अपराध और दंड / अध्याय 2 / भाग 7 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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बीच सड़क एक शानदार गाड़ी खड़ी थी, जिसमें दो सफेद घोड़े जुते हुए थे। गाड़ी में कोई भी नहीं था और कोचवान भी अपनी जगह से उतर कर पास ही खड़ा था। उसने घोड़ों की लगाम पकड़ रखी थी। चारों ओर बहुत से लोग जमा हो गए थे और सामने पुलिसवाले खड़े थे। उनमें से एक के हाथ में जलती हुई लालटेन थी जिसकी रोशनी वह पहियों के पास पड़ी हुई किसी चीज पर डाल रहा था। हर आदमी बातें कर रहा था, चीख रहा था, जोश में आ कर कुछ बोल रहा था। कोचवान घबराया हुआ लग रहा था और बार-बार यही कहता था :

'कैसी बदनसीबी है! हे भगवान, कितनी बड़ी बदनसीबी है!'

रस्कोलनिकोव धक्का दे कर जहाँ तक हो सका, आगे पहुँच गया। आखिर उस चीज को देखने में कामयाब रहा, जिसकी वजह से यह सारा हंगामा मचा हुआ था और जिसमें लोग इतनी दिलचस्पी ले रहे थे। एक आदमी जमीन पर पड़ा था क्योंकि वह गाड़ी के नीचे आ गया था। जाहिर था कि बेहोश था और खून में लथपथ था। उसने कपड़े बहुत ही बुरी तरह पहन रखे थे, लेकिन वे कभी सभ्य लोगों के कपड़े रहे होंगे और चेहरे से खून बह रहा था; चेहरा बुरी तरह कुचल गया और विकृत हो गया था। साफ जाहिर था कि उसे बुरी तरह चोट आई थी।

'दया करना भगवान!' कोचवान गिड़गिड़ा कर कह रहा था, 'मैं और क्या कर सकता था! अगर मैं गाड़ी तेज चला रहा होता या पुकार-पुकार कर मैंने उससे हटने को न कहा होता, तब भी कोई बात थी, लेकिन मैं तो बड़ी शांति से जा रहा था और मुझे कोई जल्दी नहीं थी। सभी ने देखा होगा : जैसे सब लोग जा रहे थे, वैसे ही मैं भी जा रहा था। मगर यह तो सभी जानते हैं कि शराबी सीधा चल नहीं सकता... मैंने इसे सड़क पार करते देखा, लड़खड़ाता हुआ चल रहा था, बिलकुल गिरा जा रहा था। मैंने आवाज दी, फिर दूसरी बार चिल्लाया, फिर तीसरी बार। फिर मैंने घोड़ों की रास खींची, लेकिन वह तो सीधा उनके पैरों के नीचे ही गिरा आ उसने या तो जान-बूझ कर ऐसा किया या फिर बहुत ही नशे में था ...घोड़े अभी जवान हैं और जरा में भड़क उठते हैं... वे चौंके, वह चीखा... फिर इस पर घोड़े और भी भड़के। बस यही है सारी कहानी!'

'एकदम यही बात थी,' भीड़ में से एक आवाज ने उसकी बात की ताईद की।

'चिल्लाया तो था, यह बात सच है। तीन बार चिल्लाया था,' एक और आवाज ने ऐलान किया।

'तीन बार चिल्लाया, हम सबने सुना,' एक तीसरा आदमी और भी जोर से बोला।

लेकिन कोचवान बहुत परेशान और डरा हुआ नहीं था। साफ दिखाई दे रहा था कि गाड़ी किसी रईस की थी, जो कहीं उसकी राह देख रहा होगा। जाहिर है पुलिस भी उसकी इस व्यवस्था में खलल डालना नहीं चाहती थी। उसे बस घायल आदमी को थाने और फिर अस्पताल ले जाना था। किसी को उसका नाम तक नहीं मालूम था।

इसी बीच रस्कोलनिकोव भीड़ में घुस चुका था और झुक कर उस आदमी को पास से देख रहा था। लालटेन की रोशनी अचानक उस अभागे आदमी के चेहरे पर पड़ी। रस्कोलनिकोव ने उसे पहचान लिया।

'मैं इसे जानता हूँ! मैं इसे जानता हूँ!' वह धक्का दे कर आगे आते हुए चीखा। 'सरकारी क्लर्क था, नौकरी से रिटायर हो चुका है, मार्मेलादोव नाम है। यहाँ पास ही कोजेल के मकान में रहता है... जल्दी से डॉक्टर बुलाओ! पैसे मैं दूँगा, लो, यह देखो।' यह कह कर उसने पुलिसवाले को जेब से पैसे निकाल कर दिखाए। वह बेहद उत्तेजित था।

पुलिस को खुशी थी कि चलो, मालूम तो हो गया कि वह आदमी है कौन। रस्कोलनिकोव ने अपना नाम-पता बताया, और पुलिसवालों से बेहोश मार्मेलादोव को फौरन उसके घर पहुँचाने के लिए ऐसा बेचैन हो कर कहने लगा जैसे उसका अपना बाप घायल हुआ हो।

'यहीं है, तीन घर छोड़ कर,' उसने बड़ी उत्तेजना में कहा, 'घर एक बहुत अमीर जर्मन का है, कोजेल का। यकीनन, शराब पिए हुए घर जा रहा था। मैं इसे जानता हूँ, बेहद शराब पीता है। परिवार के साथ रहता है, बीवी है, बच्चे हैं, उसकी एक बेटी भी है। अस्पताल ले जाने में तो बड़ा वक्त लगेगा, पर उस मकान में कोई डॉक्टर जरूर होगा। पैसे मैं दूँगा! घर पर कोई देखभाल करनेवाला तो होगा। फौरन मरहम-पट्टी हो जाएगी। अस्पताल पहुँचने तक तो यह मर ही जाएगा।'

सबकी नजरें बचा कर उसने पुलिसवाले के हाथ में चुपके से कुछ थमा दिया। लेकिन इसमें कोई बेईमानी की या गैर-कानूनी बात नहीं थी। यूँ भी, यहाँ नजदीक ही मरहम-पट्टी हो सकती थी। उन लोगों ने घायल आदमी को उठा लिया; बहुत से लोग हाथ लगाने को खुद आगे आए। कोजेल का मकान कोई तीस गज की दूरी पर था। रस्कोलनिकोव बड़ी सावधानी से मार्मेलादोव का सर पकड़े पीछे-पीछे चल रहा था और रास्ता बताता जाता था।

'इधर-इधर से! सीढ़ियों पर सर ऊपर की तरफ करके ले जाना चाहिए। घूम जाओ! पैसे मैं दूँगा, किसी को कोई शिकायत नहीं रहेगी,' वह बोलता ही रहा।

कतेरीना इवानोव्ना ने सीने पर हाथ बाँधे, अपने आपसे बातें करते और खाँसते हुए उस छोटे से कमरे की खिड़की और आतिशदान के बीच टहलना अभी शुरू ही किया था। उसे जब भी थोड़ा-सा वक्त मिलता था, वह यही करती थी। इधर कुछ समय से वह अपनी बड़ी बेटी पोलेंका से पहले से ज्यादा बातें करने लगी थी, जो अभी दस साल की बच्ची थी। हालाँकि बहुत-सी बातें ऐसी थीं जो उसकी समझ में नहीं आती थी, लेकिन वह इतना अच्छी तरह समझती थी कि उसकी माँ को उसकी जरूरत है। इसलिए वह अपनी बड़ी-बड़ी सयानी आँखों से हमेशा अपनी माँ को देखती रहती थी और यह जताने की पूरी कोशिश करती थी कि वह सब कुछ समझ रही है। इस वक्त पोलेंका अपने छोटे भाई के कपड़े उतार रही थी। जिसकी तबीयत दिन भर बिगड़ी हुई रही थी और वह अभी सोने जा रहा था। लड़का इसी का इंतजार कर रहा था कि उसकी बहन आ कर उसकी कमीज उतारे, जो रात को धोई जानेवाली थी। वह हिले-डुले बिना कुर्सी पर सीधा तना हुआ बैठा था। उसका चेहरा गंभीर था और वह एक शब्द भी नहीं बोल रहा था। उसने अपनी टाँगें सामने की तरफ फैला रखी थीं - एड़ियाँ जुड़ी हुई और अँगूठे एक-दूसरे से दूर। माँ उसकी बहन से जो कुछ कह रही थी, उसे वह होठ बाहर की ओर निकाले हुए और आँखें फाड़े हुए, चुपचाप सुन रहा था, जिस तरह सभी अच्छे बच्चों को सोने से पहले कपड़े उतरवाते वक्त बैठना पड़ता है। एक छोटी बच्ची, जो उससे भी छोटी थी, चीथड़ों में लिपटी और ओट के पास खड़ी अपनी बारी आने की राह देख रही थी। सीढ़ियों की ओर जानेवाला दरवाजा खुला था ताकि उन्हें तंबाकू के धुएँ के उन बादलों से कुछ राहत मिल सके, जो दूसरे कमरों से तैर कर उनके कमरे की ओर आते थे और जिनकी वजह से तपेदिक की मारी औरत को खाँसी के भयानक दौरे पड़ने लगते थे। लगता था पिछले एक हफ्ते के दौरान कतेरीना इवानोव्ना और भी दुबली हो गई थी। उसके गालों की तमतमाहट में पहले से भी ज्यादा चमक पैदा हो गई थी।

