अपराध और दंड / अध्याय 3 / भाग 4 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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उसी समय दरवाजा धीरे-से खुला और एक नौजवान लड़की चारों ओर सहमी-सहमी नजरों से देखती हुई कमरे में आई। सबने आश्चर्य और जिज्ञासा से उसकी ओर देखा। पहली नजर में रस्कोलनिकोव उसे पहचान भी नहीं सका। सोफ्या सेम्योनोव्ना मार्मेलादोवा थी। उसने उसे पहली बार कल ही देखा था, लेकिन ऐसे वक्त, ऐसे माहौल में और ऐसी पोशाक में देखा था कि उसकी याद में उसकी कोई और ही तसवीर बाकी रह गई थी। इस समय वह बहुत ही मामूली गरीबों जैसे कपड़ों में मलबूस एक छोटी-सी लड़की लग रही थी। बहुत ही छोटी, सच पूछें तो बच्चों जैसी। चाल-ढाल से बहुत विनम्र और तमीजदार। चेहरा निष्कपट लेकिन कुछ भयभीत-सा लग रहा था। उसने घर में पहनने की एक बहुत सादी-सी पोशाक पहन रखी थी और सर पर पुराने ढंग की मुड़ी-तुड़ी हैट लगा रखी थी, लेकिन इस वक्त भी छतरी लिए हुए थी। कमरे में इतने लोगों को देख कर वह सिटपिटाई जरूर पर उतना नहीं जितना कि छोटे बच्चे की तरह शरमा गई। उलटे पाँव वापस होने के लिए पलटी।

'अरे... तुम!' रस्कोलनिकोव ने बेहद ताज्जुब से कहा और खुद भी कुछ सकुचा गया। उसे एकदम याद आया कि उसकी माँ और बहन को लूजिन के खत से किसी 'बदलचन' नौजवान लड़की के बारे में पता चल चुका था। थोड़ी ही देर पहले वह लूजिन की इस तोहमत के खिलाफ आवाज उठा रहा था और यह कह रहा था कि उसने उस लड़की को पहली बार कल रात ही देखा था, और अब वही लड़की अचानक आ पहुँची थी। उसे यह भी याद आया कि उसके 'बदलचन' कहे जाने के खिलाफ उसने आवाज नहीं उठाई थी। यह सब उसके दिमाग से धुँधले-धुँधले तरीके से पर तेजी से गुजरा। लेकिन उसने उसे ज्यादा गौर से देखा तो लगा कि वह डरी-सहमी-सी बच्ची शरमिंदगी महसूस कर रही है। अचानक उसे उस पर तरस आने लगा। अब वह डर कर वापसी के लिए पीछे हटी तो रस्कोलनिकोव के दिल में टीस-सी उठी।

'मैंने तो सोचा भी नहीं था कि तुम यहाँ आओगी,' उसने जल्दी-जल्दी उसे कुछ इस तरह देख कर कहा कि वह ठिठक गई। 'बैठ जाओ। जाहिर है, तुम्हें कतेरीना इवानोव्ना ने भेजा होगा। नहीं, वहाँ नहीं। यहाँ बैठो...'

सोन्या के अंदर आते ही रजुमीखिन, जो दरवाजे के पास रस्कोलनिकोव की तीन कुर्सियों में से एक पर बैठा हुआ था, उसे रास्ता देने के लिए उठ खड़ा हुआ। रस्कोलनिकोव ने पहले तो उसे सोफे पर उसी जगह बैठने का इशारा किया था जहाँ जोसिमोव बैठा हुआ था। लेकिन यह सोच कर कि उसे सोफे पर बिठाना, जिसे वह पलँग की तरह इस्तेमाल करता था, बहुत ज्यादा बेतकल्लुफी का सबूत देना होगा, उसने जल्दी से रजुमीखिन की कुर्सी की तरफ इशारा किया।

'तुम वहाँ बैठ जाओ,' उसने रजुमीखिन को सोफे के उसी सिरे पर बैठने को कहा, जहाँ जोसिमोव बैठा था।

सोन्या डर के मारे लगभग काँपती हुई बैठ गई और सहमी-सहमी हुई नजरों से दोनों औरतों को देखती रही। साफ लगता था वह यह बात सोच भी नहीं पा रही थी कि क्या वह उनकी बगल में बैठ सकती है। यह सोचते ही वह इतना डर गई कि जल्द ही फिर उठ खड़ी हुई और बेहद घबरा कर रस्कोलनिकोव से कुछ कहने लगी।

'मैं... मैं... बस एक पल के लिए आई हूँ। माफ कीजिएगा, आप लोगों को मैंने परेशान किया,' उसने अटक-अटक कर बोलना शुरू किया। 'मुझे कतेरीना इवानोव्ना ने भेजा है; कोई और भेजने को था भी नहीं। मुझसे कतेरीना इवानोव्ना ने आपसे यह प्रार्थना करने के लिए कहा है... कि कल सबेरे... मित्रोफानियेव्स्की में... दफन के वक्त जरूर आइएगा... और फिर... उसके बाद... हमारे यहाँ... उनके यहाँ... उन्हें यह इज्जत बख्शिएगा... उन्होंने मुझसे आपसे गुजारिश करने के लिए कहा था...'

