अवसाद / आलोक कुमार सातपुते

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“और क्या कर रहे हो भई आजकल...?” प्रश्नकर्ता ने प्रश्न किया

‘जी बेरोज़गार हूँ अंकल अभी तो...।’ उसने सर झुकाये अपनी टूटी चप्पलों की ओर देखते हुए अपराधबोध से कहा।

“मेरा लड़का तो अपने धंधे से लग गया है...अच्छा कमा खा रहा है...।” प्रश्नकर्ता ने बताया।

‘तो...? तो मैं क्या करूं...? आप जानबूझकर मेरे जख़्मों पर नमक़ छिड़कते हंै...।’ उसने अवसाद भरे स्वरों में कहा।

“मेरा ऐसा तो उद्देश्य नहीं था। “ कहते हुए प्रश्नकर्ता के अधरों पर कुटिल मुस्कुराहट आ गयी।