'तुम्हें यकीन नहीं होगा पोलेंका, तुम सोच भी नहीं सकती हो,' वह कमरे में टहल-टहल कर कह रही थी, 'कि तुम्हारे नाना के घर हम लोग कितने ऐश में, कितने खुश रहते थे और किस तरह इस शराबी ने मुझे तबाह कर दिया है और तुम सबको तबाह करेगा! मेरे पापा एक सिविल कर्नल थे, गवर्नर से एक ही ओहदा नीचे। बस एक सीढ़ी और चढ़ते तो गवर्नर हो जाते। इसलिए जो भी उनसे मिलने आता, यही कहता : 'हम तो, इवान मिखाइलोविच, आप ही को अपना गवर्नर समझते हैं!' मैं जब...' वह जोर से खाँसी, 'आह, लानत है इस जिंदगी पर,' वह खखारते हुए, हाथ से अपना सीना दबाते हुए चीखी, 'मैं जब... जब आखिरी नाच में... मार्शल साहब के यहाँ... जब राजकुमारी बेज्जेमेलनी ने मुझे देखा - जब तुम्हारे पापा के साथ मेरी शादी हुई थी पोलेंका, तब उन्होंने ही हमें आशीर्वाद दिया था - तो उन्होंने फौरन पूछा था : 'यह सुंदर लड़की वही है न जिसने सत्र की पढ़ाई के खत्म होने के वक्त शालवाला नाच दिखाया था' ('वह जहाँ फट गई है उसे ठीक कर लेना, जैसे मैंने बताया था वैसे ही सुई ले कर रफू कर लेना, नहीं तो कल वह उस छेद को और बड़ा कर देगा,' उसने खाँस-खाँस कर बड़ी मुश्किल से कहा।) 'राजकुमार श्चेगोल्सकोय, जो बादशाह के रनिवास में बहुत ऊँचे पद पर थे, उन्हीं दिनों पीतर्सबर्ग से आए थे... वह मेरे साथ माजूर्का नाचे और अगले ही दिन वह मुझसे शादी करने का पैगाम देना चाहते थे, लेकिन उन्हें प्रशंसा भरी भाषा में धन्यवाद दिया और बताया कि मैं अपना दिल बहुत पहले किसी और को दे चुकी हूँ। वह 'कोई और' तुम्हारे पापा ही थे, पोल्या; तुम्हारे नाना बेहद नाराज हुए थे... पानी गर्म हुआ अपनी कमीज और मोजे मुझे देना! लीदा,' उसने सबसे छोटी बच्ची से कहा... 'आज रात तुम बिना कुर्ती के काम चला लो... और साथ ही अपने मोजे भी रख देना... दोनों चीजें एक साथ धो दूँगी... वह आवारा शराबी भला अटक कहाँ गया, कमीज पहन-पहन कर इतनी मैली कर ली है कि डस्टर जैसा लगने लगी है। फाड़ कर एकदम चिथड़े-चिथड़े कर डाला है! मैं सब एक साथ धो डालूँगी, ताकि लगातार दो रात काम न करना पड़े। हे भगवान!' उसे अचानक खाँसी आने लगी। 'फिर! यह क्या हुआ' वह गलियारे में भीड़ को और कुछ लोगों को कोई बोझ उठाए अपने कमरे की तरफ आते देख कर चीखी। 'क्या है भला, क्या ला रहे हैं ये लोग? दया करना भगवान!'

'कहाँ लिटाएँ?' जब बेहोश और खून से लथपथ मार्मेलादोव को अंदर लाया गया तो पुलिसवाले ने चारों ओर नजर डाल कर पूछा।

'सोफे पर! सीधे ले जा कर सोफे पर लिटाओ, इधर सर करके,' रस्कोलनिकोव ने इशारा करके बताया।

'सड़क पर गाड़ी से कुचल गया! शराब पिए हुए था!' ड्योढ़ी में से कोई चिल्लाया।

कतेरीना इवानोव्ना सन्न और हाँफती हुई खड़ी रही। उसका रंग सफेद पड़ गया था और दम बुरी तरह फूल रहा था। बच्चे सहमे हुए थे। नन्ही लीदा चीख पड़ी और भाग कर पोलेंका से जा कर लिपट गई। वह थर-थर काँप रही थी।

मार्मेलादोव को लिटाने के बाद रस्कोलनिकोव लपक कर कतेरीना इवानोव्ना के पास पहुँचा।

'भगवान के लिए शांत रहो, डरो मत,' उसने जल्दी-जल्दी बोलते हुए कहा, 'सड़क पार कर रहा था, गाड़ी के नीचे आ गया। घबराओ मत, अभी होश में आ जाएगा। इन लोगों से यहाँ लाने को मैंने ही कहा था... मैं यहाँ पहले आ चुका हूँ, याद है न! अभी होश में आ जाएगा... पैसे मैं दूँगा!'

'बस यही होने को रह गया था,' कतेरीना इवानोव्ना निराशा में डूबी हुई, चीख कर अपने पति की ओर भागी।

रस्कोलनिकोव के ध्यान में फौरन यह बात आई कि वह उन औरतों में से नहीं थी जो बहुत जल्द बेहोश हो जाती हैं। उसने अपने अभागे पति के सर के नीचे तकिया रख दिया जिसका किसी को ध्यान भी नहीं आया था; उसके कपड़े उतारने लगी और अच्छी तरह देखभाल करने लगी। अपनी सुध-बुध भूल कर भी उसने सब्र का दामन नहीं छोड़ा। अपने काँपते होठों को दाँतों से दबा कर उसने अपनी उन चीखों को अंदर ही दबाए रखा, जो किसी भी पल उसके सीने से फूट निकलने को बेकरार थीं।

इस बीच रस्कोलनिकोव ने किसी को राजी करके डॉक्टर की तलाश में भेजा। पता चला कि एक मकान छोड़ कर पास ही एक डॉक्टर रहता था।

'मैंने डॉक्टर को बुलवाया है,' वह कतेरीना इवानोव्ना को तसल्ली देता रहा, 'घबराओ नहीं, पैसे मैं दूँगा। थोड़ा-सा पानी होगा ...कोई रूमाल या तौलिया भी दो, जो भी मिल जाए। जल्दी से... चोट लगी है, लेकिन मरा नहीं है। मेरी बात मानो... देखें, डॉक्टर क्या कहता है!'

कतेरीना इवानोव्ना भाग कर खिड़की के पास गई। कोने में एक टूटी कुर्सी पर मिट्टी की बड़ी-सी नाँद में पानी भरा रखा था; इसी पानी से वह रात को अपने पति और बच्चों के कपड़े धोती। कतेरीना इवानोव्ना हफ्ते में कम से कम दो बार रात को कपड़े धोती थी। परिवार की हालत ऐसी हो गई थी कि किसी के पास बदलने को दूसरा जोड़ा नहीं था, और कतेरीना इवानोव्ना गंदगी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। घर में उससे गंदगी नहीं देखी जाती थी। रात को जब सब लोग सो जाते थे, तब अपने बूते से ज्यादा काम करना उसे मंजूर था, ताकि कपड़े धो कर रात को फैला दे तो सबेरे तक वे सूख जाएँ। रस्कोलनिकोव के पानी माँगने पर उसने नाँद तो उठा ली लेकिन उसके बोझ से गिरते-गिरते बची। रस्कोलनिकोव इसी बीच कहीं से तौलिया ढूँढ़ लाया था; उसे भिगो कर वह मार्मेलादोव के चेहरे से खून पोंछने लगा। कतेरीना इवानोव्ना हाथों से अपना सीना दबाए पास ही खड़ी रही। उसे साँस लेने में कष्ट हो रहा था और उसकी हालत खुद ही ऐसी थी कि कोई उसकी देखभाल करे। रस्कोलनिकोव को महसूस होने लगा था कि घायल को यहाँ ला कर उसने शायद गलती की है। पुलिसवाला भी कुछ संकोच में डूबा हुआ, पास ही खड़ा था।

