अलग-अलग मोतियाबिंद / जयप्रकाश चौकसे

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अलग-अलग मोतियाबिंद

प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2011

शेक्सपीयर के नाटक 'किंग लिअर' में राजा अपनी निष्ठावान ईमानदार बेटी को निष्कासित करता है और चाटुकार बेटियों को सत्ता और धन देता है। अंत में वह ईमानदार बेटी ही उसकी सेवा करती है। यह नाटक अजर-अमर इसलिए है कि प्राय: पिता चाटुकार बच्चों को ही अधिकांश सम्पत्ति देते हैं और वे अपनी संतानों में ही असल-नकल का भेद नहीं कर पाते। आज भारतीय अदालतों में जायदाद के बंटवारे को लेकर असंख्य मामले विचाराधीन हैं और अदालतें इस एक्स्ट्रा लगेज के भार से दबी हैं। यह सच है कि उम्रदराज लोगों को मोतियाबिंद होता है, जिसका इलाज हो जाता है। परंतु व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का कोई इलाज नहीं। पढ़े-लिखे उम्रदराज लोग भी नजर से दूर काम में डूबे हुए पुत्र या पुत्री को जायदाद के मामले में नजरअंदाज कर देते हैं। उन्हें पता भी नहीं चलता कि हमेशा नजरोंं के निकट रहने वाला चाटुखोर उन्हें प्रेम में ठग रहा है। सच है कि नजर के ज्यादा नजदीक लाई गई इबारत धुंधली नजर आती है।

बहरहाल ऋतुपर्णो घोष ने 'द लास्ट लियर' नामक कमाल की फिल्म बनाई थी, जिसमें अमिताभ बच्चन ने श्रेष्ठ अभिनय किया था। फिल्म में वे रंगमंच के महान अभिनेता हैं और उनके द्वारा अभिनीत 'किंग लियर' उनकी उपलब्धि है। फिल्म में एक फिल्मकार अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म के लिए रंगमंच के इस नटसम्राट के पास आता है। नटसम्राट थियेटर को श्रेष्ठ मानता है और फिल्मकार अपने माध्यम को नाटक से बड़ा मानता है।

फिल्म के भीतर फिल्म की कहानी एक जोकर की है, जो सर्कस के व्यावसायिक पतन के बाद जंगल चला जाता है। समाज में परिवर्तन के साथ कई माध्यम मर जाते हैं और उनसे जुड़े लोग जड़ से टूटे हुए वृक्ष की तरह हो जाते हैं, जिन पर कोई भूला-भटका परिंदा भी नहीं बैठता। यह फिल्म काल कवलित माध्यमों के प्रति श्रद्धा गीत की तरह पूरे दर्द के साथ प्रस्तुत की गई थी। इस फिल्म में फिल्मकार एक परफेक्ट शॉट की खातिर उम्रदराज नायक को मृत्यु के मुंह में फेंक देता है। दरअसल सृजनशील लोगों का अवचेतन भयावह जंगल की तरह होता है। 'द लास्ट लियर' की नामावली में प्रेरणा के लिए उत्पल दत्त को आदर दिया गया है जिनके नाटक से इस फिल्म के लिए प्रेरणा ली गई है।

लगभग पचास वर्ष पूर्व हेनरी डेन्कर का उपन्यास 'द डायरेक्टर' प्रकाशित हुआ था, जिसमें युवा प्रतिभाशाली फिल्मकार अपने उम्रदराज सितारा नायक को फिल्म के भीतर फिल्म के क्लाइमैक्स में मृत्यु के मुंह में ढकेल देता है, क्योंकि फिल्मकार की नायिका शूटिंग के समय उम्रदराज नायक से प्रेम करने लगती है और ईष्र्या का मारा अपने रकीब की हत्या कर देता है। दरअसल ऋतुपर्णो की फिल्म 'द लास्ट लियर' और हेनरी डेन्कर के उपन्यास में अनेक समानताएं हैं, परंतु यह नकल का मामला नहीं है। सच तो यह है कि अमिताभ बच्चन जैसी विलक्षण प्रतिभा के साथ हेनरी डेन्कर की ' द डायरेक्टर' बनाई जा सकती है। यह कलात्मक होते हुए भव्य बजट की व्यावसायिक फिल्म की संभावना वाला विषय है।

अमेरिका जैसे देश में जहां प्राय: साहित्य आधारित फिल्में बनती रही हैं, वहां इस पुस्तक का इतने लंबे समय तक अनेदखा रहना भी आश्चर्यजनक है। इसी तरह इरविंग वैलेस के 'द मैन' पर भी कोई प्रयास नहीं हुआ, जबकि बराक ओबामा के विजयी होने के तकरीबन पचास वर्ष पूर्व इस उपन्यास में एक नीग्रो के राष्ट्राध्यक्ष होने की कहानी है। इस उपन्यास का नीग्रो नायक खुद पर चलाए जा रहे झूठे अविश्वास प्रस्ताव की पैरवी के लिए अपने पुराने मित्र के पास जाता है, जिसने एक प्राइवेट कंपनी से केवल उनके काम का अनुबंध किया है, जिसके लिए उसे अकल्पनीय धन मिला है। उसकी पत्नी उससे कहती है कि अपने पुत्रों के भविष्य के लिए यह अनुबंध किया है, परंतु न्याय आधारित व्यवस्था वाला देश ही नहीं रहेगा तो किसका भविष्य, कैसा भविष्य। क्या आज इस तरह की बात सत्तासीन लियरों के मन में नहीं आती?