अनसॅन्ड ड्राफ्ट्स / रश्मि

Gadya Kosh से
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“ऐसी मेल जो लिखकर भेजी न जाएँ, ईमेल एकाउन्ट के ड्राफ्ट में जाकर दर्ज़ हो जातीं हैं और कहलातीं हैं- अनसॅन्ड ड्राफ्ट्स। मेरे जीवन की भी कुछ ऐसी ही मेलें मेरी आत्मा के फोल्डर में अनसॅन्ड पड़ी हैं ...रह रह कर मुझे कचोट रहीं हैं। मैं लाख चाह कर भी अपनी पत्नी की मौत की सच्चाई किसी को नहीं बता सकता और न ही ये दावा कर सकता हूँ कि उसने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी जान ली गई है, हौले हौले ...तीखे जानलेवा तानों से।”

आज शरद को भारत से कनाडा लौटे दो हफ्ते हो चुके हैं, लेकिन वह अब भी अपनी पत्नी रिचा की मौत से उबर नहीं पाया है। आज अचानक उसने रिचा का लैपटॉप खोला तो एक बार फिर कई पुरानी बातें उसकी आँखों के सामने तैर गईं।

पन्द्रह दिन पहले की ही बात है। वो दिन भी आज ही की तरह छुट्टी का दिन था। पूरे दिन वह अपने निजी काम निपटाता रहा, वे काम जिन्हें अन्य दिन नहीं कर पाता था क्योंकि सुबह उसे दफ्तर जाने की जल्दी रहती और शाम को देर से ही घर लौट पाता था। शरद यहाँ था कनाडा में और उसकी नई नवेली पत्नी रिचा मुंबई में थी अपने भाई के पास। दोनों को इंतज़ार था तो बस इस बात का कि जल्दी से शरद का कनाडा वाला प्रोजेक्ट कंप्लीट हो और वह भारत लौट आए अपनी रिचा के पास ...वे दोनों फिर साथ-साथ रहें। ऐसे में जबकि दो देशों की भौगोलिक दूरी उन्हें दूर किये थी, तब कम्प्यूटर और मोबाइल ही उन्हें जोड़े रखने के साधन थे। रिचा दिन भर में कई मेल शरद को करती जिनमें वह अपने सकुशल होने और भैया-भाभी के साथ बिताई बातों का ज़िक्र किया करती। उसकी ज्यादा सहेलियाँ नहीं थीं। वह घर में ही खुश रहने वाली लड़कियों में से थी। बचपन में ही माँ-बाप का साया उसके सर से उठ गया था| एक बड़ा भाई ही था, उसी ने खुद को भी संभाला और रिचा को भी। रिचा अपने भैया-भाभी से बेहद प्यार करती थी। वह कभी किसी के मुँह से उन दोनों के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकती थी।

रिचा नियम से शरद को मेल करती और शरद भी रिचा की मेल रोज़ रात साढ़े नौ-दस बजे पढ़ता, उनके जवाब देता। वह निश्चिन्त था कि उसकी रिचा उससे दूर होकर भी ठीक है। ये रोज़ का नियम था लेकिन आज अचानक...!

‘आज रिचा की मेल क्यों नहीं आई!’ खुद से बड़बड़ाते हुए शरद ने एक बार फिर इनबॉक्स को क्लिक किया लेकिन उसे वहाँ कोई भी नई मेल नहीं दिखाई दी। उसे इस वक्त रिचा की दिन भर की सारी मेल पढ़ने की आदत हो चुकी थी।

‘ऐसा कैसे हो सकता है! कल भी उसने सिर्फ एक ही और वो भी छोटी-सी मेल भेजी थी और आज... आज तो एक भी मेल नहीं भेजी। ...कहीं उसने याहू पर तो नहीं भेज दी ? उस पर चॅक करता हूँ।’

शरद ने जीमेल के एकाउन्ट को लॉगआउट किया और याहू पर क्लिक किया। ...तभी उसके मोबाइल पर रिचा के फ़ोन की ट्यून बज उठी। उसका मुर्झाया चेहरा खिल गया। वह मुस्कुराते हुए खुद से बुदबुदाया – ‘ओह! तो आज मैडम ने मेल नहीं भेजी है। ...आज फोन पर बात करने का मन है।’

उसने मोबाइल को कान से लगाते हुए कहा – “हैलो! रिचा, कैसी हो ? आज तुम्हारी मेल के बिना मेरी शाम कितनी अधूरी है यार!”