'मैं जरूर कोशिश करूँगा... यकीनन,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। वह भी उठ खड़ा हुआ और कुछ ऐसा सिटपिटाया कि बात भी पूरी नहीं कर सका। 'बैठ तो जाओ,' उसने अचानक कहा। 'तुमसे मुझे कुछ बातें करनी हैं। तुम्हें शायद जल्दी है, लेकिन मेहरबानी करके बस दो मिनट का वक्त दो,' यह कह कर उसने उसके लिए एक कुर्सी खींची।

सोन्या फिर बैठ गई और एक बार फिर सहम कर दोनों महिलाओं को उड़ती मगर भयभीत नजरों से देखा। फिर उसने अपनी आँखें झुका लीं।

रस्कोलनिकोव का पीला चेहरा तमतमा उठा। शरीर में कँपकँपी-सी दौड़ गई; आँखें चमकने लगीं।

'माँ,' उसने सधे स्वर में और जोर दे कर कहा, 'यह सोफ्या सेम्योनोव्ना मार्मेलादोवा है, उन बदनसीब मार्मेलादोव साहब की बेटी, जो कल मेरी आँखों के सामने गाड़ी से कुचल गए थे, और जिनके बारे में मैं तुम्हें बता रहा था।'

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने आँखें तरेर कर एक नजर सोन्या को देखा। रोद्या की उतावली, चुनौती भरी नजरों के सामने कुछ अटपटा-सा महसूस करने के बावजूद वह अपने आपको इस सुख से वंचित न रख सकीं। दूनिया उस बेचारी लड़की के चेहरे को गंभीरता से नजरें गड़ा कर देखती रही, और आश्चर्यचकित हो कर उसकी थाह लेने की कोशिश करती रही। सोन्या ने यह सुन कर कि उसका परिचय कराया जा रहा है, अपनी आँखें फिर उठाने की कोशिश की, लेकिन पहले से भी ज्यादा अटपटा महसूस करने लगी।

'मैं तुमसे यह पूछना चाहता था,' रस्कोलनिकोव ने जल्दी से कहा, 'आज सब कुछ ठीक-ठाक तो निबट गया था न! मसलन पुलिस ने तुम लोगों को तंग तो नहीं किया?'

'नहीं, वह सब ठीक ही है... यह तो एकदम साफ था कि मौत किस वजह से हुई... उन लोगों ने हमें तंग नहीं किया... बस वहाँ रहनेवाले लोग नाराज हैं।'

'क्यों?'

'लाश को वहाँ इतनी देर रखने पर। देखिए, बात यह है कि आज गर्मी भी तो बहुत है... और घुटन। इसलिए आज उसे कब्रिस्तान ले जा कर कल तक के लिए वहीं के गिरजाघर में रख दिया जाएगा। कतेरीना इवानोव्ना इसके लिए पहले तो तैयार नहीं लेकिन अब उनकी समझ में भी आ गया है कि यह जरूरी है।'

'तो आज?'

'आपसे उन्होंने खास तौर पर गुजारिश की है कि कल गिरजाघर में कफन-दफन के वक्त जरूर आइएगा, और फिर उसके बाद जनाजे की दावत में भी।'

'जनाजे की दावत भी कर रही हैं?'

'हाँ... बस छोटी-सी... उन्होंने मुझसे आपकी कल की मदद के लिए शुक्रिया अदा करने को भी कहा था। आप न होते तो हमारे पास तो कफन-दफन के लिए भी कुछ न था।'

उसके होठों और उसकी ठोड़ी में अचानक कँपकँपी पैदा हुई। पर उसने कोशिश करके अपने आपको सँभाला और जमीन की ओर ताकने लगी।

बातचीत के दौरान रस्कोलनिकोव उसे ध्यान से देख रहा था। उसका चेहरा पतला, बहुत ही पतला, पीला और छोटा-सा था, कुछ नुकीला-सा और बहुत सुडौल भी नहीं। छोटी-सी तीखी नाक और ठोड़ी। उसे खूबसूरत नहीं कहा जा सकता था, लेकिन उसकी नीली आँखें बेहद साफ थीं और जब वे चमकती थीं तो चेहरे पर ऐसी नेकी और सादगी की छाप आ जाती थी कि देखनेवाला बरबस उसकी ओर खिंच जाता था। उसके चेहरे में, बल्कि पूरे डीलडौल में, एक और अजीब खूबी थी : अठारह साल की होने के बावजूद वह छोटी-सी लड़की लगती थी - बच्ची जैसी। उसकी कुछ मुद्राओं में तो यह बचपना लगभग बेतुका-सा लगता था।

'लेकिन कतेरीना इवानोव्ना ने इतने थोड़े से पैसों में सब बंदोबस्त कैसे कर लिया क्या वह जनाजे की दावत सचमुच रखना चाहती हैं' रस्कोलनिकोव ने बातचीत का सिलसिला जारी रखने के लिए पूछा।

'जाहिर है ताबूत बहुत मामूली होगा... फिर बाकी हर चीज भी मामूली होगी, इसलिए ज्यादा खर्च नहीं बैठेगा। कतेरीना इवानोव्ना ने और मैंने सारा हिसाब लगा लिया है, सो दावत के लिए भी पैसा बच जाएगा... कतेरीना इवानोव्ना की बहुत ख्वाहिश थी कि दावत हो। आप जानते हैं कि इसके बगैर उनके दिल को राहत नहीं पहुँचेगी... वह हैं ही ऐसी, आप जानते ही हैं।'

'मैं समझता हूँ, समझता हूँ... जाहिर है... तुम मेरे कमरे को इस तरह क्यों देख रही हो मेरी माँ कह रही थीं कि यह एकदम मकबरा मालूम होता है।'

