अलगाव / शुभम् श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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रोहित ने जमीला से जाकर कहा–'मुबारक हो तुम्हें इंसाफ मिल गया।'

जमीला ने बोला–'पर मैं हार गई. कितना कुछ खो गया मेरा मुझमे।'

रोहित ने उसका हौसला बढ़ाना की कोशिश की पर उसका मन नहीं कर रहा था। उसका अंतर्मन व्यथित और विचलित था। सर्दी बीत गयी अब वसंत का महीना चालू हो गया। चारों तरफ खिलखिलाता मौसम देख जमीला ने बाहर निकलने का मन बनाया। वह पूरा आगरा, लखनऊँ और मथुरा एक सप्ताह तक घूम कर आई. मन हल्का हुआ तोह फिर काम करने की सोची। वह केस दर केस लडती चली गई. निडर, निर्भीक, न्यायशील लफ्जोंसे उसने सभी को अपना कायल बना दिया था। उसने लगभग ना के बराबर ही केस हारे होंगे।

22 जुलाई

आज जमीला का जन्मदिन था। रोहित ने आज उसके लिए कुछ नया सोच रखा था। उसने जमीला को चालुक्य होटल पर बुलाया। जमीला को महसूस तो हुआ की जन्मदिन मनाया जाएगा पर वहाँ सिर्फ़ रोहित को अकेला पाकर थोड़ा असमंजस में पढ़ गई. रोहित–'जन्मदिन मुबारक।'

जमीला–'धन्यवाद। लेकिन और सब कहाँ है?'

रोहित–'जमीला मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।'

जमीला– 'बोलो' जमीला की आँखे तन गई.

रोहित ने घुटने के बल प्रोपोज़ किया। 'मैं तुमसे बेपनाह प्यार करता हूँ। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?'

जमीला हठ गई अपनी जगह से। वह बोली–'यह हो नहीं सकता। यह हो नहीं सकता।'

रोहित खड़ा हुआ और बोला–'लेकिन क्यों?'

जमीला–'मैं खुद ही खुद से शादी नहीं करना चाहूँगी। अगर मैं तुम्हें अपनी जगह रखकर देखूँ। तो मैं तुम्हें कैसे हाँ कह दूँ।'

रोहित–'पर मैं तो तुमसे प्यार करता हूँ और तुम ही मुझे काफ़ी हद तक पसंद करती हो। क्या यह इतना काफी नहीं।'

जमीला–'देखों रोहित ये नहीं होने वाला। मैं आज़ाद पक्षी की तरह उड़ना चाहती हूँ। मैं इस पिंजरे में दोबारा नहीं जाने वाली।'

मुझे किसी की रहमत पर नहीं रहना और अगर ये तुम संतावना और तरस में आकर कर रहे हो तो तुम ग़लत हो। ये प्यार नहीं होता। '

रोहित–'क्या यार कितना ग़लत सोचती हो तुम हमारे बारे में। पहला तो तुम अपना चेहरा स्कार्फ़ से ढकना बंद करो। तुम पर अच नहीं लगता। गलती किसी और की और सजा तुम भुक्तो।' यह कहकर उसने उसके चेहरे से स्कार्फ़ उतर लिया। वह स्तब्ध हो गयी बिलकुल एक जगह स्थिर खड़ी हो गई.

रोहित ने बोला–' अगर दम है ना तो कोर्ट में इसे पहने बिना जाना और दूसरा मैंमलिक नहीं हूँ तो मुझे उससे मत आंको हर उँगली एक बराबर नहीं होती। उसी प्रकार हर इंसान एक बराबर नहीं होता। सब में अपनी खामी और अच्छाई है। तीसरा मैं तुमसे इसलिए प्यार नहीं करता क्योकिं तुम पहले खूबसूरत थी या अब तुम्हारी सिचुएशन दयनीय है। खूबसूरत चेहरा ठंडा गोश्त बराबर होता है। दुनिया में खूब नुमाइंदे होंगे ठन्डे गोश्त की खूब नुमाइसें भी लगती है पर मेरे लिए व्यर्थ है ये सब। तुझमे वह आग़ है जमीला जो ज़िन्दगी बदलने का माद्दा रखती है मैं ठीक ऐसे ही जिंदादिल इंसान से प्यार करना चाहता हूँ। मेरे मानस पटल पर तुम सबसे अच्छी इंसान हो जीवन जीने के लिए और मैं कुछ नहीं कहना चाहता। तुम्हें भी सबकी तरह जीने का अधिकार है जमीला। खुद को मौका दो। यह आखिरी बार है।