'पोल्या,' कतेरीना इवानोव्ना ने पुकारा, 'जल्दी से सोन्या के पास जाओ। अगर वह घर पर न हो तो वहाँ किसी से कह आना कि उसका बाप गाड़ी से कुचल गया है, जैसे ही आए सीधी यहाँ आए... भाग कर जाना, पोलेंका! लो, यह शाल लपेट लो।'

'जितना तेज हो सके, भाग कर जाना!' कुर्सी पर बैठा हुआ छोटा लड़का अचानक चीखा। इसके बाद वह फिर वैसे ही गूँगों की तरह, गोल-गोल आँखें खोले, पत्थर की मूरत की तरह बैठा रहा। टाँगें सामने फैलाए, एड़ियाँ जोड़े हुए अँगूठे एक-दूसरे से दूर।

इस बीच कमरे में इतने लोग भर गए थे कि कहीं तिल धरने की जगह नहीं थी। एक को छोड़ कर बाकी सब पुलिसवाले चले गए थे; थोड़ी देर वहीं रुक कर वह सीढ़ियों पर से आते लोगों को बाहर भगाने की कोशिश कर रहा था। मादाम लिप्पेवेख्सेल की उस चाल के सभी किराएदार अपने-अपने कमरों से आ कर वहीं जमा हो गए थे। शुरू में तो वे दरवाजे के पास दबे-सिकुड़े खड़े रहे, लेकिन बाद में कमरे के अंदर आ गए। कतेरीना इवानोव्ना का गुस्सा भड़क उठा।

'कम से कम चैन से मरने तो दो,' वह भीड़ पर चीखी, 'यह भी तुम लोगों को तमाशा है क्या चले आए सिगरेट पीते हुए!' वह फिर खाँसने लगी। 'हैट भी लगा कर आते... एक तो हैट लगाए भी है! ...चलो फूटो भागो यहाँ से! कम से कम मरनेवाले का तो लिहाज करो!'

खाँसी के मारे उसका दम घुटा जा रहा था। पर उसकी डाँट-फटकार का लोगों पर असर पड़ा। साफ जाहिर था कि वे कतेरीना इवानोव्ना से थोड़ा डरते थे। सारे किराएदार एक-एक करके फिर दरवाजे के पास दुबक गए। वे लोग मन ही मन एक अजीब संतोष का अनुभव कर रहे थे। यह भावना किसी आकस्मिक दुर्घटना के समय उस दुर्घटना के शिकार व्यक्ति के प्रियजन तक में देखी जाती है और भावना से कोई भी मनुष्य मुक्त नहीं रहता, चाहे उसकी हमदर्दी और वेदना का रंग कितना ही गहरा हो।

लेकिन बाहर से अस्पताल की चर्चा करती कुछ आवाजें सुनाई पड़ीं। कुछ लोग कह रहे थे कि यहाँ यह सब बखेड़ा करने की कोई जरूरत नहीं थी।

'यह कहो कि मरने की जरूरत नहीं थी!' कतेरीना इवानोव्ना चीख कर उन लोगों पर अपना गुस्सा उतारने के लिए दरवाजे की ओर लपकी। लेकिन दरवाजे पर ही उसकी मुठभेड़ मादाम लिप्पेवेख्सेल से हो गई। उसे उसी समय दुर्घटना की खबर मिली थी और खुद सारी गड़बड़ ठीक कराने के लिए वह भागी-भागी वहाँ आई थी। वह एक झगड़ालू और बेलगाम जर्मन औरत थी।

'हे भगवान!' वह अपने हाथों को आपस में कस कर जोर से चीखी, 'तुम्हारा मरद सराब पिएला हुआ, घोड़ा ने रौंदा! अभी अस्पताल पहुँचाने का उसे ए मेरा घर होएला है!'

'अमालिया लुदविगोव्ना, मैं तुमसे कहे देती हूँ कि जरा सोच-समझ कर बातें करो,' कतेरीना इवानोव्ना ने अकड़ कर कहना शुरू किया (वह मकान-मालकिन से हमेशा अकड़ कर ही बातें करती थी ताकि वह 'अपनी हैसियत न भूले' और इस समय भी वह अपने आपको इस संतोष से वंचित नहीं रखना चाहती थी)। 'अमालिया लुदविगोव्ना...'

'मैं पहले भी एक बार बोला तुमको कि उनको अमालिया लुदविगोव्ना बोलने का हिम्मत नहीं करने का। अमारा नाम अमालिया इवानोव्ना, मालूम!'

'तुम अमालिया इवानोव्ना नहीं, अमालिया लुदविगोव्ना हो, और मैं मिस्टर लेबेजियातनिकोव जैसे लोगों में नहीं, जो तुम्हारे तलवे चाटते हैं, तुम्हारी चापलूसी करते हैं, और इस वक्त भी दरवाजे के पीछे खड़े हँस रहे हैं' (सचमुच दरवाजे के पीछे से किसी के हँसने और जोर से यह कहने की आवाज आई थी कि 'दोनों में फिर ठन गई'), 'इसलिए मैं तुम्हें हमेशा अमालिया लुदविगोव्ना ही कहूँगी, हालाँकि मेरी समझ में यह नहीं आता कि यह नाम तुम्हें क्यों इतना बुरा लगता है। तुमको खुद दिखाई नहीं देता कि सेम्योन जखारोविच का क्या हाल है वे मर रहे हैं। मैं हाथ जोड़ कर कहती हूँ कि दरवाजा फौरन बंद करो और किसी को अंदर न आने दो। कम से कम चैन से मरने तो दो! वरना मैं कहे देती हूँ कि गवर्नर-जनरल साहब को कल ही तुम्हारी हरकतों की खबर दे दी जाएगी। राजकुमार जी मुझे बचपन से जानते हैं; उन्हें सेम्योन जखारोविच की भी अच्छी तरह याद है और वह कई बार उनके साथ उपकार कर चुके हैं। सभी जानते हैं कि सेम्योन जखारोविच के बहुत से दोस्त और धनी-मानी लोग ऐसे हैं जिनसे उन्होंने, अपनी इस कमबख्त कमजोरी को समझते हुए, अपनी मान-मर्यादा और अपने अभिमान की वजह से खुद ही मिलना-जुलना छोड़ दिया था, लेकिन अब' (उसने रस्कोलनिकोव की तरफ इशारा किया) 'एक परोपकारी नौजवान हमारी मदद को आया है, जो पैसेवाला है, जिसकी दूर-दूर तक पहुँच है और जिसे सेम्योन जखारोविच बचपन से जानते हैं। तुम यकीन जानो, अमालिया लुदविगोव्ना...'

ये सारी बातें उसने बेहद तेजी से कहीं और जैसे-जैसे वह बोलती गई, उसकी रफ्तार भी बढ़ती गई। लेकिन अचानक खाँसी उठ जाने पर कतेरीना इवानोव्ना का भाषण खत्म हो गया। उसी पल मरनेवाले को होश आ गया और वह जोर से कराहा। वह भाग कर पास गई। घायल ने आँखें खोलीं और किसी को पहचाने बिना या कुछ समझे बिना रस्कोलनिकोव को घूरता रहा, जो उसके ऊपर झुका खड़ा था। वह गहरी-गहरी धीमी-धीमी साँसें ले रहा था, जिससे उसे कष्ट हो रहा था। मुँह के कोनों से खून रिस रहा था और माथे पर पसीने की बूँदें छलक आई थीं। रस्कोलनिकोव को न पहचान कर वह बेचैनी से चारों ओर देखने लगा। कतेरीना इवानोव्ना उदास मगर कठोर चेहरा लिए उसे देखती रही। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

'हे भगवान! सारा सीना कुचल कर धँस गया है! देखो तो, खून कितना बह रहा है!' उसने घोर निराशा में डूबे हुए कहा। 'कपड़े उतार दें। थोड़ा-सा उधर घूमो सेम्योन जखारोविच, घूम पाओगे?' उसने रो कर कहा।

मार्मेलादोव ने उसे पहचान लिया।

'पादरी,' उसने भर्रायी हुई आवाज में कहा।

कतेरीना इवानोव्ना चल कर खिड़की के पास गई और चौखट से सर टिका कर निराश स्वर में बोली :

'ओह, लानत है इन जिंदगी पर!'

'पादरी,' मरनेवाले ने एक पल चुप रहने के बाद फिर कहा।

'लोग बुलाने गए हैं!' कतेरीना इवानोव्ना ने ऊँचे स्वर में चीख कर कहा। उसकी चीख सुन कर वह चुप हो गया। उदास और सहमी हुई आँखों से वह उसे तलाश करता रहा और वह वापस आ कर सिरहाने खड़ी हो गई। लग रहा था उसे कुछ चैन आ गया है। लेकिन यह चैन ज्यादा देर नहीं टिका। जल्द ही उसकी नजरें अपनी लाड़ली बेटी लीदा पर टिक गई। वह कोने में खड़ी ऐसे काँप रही थी, गोया उसे दौरा पड़ा हो और अपनी आश्चर्य भरी भोली आँखों से उसे घूरे जा रही थी।

'आ-ह।' उसने बेचैन हो कर बेटी की तरफ इशारा किया। वह कुछ कहना चाहता था।

'अब क्या है भला,' कतेरीना इवानोव्ना चीखी।

'नंगे-पाँव, नंगे-पाँव!' वहशी नजरों से बच्ची के नंगे पाँवों की ओर इशारा करके वह बुदबुदाया।

'चुप रहो!' कतेरीना इवानोव्ना चिढ़ कर जोर से बोली, 'जानते तो हो न कि वह नंगे-पाँव क्यों है!'