'आपके पास था जो कुछ, आपने कल हमें दे दिया,' सोन्या ने अचानक दबी जबान में, तेजी से बोलते हुए कहा और एक बार फिर सिटपिटा कर जमीन को घूरने लगी। ठोड़ी और होठ एक बार फिर काँपने लगे थे। रस्कोलनिकोव जिस गरीबी में रह रहा था, उसका उस पर इतना गहरा असर हुआ था कि ये शब्द अपने आप उसके मुँह से निकल गए थे। थोड़ी देर तक सब लोग चुप रहे। दूनिया की आँखों में एक चमक थी; पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना भी बड़े स्नेह से सोन्या की ओर देखने लगीं।

'रोद्या,' उन्होंने उठते हुए कहा, 'हम लोग दोपहर का खाना तो साथ ही खाएँगे। चलो दूनिया, चलें। ...और रोद्या, तुम थोड़ी देर बाहर घूम आओ; फिर हमारे यहाँ आने से पहले थोड़ी देर आराम कर लो। ...मुझे लगता है तुम हम लोगों की वजह से काफी थक गए हो...'

'हाँ, हाँ, जरूर आऊँगा,' उसने हड़बड़ा कर उठते हुए जवाब दिया। 'लेकिन पहले कुछ काम निबटाना है।'

'लेकिन तुम खाना अलग तो नहीं खाओगे न?' रजुमीखिन ने ताज्जुब से रस्कोलनिकोव को देखते हुए कहा। 'क्या है तुम्हारा इरादा?'

'हाँ, हाँ, आऊँगा... जरूर, जरूर आऊँगा! तुम जरा एक पल ठहरो। अभी तो तुम्हें इससे कोई काम नहीं है माँ, कि है ऐसा तो नहीं कि मैं तुमसे इसे छीने ले जा रहा हूँ?'

'नहीं रे, नहीं। और द्मित्री प्रोकोफिच, तुम भी मेहरबानी करके हम लोगों के साथ ही खाना।'

'जरूर आइएगा,' दूनिया ने अपनी ओर से आग्रह किया।

झुक कर रजुमीखिन ने शुक्रिया अदा किया; खुशी उसके चेहरे से फूटी पड़ रही थी। पलभर के लिए सभी कुछ अजीब ढंग से भौंचक रह गए।

'तो, विदा, रोद्या, मतलब यह कि अगली मुलाकात तक के लिए हालाँकि मेरा जी विदा कहने को नहीं चाहता। विदा, नस्तास्या। आह, मैंने फिर वही 'विदा' कह दिया!'

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना सोन्या से भी कुछ शब्द विदाई के कहना चाहती थीं। लेकिन जाने क्यों शब्द उनके मुँह से निकले ही नहीं। वे जल्दी से कमरे के बाहर निकल गईं।

लेकिन लग रहा था कि अव्दोत्या रोमानोव्ना अपनी बारी का इंतजार कर रही थी। माँ के पीछे-पीछे कमरे से बाहर जाते हुए उसने सोन्या की ओर ध्यान से देखा और उससे शिष्टता से झुक कर विदा ली। सोन्या ने भी सिटपिटा कर जल्दी से, कुछ सहमे हुए ढंग से झुक कर उसका जवाब दिया। उसके चेहरे पर एक तकलीफदेह उलझन का भाव था, मानो अव्दोत्या रोमानोव्ना के सलाम करने और उसकी ओर ध्यान देने से उसे घुटन और तकलीफ हो रही हो।

'फिर मिलेंगे दूनिया,' रस्कोलनिकोव ने ड्योढ़ी में आ कर जोर से कहा। 'मुझसे हाथ तो मिला!'

'अभी तो मिलाया था। भूल गए' दूनिया ने बड़े तपाक से कुछ अटपटा कर उसकी ओर घूमते हुए कहा।

'कोई बात नहीं, फिर मिला लो!' यह कह कर उसने अपने हाथ में उसकी उँगलियाँ दबा लीं।

दूनिया मुस्कराई, शरमाई और अपना हाथ खींच कर खुशी-खुशी वहाँ से चली गई।

'चलो, यह भी अच्छा ही हुआ,' उसने कमरे में वापस आ कर और प्रसन्नता से सोन्या को देखते हुए कहा। 'भगवान मरनेवालों को शांति दे पर जीनेवालों को तो जीना ही है! बात ठीक है न कि नहीं?'

सोन्या उसके चेहरे पर अचानक ऐसी प्रसन्नता देख कर हैरान रह गई। वह कुछ पल उसे चुपचाप देखता रहा। उन कुछ पलों के दौरान सोन्या के बाप ने बेटी के बारे में जो कुछ सुनाया था, वह रस्कोलनिकोव की यादों के पर्दे पर किसी फिल्म की तरह घूम गया...

'भगवान जानता है, दुनेच्का,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने बाहर सड़क पर आते ही कहना शुरू किया, 'वहाँ से आ कर मुझे सचमुच ऐसा लग रहा है जैसे कोई बोझ उतरा हो... ज्यादा राहत महसूस हो रही है। कल रेलगाड़ी में मैंने सोचा तक नहीं था कि मुझे इस कारण से भी खुशी होगी।'

'तुमसे मैं फिर कहती हूँ माँ कि अभी भी वह बहुत बीमार है। तुमने देखा नहीं शायद हम लोगों की चिंता कर-करके वह बहुत उलझ गया है। हमें धीरज रखना चाहिए, और बहुत कुछ माफ कर देना चाहिए।'

'मगर तुमने तो बहुत धीरज नहीं दिखाया!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने कुछ भड़क कर उसकी बात पकड़ते हुए कहा। 'तुम हू-ब-हू उसकी नकल हो; सूरत-शक्ल में उतनी नहीं जितनी कि आत्मा में। तुम दोनों उदास स्वभाव के हो, दोनों में एक रूखापन है और दोनों को जल्दी गुस्सा आ जाता है, दोनों स्वाभिमानी हो और उदार दिल के। ...ऐसा तो हो नहीं सकता दुनेच्का कि वह अपने अलावा और किसी के बारे में सोचता ही न हो। क्यों यह सोच कर मेरा तो दिल ही बैठा जाता है कि आज शाम को हम लोगों पर क्या बीतेगी!'