“शरद भाईसाहब! रिचा ने सुसाइड कर ली है, आप तुरंत आ जाइए।”

उधर से रिचा की भाभी की आवाज़ थी। शरद आवाक् खड़ा रह गया और उसके हाथ से मोबाइल छूट गया। ज़रा होश आते ही उसे अपनी ज़िन्दगी का एक सिरा छूटता सा लगा। वह वहीँ ज़मीन पर निढाल होकर बैठ गया।

‘रिचा! ...मेरी रिचा! ऐसा कैसे कर सकती है! वह तो हँसती-खिलखिलाती ज़िन्दगी से लबरेज़ लड़की है, वह ऐसा नहीं कर सकती। ज़रूर भाभी ने कोई शरारत की है। दोनों ननद-भाभी मिलकर मेरे साथ मज़ाक कर रही होंगी। मुझे भी तो इंडिया गए, रिचा से मिले सात महीने होने को आए हैं। मुझे बुलाने के लिए शरारतें कर रही होंगी दोनों।’

शरद अपनी कंपनी के एक प्रोजेक्ट की वजह से दो महीने के लिए ही कनाडा आया था लेकिन अब दो-दो महीने करते-करते साल होने को आया है। जब वो कनाडा आने की दुविधा में था तब रिचा ने ही उसे सुझाव दिया था – “शरद! क्यों परेशान होते हो! मुझे पता है, तुम मेरी वजह से ही जाने में हिचक रहे हो, है न ?”

“हाँ रिचा! मैं तुम्हें यहाँ अकेले छोड़कर कैसे जाऊँ। अभी-अभी तो हमारी शादी हुई है, और यह प्रोजेक्ट आ गया! मेरा जाने का बिलकुल भी मन नहीं है।” शरद छोटे बच्चे की तरह उसकी गोद में सर रखकर लेट गया। रिचा ने उसके बालों में उँगली फिराते हुए कहा - “ऐसा नहीं कहते| सुनो! यही प्रोजेक्ट तुम्हें नई पहचान दिलवाएगा। तुम एक काम करो, मुझे मुंबई में भैया के पास छोड़ दो। वहाँ भैया-भाभी के साथ मेरा भी मन लगा रहेगा और तुम भी कनाडा में निश्चिन्त होकर काम कर पाओगे।”

उसे रिचा का यह सुझाव पसंद आया था – ‘सही ही तो कह रही थी वो। अपने भैया-भाभी के घर से ज्यादा महफूज़ जगह और क्या होगी उसके लिए। मेरा भी तो कोई नहीं था इस दुनिया में कि उनके पास रिचा को छोड़ सकता। माँ बाबूजी को एक एक्सिडेंट में खो चुका था। एक चाचा थे वे भी पिछले साल इस दुनिया से जा चुके थे। भैया-भाभी ही सब कुछ थे अब हमारे लिए।’

शरद अब तक उस फोन पर यकीन नहीं कर पा रहा था – ‘मज़ाक ही होगा ...यह सच नहीं हो सकता। मैं राजेश भैया से ही पूछता हूँ, वे झूठ नहीं बोलेंगे।’

“हैलो”

“हैलो! राजेश भैया, मैं शरद। भाभी ये क्या कह रहीं हैं! रिचा ने ...?”

“हाँ शरद, मीना ठीक कह रही है। तुम बस जल्दी से आ जाओ, तुरंत।”

