना पड़ा होगा।’’

‘‘अगर राजकुमारी अप्सरा जैसी सुन्दर है तो मैं उसे जरूर देखूँगा। देखूँगा ही नहीं बल्कि उसे प्राप्त भी करूँगा।’’ राजकुमार के शब्दों में दृढ़ता थी।

‘‘ऐसी डींग हाँकने से पहले सोच लो परदेसी, कहीं खुद तुम्हें जान के लाले न पड़ जाएँ ?...राजकुमारी के अंगरक्षक तुम्हें पकड़कर किसी काल-कोठरी में ठूँस देंगे।’’ एक युवक ने चेतावनी दी।

‘‘मैं इसकी चिंता नहीं करता...’’ राजकुमार ने कहा और अपने घोड़े को एड़ देकर उस ओर चल दिया, जिधर से राजकुमारी का रथ आने वाला था।


लोगों ने उसे आगाह भी किया कि जब तक राजकुमारी को महाराज और महारानी नहीं देख लेते, तब तक किसी को देखने की आज्ञा नहीं है, पर राजकुमार का घोड़ा तो हवा के पंख लगाकर उड़ चुका था।

राजकुमारी का रथ चारों ओर से सशस्त्र अश्वारोहियों और पैदल सैनिकों से घिरा हुआ आ रहा था। राजकुमार को तेजी से रथ की ओर आते देख उन्होंने अपने तलवारें निकाल लीं और उसे रोकने के लिए उसकी ओर झपटे। लेकिन राजकुमार असाधारण योद्धा था। उसने तलवार निकाली और राजकुमारी के अंगरक्षकों को चीरता हुआ उसके रथ के पास पहुँच गया।

रथ पर पर्दे पड़े हुए थे। राजकुमार ने सैनिकों के खून से भीगी तलवार की नोक से पर्दे फाड़ दिए।

सच कहा था नगर निवासियों ने ! राजकुमार की आँखें आश्चर्य से फैली रह गईं। इतना रूप-सौन्दर्य उसने केवल सुना और पुस्तकों में पढ़ा भर था। आज रूप-सौन्दर्य की सजीव और प्रतिमा को इतने निकट से देख पाने का सौभाग्य पाकर जैसे वह पागल हो उठा।


परदेसी राजकुमार की अभद्रता और राजकुमारी के दर्जनों अंगरक्षकों की पराजय का समाचार जैसे पंख लगाकर सारे नगर में फैलता हुआ महाराज के कानों तक पहुँच गया। परदेसी राजकुमार की अभद्रता पर जहाँ उन्हें क्रोध आया, वहीं अपने इतने सशस्त्र सैनिकों की पराजय का समाचार सुनकर महाराज ठहाका मारकर हँस पड़े। दरबार में बैठे सभी लोग आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे। उन्हें तो आशा थी कि अपने सैनिकों की पराजय की खबर पाते ही महाराज क्रोध से फट पड़ेंगे और राजकुमारी के सोलहवें जन्मदिन पर नगर की सड़कें खून से लाल हो जायेंगी।

‘‘महाराज !’’ प्रधानमंत्री ने अपने आश्चर्य को दबाते हुए कुछ कहना चाहा।

‘‘मंत्री जी जाइए, और उस परदेसी राजकुमार को सम्मान के साथ यहाँ ले आइए।’’ महाराज ने आदेश दिया। ‘‘हमें अपनी बेटी के लिए ऐसे ही वर की इच्छा थी, जो इतने सशस्त्र सैनिकों को चीरता हुआ आगे बढ़ सकता हो !...वह भले ही कोई भी क्यों न हो ?..हमने निश्चय कर लिया है कि हम इसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह करेंगे।’’