'परेशान न हो माँ। जो होना होगा, सो होगा।'

'बेटी, जरा सोचो कि हम लोगों की क्या हालत है! प्योत्र पेत्रोविच ने रिश्ता अगर तोड़ दिया तो क्या होगा' यह बात बेचारी पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के मुँह से असावधानी में निकल गई।

'अगर रिश्ता तोड़ा तो वे इस लायक भी नहीं हैं कि उनकी परवाह की जाए,' दूनिया ने कुछ सख्ती से, तिरस्कार के भाव से जवाब दिया।

'अच्छा किया हमने कि चले आए,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने जल्दी से बात बदली। 'उसे किसी न किसी काम की जल्दी थी। वह अगर किसी तरह बाहर जा कर खुली हवा में थोड़ी देर घूम ले... उसके कमरे में तो काफी घुटन थी... लेकिन यहाँ खुली हवा मिलेगी कहाँ यहाँ सड़कें भी तो बंद कोठरियों जैसी लगती हैं। हे भगवान! कैसा शहर है! जरा देखके... हट जाओ... कुचली जाओगी... देखती नहीं वे लोग कोई चीज ले जा रहे हैं! अरे, यह तो पियानो है, सच कहती हूँ... किस बुरी तरह ढकेल रहे हैं! ...मुझे तो उस नौजवान लड़की से भी बड़ा डर लगता है।'

'कौन-सी नौजवान लड़की, माँ?'

'अरे, वही सोफ्या सेम्योनोव्ना जो वहाँ आई थी।'

'क्यों?'

'मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है, दूनिया। तुम मानो या न मानो, लेकिन जैसे ही वह आई, उसी दम मुझे लगा कि सारी मुसीबत की जड़ वही है...'

'ऐसी कोई भी बात नहीं,' दूनिया ने झल्ला कर कहा। 'एकदम बेसर-पैर की बातें करती हो... तुम्हें तो वहम हो गया है माँ! भैया अभी कल रात ही उससे पहली बार मिले थे, और जब वह अंदर आई तो फौरन उसे पहचान भी नहीं सके।'

'खैर, देख लेना! ...उसकी वजह से मुझे बड़ी चिंता है। देखना, तुम देख लेना! मुझे तो बहुत डर लग रहा था। मुझे वह घूर कैसी आँखों से रही थी! उसने जब उसका परिचय कराया तो मैं अपनी कुर्सी पर चैन से बैठी भी नहीं रह पा रही थी, याद है न बड़ा अजीब लगता है कि प्योत्र पेत्रोविच ने उसके बारे में ऐसी बात लिखी, और इसने उसे हम लोगों से, तुमसे बाकायदा मिलवाया! मतलब यह है कि वह उसके काबू में होगा।'

'लिखने को लोग कुछ भी लिखते रहते हैं। हमारे बारे में भी बहुत-सी बातें कही गईं और बहुत कुछ लिखा गया। भूल गईं तुम मुझे तो यकीन है कि वह बहुत भली लड़की है, और ये सारी बातें कोरी बकवास हैं।'

'भगवान करे ऐसा ही हो।'

'यह प्योत्र पेत्रोविच भी तो बहुत ही नीच किस्म का, दूसरों पर कीचड़ उछालनेवाला शख्स है,' दूनिया ने अचानक बिगड़ कर कहा।

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना जमीन में गड़ी रह गईं। फिर आगे बातचीत नहीं हुई।

'मैं बताता हूँ, तुमसे मुझे क्या काम है,' रजुमीखिन को खिड़की के पास ले जाते जाते हुए रस्कोलनिकोव ने कहा।

'तो कतेरीना इवानोव्ना से मैं कह दूँ कि आप आएँगे,' सोन्या ने जल्दी से कहा और चलने को तैयार हो गई।

'एक मिनट, सोफ्या सेम्योनोव्ना। हम कोई ऐसी बातें नहीं कर रहे जो तुम्हारे सुनने की न हो... तुम्हारे यहाँ मौजूद रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। तुमसे मुझे एक-दो बातें और भी करनी हैं। ...सुनो!' वह अचानक फिर रजुमीखिन की ओर मुड़ा। तुम जानते हो... क्या नाम है उसका... पोर्फिरी पेत्रोविच?'

