अस्पताल पृष्ठभूमि पर रचा साहित्य और फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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अस्पताल पृष्ठभूमि पर रचा साहित्य और फिल्में
प्रकाशन तिथि : 02 जुलाई 2019


अस्पताल की पृष्ठभूमि पर कुछ फिल्में बनी हैं। राजेंद्र कुमार, राजकुमार और मीना कुमारी अभिनीत 'दिल एक मंदिर' में अजीबोगरीब क्लाइमैक्स है कि डॉक्टर बीमार हो जाता है और बीमार पूरी तरह से सेहतमंद हो जाता है। बरहाल फिल्मकार श्रीधर ने फिल्म की शूटिंग मात्र 30 दिन में पूरी कर ली थी। ज्ञातव्य है कि इसी फिल्मकार ने विशुद्ध हास्य फिल्म 'प्यार किए जा' भी बनाई थी। गद्य रचने वाला कविता भी लिख सकता है। हमारे यहां जो एक दस्यु ने महाकाव्य लिखा है। दिन और रात के साथ ही अलसभोर का समय भी होता है। सिनेमा में इस अलभोर को 'ट्रेज्यो-कॉमेडी' कहते हैं। दुख का अंधकार पूरी तरह गया नहीं होता है और ना ही सुख का सवेरा हुआ होता है। यह सुरमई उजाला और चम्पई अंधेरे का समय है। विदेशों में अस्पताल और बीमारियों की पृष्ठभूमि पर अनगिनत उपन्यास लिखे गए हैं। जिनसे प्रेरित फिल्में भी बनीं। 'आइलेस इन गेजा' नामक उपन्यास में एक स्त्री अपने व्यक्तिगत बदले के लिए एक डॉक्टर से घायल आंख निकालने की शल्य क्रिया में देरी करा देती है और अच्छी आंख दूसरी आंख से सहानुभूति जताते हुए काम करना बंद कर देती है। इस बीमारी को सिमपैथेटिक ऑपथैलमिया कहते हैं। इस तरह एक जेनेटिक आंख की बीमारी को स्टारबक कहते हैं। जिसके इलाज के लिए अमेरिका और कनाडा में शोध कार्य चल रहा है। इसी स्टारबक का विशद वर्णन खाकसार की 'पाखी' में प्रकाशित कथा 'मत रहना अंखियों के भरोसे' में किया गया था। 'आइलेस इन गेजा' का टाइटल महाकवि मिल्टन के 'सैमसन एगोनिस्टिक' की याद ताजा करता है।

प्रियंका चोपड़ा ने मराठी भाषा में 'वेंटिलेटर' नामक फिल्म बनाई। जिसे बहुत पसंद किया गया। ज्ञातव्य है कि प्रियंका के पिता अशोक चोपड़ा डॉक्टर थे। माधुरी दीक्षित के पति डॉक्टर नेने आजकल मुंबई के मेडिकल कालेज में निशुल्क पढ़ाने जाते हैं। यूथेनेशिया को प्रस्तुत करने वाली फिल्म 'शायद' खाकसार ने लिखी और बनाई। इस फिल्म में एक शायर को कैंसर हो जाता है और लंबे समय तक इलाज कराते हुए नैराश्य से घिर जाता है। वह अपनी पत्नी से कहता है कि उसे जहर दे दे। पत्नी यह नहीं करना चाहती है परंतु पति की पीड़ा देखते हुए यह काम करती है। सेंसर बोर्ड ने आपत्ति दर्ज कि कोई भारतीय पत्नी यह कभी नहीं कर सकती। जाने हम कब तक पूर्व निर्धारित कूपमंडूकता पर डटे रहेंगे। मान लीजिए कि इस इलाज मैं इतना पैसा खर्च हो रहा है कि बच्चों की पढ़ाई रोकना पड़े या उन्हें एक ही वक्त की रोटी मिले तब क्या केवल दर्द का वक्त बढ़ाया जाए और बच्चों का जीवन नष्ट कर दें।

राखी गुलजार और अनुपम खेर अभिनीत फिल्म 'मेरे बाद' में एक दंपति को पति के औद्योगिक दुर्घटना में भुजाएं खोने और पत्नी को कैंसर होने के कारण अपने बच्चे नि: संतान लोगों को गोद देने पड़ते हैं। फिल्म के क्लाइमैक्स में सारे बच्चे गोद लेने वालों को पूरा सच बताते हैं और घर लौट आते हैं। इस फिल्म का निर्माण राखी गुलजार के सचिव ने किया था परंतु उनके परिचित लोगों का कहना था कि फिल्म निर्माण में राखी ने स्वयं धन लगाया था। यह अत्यंत दुख की बात है कि भारत में अस्पताल कम संख्या में हैं और जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या भी बहुत कम है। विजय आनंद की फिल्म 'तेरे मेरे सपने' में कस्बों में अस्पताल और डॉक्टर की कमी को रेखांकित किया गया था। यह फिल्म ए.जे क्रोनिन के उपन्यास 'द सिटेडल' से प्रेरित थी। फिल्म में डॉक्टर की भूमिका अभिनीत करने वाले देवाआनंद कुछ समय कस्बे में काम करते हैं परंतु साधनों की कमी से परेशान होकर महानगर आ जाते हैं। जहां वह खूब धन कमाते हैं। उनका मित्र भी डॉक्टर है जो उन्हें यह समझाने आया है कि लोभ, लालच और प्रसिद्धि ने उसे भ्रष्ट कर दिया है। उसने अपनी पत्नी तक को समय नहीं दिया। वह मानसिक यंत्रणा में जी रही है। बहरहाल विगत कुछ दिनों से इंदौर के शैलबी अस्पताल में विविध बीमारियों का इलाज करा रहा हूं। यहां डॉक्टर नर्स व अन्य कर्मचारी भी सेवा भाव से कार्य करते हैं। डॉक्टर्स डे पर इसी अस्पताल में मरीजों और डॉक्टर रिश्ते का ताना-बाना देख रहा हूं। दरअसल हर मरीज एक अफसाना है, हर डॉक्टर एक कविता है। सबसे त्रासद बात यह है कि हमारे राष्ट्रीय बजट का बहुत छोटा सा हिस्सा अवाम के स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है। बंगाली भाषा के उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' में यह रेखांकित किया गया है कि आयुर्वेद ने पैथोलॉजी को नकार देने की भारी भूल की है। बहरहाल आज जंगल ही श्रीहीन कर दिए गए हैं तो जड़ी बूटी कहां से पाएं?