शरद के भीतर का रहा बचा विश्वास भी खत्म हो गया। ‘ऐसा कैसे हो सकता है! ज़िन्दगी से भरी हुई कोई लड़की ज़िन्दगी से यूँ ही पीछा कैसे छुड़ा सकती है! रोज़ अपनी मेल पर दिन भर के किस्से लिखती थी। उसके एक-एक शब्द से ज़िन्दादिली झलकती थी। यहाँ तक कि जब मैं हम दोनों की आपस की इस दूरी से निराश हो जाता था तो वही मुझे हौसला देती थी। उसकी हर मेल मुझे तसल्ली देती कि वह मुझसे दूर रहकर भी मेरे ही करीब है। वह अकेली नहीं है बल्कि अपने भाई भाभी के साए में महफूज़ है। वह अपने और भाभी के अनेक किस्से मेल में लिखा करती थी। कभी-कभी मैं उसे जवाब में लिखता – “क्या रिचा! हर बार वही किस्से ...भैया-भाभी-रसोई! कभी मुझ गरीब के बारे में भी सोच लिया करो। मेरे लिए रोमांस भरी कोई बात ही लिख दिया करो। आखिर हमारा भी तो हक़ है तुम्हारे प्यार पर।” ...और बदले में अगली ही मेल में रोमांस की झड़ी लग जाती। किस-स्माइलीस, प्यार भरी शायरियाँ, सेक्सी चुटकुलों के ढेर लगा देती रिचा। हालाँकि मैं जानता था कि इस तरह की रोमॅन्टिक मेल लिखने से पहले वो कई बार झिझकी होगी ...शरमाई होगी। कई वाक्यों को लिख-लिखकर मिटाया होगा ...फिर फिर लिखा होगा। भीतर ही भीतर मुस्कुराई होगी। प्यार से भरी थी मेरी रिचा ...वह ऐसा कदम कैसे उठा सकती है!!’

शरद की आँखों से आँसू कब गिरने लगे उसे भी पता न चला। वह अब भी इस खबर पर यकीन नहीं कर पा रहा था। करता भी कैसे ? ...जिस राजा की जान तोते में हो, वो राजा अपने जीते जी उस तोते के मरने की बात पर कैसे यकीन कर सकता है! लेकिन ये आँखें भी न ...कौन जाने इनकी रीत! ज़रा कोई अनहोनी सुनी नहीं कि सावन-सी बरस पड़ती हैं। इस वक्त वह पत्थर की तरह जड़ हो चुका था और उसकी आँखें झरने-सी झर रहीं थीं। सच ही तो है, ये झरने भी पहाड़ों के दिल चीरकर ही तो निकलते हैं! वह बार-बार खुद को पहाड़-सा सख्त बना रहा था ...इस फोन कॉल पर यकीन नहीं करना चाहता था लेकिन उसकी आँखें झरने-सी झर रहीं थीं। वह इसी वक्त उड़कर अपनी पत्नी के पास पहुँच जाना चाहता है। वह चाहता है कि वहाँ जाकर उससे लिपट जाए और ज़ोर से अपनी बाहों में कसकर कहे कि, “सुनो रिचा! आइन्दा कभी ऐसा मज़ाक मत करना वरना...” और वह कहेगी, “वरना क्या मिस्टर शरद ? बोलो न ...वरना क्या ?” ...और फिर, दोनों एक दूसरे में गुम हो जाएँ।

शरद पहली ही फ्लाईट से मुंबई के लिए रवाना हो गया। वह हर काम यंत्रचालित-सा कर रहा था ...बिल्कुल मशीन की तरह। उसका दिल और दिमाग रिचा में ही खोया हुआ था। रिचा के साथ बीती एक-एक बात याद आ रही थी। कॉलेज में उससे मिलना, अपने प्यार का इज़हार करना, रिचा के भैया और उसके चाचा की सहमति से दोनों की शादी होना। प्यार भरे उनके दिन और रातें ...फिर ये प्रोजेक्ट और उसका कनाडा आना| यहाँ आने के बाद फोन पर बातें करना और मेल पर अपने दिनभर की घटनाएँ साझा करना। उसे सब याद आ रहा था। बस एक ही बात जिसे वो बार-बार भूलने की और झुठलाने की कोशिश कर रहा था, वह था भैया और भाभी का वो फोन। वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था कि रिचा ऐसा कर सकती है। रिचा अपने कॉलेज के दिनों में भी इंटेलीजेंट लड़कियों में गिनी जाती थी। वह खुद भी रिचा को बेहद सुलझी हुई और समझदार मानता था। हमेशा खिलखिलाते रहना और बड़ी-बड़ी बुद्धिमानी भरी बातें करना रिचा की आदत थी। बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाली यही रिचा जब बच्चों की तरह उससे लिपट जाती तो वह भीतर तक उसके प्यार में सराबोर हो उठता। अपनी सीट बैल्ट बांधते हुए उसे रिचा की एक मेल याद हो आई – “शरद! इस बार जब तुम आओगे तो मुझे भी अपने साथ कनाडा ले चलना। मैं कभी हवाई जहाज़ में नहीं बैठी हूँ| कितना मज़ा आता होगा न ? दूर आसमान में उड़ते जाना ...बिलकुल आज़ाद ...एकदम परिंदों की तरह।”

