अफसोस आनलाइन का / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
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उसने अपने दोनों बच्चों को बहुत समझाया-बुझाया कि अभी मेरी आनलाइन क्लास शुरु होने वाली है। शैतानी बिलकुल न करना। अगर मुझे पढा़ने में ज़रा भी व्यवधान हुआ तो तुम लोगों की खैर नहीं। दोनों ने एक स्वर में कहा-शोरगुल बिलकुल न होगा मम्मी।

लाकडाउन की आनलाइन शिक्षा में उसने पढ़ाना शुरू किया। दीवार पर टंगे अस्थाई बोर्ड पर वह पढ़ाने लगी। उसके सामने स्टैंड पर लगे स्मार्ट मोबाइल से जिसका प्रसारण छात्रों एवं शिक्षा के नीति-नियंताओ तक होने लगा। तभी किसी बात को लेकर उसके दोनों बच्चे आपस में झगड़ने लगे। उनका शोरगुल उसे परेशान करने लगा। थोड़ी देर तक वह बर्दाश्त करती रही, जब सब्र से बाहर हो गया, तो गुस्से से दनदनाते हुए पास के कमरे में गई जहाँ दोनों झगड़ रहे थे। दोनों के एक-एक तमाचे खींचकर बोली-बदतमीज नालायक ख़ुद तो पढ़ते-लिखते नहीं और मुझे भी पढ़ाने नहीं देते, लग रहा हराम का पैसा देगी सरकार। जी का जंजाल बनी है यह आन लाइन शिक्षा। ... तभी उसे शाक लगा! बुदबुदाई, ओह! ये क्या कह दिया। मोबाइल तो खुला होगा। उफ! मेरी भड़ास वहाँ तक पहुँच गई जहाँ तक नहीं पहुँचाना चाहती थी। अब क्या होगा?