अपनी खबर / असंबल गान / पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'

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उपदेशक—


तेरी कन्था के कोने में

कुछ संबल, या संशय है, अरे पथिक, होने में? तेरी.

यदि कुछ हो न ठहरता जा ना,

कन्थाु अपनी भरता जा ना,

करम दिखा इन बाज़ारों में

कुछ धरता कुछ हरता जा ना।

करता जा खिलवाड़ अमरता

पड़ नश्वखरता के टोने में। तेरी.

दूर देश तुझको जाना है,

पथ के ध्रुव दुख-सुख पाना है।

अरे! गुनगुना इतना गा ना,

पड़ना है आगे रोने में। तेरी.

बीहड़ बाट हाट से आगे

जा मत! मुसका मत भय त्या.गे!

गिरी-गह्वर, नद, निर्झर-झर हैं

पछताएगा अन्तग अभागे!

खो देगा अपने को पागल!

होती हँसी यहाँ खोने में। तेरी.

राही—

खो जाने ही का तो डर है।

इसीलिए संबल संचय में

संशय है, कुछ कोर-कसर है। खो जाने.

इसीलिए यह कन्थाय ख़ाली,

मलिन-मुखी, गलिता, अति-काली

लाद पीठ पर नाच नाचता

गाता आसावरी निराली।

इसीलिए यह गाल बजाता,

इसीलिए यह सूना स्वार है। खो जाने.

दूर देस से मैं आता हूँ,

सच है, दूर देस जाता हूँ।

किन्तुस जिसे पाता हूँ पथ में

खोने ही वाला पाता हूँ!

सुना: मिटे घट गये घनेरे

यह घटिया घाटों का घर है। खो जाने.

यह गिरि-वर, यह नदी मनोहर,

वक्ष फुलाकर, कलकल गाकर,

जाते दूर—सुदूर—नील-दिशि

संबल की यह भूल भुलाकर!

इसीलिए इन बाज़ारों की

नहीं मुझे अब ख़ाक़ ख़बर है!

खो जाने ही का तो डर है।

(सन् 1928 ई.)


परिचय—


महाराज, युवराज, सरदार, जर-दार

जूआ खेलने के लिए जुड़े राज-दरबार।

सोनापुर राज की वसुन्धेरा थी रत्नामयी

और थी खेलाड़ियों को कौड़ियों की दरकार!

किन्तुख उस देश में वराटिका* मिली न एक,

खोज-खोज हारे ख़ास-दास, दस-दस बार।

भाग्यु की परीक्षा की प्रतीक्षा में सभी थे जब

भिक्षा माँगने को पहुँचा मैं तभी राज-द्वार!

मेरे पात्र में थीं चन्द कौड़ियाँ, जिन्हेंब विलोक,

चन्द कौड़ियों पे टूटे सरदार जर-दार!

चन्द कौड़ियों को ललचाने हीरामणि आए,

चन्द कौड़ियों के महाराज थे तलबगार!

मैंने कहा ज्ञान से तमक तान मस्ततक को

भाग्य वानो! दान दूँगा। माँगो हाथ तो पसार?

भीख लेके जीते वे, मैं दान देके हार गया,

हार के गया मैं जीत, जीत के गए वे हार!

  • कौड़ी
समाप्त