'शुक्र है, डॉक्टर तो आया,' रस्कोलनिकोव ने राहत की साँस ले कर कहा।

डॉक्टर चारों ओर संदेहभरी नजरों से देखता हुआ अंदर आया। वह छोटे कद का एक साफ-सुथरा, बूढ़ा जर्मन था। उसने घायल के पास जा कर उसकी नब्ज देखी, सावधानी से उसके सर को टटोला और कतेरीना इवानोव्ना की मदद से उसकी खून में सनी कमीज के बटन खोल कर घायल का सीना खोला। सीना बुरी तरह जख्मी था, काफी कुचल गया था और दाहिनी ओर की कई पसलियाँ टूट गई थीं। बाईं ओर दिल के ठीक ऊपर एक बड़ा-सा; पीलापन लिए हुए काले रंग का डरावना निशान था - घोड़े की टाप की ठोकर का निशान। डॉक्टर ने भौहें सिकोड़ कर देखा। पुलिसवाले ने बताया कि वह पहिए में फँस गया था और सड़क पर कोई तीस गज तक उसके साथ घिसटता चला गया था।

'कमाल है कि फिर भी होश आ गया,' डॉक्टर ने धीरे से रस्कोलनिकोव के कान में कहा।

'आपका क्या खयाल है?' उसने पूछा।

'मर जाएगा।'

'लग रहा है, कोई उम्मीद नहीं?'

'जरा भी नहीं! आखिरी साँसें हैं... सर में भी बुरी तरह चोट आई है... हूँ... अगर चाहो तो थोड़ा-सा खून निकाल दूँ, लेकिन... फायदा कोई नहीं होगा। अगले पाँच-दस मिनट में ही टपक जाएगा।'

'खून कुछ निकाल ही दीजिए।'

'निकाल सकता हूँ... लेकिन मैं पहले ही बताए देता हूँ कि बेकार होगा।'

उसी पल कुछ और कदमों की आहट सुनाई पड़ी। ड्योढ़ी में खड़ी भीड़ ने रास्ता दिया और एक नाटा-सा, सफेद बालोंवाला बूढ़ा पादरी अंतिम संस्कार का सारा सामान लिए हुए दरवाजे पर आया। दुर्घटना जब हुई थी, तभी एक पुलिसवाला उसे बुलाने चला गया था। डॉक्टर ने पादरी के लिए जगह खाली कर दी और खुद उसकी जगह चला गया; दोनों ने एक-दूसरे को कनखियों से देखा। रस्कोलनिकोव ने डॉक्टर से कुछ देर और रुके रहने की विनती की। डॉक्टर कंधे बिचका कर ठहर गया।

सभी लोग पीछे हट गए। मरने से पहले पाप-स्वीकार का संस्कार जल्द ही पूरा हो गया। मरनेवाले की शायद कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह उखड़ी आवाज में कुछ टूटे-फूटे शब्द बोल रहा था, जो ठीक से सुनाई नहीं देते थे। कतेरीना इवानोव्ना ने लीदा का हाथ पकड़ा, छोटे लड़के को कुर्सी पर से उठाया, कोने में आतिशदान के पास घुटनों के बल बैठ गई और बच्चों को सामने घुटनों के बल बिठाया। छोटी बच्ची काँप रही थी। लेकिन लड़का नंगे घुटनों के बल बैठा नियमित रूप से थोड़ी-थोड़ी देर बाद हाथ उठा कर, नपे-तुले ढंग से सीने पर उँगलियों से सलीब का निशान बनाता था और झुक कर जमीन पर माथा टेक देता था। लगता था उसे इसमें कोई विशेष संतोष मिल रहा हो। कतेरीना इवानोव्ना दाँतों में होठ दबाए आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी। वह प्रार्थना भी करती जाती थी और बीच-बीच में लड़के की कमीज खींच कर सीधी भी करती जाती थी। प्रार्थना करना बंद किए बिना और अपनी जगह से उठे बिना अलमारी पर से एक रूमाल उठा कर उसने बच्ची के कंधों पर डाल दिया था। इसी जिज्ञासावश किसी ने अंदर के कमरों की तरफवाला दरवाजा खोला। ड्योढ़ी में सीढ़ियों पर सभी कमरों से तमाशा देखने के लिए बाहर निकल आए लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी लेकिन कोई चौखट से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर रहा था। इस पूरे दृश्य पर मोमबत्ती के एक छोटे से टुकड़े की ही रोशनी पड़ रही थी।

उसी समय पोलेंका, जो अपनी बहन को बुलाने चली गई थी, भीड़ को चीरती हुई दरवाजे पर आई। वह तेज भाग कर आने की वजह से हाँफ रही थी। उसने अपना रूमाल खोला, माँ को ढूँढ़ कर उसके पास गई और बोली : 'अभी आ रही है, रास्ते में मिली थी।' माँ ने अपने पास उसे भी घुटनों के बल बिठा लिया।

एक नौजवान लड़की सहमी-सहमी, चुपचाप भीड़ के बीच से रास्ता बनाती आगे आई। तंगी, चीथड़ों, मौत और निराशा के उस माहौल के बीच उस कमरे में उसका आना कुछ अजीब-सा लग रहा था। वह भी फटे-पुराने कपड़े ही पहने थी। सारे कपड़े एकदम सस्ती किस्म के थे लेकिन उन्हें जिस तरह सजा कर पहना गया था, उस पर बाजारू सज-सज की एक खास छाप थी, और उनके शर्मनाक मकसद के बारे में किसी तरह का शक नहीं रह जाता था। सोन्या दरवाजे पर आ कर ठिठकी और घबराई हुई, हर चीज से बेखबर, चारों ओर देखने लगी। चार बार बिकने के बाद अपने पास तक पहुँचनेवाली भड़कीली पोशाक को भी वह भूल गई थी। उस पोशाक का जमीन पर झाड़ू लगाता हुआ, पीछेवाला लंबा हिस्सा, उसका कलफ लगा हुआ घेरदार साया, जिससे पूरा दरवाजा भर गया था, उसके हलके रंग के जूते, और वह छतरी, जिसे वह अपने साथ लाई थी, जिसकी रात को कोई जरूरत नहीं थी, और तिनके की वही बेडौल, गोल टोपी जिसमें गहरे नारंगी रंग का एक पंख लगा हुआ था - सब कुछ यहाँ एकदम बेतुका लग रहा था। बड़े बाँकपन से एक ओर को झुकी हुई उस हैट के नीचे एक पीला-सा और सहमा हुआ चेहरा, खुले हुए होंठ और दहशत से फटी आँखें। सोन्या अठारह साल की दुबली-पतली, छोटी-सी लड़की थी। सुनहरे बाल, सलोनी शक्ल और बड़ी-बड़ी नीली आँखें। उसने बड़े गौर से बिस्तर की ओर और फिर पादरी की ओर देखा। वह भी भाग कर आने की वजह से हाँफ रही थी। आखिरकार उसने कुछ कानाफूसी सुनी; शायद भीड़ में लोग कुछ कह रहे थे। उसने नीचे देखा और कदम बढ़ा कर कमरे में चली गई, लेकिन दरवाजे से बहुत आगे नहीं बढ़ी।

संस्कार पूरा हो चुका था। कतेरीना इवानोव्ना फिर अपने पति के पास गई। पादरी पीछे हटा और कतेरीना इवानोव्ना से उपदेश और सांत्वना के कुछ शब्द कहने के लिए मुड़ा।

'इनका क्या करूँ मैं?' वह बच्चों की ओर इशारा करके चिढ़ कर बीच में ही कठोर स्वर में बोली।

'ईश्वर बड़ा दयालु है; उस परमपिता का आसरा लो,' पादरी ने कहना शुरू किया।

'आह, होगा दयालु लेकिन हमारे लिए नहीं है।'

'ऐसा कहना पाप है मादाम, महापाप' पादरी ने सर हिलाते हुए अपना मत व्यक्त किया।

'और यह पाप नहीं है' कतेरीना इवानोव्ना ने मरनेवाले की ओर इशारा करके कहा।

'जिन लोगों से अनजाने में यह दुर्घटना हुई है वे शायद तुम्हें हर्जाना देने को राजी हो जाएँगे, कम से कम इसकी कमाई का सहारा न रह जाने का हर्जाना तो देंगे ही।'

'मेरी बात आप समझे नहीं!' कतेरीना इवानोव्ना गुस्से से हाथ हिलाते हुए जोर से चीखी। 'मुझे किस बात का हर्जाना देंगे? शराब इसने पी रखी थी और खुद घोड़ों के नीचे आ गया! कहाँ की कमाई और कैसी कमाई हमें इसने मुसीबतों के अलावा कभी और कुछ तो दिया नहीं। सब कुछ पी गया यह शराबी। पीने की खातिर हमारी चीजें चुरा-चुरा कर हमें कंगाल कर गया। शराब के पीछे इनकी भी जिंदगी बर्बाद कर दी और मेरी भी! भगवान का शुक्र है कि अब मर रहा है! एक खानेवाला तो कम होगा!'