'जानता तो हूँ! मेरा रिश्तेदार है! क्यों?' रजुमीखिन ने दिलचस्पी से कहा।

'वह मामला वही निबटा रहा है... तुम जानते हो, वही कत्लवाला मामला ...तुम कल इस बारे में कुछ चर्चा कर रहे थे।'

'तो फिर?' रजुमीखिन की आँखें फटी रह गईं।

'वह उन लोगों का पता लगा रहा था, जिन्होंने वहाँ चीजें गिरवी रखी थीं, और कुछ चीजें मेरी भी वहाँ गिरवी रखी हैं। छोटी-मोटी चीजें... एक अँगूठी जो मेरी बहन ने घर से चलते वक्त मुझे निशानी दी थी, और मेरे बाप की चाँदी की घड़ी कुल मिला कर पाँच-छह रूबल की होंगी... लेकिन मेरे लिए तो वे बहुत कीमती चीजें हैं। तो अब क्या करूँ मैं उन चीजों को मैं खोना नहीं चाहता, खास तौर पर घड़ी को। मैं तो तब थरथर काँपने लगा था, जब हम लोग दूनिया की घड़ी की बात कर रहे थे कि माँ कहीं वह घड़ी देखने को न माँग ले। हम लोगों के पास मेरे बाप की वही एक चीज बची है। अगर वह खोई तो माँ को बहुत सदमा गुजरेगा! तुम जानते हो न इन औरतों की आदत! तो बताओ, क्या किया जाए। मैं जानता हूँ कि मुझे थाने में खबर करनी चाहिए थी, लेकिन क्या सीधे पोर्फिरी के पास जाना बेहतर न होगा क्यों क्या राय है तुम्हारी इस तरह मुमकिन है मामला जल्दी तय हो जाए। बात यह है कि माँ शायद दोपहर के खाने से पहले घड़ी माँग बैठे।'

'थाने तो हरगिज नहीं जाना चाहिए। यकीनन पोर्फिरी के पास ही जाना बेहतर है,' रजुमीखिन ने बेहद जोश में आ कर कहा। 'कितनी खुशी मुझे हो रही है। चलो, फौरन चलें। यहाँ से दो ही कदम पर तो है। वह वहाँ जरूर होगा।'

'अच्छी बात है... चलो...'

'तुमसे मिल कर वह बहुत खुश होगा। मैंने कई मौकों पर उससे तुम्हारी चर्चा की है। कल ही मैं तुम्हारी बातें कर रहा था। तो आओ, चलें। उस बुढ़िया को तुम जानते थे तो यह बात है! अभी तक सब कुछ खुशगवार ही रहा है... अरे हाँ, सोफ्या इवानोव्ना...'

सोफ्या सेम्योनोव्ना, रस्कोलनिकोव ने उसकी गलती ठीक की। 'सोफ्या सेम्योनोव्ना, ये हैं मेरे दोस्त रजुमीखिन, बहुत ही भले आदमी हैं।'

'आप लोगों को अगर अभी जाना है...' सोन्या ने रजुमीखिन की ओर देखे बिना कहना शुरू किया, और पहले से भी ज्यादा सकपका गई।

'हाँ, हम तो चले,' रस्कोलनिकोव ने फैसला किया। 'मैं आज तुम्हारे यहाँ आऊँगा, सोफ्या सेम्योनोव्ना। बस इतना बता दो कि तुम रहती कहाँ हो।'

वह कतई झेंप नहीं रहा था लेकिन ऐसा लग रहा था कि वह जल्दी में था और सोन्या से नजरें मिलाने से कतरा रहा था। सोन्या ने शरमाते हुए अपना पता बताया। तीनों एकसाथ बाहर निकले।

'अपने कमरे में तुम ताला नहीं लगाते क्या?' उनके पीछे-पीछे सीढ़ियों पर आ कर रजुमीखिन ने पूछा।

'कभी नहीं,' रस्कोलनिकोव ने लापरवाही से जवाब दिया। 'ताला खरीदने की दो साल से सोच रहा हूँ। कितने सुखी हैं वे लोग जिन्हें ताले की जरूरत नहीं पड़ती,' उसने हँस कर सोन्या से कहा।

फाटक पर वे रुक गए।

'तुम्हें तो दाईं तरफ जाना है, सोफ्या सेम्योनोव्ना लेकिन तुम्हें मेरा पता मिला कैसे?' उसने बात को इस तरह बढ़ाया, जैसे वह कोई दूसरी ही बात कहना चाह रहा था। वह उसकी निर्मल आँखों में झाँकना चाहता था लेकिन यह तो इतना आसान नहीं था।

'क्यों, आपने पोलेंका को कल अपना पता बताया तो था।'

'पोलेंका अरे हाँ! पोलेंका, वह छोटी बच्ची! तुम्हारी बहन? मैंने उसे पता बताया था!'

'भूल गए क्या?'

'नहीं, याद है।'

'मैंने पापा से आपके बारे में सुना था... आपकी बातें वह किया करते थे। ...बस मुझे आपका नाम नहीं मालूम था, न उन्हें मालूम था। अब आज मैं आपके यहाँ आई... और चूँकि मुझे आपका नाम मालूम हो गया था, इसलिए मैंने पूछा : मिस्टर रस्कोलनिकोव कहाँ रहते हैं यह मुझे नहीं पता था कि आप भी एक किराएदार हैं। ...अच्छा, तो मैं चलती हूँ। ...मैं कतेरीना इवानोव्ना से बोल दूँगी।'

वहाँ से आखिरकार निकल कर उसे बहुत खुशी हुई और वह नजरें झुकाए चली गई। वह तेज कदमों से चल रही थी ताकि जल्दी से जल्दी आँखों से ओझल हो जाए, बीस कदम चल कर किसी तरह दाईं ओर के मोड़ तक पहुँच जाए, आखिरकार एकदम अकेली रह जाए और फिर तेजी से चलते हुए, किसी की ओर बिना देखे, किसी चीज की ओर बिना ध्यान दिए, सोचे, याद करे, एक-एक शब्द के बारे में, हर छोटी-सी-छोटी बात के बारे में अच्छी तरह विचार करे। उसे अबसे पहले कभी ऐसा एहसास नहीं हुआ था... कभी नहीं। उसके सामने धुँधले तौर पर और अनजाने ही एक नई दुनिया के दरवाजे खुलते जा रहे थे। अचानक उसे याद आया कि रस्कोलनिकोव उसके यहाँ आज ही आनेवाला था। शायद सबेरे... शायद इसी वक्त!

