अनिद्रा में स्मृति चिन्ह की तलाश / जयप्रकाश चौकसे

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अनिद्रा में स्मृति चिन्ह की तलाश
प्रकाशन तिथि : 23 जून 2020


अपने कॅरिअर में गुणवत्ता के लिए 10 ऑस्कर जीतने वाले फिल्मकार क्रिस्टोफर नोलन की फिल्मों के नाम हैं- ‘इन्सेप्शन’, ‘द प्रिस्टीज’, ‘इन्सोम्निया’, ‘द डार्क नाइट’ इत्यादि। उनकी नई फिल्म ‘टैनेट’ की अधिकांश शूटिंग दक्षिण मुंबई के वरदान टावर्स में हुई है। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने उनकी सहायता की। वे भारतीय सिनेमा की विरासत की रक्षा के कार्य में जुटे हैं। यह अजीब है कि वरदान का नाम अपराध जगत से जुड़ा था और नोलन की फिल्म के पात्र भी अपराध जगत से हैं। बहरहाल नोलन को रहस्यमय मानव अवचेतन की पड़ताल बहुत पसंद है। अवचेतन की गुफा में वे भावना के जुगनू से दिव्य प्रकाश की खोज करते हैं। वे अपनी दार्शनिक कथा की रोचक प्रस्तुति के लिए फिल्मों को थ्रिलर की तरह गढ़ते हैं। सतही तौर पर यह भरम होता है कि प्रयास मात्र अपराधी को पकड़ने का है। यह अपराधी भले व सम्मानित लोगोंं के परदे के भीतर छुपे बैठे हैं। समाज में वे आदरणीय हैं। इस तरह के लोग अपनी बेचैन आत्मा के कारण रातों को जागते रहते हैं व नींद की दवा भी उन्हें अनिद्रा से मुक्त नहीं करा पाती। नोलन की नई फिल्म ‘टैनेट’ का अर्थ विश्वास है या वह आदर्श है, जिस पर आप टिके रहना चाहते हैं। व्यवस्था ने फिसलन भरी राह बनाई है, जिस पर भटकने का डर है, बहकने के अवसर हैं। नफरत है निगाहों में, वहशत है हवाओं में, रास्ते गुम हैं, मंजिलें खो गईं, किसी को किसी पर भरोसा नहीं। ऐसे दौर में नोलन की फिल्म का नाम ‘टैनेट’ अर्थात विश्वास है। उनकी फिल्म ‘इन्सेप्शन’ में उनका तात्पर्य था कि गुजिश्ता सदियों के परिप्रेक्ष्य में मौजूदा समय को समझने का प्रयास करें। इसके लिए नोलन ने अपने पात्र को बीस माले वाली इमारत की लिफ्ट में बैठाया। हर माले पर लिफ्ट रुकती है और पात्र उस सदी की झलक देखता है। इस तरह मंजिल दर मंजिल उसे अलग-अलग सदियों का नजारा देखते हुए निर्णय लेना है। वर्तमान में इतिहास को पुन: ऐसे लिखवाया जा रहा है कि हमने सभी युद्ध जीते हैं या हमसे किसी की हिम्मत नहीं थी टकराने की परंतु सरहद से घायल और मृत फौजी लौट रहे हैं। क्या उन्हें मलेरिया हुआ या सर्दी-जुकाम से पीड़ित रहे। कोरोना को हम कंट्रोल कर चुके, जैसे कि प्रचारित है, अत: हमारे फौजी कोरोना के शिकार कैसे हो सकते हैं?

नोलन आज भी सेल्युलाइड प्रेमी हैं, उन्हें डिजिटल पर एतबार नहीं है। उनके अनुसार डिजिटल इबारत किसी दिन एेसे मिट जाएगी जैसे कभी लिखी ही नहीं गई थी। ‘ टैनेट’ 30 जुलाई को प्रदर्शित होगी और इन्सैट पर देखी नहीं जा सकती। वे मानते हैं कि फिल्म का जादू सिनेमाघर में ही जागता और सिर चढ़कर बोलता है।

क्रिस्टोफर को जादू में भी रुचि है। उनकी फिल्म ‘द प्रिस्टीज’ में गुरु-चेला दोनों, जादूगर हैं। चतुर चेला, विद्या सीख कर अपना स्वतंत्र तमाशा खड़ा करके गुरु को नीचा दिखाने में लगा है। उपेक्षित व अपमानित गुरु एक खेल रचता है कि स्वयं उसका कत्ल शागिर्द के हाथों हो गया है। अदालत द्वारा फांसी का दिन तय होता है। फांसी के कुछ समय पूर्व गुरु भेष बदलकर शागिर्द से मिलता और उसे अपना प्रोस्थेटिक मेकअप हटाकर अपना चेहरा दिखाकर बताता है कि वह जिस कत्ल के लिए फांसी पर चढ़ाया जा रहा है, वह तो घटित ही नहीं हुआ। सच जानकर मरने की पीड़ा दोगुनी हो जाएगी। गुरु अपने शिष्य से एक ट्रिक हमेशा छुपाकर रखता है, ताकि शागिर्द का अहंकार तोड़ सके। नोलन महान आदर्श प्रस्तुत करते हैं। वर्तमान में सत्ता जादूगरों के हाथ है। अलीबाबा और चालीस चोर पुन: घटित हो रही है। आम आदमी अलीबाबा है, उसे हर जगह लूटा जा रहा है। विस्मयकारी है कि उसे लुटने में ही आनंद आ रहा है। बहरहाल, क्रिस्टोफर कोलम्बस भारत की खोज में निकला और अमेरिका को खोज लिया। अमेरिकन क्रिस्टोफर नोलन अपनी फिल्मों द्वारा भारत के भूले-बिसरे आदर्श (टैनेट) खोज रहे हैं। उनकी सफलता के लिए प्रार्थना की जा सकती है।