'मरनेवाले को क्षमा कर देना चाहिए मादाम। ऐसा कहना पाप है मादाम, मन में लाना भी पाप है।'

कतेरीना इवानोव्ना मरनेवाले में व्यस्त रही। कभी उसे पानी पिलाती, कभी उसके माथे से पसीना और खून पोंछती और कभी उसका तकिया सीधा करती। बीच-बीच में कभी-कभार उसे पादरी से कुछ कहने के लिए एक पल का समय मिल जाता। अब वह बिफर कर पागलों की तरह उस पर बरस पड़ी।

'ये सब कोरी बातें हैं फादर! क्षमा! अगर गाड़ी से कुचल न जाता तो आज यह शराब के नशे में धुत आता; उसकी अकेली कमीज मैली होती और फट कर तार-तार हो चुकी होती। वह तो आ कर काठ के कुंदे की तरह पड़ जाता और मैं भोर तक बैठी फींचती रहती, इसके चीथड़े धोती, बच्चों के चीथड़े धोती, उन्हें सूखने के लिए खिड़की के बाहर लटका देती और फिर सूरज निकलते ही गूदड़ गाँठने बैठ जाती। मेरी हर रात इसी तरह कटती है! ...क्षमा की बातें करने से क्या फायदा फादर, क्षमा तो मैं यो भी कर चुकी हूँ!'

भयानक, सूखी खाँसी आने की वजह से उसकी बात अधूरी रह गई। उसने अपना रूमाल होठों से लगा कर पादरी को दिखाया और दूसरे हाथ से अपना दुखता हुआ सीना दबाए रही। रूमाल खून में सना हुआ था...

पादरी सर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा।

मार्मेलादोव आखिरी पल की तकलीफों से छटपटा रहा था। वह अपनी नजरें कतेरीना इवानोव्ना के चेहरे पर जमाए हुए था जो फिर उसके ऊपर झुकी खड़ी थी। वह बराबर उससे कुछ कहने की कोशिश करता आ रहा था। अब मुश्किल से वह अपनी जबान हिलाने लगा और अस्फुट स्वर में कुछ शब्द कहने लगा, लेकिन कतेरीना इवानोव्ना ने यह समझ कर कि वह उससे साफ कर देने को कह रहा है, झिड़क कर कहा, 'चुप रहो! कोई जरूरत नहीं है! मैं जानती हूँ तुम क्या कहना चाहते हो!'

बीमार चुप हो गया लेकिन उसी पल उसकी भटकती हुई आँखें दरवाजे की ओर घूम गईं और उसने सोन्या को देखा।

इससे पहले तक उसे उसने नहीं देखा था क्योंकि वह एक कोने में आड़ में खड़ी थी।

'वह कौन है? कौन है वहाँ?' अचानक उसने बेचैन हो कर दरवाजे की ओर अपनी भयभीत आँखें घुमाईं, जहाँ उसकी बेटी खड़ी थी। भारी उखड़ी-उखड़ी आवाज में कुछ कहा और उठ कर बैठने की कोशिश की।

'लेटे रहो! ले...टे रहो!' केतरीना इवानोव्ना जोर से चिल्लाई। पर वह जोर लगा कर किसी तरह कुहनी के बल थोड़ा-सा उठने में सफल हो गया। कुछ देर तक वह पागलों की तरह नजरें गड़ाए अपनी बेटी को देखता, गोया उसे पहचान न पा रहा हो। उसने उसे ऐसी पोशाक पहने पहले कभी नहीं देखा था। अचानक उसने अपनी बेटी को पहचाना। इस भड़कीली सज-धज और इस अपमानित स्थिति में वह एकदम टूटी हुई और शर्मिंदा-सी लग रही थी, और बड़े दबे-दबे ढंग से मरते हुए बाप से विदाई के दो शब्द कहने के लिए अपनी बारी की राह देख रही थी। मरनेवाले के चेहरे पर गहरी तकलीफ के निशान साफ दिखाई दे रहे थे।

'सोन्या! मेरी बेटी! मुझे माफ कर देना!' वह जोर से बोला और अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन वह अपना संतुलन खो बैठा और सोफे से मुँह के बल फर्श पर लुढ़क गया। लोग उसे उठाने के लिए लपके, उसे उठा कर फिर सोफे पर लिटाया, लेकिन वह मर रहा था। सोन्या के मुँह से जरा-सी चीख निकल गई। वह उसकी ओर लपकी, उसे गले से लगा लिया, और बड़ी देर तक बिना हिले-डुले उसे गले से लगाए रही। उसने उसकी बाँहों में ही दम तोड़ा।

'जो उसका नसीब था, उसे मिल गया!' कतेरीना इवानोव्ना अपने पति की लाश को देख कर चीखी। 'लेकिन अब क्या किया जाए! इनका कफन-दफन कैसे करूँ? कल इन सबको क्या खिलाऊँगी?'

रस्कोलनिकोव कतेरीना इवानोव्ना के पास गया।

'कतेरीना इवानोव्ना,' उसने कहना शुरू किया, 'आपके शौहर ने पिछले हफ्ते मुझे अपनी पूरी जिंदगी और अपने हालात के बारे में बताया था... यकीन मानिए, आपकी चर्चा उसने जिस तरह की थी उससे साफ लगता था कि उसके दिल में आपके लिए बेहद गहरी इज्जत थी। उस शाम के बाद, जब मुझे पता लगा कि उसे आप सबसे कितना गहरा लगाव था, और कतेरीना इवानोव्ना, वह अपनी इस कमबख्त कमजोरी के बावजूद खास तौर पर आपसे कितना प्यार करता था, आपकी कितनी इज्जत करता था, तो हम दोस्त बन गए। ...अब मुझे मौका दीजिए कि मैं अपने मर चुके दोस्त का... कर्ज चुकाने के लिए... कुछ कर सकूँ। ये बीस रूबल हैं - मेरे खयाल से - अगर इनसे आपकी कुछ मदद हो सके, तो... मैं... मतलब यह कि... फिर आऊँगा... जरूर आऊँगा... मैं शायद कल ही आऊँ... अच्छा, तो चलता हूँ!'

यह कह कर वह जल्दी से कमरे के बाहर निकल गया और भीड़ के बीच से रास्ता बनाता हुआ सीढ़ियों की ओर चला। लेकिन भीड़ में अचानक उसकी मुठभेड़ निकोदिम फोमीच से हो गई। उन्हें दुर्घटना की खबर मिली तो वह खुद सारी हिदायतें देने वहाँ आए थे। उस दिन थाने में जो बातें हुई थीं, उसके बाद से दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी, लेकिन निकोदिम फोमीच ने उसे फौरन पहचान लिया।

'अरे, तुम?' उन्होंने पूछा।

'मर गया,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। 'डॉक्टर और पादरी आ कर जा चुके हैं और जैसा होना चाहिए था, सब हो गया है। उस बेचारी औरत को बहुत परेशान न कीजिएगा, वह पहले से ही तपेदिक की मारी हुई है। हो सके तो उसे दिलासा दीजिएगा... मैं जानता हूँ, आप बहुत रहमदिल आदमी हैं...' रस्कोलनिकोव ने सीधे उनकी आँखों में आँखें डाल कर मुस्कराते हुए कहा।

'हुआ क्या है... लेकिन तुम्हारे कपड़ों पर खून कितना लगा है,' निकोदिम फोमीच ने लैंप की रोशनी में रस्कोलनिकोव की वास्कट पर खून के कुछ ताजे धब्बे देख कर कहा।

'हाँ... मैं खून में नहाया हुआ हूँ,' रस्कोलनिकोव ने अजीब अंदाज से कहा; फिर मुस्कराया और सर हिला कर सलाम करते हुए नीचे उतर गया।

वह धीरे-धीरे कदम रखता हुआ सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसे बुखार चढ़ रहा था लेकिन उसे इसका एहसास नहीं था। अचानक उसके अंदर जीवन और शक्ति की जो नई भरपूर संवेदना उमड़ी थी, उसमें वह पूरी तरह डूबा हुआ था। इस संवेदना की तुलना उस आदमी की संवेदना से की जा सकती है जिसे मौत की सजा सुना दिए जाने के बाद अचानक माफ कर दिया गया हो। जब वह आधी सीढ़ियाँ उतर चुका था, तो घर लौटता हुआ पादरी उसके पास से हो कर गुजरा; रस्कोलनिकोव ने आँखों-ही-आँखों में सलाम करके उसे आगे निकल जाने दिया। वह अभी आखिरी सीढ़ियाँ उतर रहा था कि पीछे से किसी के जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरने की आहट सुनाई दी। कोई उसके पीछे आ रहा था। वह पोलेंका थी। वह उसके पीछे भागती हुई पुकार रही थी, 'सुनिए! सुनिए तो!'