'बस आज नहीं, कृपा करके आज नहीं!' वह डूबते दिल से मुँह में ही बुदबुदाती रही, गोया किसी डरे-सहमे बच्चे की तरह किसी के आगे गिड़गिड़ा रही हो। 'भगवान दया करो मुझ पर! मुझसे मिलने आ रहा है... उस कमरे में... वह सब देखेगा... भगवान!'

उस घड़ी उसमें एक ऐसे अज्ञात सज्जन की ओर ध्यान देने तक का होश नहीं था जो उस पर बराबर नजर रख रहे थे और उसका पीछा कर रहे थे। फाटक के पास से ही वह उसके पीछे लग लिए थे। जिस पल रजुमीखिन, रस्कोलनिकोव और वह एक-दूसरे से विदा होने से पहले सड़क की पटरी पर खड़े थे, उसी समय यह सज्जन, जो उधर से गुजर रहे थे, सोन्या के ये शब्द सुन कर चौंके थे : 'मैंने पूछा मिस्टर रस्कोलनिकोव कहाँ रहते हैं?' उन्होंने मुड़ कर जल्दी से लेकिन ध्यान से उन तीनों को देखा, खास तौर पर रस्कोलनिकोव को जिससे सोन्या बातें कर रही थी; फिर उन्होंने मुड़ कर उस घर को अच्छी तरह देखा और यादों में बिठा लिया। यह सब कुछ उन्होंने वहाँ से गुजरते हुए पलक झपकते कर लिया था, और किसी को अपनी दिलचस्पी की भनक तक न लगने देने की कोशिश में और भी धीरे चलने लगे थे गोया किसी बात का इंतजार कर रहे हों। वे सोन्या की राह देख रहे थे। उन्होंने देखा कि वे लोग एक-दूसरे से विदा हो रहे हैं और सोन्या अपने घर जा रही है।

'पर कहाँ यह सूरत मैंने कहीं देखी है,' उसने सोन्या की सूरत याद करके सोचा। 'पता लगाना चाहिए।'

मोड़ पर वह आदमी सड़क की दूसरी तरफ चला गया, चारों तरफ नजरें दौड़ाई और देखा कि किसी भी चीज की ओर ध्यान दिए बिना सोन्या उधर ही आ रही है। वह नुक्कड़ पर मुड़ गई और यह सड़क की दूसरी पटरी पर पीछे-पीछे चलता रहा। लगभग पचास कदम के बाद वह फिर सड़क की इसी पटरी पर आ कर उसके पास तक जा पहुँचा और उससे बस पाँच कदम पीछे चलने लगा।

उसकी उम्र लगभग पचास की होगी। कद कुछ लंबा और शरीर गठा हुआ। कंधे चौड़े और ऊँचे, जिसकी वजह से देखने में लगता था कि वह कुछ झुक कर चल रहा है। वह बहुत अच्छे और फैशनेबुल कपड़े पहने हुए था और हैसियतदार, शरीफ आदमी मालूम होता था। उसके हाथ में एक खूबसूरत छड़ी थी, जिसे वह हर कदम के साथ सड़क पर टेकता हुआ चल रहा था। दस्ताने एकदम बेदाग और दूध जैसे सफेद थे। चौड़ा, खासा सुंदर चेहरा। गालों की हड्डियाँ कुछ उभरी हुई और चेहरे के रंग में ताजगी, जैसी पीतर्सबर्ग में अकसर दिखाई नहीं देती। हलके भूरे रंग के बाल अभी तक घने थे, बस बीच में कहीं-कहीं सफेदी झलकने लगी थी। घनी चौकोर दाढ़ी का रंग बालों से भी हलका था। आँखों का रंग नीला था और देखने के ढंग में कुछ कठोरता, पैनापन और विचारमग्नता का भाव था। उसके होठों का रंग लाल था। उसने अपने स्वास्थ्य को बहुत सँभाल कर रखा हुआ था, जिसके सबब वह अपनी उम्र से बहुत कम का लगता था।

सोन्या जब नहर किनारे पहुँची तब सड़क की उस पटरी पर सिर्फ वही दोनों थे। उसने ध्यान से देखा कि सोन्या अपने ही विचारों में खोई हुई है, जैसे सपना देख रही हो। जहाँ वह रहती थी, उस घर तक पहुँच कर वह फाटक में मुड़ी। वह सज्जन भी उसके पीछे मुड़े और लगा कि उन्हें कुछ ताज्जुब हो रहा था। अहाते में पहुँच कर वह दाएँ कोने की ओर मुड़ी। 'वाह!' अजनबी ने अस्फुट स्वर में कहा, और उसके पीछे ही सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। तब जा कर सोन्या का ध्यान उसकी ओर गया। तीसरी मंजिल पर पहुँच कर वह गलियारे में मुड़ी और 9 नंबर के कमरे की घंटी बजाई। दरवाजे पर खड़िया से लिखा था : कापरनाउमोव, दर्जी। 'वाह!' अजनबी ने एक बार फिर दोहराया और इस अनोखे संयोग पर आश्चर्य करने लगा। उसने अगले दरवाजे पर, 8 नंबर के कमरे की घंटी बजाई। दोनों दरवाजों के बीच कोई दो-तीन गज की फासला था।

'कापरनाउमोव के मकान में रहती हो,' उसने सोन्या की ओर देख कर हँसते हुए कहा। 'कल ही मैंने उससे अपनी एक वास्कट ठीक कराई है। मैं इधर बगल में, मादाम रेसलिख के यहाँ रहता हूँ। कैसा संयोग है!'