“हाँ! ज़रूर। इस बार मैं तुम्हें हवाई जहाज़ में घुमाऊँगा। डार्लिंग! कनाडा तो नहीं ला पाऊँगा लेकिन इण्डिया में ही घुमा दूँगा। तुम्हें पता तो है कि दो देशों की सरहदें दिलों को कम बल्कि कागज़ी कार्यवाही को ज्यादा तवज़्ज़ो देतीं हैं।” ...और फिर रिचा ने हँसते-खिलखिलाते, बिगड़ी सूरत वाले अनेक स्माइली भेजकर अपनी सहमति जताई थी।

‘क्या वाकई रिचा एक आज़ाद परिंदे की तरह मुझे बिना कुछ बताए, नेरा इंतज़ार किए बगैर मेरे प्यार के पिंजरे को यूँ तोड़कर उड़ सकती है! क्या कोई ऐसे ही सब कुछ छोड़-छाड़कर चल देता है! ...तीन दिन पहले ही तो कितनी ख़ुशी झलक रही थी उसकी मेल से। उसने लिखा था – “पता है शरद! आज मैं और भाभी मार्केट गए थे। भाभी ने मुझे बहुत ही सुन्दर साड़ी दिलाई। भैया और भाभी मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई अपने बच्चे का रखता है।”

करीब डेढ़ घंटे के बाद उसने एक और मेल लिखी थी – “शरद! मैंने अपने मम्मी-पापा को बचपन में ही खो दिया था। भैया ने ही मुझे पढ़ाया-लिखाया, बड़ा किया। जब भाभी आईं तो उन्होंने माँ की कमी को भी दूर कर दिया। ये दोनों मुझे जी-जान से प्यार करते हैं।” मैं पढ़कर मुस्कुरा दिया। भैया-भाभी के प्रति मन श्रद्धा से भर उठा। सच तो ये है कि अब इस दुनिया में भैया, भाभी और रिचा के अलावा मेरा भी तो कोई और नहीं था। ...लेकिन मैंने शरारत करते हुए उसे लिखा – “हाँ! सभी आपको प्यार करते हैं। एक हम ही हैं जो आपको काटते हैं।”

उसने जवाब दिया – “काट लो न ...प्लीज़”

मैं उसकी शरारत पर मुस्कुरा दिया और थोड़ा शर्मा भी गया। बड़ी देर तक यह वाक्य ज़हन में महकता रहा ‘काट लो न ...प्लीज़’

सच! कितनी याद आई उस दिन रिचा की। कल उसने बहुत ही छोटी-सी मेल लिखी थी। लेकिन आज तो...|”

अपनी यादों और आशंकाओं में डूबता उतराता शरद मुंबई पहुँच चुका था। घर के भीतर का दृश्य देखकर वह ढह गया। उसकी गुड़िया जैसी रिचा, जो उसे देखते ही दौड़ पड़ती थी और ज़माने भर की शर्म-ओ-हया को ताक पर रखकर उससे लिपट जाती थी, वही आज सफ़ेद चादर ओढ़े उसके आने के बाद भी ज़मीन पर बेसुध पड़ी सो रही थी। उसे यूँ देख शरद खुद को संभाल न पाया और लड़खड़ा कर गिर पड़ा| रिचा के भाई ने उसे संभाला और दिलासा दिया। शरद उनके गले लगकर बोला- “ये क्या हो गया भैया...” वह बस इतना ही कह पाया और बिलख-बिलखकर रो पड़ा।

रिचा ने अपने हाथ की नस काटकर आत्महत्या की थी लिहाज़ा पुलिस भी आई हुई थी। छानबीन, पूछताछ, गवाही, रिपोर्ट आदि सभी के बाद यही नतीजा सामने आया कि मृतक अपने पति से दूर रहने के कारण अकेलेपन और डिप्रॅशन की शिकार हो चुकी थी। उसी अवसाद में डूबकर उसने अपने हाथ की नस काट ली। इक्का दुक्का जो भी रिश्तेदार आए थे, अब वे भी जा चुके थे।