रस्कोलनिकोव ने मुड़ कर देखा। वह सीढ़ियों के लगभग नीचे तक पहुँच चुकी थी और उससे एक सीढ़ी ऊपर आ कर रुक गई थी। नीचे आँगन में से मद्धम रोशनी आ रही थी। रस्कोलनिकोव ने बच्ची का दुबला-पतला लेकिन छोटा-सा सुंदर चेहरा देखा; वह बच्चों जैसी खिली हुई मुस्कराहट के साथ उसे देख रही थी। वह उसके लिए एक संदेश ले कर आई थी, जिसे पहुँचा कर उसे स्पष्ट था कि बहुत खुशी हो रही थी।

'बताइए तो, आपका नाम क्या है ...और आप रहते कहाँ हैं?' उसने जल्दी-जल्दी, हाँफती हुई आवाज में कहा।

रस्कोलनिकोव ने दोनों हाथ उसके कंधों में रख दिए और खुशी के मारे निढाल हो कर उसे देखता रहा। उस बच्ची को देख कर बेहद खुशी हो रही थी पर क्यों, यह वह बता नहीं सकता था।

'तुम्हें किसने भेजा है?'

'सोन्या दीदी ने भेजा है,' लड़की ने और भी खिल कर, मुस्कराते हुए जवाब दिया।

'मुझे मालूम था कि तुम्हारी सोन्या दीदी ने ही तुम्हें भेजा है।'

'माँ ने भी भेजा है... जब सोन्या दीदी मुझे भेज रही थीं तब माँ ने भी आ कर कहा था : भाग कर जाना, पोलेंका!'

'तुम सोन्या दीदी को प्यार करती हो?'

'मुझे उनसे जितना प्यार है, उतना किसी से भी नहीं,' पोलेंका ने काफी एतमाद से जवाब दिया और अचानक उसकी मुस्कराहट अधिक गंभीर हो गई।

'तुम मुझसे भी प्यार करोगी?'

अपने सवाल के जवाब में उसने देखा : उस छोटी-सी बच्ची का चेहरा उसकी ओर बढ़ रहा था और उसने भोलेपन से अपने भरे-भरे होठ उसे प्यार करने के लिए आगे कर रखे थे। सूखी लकड़ी जैसी उसकी पतली-पतली बाँहों ने अचानक उसे कस कर जकड़ लिया, उसका सर उसके कंधे पर टिक गया और वह मासूम बच्ची अपना चेहरा उसके चेहरा से सटा कर चुपके-चुपके रोने लगी।

'मुझे पापा का बड़ा दुख है,' उसने पल-भर बाद अपना भीगा हुआ चेहरा उठा कर हाथ से आँसू पोंछते हुए कहा। 'अब तो बस मुसीबतें-ही-मुसीबतें हैं,' उसने अचानक अपनी बात में इतना और जोड़ दिया। उसके चेहरे पर वही गंभीर भाव था, जो बच्चे उस समय अपने चेहरे पर लाने की कोशिश करते हैं, जब वे बड़े लोगों की तरह कोई बात कहना चाहते हैं।

'तुम्हारे पापा तुम्हें प्यार करते थे?'

'सबसे ज्यादा प्यार लीदा से करते थे।' वह जरा भी मुस्कराए बिना गंभीर भाव से बड़े लोगों की तरह बोलती रही, 'वह इसलिए उसे प्यार करते थे कि एक तो वह बहुत छोटी है और फिर बीमार भी रहती है। हमेशा उसके लिए कोई न कोई चीज लाते रहते थे। लेकिन हम लोगों को उन्होंने पढ़ना सिखाया, मुझे व्याकरण पढ़ाया और बाइबिल भी' उसने गरिमा से कहा, 'माँ कभी कुछ नहीं कहती थी, लेकिन हम जानते थे कि उन्हें यह अच्छा लगता था और पापा भी जानते थे। माँ, मुझे फ्रांसीसी पढ़ाना चाहती है, क्योंकि मेरी पढ़ाई शुरू होने का समय अब आ गया है।'

'और तुम्हें प्रार्थना करना आता है'

'हाँ, बिलकुल आता है! बहुत दिन से। मैं अपने आप प्रार्थना कर लेती हूँ क्योंकि अब मैं बड़ी हो गई हूँ न। लेकिन कोल्या और लीदा, जो कुछ माँ बताती हैं, उसे ही जोर-जोर से दोहराते हैं। सबसे पहले तो वे 'देवी मरियम की वंदना' दोहराते हैं, फिर एक और प्रार्थना दोहराते हैं : 'प्रभु, सोन्या दीदी को क्षमा कर देना और उस पर अपनी कृपा रखना' क्योंकि हमारे बड़े पापा तो मर चुके हैं और ये दूसरेवाले हैं, लेकिन हम इनके लिए भी प्रार्थना करते हैं।'

'पोलेंका, मेरा नाम रोदिओन है। कभी-कभी मेरे लिए भी प्रार्थना कर लेना : 'और अपने सेवक रोदिओन पर भी,' बस इतना ही, और कुछ नहीं।'

'मैं जीवन-भर आपके लिए प्रार्थना करूँगी,' छोटी बच्ची ने उत्साह से हामी भरी। अचानक वह फिर मुस्करा कर उसकी ओर लपकी और तपाक से एक बार फिर उससे चिपट गई।

रस्कोलनिकोव ने उसे अपना नाम और पता बताया और अगले दिन जरूर आने का वादा किया। बच्ची उस पर बिल्कुल मुग्ध हो कर चली गई। जब वह बाहर सड़क पर आया, उस समय दस बज चुके थे। पाँच मिनट बाद वह पुल पर उसी जगह खड़ा था, जहाँ से वह औरत पानी में कूदी थी।

'बस, बहुत हो चुका,' उसने गर्मजोशी और कुछ खुशी से कहा। 'कोरे भ्रमों, काल्पनिक आतंकों, और प्रेतछायाओं से अब मेरा कोई वास्ता नहीं! जीवन सत्य है! क्या अभी-अभी मैं जीवन नहीं जी रहा था उस बुढ़िया के साथ मेरा जीवन मर तो नहीं गया। उसे स्वर्ग का राज्य मुबारक हो - और अब, मेम साहब, बहुत हो चुका, मेरा पिंड छोड़ो! अब राज विवेक और प्रकाश का होगा... और संकल्प की दृढ़ता का और शक्ति का... अब हम देख लेंगे! अब हम अपनी ताकत आजमाएँगे!' उसने विद्रोह की भावना से कहा, गोया अंधकार की किसी शक्ति को चुनौती दे रहा हो, 'और मैं तो गज भर जमीन के टुकड़े को स्वीकार करने पर भी तैयार था!