सोन्या ने उसे गौर से देखा।

'हम लोग पड़ोसी हैं,' वह बेहद खुश हो कर बोला। 'मैं अभी परसों ही यहाँ आया हूँ। अच्छा, फिर मिलेंगे।'

सोन्या ने कुछ जवाब नहीं दिया। दरवाजा खुला तो वह चुपके से अंदर चली गई। न जाने क्यों वह शर्म-सी महसूस करने लगी और उसे बेचैनी होने लगी।

पोर्फिरी के यहाँ जाते हुए रास्ते में रजुमीखिन खुशी से फूटा पड़ रहा था।

'यह तो शानदार बात हुई, प्यारे,' उसने कई बार दोहराया, 'आज मैं बहुत खुश हूँ, बेहद खुश!'

'किस बात पर खुश है भला?' रस्कोलनिकोव ने मन-ही-मन सोचा।

'मुझे नहीं मालूम था कि उस बुढ़िया के यहाँ तुमने भी कुछ चीजें गिरवी रखी थीं। और... क्या यह बहुत दिन की बात है मेरा मतलब है कि क्या तुम्हें वहाँ गए बहुत दिन हो गए?'

'कैसा भोला है यह भी!'

'कब की बात है,' रस्कोलनिकोव याद करने के लिए ठहर गया। 'यह बात उसके मरने के दो-तीन दिन पहले की होगी। लेकिन मैं उन चीजों को अभी नहीं छुड़ाऊँगा,' उसने उन चीजों के बारे में गहरी दिलचस्पी दिखाते हुए जल्दी से कहा, 'मेरे पास तो... कल रात के कमबख्त सरसाम के बाद... अब चाँदी का एक ही रूबल बचा है!'

'सरसाम,' पर खास तौर पर जोर दिया।

'हाँ, हाँ,' रजुमीखिन ने न जाने किस कारण से जल्दी से सहमति प्रकट की। 'अच्छा, तो यह बात थी कि तुमको... एक रट-सी लग गई थी... कुछ हद तक... बात यह है कि अपनी सरसामी हालत में तुम लगातार कुछ अँगूठियों या जंजीरों की बातें कर रहे थे! हाँ, हाँ... तो समझ में आ गया, अब सारी बात साफ हो गई।'

'सचमुच! तो यह विचार उन लोगों के बीच किस तरह फैला हुआ है! इसी को ले लो, मेरी खातिर सूली पर भी चढ़ने को तैयार, लेकिन इसे भी खुशी इस बात की है कि सरसाम की हालत में मैं अँगूठियों की इतनी चर्चा क्यों कर रहा था, यह बात साफ हो गई! उन सबके दिमाग में यह बात कितनी गहराई तक जम गई होगी!'

'इस वक्त वह मिलेगा?' उसने अचानक पूछा।

'हाँ, हाँ, मिलेगा,' रजुमीखिन ने जल्दी से जवाब दिया। 'बहुत उम्दा आदमी है यार, तुम देखना। थोड़ा-सा बेढब जरूर है, मतलब यह कि आदमी तो बहुत नफीस है लेकिन मेरा मतलब यह कि एक-दूसरे मानी में बेढब है। बहुत समझदार आदमी है, सच पूछो तो जरूरत से ज्यादा समझदार है, लेकिन उसकी कुछ हदें हैं, उनके ही अंदर सोचता है। ...कुछ शक्की है, कुछ सनकी भी है... लोगों को धोखा देना चाहता है, बल्कि उनका मजाक उड़ाना चाहता है। उसका तरीका वह पुराना, ठोस सबूतवाला तरीका है, सीधी बात को छोड़ कर बाल की खाल निकालने का... लेकिन अपना काम जानता है... एकदम पक्की तरह समझता है। ...पिछले साल उसने कत्ल का एक ऐसा मामला सुलझाया था, जिसमें पुलिस के पास कोई भी सुराग नहीं था। तुमसे मिलने के लिए बहुत ही बेचैन है!'

'किसलिए इतना बेचैन है?'

'यार, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है... बात यह है कि जब से तुम बीमार पड़े हो, तबसे मैं कई बार उससे तुम्हारी चर्चा कर चुका... तो जब उसने तुम्हारे बारे में सुना... कि तुम वकालत पढ़ते थे और अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए तो उसने कहा : बड़े अफसोस की बात है! और इसलिए मैंने यह नतीजा निकाला... सब बातों को मिला कर, किसी अकेली एक बात से नहीं; अब कल जमेतोव... तुम तो जानते ही हो रोद्या, कल रात तुम्हारे घर जाते हुए मैंने रास्ते में, नशे में कुछ बकवास की थी। ...मुझे डर है, यार कि तुम कहीं उसका कुछ बढ़ा-चढ़ा कर मतलब न लगा लो।'

'क्या इस बात का कि वे लोग मुझे पागल समझते हैं हो सकता है वे ठीक समझते हों,' उसने कुछ थमी-थमी मुस्कराहट के साथ कहा।

'हाँ, हाँ, यही... जाने दो यह सब खुराफात, है कि नहीं लेकिन मैंने जो कुछ कहा था (और उसके अलावा कुछ बात और भी थी) वह... सब बकवास थी, और इसलिए कि मैं शराबी था।'

'लेकिन तुम इतनी माफी क्यों माँग रहे हो? मैं इस तरह की बातों से तंग आ चुका!' रस्कोलनिकोव जरूरत से कुछ ज्यादा ही चिढ़ कर चीखा। लेकिन उसका यह बर्ताव अंशतः बनावटी था।

'जानता हूँ मैं, जानता हूँ और समझता हूँ! यकीन मानो, मैं सब समझता हूँ। उसकी बात करते भी शर्म आती है।'

'शर्म आती है तो मत करो उसकी बात!'

