अभिसारिका / मधु संधु

Gadya Kosh से
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फोन जब से सात अंकों का हुआ है, यानी उसके आगे दो अंक जुड़ा है, सब गड़बड़ा गया है। नंबर ही भूल जाता है। उसने पुराना नंबर याद किया और उसके आगे दो लगाकर डॉयल करने लगी।

अखबार पढ़ते हुये अनुपम राय ने ऐनक से ही पलकें चढा कर फोन को देखा और सहलाते हाथों द्वारा रिसीवर उठाया। उन्हें इसी की प्रतीक्षा थी।

हैलो!

चार बजे, कंपनी गार्डेन के फव्वारे वाले पार्क के तीसरे बेंच पर।

ठीक है।

उसका मन बल्लियों उछलने लगा। पन्द्रह दिनो की प्रतीक्षा के बाद यह समय आ ही गया।

एक प्लेट फ्रूट चाट पैक करवा वे चल दिये। बेंच पर छोटे-छोटे फूलों वाला दुपट्टा सूट पहने वह बैठी थी। दुपट्टे के नीचे छिपे हाथ में छोटा-सा लंच बॉक्स था। पोते चिंटू का होगा।

प्लास्टिक के डिस्पोजेबल चम्मच से दोनों ने गाजर का हलवा खाया। टखनों, घुटनों, दांत, पेट, कफ एवं दांतों- मसूड़ों की चर्चा की। गुनगुनी धूप के बाद फ्रूट चाट का मज़ा लिया और फिर अपने-अपने रास्तों पर चल दिये।

यह साठ वर्षीय पत्नी छोटे के पास और उसका तिरसठ वर्षीय पति बड़े के पास रह रहे हैं। बड़े की पत्नी नौकरी में है, इसलिए घर में वे खाली बोर होते रहते है। छोटे की पत्नी महीने में एक-आध बार किटी पार्टी या अन्य कहीं निकलती है और दोनों उसी को सार्थक करने में जुट जाते हैं।