'अभी मैं बहुत ही कमजोर हूँ, लेकिन... मैं समझता हूँ मेरी बीमारी दूर हो चुकी। मैं जानता था कि बाहर निकलूँगा तो मेरी बीमारी दूर हो जाएगी। अरे हाँ, याद आया, पोचिकोव का मकान तो यहाँ से कुछ ही कदम पर है। अगर इतना पास न भी होता तो भी रजुमीखिन के पास तो मुझे जाना ही है... उसे शर्त जीत लेने दो! उसे भी कुछ संतोष मिले - कोई बात नहीं! हम शक्ति ही तो चाहते हैं, इसके बिना कुछ मिल भी नहीं सकता, पर शक्ति तो शक्ति के बल पर ही पाई जाती है - यही बात तो कोई जानता नहीं,' उसने बड़े गर्व और आत्मविश्वास के साथ अपने विचारों का क्रम आगे बढ़ाते हुए कहा और कमजोर पड़ते कदमों को बढ़ाता हुआ पुल से आगे चल पड़ा। उसके अंदर गर्व और आत्मविश्वास की भावना लगातार सबल होती जा रही थी, हर पल वह बिल्कुल दूसरा आदमी बनता जा रहा था। उसमें यह क्रांति किस चीज ने पैदा की थी यह बात वह स्वयं भी नहीं जानता था। उस डूबते हुए आदमी की तरह जो तिनके का सहारा लेना चाहता है, उसने यकायक अनुभव किया कि वह भी 'जीवित रह सकता है, कि अब भी उसके लिए जीवन बाकी है, कि उसका जीवन उस बुढ़िया के साथ ही नहीं मर गया।' अपने निष्कर्षों पर पहुँचने में शायद वह जल्दबाजी कर रहा था, लेकिन उसने इस बारे में सोचा भी नहीं।

'लेकिन मैंने उससे अपनी प्रार्थना में 'अपने सेवक रोदिओन' को याद रखने को कहा था'; अचानक उसे यह विचार खटका। 'खैर, वह तो... मौके की बात थी,' उसने तर्क करते हुए कहा और उसे अपनी इस बचकाना दलील पर खुद हँसी आ गई। उसका दिल बल्लियों उछल रहा था।

उसे रजुमीखिन का ठिकाना आसानी से मिल गया। पोचिकोव के घर में लोग इस नए किराएदार को जानते थे और दरबान ने उसे फौरन रास्ता बता दिया। आधी सीढ़ियाँ चढ़ने पर उसे लोगों के बहुत बड़े जमघटे के शोर और जोश में आ कर बातें करने की आवाजें सुनाई पड़ीं। सीढ़ियों की तरफ का दरवाजा पूरा खुला हुआ था; उसे लोगों की चिल्लाहट और बहस सुनाई दे रही थी। रजुमीखिन का कमरा काफी बड़ा था; वहाँ पंद्रह लोग जमा थे। रस्कोलनिकोव ड्योढ़ी में ही रुक गया, जहाँ मकान-मालकिन की दो नौकरानियाँ एक ओट के पीछे दो समोवार, बोतलें, प्लेटें और मकान-मालकिन की रसोई से लाए गए पकवानों की तश्तरियाँ रख कर अपने काम में व्यस्त थीं। रस्कोलनिकोव ने रजुमीखिन को बाहर बुलवाया। वह खुश हो कर भागा हुआ आया। पहली ही नजर में यह बात साफ नजर आती थी कि उसने बहुत पी रखी है। यूँ तो रजुमीखिन कितना भी पी लेता, उसे नशा ज्यादा चढ़ता नहीं था, लेकिन इस बार उसका असर साफ दिखाई दे रहा था।

'सुनो,' रस्कोलनिकोव ने जल्दी से कहा, 'मैं तुमसे बस यह कहने आया हूँ कि तुम अपनी शर्त जीत चुके और यह कि कोई भी यह नहीं कह सकता कि उसे कब क्या हो जाएगा। मैं अंदर नहीं आऊँगा : इतनी कमजोरी महसूस कर रहा हूँ कि फौरन बेहोश हो कर गिर पड़ूँगा। इसलिए सलाम भी और अलविदा भी कल आ कर मिलना, हालाँकि...'

'एक बात कहूँ, मैं तुम्हें घर पहुँचाए आता हूँ। जब तुम खुद कह रहे हो कि तुम कमजोरी महसूस कर रहे हो तो सचमुच तुम...'

'पर तुम्हारे मेहमान? वह घुँघराले बालोंवाला कौन था जो अभी बाहर झाँक रहा था?'

'वह न जाने कौन है! मेरे खयाल में चाचा का कोई जाननेवाला है, या शायद बिना बुलाए आ गया हो... मैं चाचा को उन लोगों के पास छोड़ जाऊँगा। बहुत ही हीरा आदमी हैं, पर अफसोस कि मैं तुम्हें इस वक्त उनसे नहीं मिला सकता। लेकिन अभी तो उन सबको गोली मारो! कोई मेरे मौजूद न होने की तरफ ध्यान भी नहीं देगा और मुझे थोड़ी ताजा हवा भी चाहिए, सो तुम बिलकुल ठीक वक्त पर आए... और दो मिनट बाद आते तो हाथा-पाई हो जाती! ऐसी बेसर-पैर की उड़ा रहे हैं वे लोग... तुम सोच भी नहीं सकते कि लोग कैसी-कैसी बातें कर सकते हैं! पर सोच क्यों नहीं सकते! क्या हम लोग खुद बकवास नहीं करते तो करने दो बकवास... इसी तरह तो आदमी बकवास करना सीखता है न! पलभर ठहरो... मैं जोसिमोव को बुलाए लाता हूँ।'

जोसिमोव नदीदों की तरह रस्कोलनिकोव पर टूट पड़ा। वह उसमें खास दिलचस्पी दिखा रहा था और थोड़ी ही देर में उसका चेहरा खिल उठा।

'तुम फौरन जा कर सो जाओ,' उसने बीमार को जितनी भी अच्छी तरह हो सका, देखने के बाद अपना फैसला सुनाया, 'और रात के लिए कुछ लेते जाओ। ले जाओगे न कुछ देर पहले ही मैंने तैयार करके रख ली थी... एक पुड़िया है।'

'बुरा न लगे तो दो दे दो,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। उसने पुड़िया फौरन खा ली।

'अच्छा ही है कि इसे घर पहुँचाने तुम जा रहे हो,' जोसिमोव ने रजुमीखिन से कहा, 'देखें कल कैसी रहती है तबीयत, आज तो बिलकुल ठीक लग रहा है। शाम से तो काफी फर्क है। खैर, हम जीते हैं और कुछ सीखते हैं...'

'जानते हो, जब हम बाहर आ रहे थे तो जोसिमोव ने मेरे कान में क्या कहा?' सड़क पर पहुँचते ही रजुमीखिन से कहे बिना रहा नहीं गया। 'मैं तुम्हें सारी बातें साफ-साफ बताऊँगा भाई, क्योंकि वे लोग परले दर्जे के बेवकूफ हैं। जोसिमोव ने कहा था कि रास्ते में मैं तुमसे खुल कर बातें कर लूँ, तुम्हें भी मुझसे खुल कर बातें करने दूँ, और बाद में जा कर मैं उसे सारी बातें बताऊँ क्योंकि उसके दिमाग में यह खब्त समा गया है कि तुम... या तो पागल हो चुके हो या होनेवाले हो। सोचो तो सही! पहली बात तो यह है कि तुममें कम-से-कम उसकी तीन गुनी अक्ल है; दूसरे यह कि अगर तुम पागल नहीं हो तो तुम्हें इसकी रत्तीभर परवाह नहीं करनी चाहिए कि इस तरह की बेसिर-पैर की बात उसके दिमाग में है; और तीसरे, वह दुंबा, जिसका खास काम चीर-फाड़ करना है, दिमाग की बीमारियों के बारे में दीवाना हो गया है, और जिस चीज की वजह से वह तुम्हारे बारे में इस नतीजे पर पहुँचा, वह जमेतोव के साथ तुम्हारी आज की बातचीत थी।'

'जमेतोव ने उसके बारे में तुम्हें सब कुछ बता दिया'

'हाँ, और उसने अच्छा ही किया। अब मेरी समझ में आ गया कि इस सबका मतलब क्या है, और जमेतोव की भी समझ में आ गया... तो बात यह है रोद्या... असल बात यह है कि... इस वक्त तो मैं थोड़ा नशे में हूँ... लेकिन वह... कोई ऐसी बड़ी बात नहीं... बात यह है कि यह खयाल... तुम समझते हो न उनके दिमाग में पनप रहा था... समझ रहे हो कि नहीं ...मतलब यह कि कोई खुल कर कहने की हिम्मत नहीं करता था क्योंकि यह खयाल था ही इतना बेतुका... और खास कर उस पुताई करनेवाले की गिरफ्तारी के बाद तो वह बुलबुला फूट कर हमेशा के लिए खत्म हो गया है। लेकिन ये लोग इतने बेवकूफ क्यों होते हैं उस वक्त मैंने जमेतोव को बहुत झाड़ा था - यह बात हम लोगों तक ही रहे भाई; कभी इशारे में भी यह जाहिर न होने देना कि तुम इसके बारे में जानते हो। मैंने देखा है कि वह जरा तुनक-मिजाज आदमी है; वह बात लुईजा इवानोव्ना के यहाँ की थी। लेकिन आज, आज सारी बात साफ हो गई है। इस सबकी जड़ वह इल्या पेत्रोविच है! उसने थाने में तुम्हारे बेहोश होने का फायदा उठाया, लेकिन अब वह खुद इस बात पर शर्मिंदा है। मुझे मालूम है कि...'

