अपना मालिक / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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उसका नाम नरू नहीं है। नरू नहीं जानता कि उसे नरू कहकर क्यों पुकारते है। नरू अभी छोटा है। मगर इतना छोटा भी नहीं है कि कुछ समझता न हो। उसे दुनियादारी की समझ है। उसका शरीर गोल-मटोल है। वह ठिगना है। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं। वे बालों के पीछे छिपी रहतीं हैं। नरू के सिर के बाल लम्बे हैं। नरू बालों को माथे से सिर की और ले जाता। पर बाल बार-बार सरक जाते और आँखों को ढक लेते। जिस कारण वह कई बार चोट खा पड़ता।

आज फिर नरू की पिटाई हुई। उसके हाथ से पानी का पतीला छूट गया। पतीला पैर पर गिरा था। नरू जोर से चीखा। पैर से खून निकलने लगा। धनीराम ने लात-घूसों से नरू की पिटाई कर डाली। बाबा सब कुछ देख रहा था। उससे रहा न गया। वह बोल पड़ा-”बस भी करो। छोटी सी जान है। छोड़ दो उसे। उसकी जान लोगे क्या?”

धनीराम का हाथ तो रूक गया। पर उसकी सांस फूल रही थी। दम लेते हुए बोला-”नरू मेरा नौकर है। जो चाहूं सो करूं। बीच-बचाव करने वाले तुम कौन? अपना काम करो। जाओ। कहीं जाकर भीख मांगो।” यह सुनकर बाबा चुप हो गया। धनीराम बाजार की ओर चल पड़ा। नरू पैर में पुराना कपड़ा बांध चुका था।

नरू की पिटाई रोज ही होती थी। आज की पिटाई में एक नई बात थी। पहली बार किसी ने नरू का बचाव किया था। नरू बाबा को गौर से देख रहा था। बाबा उसके पास गया। पूछा,”अपना नाम तो बताओ।”

नरू बोला-”नूर।”

“लेकिन धनीराम तो तुम्हें नरू कहता है!”

“चाचा कहता है कि नूर नाम खराब है। होटल का काम है न। मेरे हाथ का कोई पानी भी नहीं पियेगा। तभी चाचा ने मेरा नाम बदला है। आप किसी से नहीं कहना। नहीं तो चाचा मुझे फिर मारेगा। नौकरी अलग जाएगी।”

“धनीराम के यहां काम करते हो?”

“हां। मैं चाचा के होटल की देखभाल करता हूं। लोग होटल में आकर ठहरते हैं। मैं पानी ढोता हूं। बरतन मलता हूं। चादर धोता हूं। होटल की साफ-सफाई करता हूं।”

“काम के बदले रुपये कितने मिलते हैं?”

“वैसे तो चाचा ने बताने को मना किया है। मगर आप भले हैं। आपको बता देता हूँ। किसी को बताना मत। एक महीने के चार सौ रुपये। रहना-खाना अलग से। कभी-कभी दस कंटर पानी ढोता हूं। उस दिन एक गिलास दूध मिल जाता है। पानी का धारा बहुत दूर है न। थक जाता हूं। हाँ। चाचा के पास एक कुत्ता है। चाचा उसे रोज दूध पिलाता है। चाचा कहता है कि कुत्ते को दूध पिलाने से पुन्न मिलता है।” नरू पैर की चोट भूल गया। वह बाबा से ऐसे बात कर रहा था, जैसे पुरानी जान-पहचान हो।

“नूर। तुम्हारे बाल बहुत लम्बे हैं।” बाबा ने कहा।

यह सुनकर नरू उदास हो गया। थोड़ी देर चुप रहा। फिर बोला-”यहां बाल कटवाई तीस रुपये है। रुपये जोड़ने है न। जाड़ा आने वाला है। उस समय गरम कपड़े चाहिए। यहां का पानी ठंडा है न। गरम जुराब भी चाहिए। जूते भी। चाचा से सामान मंगाना बेकार है। वो पगार से काट लेता है।”

“घर में कौन-कौन हैं?”

“अम्मी, अब्बू, फरजाना और सलमा। मैं सबसे बड़ा हूं।” यह कह कर नरू जोर से हँस पड़ा।

“स्कूल जाने का मन नहीं करता?”

“करता तो है। पर अम्मी बीमार रहती है। अब्बू कुछ नहीं करते। जब बड़ा हो जाऊंगा न तब पढ़ूंगा।”

“अपने घर पैसे भेजे हैं ?”

“अभी तो चाचा के पास जमा हैं। चार महीने की पगार हो गई है। ईद पर एक साथ ले जाऊंगा। मेरा मामा भी यहीं है। वो बड़े होटल में काम करता है।”

“किसी बढ़िया जगह में काम करो। ये चाचा तो तुम्हें पीटता है।”

“सब मालिक एक जैसे होते हैं। मैं पहले भी एक होटल में काम करता था। उस होटल का मालिक तो बहुत खराब था। भूखा रखता था। सोने भी नहीं देता था। मामा कहता है कि हम नौकर हैं। हमें काम से नहीं डरना चाहिए। अब चलता हूं। नहीं तो चाचा पुकार लगाएगा।” यह कहकर नरू होटल में चला गया। धनीराम के होटल के पीछे एक पीपल का पेड़ था। पेड़ घना और बड़ा था। उसी पेड़ के नीचे बाबा का ठिकाना था। बाबा और नरू में दोस्ती हो गई। बाबा भीख मांगता। जो कुछ मिलता, उसके दो हिस्से कर लेता। पहला हिस्सा नरू को देता। वे रात के अंधेरे में मिलते। देर तक बातें करते।

