अपराध जगत में 'सुपारी' का अर्थ / जयप्रकाश चौकसे

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अपराध जगत में 'सुपारी' का अर्थ
प्रकाशन तिथि : 16 अक्तूबर 2019


शिवलिंग की पूजा करते समय पार्वती के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है, क्योंकि सारे अनुष्ठान में पति की बाईं ओर पत्नी को बैठाया जाता है। इसीलिए उसे वामा भी कहते हैं। पत्नी को दाएं हाथ नहीं बैठाने में भी उसके दूसरे दर्जे का नागरिक माने जाने की गंवारू अवधारणा सदियों से चली आ रही है। सीता की मुक्ति के लिए सेतु बनाने का शुभारंभ पूजा से किया गया और अपने कालखंड के श्रेष्ठ ब्राह्मण माने जाने वाले रावण को आमंत्रित किया गया। रावण अपने साथ सीता को लाया ताकि वे राम के साथ बैठकर विधिवत पूजा कर सकें।

इसी तरह विधुर अनुष्ठान करते समय अपनी बाईं ओर स्वर्गीय पत्नी के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखता है। पूजा अनुष्ठान में सुपारी महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है परंतु भारत में संगठित अपराध के उदय के साथ ही किसी व्यक्ति के कत्ल का ठेका दिए जाने को सुपारी देना कहा जाता है। पवित्र सुपारी का इस तरह घृणित उपयोग होने लगा है। हमें पवित्र को अपवित्र करने के काम में महारत हासिल है। हमारा नदियों को प्रदूषित करना कुछ आश्चर्यजनक नहीं है। शरद पूनम की रात चंद्रकिरण के प्रभाव से खीर के अमृत होने की बात गुजरे हुए वक्त में होती होगी। अब तो वातावरण में इतनी गंदगी हमने भर दी है कि चंद्रकिरण खीर तक पहुंचने के पहले ही बेअसर हो जाती है। प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है।

अमेरिका के संगठित अपराध जगत में 'कॉन्ट्रेक्ट किलिंग' होती है, जिसे हमने 'सुपारी देना' बना दिया है। यूरोप के सिसली नामक स्थान से अमेरिका में बसने वाले कुछ लोग अपराध जगत से जुड़े हैं। अपराध जगत के तमाम पुरोधा सिसली से आकर अमेरिका में बसने वाले लोग थे। यूरोप का सिसली हमारे चम्बल की तरह रहा है। अभिनेता मनोज बाजपेयी का कहना है कि चम्बल अब विकसित हो गया है और उसकी कोख से डाकू जन्म नहीं लेते। दरअसल, चम्बल का बीहड़ अब महानगरों में फैल गया है। अमेरिकी फिल्म 'गॉडफादर' के प्रदर्शन के कुछ समय बाद ही फिरोज खान ने उसका चरबा 'धर्मात्मा' के नाम से बनाया। फिरोज खान 'गॉडफादर' से कुछ इतने मंत्रमुग्ध थे कि उन्होंने कमल हासन अभिनीत 'नायकन' के अधिकार भी खरीदे और उसका चरबा हिंदुस्तानी भाषा में बनाया। 'नायकन' के अधिकार न खरीदकर वे अपने 'धर्मात्मा' को ही कुछ हेराफेरी के साथ पुन: बना सकते थे। 'नायकन' को 'दयावान' के नाम से बनाया गया। आश्चर्य है कि अपराध जगत की फिल्मों के नाम में 'धर्म' व 'दया' को जोड़ा गया। फिरोज खान हॉलीवुड की 'वेस्टर्न' विधा के इतने कायल थे कि अपने घर में भी फेल्टकैप पहनते थे। गनीमत है कि उन्होंने रिवॉल्वर रखने का होल्स्टर धारण नहीं किया था। अपराध जगत में परम्पराओं का निर्वाह इतनी निष्ठा से किया जाता है कि सुपारी लेने के बाद यह तथ्य जानने पर भी कि उन्हें किसी अपने को ही कत्ल करना है, वे पीछे नहीं हटते और 'सुपारी धर्म' का निर्वाह करते हैं। पूजा-पाठ की रीतियों के प्रति भी इसी तरह की निष्ठा का निर्वाह होता है। सुपारी का असली नाम एरिका नट है, जिसका उत्पादन केरल से प्रारंभ हुआ, जहां से इसे यूरोप ले जाया गया।

सरौते से सुपारी काटी जाता है परंतु पनवाड़ी एक उपकरण से इसकी गोल पतली परत काटते हैं। पान खाने के शौकीन मोटी सुपारी खाते हैं और कुछ लोग पतली परत के शौकीन होते हैं। भुनी हुई सुपारी भी खाई जाती हैं। पनवाड़ी कत्था बनाते समय उसमें मलाई भी मिला देते हैं। पान भी कई प्रकार के होते हैं जैसे कपूरी, बंगाली इत्यादि। संगीतकार सचिवदेव बर्मन और लक्ष्मीकांत पान खाने के बड़े शौकीन थे और बर्मन दादा अपना पान किसी को भी नहीं देते थे। अपनी धुनों से अधिक प्रेम वे अपने पान से करते थे। लक्ष्मीकांत अपना पान केवल आनंद बख्शी को ही देते थे। पारम्परिक पानदान में कई खाने होते थे, जिनमें सूखा कत्था, चूना और सुपारी रखने के अलग-अलग खंड होते थे। पान प्रेमियों का अपना 'खंड काव्य' होता है।

अपराध जगत में सुपारी देते समय सचमुच में सुपारी नहीं दी जाती। यह एक अलिखित दस्तावेज है। प्रेमियों द्वारा किए गए वादे से भी अधिक निष्ठा से सुपारी वादा निभाया जाता है। एक व्यक्ति अपने द्वारा ली गई 'सुपारी' अपने किसी साथी को भी सौंप सकता है गोयाकि एक लाख की 'सुपारी' किसी साथी को पचास हजार में भी पास ऑन की जा सकती है। पवित्र और महान उद्देश्य के क्षेत्र में काम करने को बीड़ा लेना कहा जाता है। ज्ञातव्य है कि पान का ही बीड़ा बनाया जाता है। विचारधाराओं के संगठन को भी उसी तरह से 'परिवार' कहा जाता है जैसे संगठित अपराध जगत में 'परिवार' होते हैं। मारियो पुजो की 'गॉडफादर' में डॉन कॉरलियान का 'परिवार' है। अमेरिकरी फिल्म 'गॉडफादर' के भाग दो में अपराध परिवार के एक सदस्य की पत्नी गर्भपात करा लेती है। यह उसका 'सविनय विरोध' है कि वह संतान को जन्म नहीं देना चाहती, क्योंकि वह जानती है कि संतान भी अपराध जगत की परम्परानुरूप काम करेगी। मारियो पुजो की गॉडफादर पूंजीवादी समाज की 'महाभारत' मानी जाती है।