'हाँ या ना।'

जमीला ने जितनी भी दीवारे अपने मन में बना रखी थी वह सब रोहित के तीक्ष्ण शब्दों से टूट गई. उसके मन की सारी व्यथा चूर हो गई. उसका मन कह रहा था राही आगे बढ़ तेरी ज़िन्दगी तेरे सामने खड़ी हो तुझे पुकार रही है। वह टूट गई और बोली–' थक चुकी हूँ मैं ले चलो मुझे अपने साथ। हाँ तुम मुझे पसंद हो। यह कहकर उसने रोहित को गले से लगा लिया और उसके आँखों से आँसू बहने लगे। दो-तीन महीने बीत गए. दोनों के प्रेम में सघनता बढ़ गई. जमीला और रोहित अब एक दूसरे के घर वालों से मिलकर रिश्ते की बात करना चाहते थे पर उन्हें यह राह आसान नहीं लग रही थी।

रोहित–'माँ मैं उसी से शादी करूँगा। उसके जैसी कोई नहीं।'

सुनीता (रोहित की माँ) –'तुम्हें सिर्फ़ वहीँ लड़की मिली। हद है एक तो मुस्लिम वह मांसाहार करने वाली और तू सादा शाकाहारी। उसका एक चक्कर था। उसको उसी के साथी ने तेजाब फेका कुछ तो कमी रही होगी वरन ऐसा ना होता।'

रोहित–'तुम्हें सिर्फ़ आधा ही पता है। उसके घर वालो ने उसकी ही नहीं सुनी और जानती हों सबसे बड़ी गलती कहाँ थी यह रूढ़िवादी सोच की जो तुम में भी कहीं ना कहीं बसी है जो मलिक की माँ में थी।'

सुनीता–'मैं मलिक को नहीं जानती ना ही उसकी माँ को मैं तो सिर्फ़ इतना जानती हूँ की यह लड़की की वजह से एक लड़का गया है। मैं नहीं चाहती मेरे बेटे के साथ कुछ भी ग़लत हो।'

रोहित–'वह ऐसी नहीं है माँ कम से कम एक बार तो उससे मिल लो।'

सुनीता–'नहीं।'

रोहित–'मेरी भी ज़िद है मैं शादी तो उसी से करूँगा वरना नहीं।'

यह कहकर वह घर से निकल गया। माताजी ने भी मन में बुदबुदाया–'जा साले, 4 दिन में आटे-दाल का भाव पता चलेगा तो वापिस यहीं दिखेगा।'

इधर फ़ातिमा ने कहा–'जमीला, लड़का हिंदू है। तेरे अब्बाजान नहीं मानेंगे। भले मैं मान लू।'

जमीला–'अब्बू को आप मनाओ.'

आधे घंटे बाद जमीला के पिता आए. तो माँ–बेटी ने बात बताई.

फ़हीम- (जमीला के पिता) -'नहीं। हम समाज से बेदखल नहीं होना चाहते। पहले ही इतना कुछ हो चुका है अब और नहीं।'

जमीला और रोहित ने हजारों कोशिश की। तरह-तरह से मनानेकी कोशिश की। इधर शमायरा और रहमत की शादी हो गयी। वहाँ पर जमीला और रोहित अपने माता-पिता को यही दिखाने की कोशिश कर रहें थे की वह उनसे क्या छीन रहें थे। लेकिन शादी के रीती रिवाज़ आड़े आए तो दोनों ने मिलकर कोर्ट मैरिज कर ली। फिर बाद में दोनों ने अपने-अपने रिवाजों के मुताबिक शादी कर ली।

3 साल बाद।

सुबह 7: 30 बजे रहे थे, जमीला के व्हात्सप्प पर शमायरा का मैसेज आता है।

'मेरे पति ने मुझे व्हात्सप्प पर तलाक दी दिया।'

जमीला ने जैसे ही मैसेज देखा तुरंत शमायरा को फ़ोन किया।

जमीला–'क्या हुआ री, आखिरकार उसने तुझे तलाक क्यों दी दिया?'