अब शरद के लिए भी यहाँ कुछ न बचा था। उसने वापस कनाडा जाने का निश्चय किया। भैया भाभी ने भी रुकने के लिए ज़ोर नहीं डाला। उन्हें भी पता था कि अब उसके यहाँ रुकने की कोई वजह नहीं है। शरद ने जाने से पहले रिचा की निशानी के तौर पर उसकी खास-ख़ास चीज़ें और वो लैपटॉप जो मेल के ज़रिये उन्हें करीब किए रहता था, अपने साथ ले लिया। दरवाज़े से बाहर जाते हुए उसके पैर ठिठक गए| हवा का एक झोंका उसकी यादों की चिंगारी को धधका गया। शरद ने मुड़कर देखा। उसे लगा कि उसकी रिचा भागकर आएगी और उससे लिपट जाएगी फिर धीरे से कान में कहेगी – “सुनो! जल्दी आना| मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है।” ...लेकिन ऐसा कहने वाली अब खुद बहुत दूर जा चुकी थी। शायद उससे रूठकर, कि – “लो! मत आओ वापिस ...तुम मुझसे दूर चले गए न ? अब मैं भी तुम्हें खूऽऽब दूऽऽर जाकर दिखा दूँगी, वहीं चली जाऊँगी जहाँ से कोई वापिस नहीं आता। तुम तो बस हवाई जहाज़ से ही उड़ते रहना लेकिन मैं ...मैं तो आज़ाद परिंदे की तरह सातवें आसमान तक उड़ जाऊँगी।”

शरद गेट पर ही बिलख-बिलखकर रो दिया। भाई ने पकड़कर सहारा दिया और भाभी दिलासा देने लगीं। – “मत रोइये भैया। क्या कर सकते हैं, यही नियति थी। हौसला रखिये। अब तो वह हम सबकी यादों में ही है।” तीनों की आँखों से आँसू गिर रहे थे।

शरद ने अपना दिल कड़ा किया और उनसे विदा लेकर कनाडा रवाना हो गया। अब ऑफिस के काम में ही खुद को व्यस्त रखना होगा। इस दर्द से छूटना आसान नहीं लेकिन खुद को काम में व्यस्त कर देना ही इसका एकमात्र उपाय था। ऑफिस के लोगों ने भी संवेदना व्यक्त की लेकिन फिर वे भी अपने-अपने कामों में लग गए। वैसे भी ये दुनिया कहाँ किसी के लिए थमती है ? ...और यह दर्द उसका अपना है। अब उसे इसी अकेलेपन और दर्द के साथ जीना सीखना होगा। शरद ने खुद को काम में झोंक दिया, वह सामान्य होने की कोशिश करने लगा हालाँकि यह इतना आसान न था। दिन भर तो वह खुद को ऑफिस के कामों में डुबोए रखता लेकिन शाम को घर आते ही रिचा की यादों में डूब जाता| वह अब भी रोज़ रात को रिचा की मेल खोल-खोलकर पढ़ा करता ...फिर ज़ार-ज़ार रोया करता। उसके उस अँधेरे कमरे और सुनसान जीवन में रिचा की यादों के आलावा और कोई न होता। वह घंटों अपने ख्यालों में रिचा को बाहों में लेकर रोता रहता। अब तक वह रिचा की एक-एक मेल को पचासों बार पढ़ चुका था।

अचानक आज शरद को रिचा का लैपटॉप याद हो आया। उसने उसे ऑन किया। रिचा का जीमेल एकाउन्ट अपने आप ही खुल गया। शरद बुदबुदाया, ‘कितनी बार समझाया था रिचा को कि अपना एकाउन्ट हमेशा साइनआउट किया करो, लेकिन कभी नहीं सुनती थी।’ उसे याद आया जब उसने पहली बार रिचा का लैपटॉप ऑन किया था, तब उसका फेसबुक एकाउन्ट खुद-ब-खुद खुल गया था। तब शरद ने कहा था – “रिचा, तुम अपने एकाउन्ट को साइनआउट क्यों नहीं करती हो ?”