इस बार कड़ाके की ठंड पड़ी। सुबह का समय था। उजाला भी नहीं हुआ था। नरू सो रहा था। धनीराम ने नरू को आवाज लगाई। धारे से पानी जो भरना था। नरू उठा और पानी लेने भागा। धारे में पानी भरने वालों की भीड़ थी। नरू पानी लेकर देर से लौटा। धनीराम गुस्से में था। उसने फिर नरू की जमकर पिटाई की। नरू से बोला-”कामचोर। जा दो कंटर पानी और ला।” नरू की आँखें गीली हो गई। नरू को जाड़ा लग रहा था। मगर क्या करता। पानी तो भरना ही था। जाड़ा लगकर उसे बुखार आ गया। होटल में कुछ लोग ठहरने आए। नरू ने उन्हें होटल में ठहरा दिया। नरू का बदन दुख रहा था। रात हो गई। नरू ने बरतन धोए और सोने चला गया। उसे चारपाई पर एक पुराना कंबल मिला। कंबल बाबा का था। वह कंबल लेकर बाबा के पास गया।

बाबा ने उसे पुचकारा। धीरे से कहा-”आज से ये कंबल तुम्हारा है। जाओ, सो जाओ। तुम्हें सुबह जल्दी उठना है। धारे से पानी भरना है।” नरू का चेहरा अंधेरे में भी चमक रहा था। उसके बदन का दर्द एक दम गायब हो गया। नरू अंधेरे में ही उठ गया। उसने कंटर उठाए और धारे की ओर चल पड़ा। नरू खुश था। उसने अपने आप से कहा-”आज चाचा मुझे शाबासी देगा। मैंने चार कंटर पानी भर लिया है। चाचा तो सो रहा होगा। तब तक मैं दो कंटर पानी और भर लूंगा।”

वह हांफता हुआ होटल पंहुचा। चाचा का चेहरा गुस्से में लाल हो गया था। नरू ने कंटर जमीन पर रखे। चाचा ने नरू की गरदन पकड़ ली। बोला-”होटल में रुके हुए लोग चले गए। उन्होंने रुपये भी नहीं दिये। वो तीन सौ रुपये तेरी पगार से काटूंगा।” नरू ने गला छुड़ाते हुए कहा-”मुझे नहीं पता। मैं तो पानी लेने चला गया। मेरा क्या कसूर?”

धनीराम बड़बड़ाया-”मुझसे जबान लड़ाता है। ये ले।” धनीराम ने फिर नरू को पीटा। मार-मार कर अधमरा कर दिया। नरू दिन भर कोने में सुबकता रहा। शाम के बाद रात आई। हमेशा की तरह नरू ने अपना काम निपटाया। आज उसने सारा काम आराम से किया। आधी रात बीत चुकी थी। सब सो चुके थे। नरू बाबा के पास गया। बाबा ने आहट से ही पहचान लिया। बाबा चुप था। नरू बोला-”बाबा मैं जा रहा हूं। अब और नहीं सहा जाता।”

बाबा ने पूछा-”घर ?”

“नहीं।”

“फिर कहां?”

“पता नहीं।”

“चाचा से हिसाब कर लिया?”

“नहीं। पगार मांगूगा तो चाचा जाने कहां देगा। बांध कर पीटेगा, वो अलग।”

“अच्छा रूक। ये ले। तेरा हिस्सा। कुछ रुपएं हैं। रख ले। जरूरत में काम आएंगे।” बाबा ने रूमाल की छोटी सी पोटली नरू के हाथ में रख दी। थोड़ी देर दोनों चुप रहे। नरू जाने लगा।

बाबा ने रोका। कहा-”घर जाओ। इन थोड़े से रुपयों से अपना कुछ काम करो। सुनो। आज से किसी का नौकर मत बनना। तुम्हें मालिक बनना है। खुद का मालिक। अपना मालिक। अपने पांव पर खड़े होना है। अखबार बेचना या फिर चना-मूंगफली। कुछ भी करना। चाहे बूट-पालिश ही करनी पड़े। देखो नरू। कोई भी काम छोटा नहीं होता।”

नरू हंसने लगा। कहा-”बाबा। तुम कौन सा कुछ करते हो। भीख मांगना कोई काम हुआ?”

बाबा का मुंह खुला का खुला रह गया। उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। बांयें बाजू से आंसू पोंछते हुए बोला-”अब जाओ। हां। सुन। मैं भी कुछ न कुछ करूंगा। ऐसा कुछ, जिससे अपनी रोटी खुद जुटा संकू। अब ये बाबा किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगा।”

नरू ने हाथ जोड़े और चला गया।

आज की रात बाबा को लम्बी लग रही थी। बाबा करवट बदल कर सो गया। सुबह हुई। बाबा को धनीराम की आवाज सुनाई दी। धनीराम चिल्ला रहा था-”नरू। ओ नरू। सोता ही रहेगा क्या। जा धारे से पानी ले आ। जाता है कि नहीं। ओए नरू। ओ। नरू। बोलता क्यों नहीं? जिंदा है कि मर गया।”

धनीराम बौखलाया हुआ था। चिल्लाते हुए नरू को खोज रहा था। नरू उसकी चिल्लाहट से बहुत दूर जा चुका था।