अनाथ कश्मीर की फिल्म सेंसर के शिकंजे में / जयप्रकाश चौकसे

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अनाथ कश्मीर की फिल्म सेंसर के शिकंजे में
प्रकाशन तिथि :16 जनवरी 2019


अश्विन कुमार की फिल्म 'नो फादर्स इन कश्मीर' में एक युवा प्रेमकथा है और प्रेमियों के पिता गायब हो गए हैं। संभवत: आतंकवादियों ने उनका अपहरण कर लिया है। फिल्म में महेश भट्‌ट की पत्नी सोनी राजदान ने अहम भूमिका अभिनीत की है और 'राजी' के बाद यह उनकी ताज़ा फिल्म है। ज्ञातव्य है कि सोनी राजदान ने महेश भट्‌ट की 'सारांश' में अभिनय किया था। फिल्मकार अपने कलाकारों के लिए छवियां गढ़ते हैं और अपनी छवि पर मोहित होते हुए नायिका छवि बनाने वाले फिल्मकार से प्रेम करने लगती है। यह परावर्तित प्रेम है जैसे प्रकाश आईने से वापस लौटता है। 'सारांश' महेश भट्‌ट की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। राजनीतिक परिस्थितियों ने कश्मीर को बर्फ की गोद में दहकता अंगारा बना दिया है। हमारी कुछ फौजी टुकड़ियां वहां तैनात रहती हैं। पाकिस्तान के कब्जे में आया कश्मीर का थोड़ा हिस्सा भी तंदूर की तरह दहकता रहता है। कश्मीर के मूल निवासी हमेशा तनाव की रस्सी पर चलने-सा अनुभव करते हैं। वहां कालीन बुनने का पारम्परिक व्यवसाय खूब फला-फूला है परंतु विगत दशकों से अवाम का जीवन कालीन के नीचे चले गए किसी प्रेम-पत्र या क्षमा मांगने के लिए लिखे गए खत की तरह हो गया है।

कश्मीर में पशमीने की शाल बनाई जाती है। पशमीने की शाल ठंड से रक्षा का सबसे अधिक कारगर उपाय है। इनका वजन अत्यंत अल्प होता है। पशमीने की शालों का मूल्य 50 हजार से 5 लाख तक हो सकता है। इनकी तासीर यह है कि आप किसी अन्य शहर में तपती हुई मई के माह में ओढ़ लें तो चंद मिनटों में ही आपके शरीर से पसीना निकल सकता है और आप लू के शिकार भी हो सकते हैं। फलों-फूलों की वादियां लम्बे समय से बारूद का गोदाम बनी हुई हैं। डल झील में शिकारे पर सैर करना एक सुखद अनुभव रहा है। डल झील के किनारों पर स्वादिष्ट कबाब की दुकानें हैं। पर्यटकों के लिए यह खाने का प्रिय ठिकाना है। राज कपूर की 'बरसात' वह पहली फिल्म थी, जिसकी कुछ शूटिंग कश्मीर में हुई थी और इत्तेफाक देखिए कि उनके द्वारा निर्देशित अंतिम फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' की शूटिंग भी कश्मीर में हुई थी। हिंदुस्तानी सिनेमा में रंगीन फिल्मों का दौर शम्मी कपूर अभिनीत 'जंगली' से प्रारंभ हुआ और अधिकांश फिल्मों की कुछ शूटिंग कश्मीर में होने लगी। पर्यटन हमेशा कश्मीर को सबसे अधिक धन देता रहा है। सुभाष घई ने अपनी देशप्रेम की एक्शन फिल्म 'कर्मा' की शूटिंग भी कश्मीर में की थी। इस तरह प्रेम कथाओं के साीथ एक्शन फिल्में भी वहां शूट की जाने लगीं। सोहनलाल कंवर की एक शूटिंग के समय सुभाष घई ने माधुरी दीक्षित को देखा और उनकी प्रतिभा का उदयपूर्व अनुमान लगाकर उसे अपनी फिल्म 'राम-लखन' और 'खलनायक' के लिए अनुबंधित किया। कश्मीर राजनीतिक परिवार के नज़ीर बख्शी सभी फिल्म यूनिट की सुख-सुविधाओं का व्यवसाय करते थे। कश्मीर में उन दिनों टैक्सी का भाड़ा 300 रुपए प्रतिदिन होता था परंतु नज़ीर बख्शी 500 रुपए की दर लगाते थे। उन्होंने ऐसा व्यवसाय तंत्र रचा था कि शूटिंग के समय निर्माता के पास धन का अभाव हो जाए तो वे धन भी उधार दे देते थे। नज़ीर बख्शी कुछ समय तक इंदौर के होलकर कॉलेज के छात्र रहे थे।

विगत कुछ वर्षों से कश्मीर के युवा वर्ग का रुझान पढाई-लिखाई की ओर हो गया है। अब बंदूक के बदले कश्मीरी युवा ने कलम उठा ली है। यह एक सुखद परिवर्तन है। कश्मीर में शिक्षा संस्थान अधिकतम बनाए जाने से कश्मीर को बचाया जा सकता है। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए शिक्षा संस्थान और अस्पताल विकास का पथ प्रशस्त करता है। ज्ञातव्य है कि कश्मीर में एक विलक्षण प्रतिभा हब्बा खातून हुई हैं, जिनके गीत यू-ट्यूब पर उपलब्ध हैं। हब्बा खातून ने एक बार मुगल सेना को पराजित किया था परंतु दूसरे आक्रमण के समय साधनों की कमी के कारण हार गई थीं। इस समय फिल्म उद्योग में बायोपिक बनाने का दौर चल रहा है। दीपिका पादुकोण या प्रियंका चोपड़ा को हब्बा खातून की भूमिका देकर एक सार्थक संगीतमय फिल्म बनाई जा सकती है। कश्मीर समस्या के एक दु:खद प्रसंग को के.के. मेनन, राहुल बोस अभिनीत 'शौर्या' में प्रस्तुत किया गया था। एक फौजी अफसर कुछ कश्मीरी बच्चों को गोली मार देता है और उनके बस्ते में हथियार रख देता है ताकि वह अपनी रिपोर्ट में यह लिख सके कि ये बच्चे आतंकवादियों को हथियार ले जाकर देते हैं। मणिरत्नम की शाहरुख खान और मनीषा कोईराला अभिनीत फिल्म 'दिल से' में भी इसी तरह का विषय है।

कोई आश्चर्य नहीं कि संकीर्ण विचारधारा शासित सेन्सर बोर्ड ने 'नो फादर्स इन कश्मीर' को अभी तक प्रमाण-पत्र नहीं दिया है। अब आलिया भट्‌ट ने कमर कस ली है कि वह सेन्सर बोर्ड से प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के सारे जतन करेगी। अब आलिया भट्‌ट लामबंद हो गई हैं तो निश्चय ही उनके अंतरंग मित्र रणवीर कपूर भी इस जंग में कूद पड़ेंगे। वे यह दलील भी दे सकते हैं कि उनके दादा राज कपूर पहले फिल्मकार थे, जिन्होंने कश्मीर में शूटिंग की थी।