दोनों चुप हो गए। खुशी के मारे रजुमीखिन हवा में उड़ा जा रहा था और यह देख कर रस्कोलनिकोव को खुंदक हो रही थी। रजुमीखिन ने अभी पोर्फिरी के बारे में जो कुछ कहा था उससे भी उसे परीशानी हो रही थी।

'उसके सामने भी मुझे गंभीर सूरत बनाए रखनी होगी,' उसने धड़कते हुए दिल से सोचा और उसका रंग सफेद पड़ गया, 'और सो भी इस तरह कि मालूम न हो, मैं बना कर ऐसा कर रहा हूँ। लेकिन सबसे सहज बात तो यह होगी कि कुछ किया ही न जाए। पूरी सावधानी से, कुछ भी न किया जाए! नहीं, सावधानी बरतना भी बनावटी मालूम होगा... खैर, देखा जाएगा क्या होता है... वहाँ पहुँच कर देखेंगे। लेकिन वहाँ जाना भी ठीक है या नहीं परवाना उड़ कर चिराग की तरफ जाता है। बुरी बात यह है कि मेरा दिल धड़क रहा है!'

'इस स्लेटी रंगवाले घर में,' रजुमीखिन ने कहा।

'सोचने की सबसे बड़ी बात यह है कि पोर्फिरी को क्या यह बात मालूम है कि कल मैं उस खूसट बुढ़िया के यहाँ गया था... और खून के बारे में पूछा था इस बात का मुझे फौरन पता लगाना होगा, अंदर घुसते ही उसके चेहरे से पता लगाना होगा; वरना... मुझे पता तो लगाना ही होगा, चाहे वह मेरी तबाही का सबब क्यों न बन जाए!'

'मैं कहता हूँ यार,' उसने अचानक रजुमीखिन की ओर मुड़ कर एक टेढ़ी मुस्कराहट के साथ कहा, 'मैं आज दिन भर देखता रहा हूँ कि तुममें एक अजीब-सी हुलास है। है कि नहीं?'

'हुलास नहीं तो, कतई नहीं,' रजुमीखिन ने कहा, गोया उसे किसी ने डंक मारा हो।

'नहीं दोस्त, मैं जो कहता हूँ वह साफ तौर पर सही है। अरे कुर्सी पर भी तुम इस तरह बैठे हुए थे जैसे कभी नहीं बैठते, एकदम किनारे पर टिक कर; लग रहा था पूरे वक्त तुम तिलमिला रहे हो। बिना बात बीच-बीच में उचक पड़ते थे। पलभर में नाराज होते थे और दूसरे ही पल तुम्हारा चेहरा बिलकुल खिल उठता था। तुम्हारे कान की लवें तक लाल हो जाती थीं। खास तौर पर जब तुम्हें खाने के लिए बुलाया गया था, तब तुम बेहद शरमा रहे थे।'

'ऐसी कोई बात नहीं थी... सब बकवास है! मतलब तुम्हारा क्या है?'

'पर तुम इस बात से स्कूली लड़कों की तरह कतराना क्यों चाहते हो कसम से, लो देखो, फिर शरमाने लगे!'

'तुम भी साले सुअर हो!'

'तुम लेकिन इतना झेंप क्यों रहे हो? दीवाने कहीं के बस देखते जाओ, मैं आज इसके बारे में किसी को बताऊँगा हा-हा-हा! माँ तो हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाएँगी, फिर कोई और भी...'

'देखो यार, सुनो तो मैं कहे देता हूँ यह कोई मजाक की बात नहीं है... अब तुम करनेवाले क्या हो, शैतान की दुम!' रजुमीखिन बुरी तरह झेंप रहा था। उसे डर के मारे ठंडा पसीना छूटने लगा था। 'तुम क्या कहोगे उन लोगों से? मैं तो यार... उफ! तुम भी पक्के सुअर हो!'

'एकदम गुलाब की तरह खिले जा रहे हो। काश, तुम्हें मालूम होता कि यह सब तुम पर कितना जँचता है। छह फुट्टा दीवाना! आज कैसे नहाए-धोए लग रहे हो... नाखून भी साफ किए हैं, मैं दावे के साथ कहता हूँ। क्यों आज तक तो कभी ऐसा किया नहीं! अरे, मुझे तो लगता है कि बालों में क्रीम भी लगाई है! झुक कर दिखाओ तो सही!'

'पाजी कहीं का!!'

रस्कोलनिकोव लाख रोकने पर भी अपनी हँसी न रोका सका। वे दोनों इसी तरह हँसते हुए पोर्फिरी पेत्रोविच के फ्लैट में घुसे। यही तो रस्कोलनिकोव चाहता था। अंदर उनके हँसने की आवाज जा रही थी। वे दोनों अभी तक ड्योढ़ी में ठहाका मार कर हँस रहे थे।

'यहाँ इसके बारे में एक बात भी मुँह से निकाली तो... तुम्हारा भेजा मैं उड़ा दूँगा!' रजुमीखिन ने रस्कोलनिकोव का कंधा पकड़ कर गुस्से से उसके कान में कहा।