अमृता प्रीतम, जिनकी छत इमरोज थे तो साहिर आसमान / नवल किशोर व्यास

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अमृता प्रीतम, जिनकी छत इमरोज थे तो साहिर आसमान


"सारे अदब से और सारी पाकीजगी से, तीन सौ पैंसठ सूरजों से...मैं आधी सदी के सारे सूरज को, आज को, 31 अगस्त को तुम्हारे अस्तित्व को टोस्ट दे रहा हूँ --सदी के आने वाले सूरजों का "

बीत चुके किसी इक्कतीस अगस्त को इमरोज ने ये कहा था अमृता प्रीतम के लिए। कल उनका सौवां जन्मदिन गुजरा, उनके सम्मान में गूगल ने डूडल बनाया। फेसबुक पर लोगो ने उनकी रचनाओं, उनके किस्सो को याद किया। अपने लिखे के दम से आगे भी याद करते रहेंगे। वे उन चंद रचनाकारों में रही, जिन्हें आम पाठको के भरपूर प्यार के साथ-साथ संवेदना के सूक्ष्म तारो को महसूस करने वालो की आस्था भी नसीब हुई। सौ से ज्यादा किताबें लिखीं। कविता और कथा साहित्य दोनों पर वह साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं। साल 1969 में उन्हें पद्मश्री, 1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ और साल 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मविभूषण भी दिया गया। उनके, गीतकार साहिर और आर्टिस्ट इमरोज के आपस में प्रेम पर फिल्म बनाने की असफल कोशिश बार-बार हुई। संजय लीला भंसाली पिछले काफी समय से इस प्रेम कहानी को बनाने की फिराक में है। सुना कि पहले प्रियंका चौपड़ा और इरफान खान को कास्ट किया और अब अभिषेक बच्चन और तापसी पन्नू से बात चल रही। उम्मीद करते है कि ये कहानी और इससे जुड़े तमाम रंग लोगो तक जल्दी पहुंचे। थियेटर में शेखर सुमन और दीप्ति नवल इस पर नाटक तो बहुत सालों से करते आ रहे है। वैसे खुद अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में बहुत जगह पर साहिर के लिए अपना प्यार बयान किया है। अमृता साहिर की छोड़ी सिगरेट पीती तो उधर साहिर अमृता के पी हुई चाय के कप सम्भाल कर रखते। स्कूटर पर इमरोज अमृता को ले जाते तो अमृता इमरोज की पीठ पर उंगलियों से साहिर-साहिर लिखती। इमरोज कहते- उन्हें फर्क नही पड़ता। वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं, मैं भी तो उन्हें चाहता हूँ। कुछ ऐसे ही किस्से कहानियों से गुलजार है ये दास्तां जो दर्ज तो हुई पर ढंग से बयान नही हुई। शुरु तो हुई पर परवान न चढ़ पाई। इश्क़ के अपने नखरे होते है। बहुत बार ये अपने अंजाम पर न पहुच कर खूबसूरत मोड़ पर छोड़ दिया जाता है। अमृता-इमरोज-साहिर तीनो ही व्यक्तिगत जीवन में पूर्णता की तलाश में रहे पर पूर्णता मिली नही। एक मुकम्मल अधूरापन था तीनो के पास जिसने रचनाकार के तौर पर उन्हे सम्पूर्ण बनाया। गहरे प्रेम की अवस्था और इससे उपजी मनोस्थिति को समझने के लिये ये तीनो पात्र माध्यम बन सकते है।

अमृता की ज़िंदगी के कई रंग-ढंग रहे। अपने जमाने की खालिस प्रोग्रेसिव लड़की। पति से अलग होकर किसी और के साथ बिना शादी लिव-इन में रहने वाली लड़की, जो प्यार तीसरे आदमी से करती है। ओशो से भी उनका जुड़ाव रहा। उनकी किताब की भूमिका भी लिखी। ज्योतिष और सपनो में दिखी घटनाओ के मतलब निकालने से भी लगाव रहा। बचपन में माँ की मौत, भारत विभाजन का दर्द, बहुत से प्रणय-निवेदन के बीच केवल साहिर के लिए प्रेम, उससे दूरियाँ और इमरोज़ का अंत तक साथ। जीवन से कभी हताश-निराश न होने वाली लड़की। दुनिया को उम्मीदों पर टिके रहने के लिए लिखा- "दुखांत यह नहीं होता कि ज़िंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहें और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे, दुखांत यह होता है कि आप लहू-लुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाएं, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे।"

अमृता प्रीतम को काफी देरी से पढ़ा। थोड़ा जल्दी पढ़ लेता तो जरा सी समझ और अच्छी होती, जरा सा और बेहतर इंसान होता और शायद जरा सा इस दोपहर का ताप कुछ अलग होता। दुनिया में बहुत कुछ है पढ़ने को, जानने को, समझने को पर डेस्टनी तय करती रहती है कि आपको कब-कहा अटकना है और कब-कहा निकलना है। हम बहुत बार खुद हमारे नही होते। शायद हमारे प्रति हमारे से ज्यादा क्रूर और कोई दूसरा होता भी नही।