“अरे! छोड़ो न जानू। मेरे एकाउन्ट में ऐसा भी क्या सीक्रेट है ...हमारी ही तो लव स्टोरी है।” और ढीट बच्चे की तरह खिलखिलाकर हँस दी थी।

...और आज! ...आज सब कुछ सीक्रेट छोड़कर, अपने जीवन का ही एकाउन्ट हमेशा हमेशा के लिए क्लोज़ करके चली गई। शरद रोए जा रहा था ...बेतहाशा। वह बेचैनी से माउस को घुमा रहा था ...कभी इनबॉक्स पर क्लिक करता ...तो कभी सॅन्ट पर। एकाएक उसका ध्यान ड्राफ्ट पर गया। कई अनसॅन्ड ड्राफ्ट्स थे। उसने क्लिक किया। ऊपर वाले ड्राफ्ट को देखा। यह रिचा की आखिरी मेल थी, जो उसने अपने मरने के एक दिन पहले लिखी थी। उसके नीचे ...और नीचे कई ड्राफ्ट थे जो रिचा ने लिखे तो थे पर कभी भी उसे मेल नहीं किये थे और वे इस फोल्डर में सेव होते गए। शरद एक-एक कर उन्हें पढ़ने लगा। उसकी रोने की आवाज़ सिसकियों से शुरू होकर तड़प में बदलती गई। वह पढ़ता जा रहा था ...बिलखता जा रहा था। एकाएक चीख पड़ा – क्यों रिचा! क्यों! ...क्यों तुम मुझे अपनी झूठी मेलों से बहलातीं रहीं ...क्यों ये सच्चाई मेल नहीं की ...एक बार, सिर्फ एक बार कर देतीं... सच! मैं सब छोड़-छाड़कर तुम्हारे पास आ जाता या कोई भी जतन करता और तुम्हें अपने पास बुला लेता, लेकिन उन जल्लादों के तानों को न सुनने देता। तुम वहाँ मेरे बगैर अकेली तड़पतीं रहीं, अपने भैया भाभी के ताने सुनतीं रहीं और उन्हीं की तारीफों के पुल बांधतीं रहीं और मैं ...मैं भी यही सोचता रहा कि वे तुम्हारा ख्याल रख रहे हैं। रिचाऽऽ! तुमने ये सच्चाई मुझे कभी क्यों नहीं बताई!”

शरद पुराने ड्राफ्ट्स पढ़ता जा रहा था, फूट-फूटकर रोता जा रहा था ...और अब उसके सामने रिचा का आखिरी अनसॅन्ड ड्राफ्ट खुला हुआ था –

मेरे शरद! आज तुम्हारी बहुत ज़्यादा याद आ रही है। काश! तुम मेरे पास होते। मैं तुम्हें अपने मन की बात लिख तो रही हूँ लेकिन कभी मेल नहीं कर पाऊँगी। शरद! मेरे भैया भाभी बहुत अच्छे हैं। मेरी ही किस्मत खराब है। भैया सच ही तो कहते हैं कि मैं ही मनहूस हूँ तभी तो पैदा होते ही माँ को खा गई ...फिर पापा को। तुम मेरी ज़िन्दगी में आए लेकिन फिर भी मैं उन पर ही बोझ बनी रही। तुम्हारा भी साथ नहीं मिला मुझे क्योंकि मेरी किस्मत ही खराब है। शरद! भाभी को लगता है कि जब तक मैं उनके साथ रहूँगी वे कभी माँ नहीं बन पाएँगी। उन्होंने आज साड़ी देते हुए कहा – ‘ले पहन ले अपने पति के सुहाग को| मेरे पति और मेरे बीच तो पहाड़ की तरह अड़ गई है। न जाने ईश्वर इस जंजाल को कब मेरे जीवन से काटेंगे।’ आज भैया ने भी अपने मन की बात खुलकर कह दी – ‘तू क्या सारी ज़िन्दगी यूँ ही मेरे साथ जोंक की तरह चिपकी रहेगी ? ...पहले माँ-बाबूजी तुझे मेरे सर पर मढ़ गए और अब तेरा पति!’

शरद! मुझे माफ़ कर देना ...मैं खुद को तुम सबके जीवन से अलग कर रही हूँ। मैं तुम सब पर और बोझ नहीं बन सकती ....