अफ़सोस / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दार्शनिक सफाईकर्मी से बोला - "तुम्हारा पेशा वाकई बहुत घिनौना और गंदा है। मुझे दया आती है तुम-जैसे लोगों पर।"

"दया दिखाने का शुक्रिया श्रीमान जी।" सफाईकर्मी बोला - "आपका पेशा क्या है?"

"मैं लोगों के कर्तव्यों, कामनाओं और लालसाओं का अध्ययन करता हूँ।" दार्शनिक सीना फुलाकर बोला।

उसकी इस बात पर वह गरीब हल्के-से मुस्कराया और बोला - "आप भी रहम के काबिल हैं महाशय। सच।"