रस्कोलनिकोव उसका एक-एक शब्द उत्सुकता से सुन रहा था। रजुमीखिन ने इतनी पी रखी थी कि खुल कर बातें कर रहा था।

'उस वक्त मैं इसलिए बेहोश हो गया था कि वहाँ घुटन बहुत थी और रंग-रोगन की बेहद बदबू थी,' रस्कोलनिकोव ने कहा।

'सफाई देने की क्या जरूरत! और बस रंग-रोगन की बात भी नहीं थी : तुम्हें बुखार तो महीनेभर से आ रहा था; जोसिमोव इस बात का गवाह है! लेकिन अब बच्चू की ऐसी अक्ल गुम है कि तुम यकीन नहीं करोगे। कहता है : मैं उसकी कानी उँगली के बराबर भी नहीं। मतलब है, तुम्हारी। भाई, कभी-कभी उसके दिल में भी अच्छी भावनाएँ आती हैं। लेकिन वह सबक... वह सबक जो तुमने उसे आज रंगमहल में सिखाया, उसका तो जवाब नहीं! तुमने उसे इतना दहला दिया है कि जानते हो, उसे दौरा-सा पड़ गया था! तुमने एक बार फिर उसे उस सारी भयानक बकवास के सच होने का यकीन दिला दिया था, और फिर अचानक उसे ठेंगा दिखा दिया : 'अब बोलो, क्या मतलब निकालते हो इसका लाजवाब काम किया तुमने! अब वह पूरी तरह चकनाचूर हो चुका है, बिलकुल खलास! क्या उस्तादोंवाला हाथ दिखाया है, कसम से, ये लोग इसी के काबिल हैं। काश, कि मैं भी वहाँ होता! वह तुमने मिलने को बहुत बेचैन था। पोर्फिरी भी तुमसे मिलना चाहता है...'

'अच्छा! ...वह भी! ...लेकिन उन लोगों ने मुझे पागल क्यों समझ लिया था?'

'नहीं यार, पागल नहीं! शायद मैंने ही बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कह दिया, मेरे भाई... देखो, जो बात उसे खटकी थी वह यह थी कि वही एक बात थी जिसमें तुम्हें कुछ दिलचस्पी मालूम होती थी। पर अब यह बात साफ हो गई कि तुम्हें उसमें दिलचस्पी क्यों थी; सारे हालात जान लेने के बाद... और उस बात से तुम्हारी चिड़चिड़ाहट कितनी बढ़ जाती थी और उसकी वजह से तुम्हारी बीमारी भी बढ़ जाती थी... मैं थोड़ा नशे में हूँ भाई, बस और कुछ नहीं। लानत हो उस पर, उसकी अपनी एक सनक है... मैं तुम्हें बताता हूँ : उसे दिमाग की बीमारियों का खब्त हो गया है। लेकिन तुम जरा भी परवाह न करना...'

कुछ पल दोनों चुप रहे।

'सुनो रजुमीखिन,' रस्कोलनिकोव ने कहा, 'मैं तुम्हें साफ-साफ बता देना चाहता हूँ : मैं अभी एक मरते हुए आदमी के पास से आ रहा हूँ। एक क्लर्क था जो मर गया... मैं अपना सारा पैसा उन लोगों को दे आया... और इसके अलावा अभी मुझे किसी ऐसे शख्स ने चूमा है कि अगर मैंने किसी की जान भी ली होती, तब भी वह... सच तो यह है कि वहाँ मुझे कोई और भी मिला था... गहरे नारंगी रंग का पर लगाए... लेकिन मैं बकवास कर रहा हूँ; मुझे बहुत-बहुत कमजोरी आ रही है, सहारा दो जरा... वो रहीं सीढ़ियाँ...'

'क्या बात है? हो क्या गया तुम्हें?' रजुमीखिन ने फिक्र में पड़ कर पूछा।

'कुछ चक्कर आ रहा है, लेकिन बात यह भी नहीं है; मैं बहुत उदास हूँ, बेहद उदास... औरतों की तरह। देखो, वह क्या है देखो, देखो!'

'क्या है?'

'दिखाई नहीं देता मेरे कमरे में रोशनी, दरार में से...'

वे लोग सीढ़ियों की आखिरी किस्त तक पहुँच चुके थे। मकान-मालकिन इसी मंजिल पर रहती थी, और नीचे से उन्हें साफ दिखाई दे रहा था कि रस्कोलनिकोव की कोठरी में रोशनी थी।

'अजीब बात है! नस्तास्या होगी,' रजुमीखिन ने अटकल लगाई।

'वह इस वक्त मेरे कमरे में कभी नहीं आती... और न जाने कब की सो गई होगी, लेकिन... मुझे कोई परवाह नहीं! तो मैं चला!'

'क्या मतलब मैं तुम्हारे साथ चल रहा हूँ... दोनों साथ चलेंगे अंदर!'

'यह तो मैं जानता हूँ कि दोनों साथ अंदर चलेंगे, लेकिन मैं यहीं तुमसे हाथ मिला लेना चाहता हूँ। हाथ लाओ। फिर मिलेंगे!'

'तुम्हें हो क्या गया है, रोद्या?'

'कुछ नहीं... आओ चलो... गवाह रहना।'

वे सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। रजुमीखिन को अचानक खयाल आया कि जोसिमोव की बात शायद ठीक ही हो। 'मैंने अपनी बकबक से उसे फिर परेशान कर दिया है!' वह मुँह-ही-मुँह में बुदबुदाया। जब वे दरवाजे के पास पहुँचे तो उन्हें कमरे में आवाजें सुनाई दीं।

'क्या हो सकता है भला?' रजुमीखिन चीखा।

रस्कोलनिकोव ने आगे बढ़ कर दरवाजे का हत्था पकड़ा, उसे पूरा खोल दिया और चौखट पर अवाक खड़ा रह गया।

उसकी माँ और बहन सोफे पर बैठी, डेढ़ घंटे से उसकी राह देख रही थीं। उसे उनके वहाँ होने की उम्मीद क्यों नहीं थी, उसने उनके बारे में क्यों नहीं सोचा, हालाँकि यह खबर उसी दिन उसे पहुँचा दी गई थी कि वे चल चुकी हैं, रास्ते में हैं और कभी भी पहुँच सकती हैं उन्होंने डेढ़ घंटा नस्तास्या से दुनिया भर के सवाल पूछने में लगा दिया था। वह इस वक्त भी उनके सामने खड़ी थी और अब तक उन्हें सब कुछ बता चुकी थी। आज बीमारी की हालत में उसके 'भाग जाने' की खबर सुन कर वे बहुत डर गई थीं। नस्तास्या के बयान से उन्हें यह भी पता चल चुका था कि वह सरसामी हालत में था! 'हे भगवान, उसे हो क्या गया!' दोनों रोती रहीं; उस डेढ़ घंटे तक दोनों न जाने किस कदर घोर तकलीफ से बेचैन रहीं।

रस्कोलनिकोव के अंदर आते ही दोनों खुशी के मारे फूली न समाईं, चीख पड़ीं। दोनों उसकी ओर लपकीं। लेकिन वह मुर्दे की तरह खड़ा रहा। अचानक एक असह्य वेदना ने उसे आन घेरा था, जैसे बिजली टूटी हो। उसने उन्हें गले लगाने के लिए अपने हाथ भी नहीं बढ़ाए; वह हाथ उठा ही नहीं पाया। माँ और बहन ने उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया, उसे प्यार किया, हँसने और चिल्लाने लगीं। उसने एक कदम आगे बढ़ाया, लड़खड़ाया और गश खा कर जमीन पर गिर पड़ा।

चिंता, दहशत भरी चीखें, कराहें... रजुमीखिन, जो अभी तक चौखट पर खड़ा था, झपट कर कमरे के अंदर आया। उसने बीमार को अपनी मजबूत बाँहों में उठा लिया और पल भर में सोफे पर लिटा दिया।

'कोई बात नहीं है, कोई बात नहीं!' उसने माँ और बहन से चीख कर कहा, 'गश आ गया है, कोई खास बात नहीं है! अभी-अभी डॉक्टर बता रहा था कि अब हालत पहले से बहुत अच्छी है, काफी ठीक है! थोड़ा पानी तो लाना! देखिए, इसे होश आने लगा।'

यह कह कर उसने दुनेच्का की बाँह जोर से पकड़ी, इतने जोर से कि वह लगभग उखड़ ही गई, और उसे झुका कर दिखाया कि 'वह फिर बिलकुल ठीक हो गया है'। माँ-बेटी ने विभोर हो कर कृतज्ञता के साथ उसकी ओर इस तरह देखा, गोया वह उनका त्राता हो। वे दोनों नस्तास्या से सब कुछ सुन चुकी थीं कि उनके रोद्या की बीमारी के दौरान इस 'योग्य नौजवान' ने उसके लिए क्या-क्या किया था। उस रात दुनेच्का के साथ अपनी बातचीत के दौरान पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना रस्कोलनिकोवा उसकी चर्चा इसी नाम से करती रहीं।