अनुशासन / मधु संधु

Gadya Kosh से
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क्लर्क जला बैठा था। न कनिष्ठ कर्मचारी उसका सम्मान करते थे, न वरिष्ठ अधिकारी / प्रोफेसर उसकी कद्र करते थे। विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता का रोना अलग था। पास बैठे दो तीन प्रवक्ता भी इस बात को पुष्ट कर रहे थे।

एक नवगांतुक ने कमरे में 'मे आई कम इन सर' कहकर प्रवेश किया और विनम्र स्वर में कुर्सी पर बैठे क्लर्क से कहा, "सर एड्मिशन डेट्स पूछनी थी।"

क्लर्क वीरसिंह ने टोपी हिलाते हुये एक सीनियर प्रोफेसर का नाम लेते कहा, "जाओ डॉ॰ जुडेजा से पूछ लो। वे कमरा न० 205 में इसीलिए बिठाये हुये हैं।" पास बैठे जूनियर प्रवक्ताओं बांछे खिल गई.

चाय का घूंट सुड़कते डॉ॰ भाटिया बोले, "वाह भाई वीर सिंह! आधा किलो खून बढ़ा दिया तूने एक ही झटके में।"