अमेरिकन स्वप्न का यथार्थ क्या है? / जयप्रकाश चौकसे

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अमेरिकन स्वप्न का यथार्थ क्या है?
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2014


'जी' की नई चैनल 'जिंदगी' पर सरहद पार के सीरियल दिखाए जा रहे हैं। इनके विषय आपको दूरदर्शन के दो सुनहरे दशकों की याद दिलाते हैं जब बुनियाद, हम लोग, तमस, डिस्कवरी ऑफ इंडिया, ये जो है जिंदगी इत्यादि दिखाए गए थे। जीवन के यथार्थ से जन्मीं मानवीय करुणा की कहानियों को कैसे सरहदों के द्वारा बांटा जा सकता है, वे तो पूरी दुनिया की हैं। इन मार्मिक कहानियों का प्रभाव कमाल का है। प्रतिदिन रात सवा दस से ग्यारह के समय एक ही एपिसोड में खत्म होने वाली कहानी प्रस्तुत की जाती है आैर अन्य सीरियल भी 16 एपिसोड से लेकर 24 एपिसोड के परे नहीं जाएंगे। क्योंकि इन्हें मुंबई में कुछ केबल ऑपरेटर दिखा चुके हैं। इनकी तकनीकी गुणवत्ता, अभिनय कौशल आैर सामाजिक प्रतिबद्धता वाली कहानियों की प्रशंसा की जानी चाहिए। सच तो यह है कि हमारा सीरियल संसार फंतासी है आैर एक ऐसा वैकल्पिक संसार वे प्रस्तुत करते हैं कि आप यथार्थ से पूरी तरह दूर हो जाते हैं, जबकि सरहद पार के ये सीरियल यथार्थ प्रस्तुत करते हैं। इनकी कलात्मकता आैर सामाजिक प्रतिबद्धता का पूरा विवरण यहां संभव नहीं है परंतु केवल कुछ सामाजिक तथ्यों की बात की जा सकती है। सरहद पार के सीरियलों में उच्च मध्यम वर्ग आैर श्रेष्ठ वर्ग के परिवारों में अंग्रेजी लगभग उतनी ही बोली जाती है जितनी भारत में। इन परिवारों पर पाश्चात्य प्रभाव भी बहुत गहरा है। अनेक पात्र छद्म आधुनिकता के शिखर हैं। जिस तरह हमारे देश में अंग्रेजी की लोकप्रियता देशज भाषा का स्वरूप बिगाड़ रही है, ठीक ऐसा ही उधर भी हो रहा है कि उम्रदराज पात्र पारम्परिक भाषा बोल रहे हैं परंतु युवा वर्ग अंग्रेजी के बिना स्वयं को अभिव्यक्त ही नहीं कर पाता। ग्रामीण एवं कस्बाई पृष्ठभूमि वाले सीरियलों में सारे पात्र पंजाबी, पश्तो आैर उर्दू का मिलाजुला स्वरूप इस्तेमाल करते हैं।

इसी संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि चीन जैसे कम्युनिज्म का दावा करके पूंजीवाद साधने वाले देश में जहां अपराध सिद्ध हुए बिना भी दंड दिया जा सकता है, युवा वर्ग तहखानों में रॉक बैंड बजाते हैं आैर पाश्चात्य प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। विघटन के बाद रूस पर अमेरिकन जीवन शैली का प्रभाव इस कदर बढ़ा है कि वोदका से अधिक मार्टिनी बिक रही है। हॉलीवुड फिल्मों के व्यापक प्रदर्शन के कारण उस रूस में अब अवधी सार्थक फिल्में नहीं बनती जिसने 'बैलाड ऑफ सोल्जर', 'क्रेन्स आर फ्लाइंग' दी थी आैर फिल्म विधा के प्रारंभ में अनेक महत्वपूर्ण कृतियां बनी थीं जो आज भी अनेक देशों ने पाठ्यक्रम में शामिल कर ली हैं।

गौरतलब यह है कि अमेरिकन जीवन शैली दुनिया के अधिकांश देशों में छा गई है आैर कोकाकोला ने गन्ने के रस की तरह सभी देशों में पारम्परिक पेय की जगह ले ली है। सभी देशों के युवा अवचेतन में 'अमेरिकन स्वप्न' समा गया है। क्या यह हॉलीवुड की फिल्मों के कारण हुआ? क्या अमेरिका के युद्ध आधारित व्यवसाय का प्रचार हॉलीवुड फिल्मों ने किया? आखिर इस व्यापक अमेरीकेनेज्म की लोकप्रियता का रहस्य क्या है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हॉलीवुड में सनसनीखेज फिल्मों के साथ सार्थक फिल्में भी बनाई हैं आैर विज्ञान फंतासी फिल्मों में भी मानवीय करुणा के दृश्य होते हैं। हॉलीवुड को या भारतीय सिनेमा को महज सतही फॉर्मूला कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। इनमें सार्थकता फूहड़ता गलबहियां करते नजर आती हैं।

अमेरिकन जीवन शैली की लोकप्रियता का एक कारण यह हो सकता है कि भारत में भ्रष्टाचार आैर सामाजिक अन्याय तथा हुल्लड़बाजी के तांडव के कारण नाराज लोग 'अमेरिकन स्वप्न' संजोए रहते हैं। चीन में तानाशाही आैर सख्त अनुशासन के नाम पर रची क्रूरता से आहत लोग 'अमेरिकन स्वप्न' मन में पाल रहे हैं। पाकिस्तान में अशांति अव्यवस्था के कारण युवा वर्ग अमेरिका की आेर ताकता है। इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, जापान अमेरिकन स्वप्न से मुक्त देश है जबकि हॉलीवुड ने इन देशों प्रदर्शन क्षेत्र पर इस कदर कब्जा जमाया है कि देशज फिल्मों को प्रदर्शन का अवसर ही नहीं मिलता। इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि भले ही हॉलीवुड ने 'अमेरिकन ड्रीम' लोकप्रिय बनाया हो परंतु अमेरिकन जीवन शैली के छा जाने का एकमात्र कारण नहीं है। यह अजीब बात है कि अमेरिकन समाज की बीमारियां दूसरे देशों में फैल जाती हैं परंतु वे अपने देश में व्यक्तिगत स्वतंत्रता धर्मनिरपेक्षता के निर्वाह के प्रति समर्पित हैं। पूंजीवादी अमेरिका ने उपभोगवाद की तरह 'अमेरिकन ड्रीम' का भी निर्यात किया है। इसी तरह अमेरिक जंक फूड हम चटखारे लेकर खा रहे हैं आैर अमेरिका में यह केवल सरकारी सहायता पर निर्भर लोग ही खाते हैं। अमेरिकन ड्रीम अपने देश में ध्वस्त होकर अन्य देशों में फैल गया है।