अभिनेत्री साधना नैयर आखिर कौन थीं ? / जयप्रकाश चौकसे

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अभिनेत्री साधना नैयर आखिर कौन थीं ?
प्रकाशन तिथि :26 दिसम्बर 2015


शुक्रवार को साधना नैयर का निधन हो गया, विगत तीन वर्षों से वे कैंसर से जूझ रही थीं। हरि शिवदासानी की पुत्री बबीता है, जो राज कपूर के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर की पत्नी हैं और हरि शिवदासानी के भाई की पुत्री साधना ने कॅरिअर ग्रुप डांसर से प्रारंभ किया और 'श्री 420' के गीत 'इके बलम आजा' में वे ग्रुप में शामिल थीं। माता-पिता की आर्थिक हालत कमजोर थी और साधना ही परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य थीं। आरके नैयर राज कपूर के सहायक निर्देशक थे और उनकी दोस्ती उसी समय हुई। एक दिन आरके नैयर 'लव इन शिमला' का विचार लेकर सीधे शशधर मुखर्जी से मिलने गए। मुखर्जी को प्रतिभा पहचान लेने की कला आती थी। जब नैयर साधना को शशधर से मिलाने ले गए और पूरे विश्वास से कहा कि यही नायिका होंगी, तब शशधर को सिर्फ यह संदेह था कि इस कन्या का माथा बहुत बड़ा है। नैयर साहब ने मेकअप रूम में ले जाकर तुरंत कैची से कुछ बाल काटे और उन्हें माथे की ओर कट दिया। कालांतर में यही हेयर स्टाइल 'साधना कट' के रूप में लोकप्रिय हुई। फिल्म थी 'लव इन शिमला।'

बिमल राय की 'परख' ने उन्हें गुणवान कलाकार के रूप में ख्याति दी। साधना की लोकप्रियता बढ़ती गई और रामानंद सागर की 'आरजू' में उन्होंने राजेंद्र कुमार के बराबर पांच लाख का मेहनताना पाया। आशा पारिख और सायरा बानो भी तब नायिका बनीं परंतु साधना ने अधिक सफलता अर्जित की। राज कपूर के साथ वे 'दूल्हा-दूल्हन' में नायिका बनकर आईं। उसके संघर्ष के कारण राज कपूर उन्हें 'सध्धोरानी' कहकर पुकारते थे। आरके नैयर और साधना का विवाह हो गया परंतु उन्हें बच्चे नहीं हुए। दो बार अबॉर्शन हो गया परंतु साधना, नैयर की बहन के बच्चों को अपने ही बच्चे मानती रहीं और उनकी विल में भी संपत्ति का अधिकार उन्हें दिया गया। उनके कॅरिअर के शिखर काल में उन्हें थायरॉइड की बीमारी ने जकड़ लिया, जो उस समय लाइलाज थी। एक अन्य रोग के कारण उन्हें लंदन जाकर अपनी आंख निकलवानी पड़ी और असली आंख की तरह दिखने वाला पत्थर लगाया और कुछ समय वे सिनेमा से दूर रहीं। बाद में नैयर ने उन्हें लेकर अत्यंत सफल 'गीता मेरा नाम' बनाई। उन्होंने नारी सिप्पी को निर्माता बनने में मदद की। वह फिल्म थी 'वो कौन थी।' फिल्म में मदनमोहन ने माधुर्य रचा और 'नयना बरसे रिमझिम-रिमझिम' गीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ। देव आनंद के साथ 'हम दोनों' का संगीत भी कमाल का था। उन्होंने बीआर चोपड़ा की फिल्म 'वक्त' में भी काम किया।

साधना की पत्थर की आंख के कारण याद आई एक यूरोपीयन फिल्म के दृश्य का सारांश : दूसरे विश्वयुद्ध में नाज़ी कंसन्ट्रेशन कैंप का निर्दयी मुखिया लोगों को तड़पाकर मारता था। उसने अपने जन्मदिन पर यह रियायत दी कि कैदी उसके सवाल का जवाब देगा तो वे उसे आजाद कर देगा। एक दुर्बल कैदी को बुलाकर उसने कहा कि जर्मन डॉक्टर इतने कुशल हैं कि उसकी एक आंख पत्थर की लगाई है और बिल्कुल असली लगती है। कैदी से पूछा कि कौन-सी आंख पत्थर की है और कैदी ने उसी क्षण कहा कि बाईं आंख पत्थर की है। जेलर ने पूछा कि इतनी शीघ्रता से सही जवाब कैसे दिया तो कैदी ने कहा कि पत्थर की बाईं अांख कुछ इनसानी करुणा साफ दिखती है। मैं समझता हूं कि नाज़ी अत्याचारों का यह सबसे सबल, प्रबल व तीखा जवाब था। हिटलर ने जर्मन जाति की श्रेष्ठता का जो जिन्न चिराग से निकाला था, उसने अनगिनत जानें लीं और आजकल हमारे यहां भी इसी तरह की श्रेष्ठता का समूह गुणगान हो रहा है।

साधना प्राय: केरल से आईं गरीब लड़कियों को अपने यहां काम देतीं और उन्हें जीने व सेवा करने का सलीका सिखातीं थीं और यह कला सीखकर उन लड़कियों को विदेशों या देशी रईसों के यहां अच्छे वेतन पर काम मिलने लगा। उन्हीं में से एक ने सब ऑफर ठुकरा दिए और विगत दस वर्षों से वह साधना की सेवा कर रही थी।

साधना का शानदार फ्लैट कार्टर रोड पर है और उसे किराए पर देकर वे उस बंगले में रहती हैं, जो उन्होंंने 50 वर्ष पूर्व आशा भोंसले से किराए पर लिया था। आशाजी ने जिस बिल्डर को वह बेचा, उसने तरह-तरह से साधना को डराया-धमकाया परंतु साधना इस भय के हव्वे से कभी नहीं डीं।