अपरिग्रही संन्यासी / विनोबा भावे

Gadya Kosh से
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एक संन्यासी अपने आपको अपरिग्रही कहता था। उसने अपने पास केवल एक तुंबा रखा था। एक दिन उसे प्यास लगी और वह नदी पर गया। साथ में तुंबा लिया। उसके पीछे-पीछे एक कुत्ता भी वहां पहुँचा। कुत्ते ने चट से पानी पिया और भाग गया। संन्यासी ने सोचा, "मैं अपरिग्रही हूँ या कुत्ता, क्योंकि वह मेरे बाद आया और पानी पीकर चला भी गया। इसलिए सच्चा संन्यासी वहीं हैं। वहीं मेरा गुरु है।" यह कहकर उसने तुंबा नदी को अर्पित कर दिया।