शमायरा–'मैं मायके आ गई बच्चों के साथ और ये बार–बार मुझे बुलाते थे, मेरे भाई की शादी थी दो–चार बार इन्होने कॉल करी वह मिस कॉल हो गई. गुस्से में आकर इन्होने तलाक-तलाक तलाक लिखकर भेज दिया।'

मैंने फ़ोन पर माफ़ी भी माँगी लेकिन इन्होंने एक ना सुनी। लेकिन उन्होंने एक भी ना सुनी कह रहे हैं तुम वहीँ रहो और बच्चो को यहाँ भेजो नहीं जीना तुम्हारें संग।

जमीला–'अमा! तुम ख़ुद वकील हों उसको कोर्ट में चुनौती दो की एक तरफ़ा तालाक नहीं होते।'

शमायरा–'पर आयातों के हिसाब से ये तो मुमकिन है।'

जमीला–'तुम 21वी सदी में हो इसको चुनौती दो, मैं तुम्हारा केस लडूंगी, संग हूँ तुम्हारे।'

जमीला ने ठाना की वह शमायरा को इंसाफ दिला कर रहेगी दस दिन बाद कोर्ट की सुनवाई शुरू हुई.

जमीला ने रहमत से पूछा–'जी हाँ, पहली पसंद थी अब नहीं जिस औरत को अपने पति की कदर नहीं है वह उसके संग रहने के काबिल नहीं।'

जमीला–'देखिये, आजकल के रिश्ते नाज़ुक होते है। आपका हक़ है गुस्सा होने का लेकिन आपको सामने वाले की भी सुननी चाहिए.'

रहमत–'आपने भी तो सामने वाले की नहीं सुनी अपने समय पर।'

जमीला–'मेरे केस और आपके केस में काफ़ी अंतर है।'

रहमत–'मुझे नहीं पता इस बारे मैं बस इतना पता है कि इसने मेरी कॉल्स नहीं उठाई. व्यस्त तो सब होते है लेकिन मैसेज में कम से कम लिख सकती थी कि मैं व्यस्त हूँ लेकिन इसने ज़रा भी ज़हमत नहीं उठाई.'

जमीला–'शादी के शोरगुल में अक्सर यह सब हो जाता है। तलाक तब लेना चाहिए जब दोनों पक्ष एक-दूसरे को देखना तक न पसंद करे।'

रहमत–'हाँ, तो मुझे ना पसंद है ये अब।'

जमीला–'माई लॉर्ड्स जैसे कि आप देख सकते है कि यह एक तरफ़ा तलाक नाइंसाफी से कम नहीं है।' और व्हात्सप्प पर कब से तलाक़ होने लगे ये तो कोर्ट में होते है।

जब मन भर जाए तब तलाक ले लो जब गुस्सा हो तो तलाक़ ले लो ये ग़लत है। मैं आपको हज़ारो केस दिखा सकती हूँ माय लार्ड ये तलाक! तलाक! तलाक! के इस पाक चीज़ में लोग अपने नापाक मनसूबे पूरे कर रहे है।

पहले का ज़माना कुछ और था तब लोग दिल के साफ़ होते थे तब ये रीति हो सकती थी अब यह कुरीति से कम नहीं। कुरीति हर धर्म में समय के साथ हो ही जाती है। जैसे हिंदू-धर्म में सती प्रथा जिसे बंद किया गया। अब तो देशों में यहाँ तक की पाकिस्तान में यह बंद है तो फिर यहाँ अब-तक इसको मान्यता क्यों?

माई लार्ड रहमत तो सिर्फ़ इंसान है कुसूर तो इस प्रचलित प्रणाली का है। तो मेरी आपसे गुजारिश है कि इस प्रणाली को ही खत्म कर दे। '

यह सब दलील सुनकर जज-साहब ने निर्णय सुनाया रहमत और शमायरा को तलाक मिल गया। रहमत को 10 लाख रूपये शमायरा को गुजर बसर के लिए देने पड़े। सब हो गया एक पिटीसन कोर्ट में डाली गई इसको ख़त्म करने के लिए कोर्ट ने कारवाई चालू कर दी।

जमीला को धमकियाँ मिली कई बार उसे घूस देने की भी कोशिश की गई. लेकिन वह हार नहीं मानी। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 को मन की यह प्रक्रिया गैर-कानूनी है और सरकार से इसको ख़त्म करने के लिए कहा। 2018 तक आते-आते सरकार भारी विरोध के बाद भी इसे बंद कर दिया। जमीला ने चैन की साँस ली। अमावास बीत गयी और नई सुबह का सवेरा हुआ।