आँखों देखी / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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तुम हमेशा से ही तर्कसम्मत बात करते थे तुम्हारे पास ज्ञान था और संसार का अनुभव भी इसलिए तुम मुझसे ज़्यादा दूर तक देख सकते थे। मैं तो जन्म से अंधी थी कभी देख नहीं पायी दूर का, न रंग न रूप...बस तुम्हारी आवाज सुनकर ही तुम्हारे होने की तसल्ली कर लेती थी और तुम्हारी कही हर बात पर यकीन भी।

हाँ, तुम हमेशा कहते थे एक छोटी-सी सर्जरी के बाद तुम ठीक से देख सकोगी लेकिन उन दिनों मुझे अस्पताल के नाम से ही डर लगता था और मैं हमेशा कहती-"तुम हो न मेरी आंखें तुमसे ही जान लूगीं सब संसार" ...लेकिन तुम हमेशा से चाहते थे मैं अपनी आंखों से सब देखूं। खैर...

अच्छे-खासे बड़े ऑपरेशन के बाद, बहुत पीड़ा सहने के बाद मुझे मेरी आंखें मिल गयीं और कुछ ही दिनों में मैंने सब साफ-साफ देखना शुरू कर दिया। हाँ तुम्हारी आवाज की कमी खलती रही कई दिनों तक, लेकिन सुनने से ज़्यादा भला देखना लगता है अब मुझे और मैंने जाना तुमने जो-जो कहा वह सब झूठ कहा सिवाय एक बात के।

तुमने कहा था " प्रेम का रंग गुलाबी होता है और गहरा होते-होते फिर वह एकदम सुर्ख लाल में बदल जाता है।

तुमने ये भी कहा था कि दर्द का रंग नीला होता है और प्यार की गुलाबी तितलियाँ सिर्फ़ बसंत में आती हैं। इन्हें हमेशा नीले दर्द के मौसम से डर लगता है। हाँ, तुमने यह भी कहा था प्रेम में कोई दूर नहीं रह सकता और ये भी कि हम जिससे प्रेम करते हैं उससे ज़्यादा दिन तक नाराज नहीं रह सकते और तुमने उस दिन अपनी अंतिम बात कही थी कि अहसास कभी नहीं मरते। जब बातें थक के सो जाती हैं होंठों के कोने में, तो दिल की जमीन गर्भवती होने लगती है। वहाँ अनगिनत अहसासों के भ्रूण पनपने लगते हैं और वे अहसास दो लोगों को जीवन भर जोड़े रखते हैं। तुमने ये भी कहा था कि जितना प्रेम उतनी दूरी, तुम्हें याद है न?

आज आंखें मिल गयीं तो देख रही हूँ प्रेम का रंग गुलाबी नहीं बर्फ-सा सफेद था। दर्द नीला नहीं मेरे भीतर बहते खून जैसा लाल था। मैंने देखा जो यहाँ प्रेम करते हैं वही एक-दूजे से दूर थे और नाराज भी। वे अगले सौ जन्मों तक यूं ही नाराज रहेंगे। मैंने देखा जितना प्रेम उतना दर्द कितने झूठे थे न तुम...तुमने किसी नेत्रहीन के साथ कैसा मजाक किया न...इतने झूठ?

हाँ एक बात तुमने सही कही थी-"हर चीज एक दिन खत्म हो ही जाती है।"